इस दूसरे आयाम को हम व्यक्ति का सृष्टि के साथ समायोजन कह सकते हैं। सृष्टि में जैसे पूर्व के अध्याय में बताया है, मनुष्य के साथ साथ प्राणी, वनस्पति और पंचमहाभूत हैं। हमने यह भी देखा कि इन चार सत्ताओं के दो वर्ग होते हैं , एक वर्ग में मनुष्य है और दूसरे में शेष तीनों। हम सुविधा के लिए इन्हें क्रमश: समष्टि और सृष्टि कहेंगे । इस सृष्टि को निसर्ग भी कह सकते हैं । अत: मनुष्य को दो स्तरों पर समायोजन करना है, एक समष्टि के स्तर पर अर्थात अपने जैसे अन्य मनुष्यों के साथ और दूसरा निसर्ग के साथ । इस समायोजन के लिए शिक्षा का विचार किस प्रकार किया जा सकता है यह अब देखेंगे।<ref>भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला १) - अध्याय १२, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> | इस दूसरे आयाम को हम व्यक्ति का सृष्टि के साथ समायोजन कह सकते हैं। सृष्टि में जैसे पूर्व के अध्याय में बताया है, मनुष्य के साथ साथ प्राणी, वनस्पति और पंचमहाभूत हैं। हमने यह भी देखा कि इन चार सत्ताओं के दो वर्ग होते हैं , एक वर्ग में मनुष्य है और दूसरे में शेष तीनों। हम सुविधा के लिए इन्हें क्रमश: समष्टि और सृष्टि कहेंगे । इस सृष्टि को निसर्ग भी कह सकते हैं । अत: मनुष्य को दो स्तरों पर समायोजन करना है, एक समष्टि के स्तर पर अर्थात अपने जैसे अन्य मनुष्यों के साथ और दूसरा निसर्ग के साथ । इस समायोजन के लिए शिक्षा का विचार किस प्रकार किया जा सकता है यह अब देखेंगे।<ref>भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला १) - अध्याय १२, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> |