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हमें सर्वप्रथम पाश्चात्य जीवनदृष्टि को समझना होगा। यह हम इसी अध्याय में आगे करेंगे। इस जीवनदृष्टि के आधार के कारण हमारे विचार, व्यवहार और व्यवस्थाएं, सब कैसे विकृत बन गये हैं यह जानना होगा। इस जीवनदृष्टि के कारण केवल हमारा ही नहीं तो चराचर का अहित कैसे हो रहा है यह समझना होगा। भारतीय जीवनदृष्टि को और इस जीवनदृष्टि पर आधारित वर्तनसूत्रों को समझना होगा। इन की सर्वहितकारिता का विश्लेषण करना होगा। इन सूत्रों पर आधारित व्यवहार और व्यवस्थाओं को शिक्षा के माध्यम से हमें प्रतिष्ठित करना होगा। इस जीवनदृष्टि की जानकारी हमने इस [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (भारतीय/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|लेख]] में प्राप्त की है। उसे हमें शिक्षा के हर विषय में अनुस्यूत करना होगा। जिस प्रकार दूध में शक्कर घुल जाने के बाद दूध के हर कण में शक्कर होती ही है, उसी प्रकार हमें शिक्षा क्षेत्र के हर विषय के पाठयक्रम की विषयवस्तु को भारतीय जीवनदृष्टि से ओतप्रोत करना होगा। वर्तमान पाश्चात्य शिक्षा में टुकडों में भारतीय जीवनदृष्टि का समावेश करने से केवल आत्मवंचना ही हो रही है। इस दृष्टि से हमें विभिन्न विषयों की विषयवस्तु का विचार करना होगा।
 
हमें सर्वप्रथम पाश्चात्य जीवनदृष्टि को समझना होगा। यह हम इसी अध्याय में आगे करेंगे। इस जीवनदृष्टि के आधार के कारण हमारे विचार, व्यवहार और व्यवस्थाएं, सब कैसे विकृत बन गये हैं यह जानना होगा। इस जीवनदृष्टि के कारण केवल हमारा ही नहीं तो चराचर का अहित कैसे हो रहा है यह समझना होगा। भारतीय जीवनदृष्टि को और इस जीवनदृष्टि पर आधारित वर्तनसूत्रों को समझना होगा। इन की सर्वहितकारिता का विश्लेषण करना होगा। इन सूत्रों पर आधारित व्यवहार और व्यवस्थाओं को शिक्षा के माध्यम से हमें प्रतिष्ठित करना होगा। इस जीवनदृष्टि की जानकारी हमने इस [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (भारतीय/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|लेख]] में प्राप्त की है। उसे हमें शिक्षा के हर विषय में अनुस्यूत करना होगा। जिस प्रकार दूध में शक्कर घुल जाने के बाद दूध के हर कण में शक्कर होती ही है, उसी प्रकार हमें शिक्षा क्षेत्र के हर विषय के पाठयक्रम की विषयवस्तु को भारतीय जीवनदृष्टि से ओतप्रोत करना होगा। वर्तमान पाश्चात्य शिक्षा में टुकडों में भारतीय जीवनदृष्टि का समावेश करने से केवल आत्मवंचना ही हो रही है। इस दृष्टि से हमें विभिन्न विषयों की विषयवस्तु का विचार करना होगा।
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वर्तमान में शिक्षा क्षेत्र में जो पाठयक्रम चल रहे है उन का भी हमें अध्ययन करना होगा। उन पाठयक्रमों के निर्माण के पीछे जो जीवनदृष्टि संभ्रम या जो सांस्कृतिक संभ्रम है उसे भी समझना होगा।
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वर्तमान में शिक्षा क्षेत्र में जो पाठयक्रम चल रहे है उन का भी हमें अध्ययन करना होगा। उन पाठयक्रमों के निर्माण के पीछे जो जीवनदृष्टि संभ्रम या जो सांस्कृतिक संभ्रम है उसे भी समझना होगा।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड २, अध्याय २५, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
    
== स्वाधीन भारत में शिक्षा के लक्ष्य निर्धारण में संभ्रम ==
 
== स्वाधीन भारत में शिक्षा के लक्ष्य निर्धारण में संभ्रम ==

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