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श्रीमद्भगवद्गीता<ref>श्रीमद्भगवद्गीता 1-43</ref> में महायुद्ध के परिणामों को बताते समय अर्जुन ने कहा है -  <blockquote>उत्साद्यंते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता: ।। 1-43 ।।</blockquote>गीता में अर्जुन ने कई बातें कहीं हैं जो ठीक नहीं थीं । कुछ बातें गलत होने के कारण भगवान ने अर्जुन को उलाहना दी है, डाँटा है, जैसे अध्याय २ श्लोक ३ में या अध्याय २ श्लोक ११ में। किन्तु अर्जुन के  उपर्युक्त कथन पर भगवान कुछ नहीं कहते । अर्थात् अर्जुन के  ‘जातिधर्म शाश्वत हैं’  इस कथन को मान्य करते हैं। जो शाश्वत है वह परमेश्वर निर्मित है। मीमांसा दर्शन के अनुसार भी ‘अनिषिध्दमनुमताम्’  अर्थात् जिसका निषेध नहीं किया गया उसकी अनुमति मानी जाती है। इसका यही अर्थ होता है कि जातिधर्म शाश्वत हैं। अर्जुन के  कथन का भगवान जब निषेध नहीं करते, इस का अर्थ है कि भगवान अर्जुन के ‘जातिधर्म (इस लिये जाति भी) शाश्वत हैं’ इस कथन को मान्य करते हैं।   
 
श्रीमद्भगवद्गीता<ref>श्रीमद्भगवद्गीता 1-43</ref> में महायुद्ध के परिणामों को बताते समय अर्जुन ने कहा है -  <blockquote>उत्साद्यंते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता: ।। 1-43 ।।</blockquote>गीता में अर्जुन ने कई बातें कहीं हैं जो ठीक नहीं थीं । कुछ बातें गलत होने के कारण भगवान ने अर्जुन को उलाहना दी है, डाँटा है, जैसे अध्याय २ श्लोक ३ में या अध्याय २ श्लोक ११ में। किन्तु अर्जुन के  उपर्युक्त कथन पर भगवान कुछ नहीं कहते । अर्थात् अर्जुन के  ‘जातिधर्म शाश्वत हैं’  इस कथन को मान्य करते हैं। जो शाश्वत है वह परमेश्वर निर्मित है। मीमांसा दर्शन के अनुसार भी ‘अनिषिध्दमनुमताम्’  अर्थात् जिसका निषेध नहीं किया गया उसकी अनुमति मानी जाती है। इसका यही अर्थ होता है कि जातिधर्म शाश्वत हैं। अर्जुन के  कथन का भगवान जब निषेध नहीं करते, इस का अर्थ है कि भगवान अर्जुन के ‘जातिधर्म (इस लिये जाति भी) शाश्वत हैं’ इस कथन को मान्य करते हैं।   
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वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था ये दोनों हजारों वर्षों से धार्मिक (भारतीय) समाज में विद्यमान हैं। महाभारत काल ५००० वर्षों से अधिक पुराना है। धार्मिक (भारतीय) कालगणना के अनुसार त्रेता युग का रामायण काल तो शायद १७ लाख वर्ष पुराना (रामसेतु की आयु) है। इन दोनों में जातियों के संदर्भ हैं। अर्थात् वर्ण और जाति व्यवस्था दोनों बहुत प्राचीन हैं इसे तो जो रामायण और महाभरत के यहाँ बताए काल से सहमत नहीं हैं वे भी मान्य करेंगे। कई दश-सहस्राब्दियों के इस सामाजिक जीवन में हमने कई उतार चढाव देखें हैं। जैसे पतन के काल में जाति व्यवस्था थी उसी प्रकार उत्थान के समय भी थी । इस जाति व्यवस्था के होते हुए भी वह हजारों वर्षों तक ज्ञान और समृध्दि के क्षेत्र में अग्रणी रहा है। उन्नत अवस्थाओं में भी जाति व्यवस्था का कभी अवरोध रहा ऐसा कहीं भी दूरदूर तक उल्लेख हमारे ३०० वर्षों से अधिक पुराने किसी भी धार्मिक (भारतीय) साहित्य में नहीं है। किसी भी धार्मिक (भारतीय) चिंतक ने इन व्यवस्थाओं को नकारा नहीं है।   
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वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था ये दोनों हजारों वर्षों से धार्मिक (भारतीय) समाज में विद्यमान हैं। महाभारत काल ५००० वर्षों से अधिक पुराना है। धार्मिक (भारतीय) कालगणना के अनुसार त्रेता युग का रामायण काल तो शायद १७ लाख वर्ष पुराना (रामसेतु की आयु) है। इन दोनों में जातियों के संदर्भ हैं। अर्थात् वर्ण और जाति व्यवस्था दोनों बहुत प्राचीन हैं इसे तो जो रामायण और महाभरत के यहाँ बताए काल से सहमत नहीं हैं वे भी मान्य करेंगे। कई दश-सहस्राब्दियों के इस सामाजिक जीवन में हमने कई उतार चढाव देखें हैं। जैसे पतन के काल में जाति व्यवस्था थी उसी प्रकार उत्थान के समय भी थी । इस जाति व्यवस्था के होते हुए भी वह हजारों वर्षों तक ज्ञान और समृध्दि के क्षेत्र में अग्रणी रहा है। उन्नत अवस्थाओं में भी जाति व्यवस्था का कभी अवरोध रहा ऐसा कहीं भी दूरदूर तक उल्लेख हमारे ३०० वर्षों से अधिक पुराने किसी भी धार्मिक (भारतीय) साहित्य में नहीं है। किसी भी धार्मिक (भारतीय) चिंतक ने इन व्यवस्थाओं को नकारा नहीं है।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड १, अध्याय १७, लेखक - दिलीप केलकर</ref>  
    
== व्यावसायिक कुशलताओं के समायोजन (जाति व्यवस्था) के लाभ ==
 
== व्यावसायिक कुशलताओं के समायोजन (जाति व्यवस्था) के लाभ ==

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