ये सभी बातें केवल परमात्मा के पास हैं। अन्य किसी के पास नहीं हैं। और इन्हीं बातों की चाहत हर मनुष्य को है अर्थात् प्रत्येक मानव परमात्मपद प्राप्त करना चाहता है। मोक्ष चाहता है। अन्य ढँग से देखें। सृष्टि में चक्रीयता है। हम यात्रा के लिए घर से निकलते हैं। हमारी यात्रा घर आकर ही पूर्ण होती है। सृष्टि का (और मनुष्य का भी) निर्माण यदि परमात्मा ने अपने में से ही किया है तो मानव जीवन का लक्ष्य भी जहाँ से यात्रा प्रारंभ की है वहीं पहुँचने का होगा।
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ये सभी बातें केवल परमात्मा के पास हैं। अन्य किसी के पास नहीं हैं। और इन्हीं बातों की चाहत हर मनुष्य को है अर्थात् प्रत्येक मानव परमात्मपद प्राप्त करना चाहता है। मोक्ष चाहता है। अन्य ढँग से देखें। सृष्टि में चक्रीयता है। हम यात्रा के लिए घर से निकलते हैं। हमारी यात्रा घर आकर ही पूर्ण होती है। सृष्टि का (और मनुष्य का भी) निर्माण यदि परमात्मा ने अपने में से ही किया है तो मानव जीवन का लक्ष्य भी जहाँ से यात्रा प्रारंभ की है वहीं पहुँचने का होगा।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड १, अध्याय ७, लेखक - दिलीप केलकर</ref>