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विभिन्न प्रकार के मानव जाति के लिए उपयुक्त खाद्य पदार्थों की जानकारी को आहार विज्ञान कहेंगे। जबकि व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार, मौसम के अनुसार क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, कब खाना चाहिए और कब नहीं खाना चाहिए, किसने कितना खाना चाहिए आदि की जानकारी आहारशास्त्र है। धार्मिक (भारतीय) दृष्टि से अर्थ से तात्पर्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए किये गए प्रयास और उपयोग में लाये गए धन, साधन और संसाधन होता है। इन इच्छाओं को और उनकी पूर्ति के प्रयासों तथा इस हेतु उपयोजित धन, साधन और संसाधनों की जानकारी को अर्थ विज्ञान कहेंगे। जबकि इस जानकारी का उपयोग मानव जीवन को सार्थक बनाने में किस तरह और क्यों करना है, इसे जानना समृद्धि शास्त्र कहलाएगा। परमात्मा के स्वरूप को समझने के लिए जो बताया या लिखा जाता है वह अध्यात्म विज्ञान है। और परमात्मा की प्राप्ति के लिए क्या क्या करना चाहिए यह जानना अध्यात्म शास्त्र है।
 
विभिन्न प्रकार के मानव जाति के लिए उपयुक्त खाद्य पदार्थों की जानकारी को आहार विज्ञान कहेंगे। जबकि व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार, मौसम के अनुसार क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, कब खाना चाहिए और कब नहीं खाना चाहिए, किसने कितना खाना चाहिए आदि की जानकारी आहारशास्त्र है। धार्मिक (भारतीय) दृष्टि से अर्थ से तात्पर्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए किये गए प्रयास और उपयोग में लाये गए धन, साधन और संसाधन होता है। इन इच्छाओं को और उनकी पूर्ति के प्रयासों तथा इस हेतु उपयोजित धन, साधन और संसाधनों की जानकारी को अर्थ विज्ञान कहेंगे। जबकि इस जानकारी का उपयोग मानव जीवन को सार्थक बनाने में किस तरह और क्यों करना है, इसे जानना समृद्धि शास्त्र कहलाएगा। परमात्मा के स्वरूप को समझने के लिए जो बताया या लिखा जाता है वह अध्यात्म विज्ञान है। और परमात्मा की प्राप्ति के लिए क्या क्या करना चाहिए यह जानना अध्यात्म शास्त्र है।
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तन्त्रज्ञान शास्त्र का ही एक हिस्सा है। क्योंकि शास्त्र में विज्ञान के माध्यम से प्रस्तुत जानकारी के प्रत्यक्ष उपयोजन का विषय भी होता है। और प्रत्यक्ष उपयोजन की प्रक्रिया ही तन्त्रज्ञान है। लेकिन इस के साथ ही उस विज्ञान का और तन्त्रज्ञान का उपयोग किसे करना चाहिये, किसे नहीं करना चाहिए, कब करना चाहिए, कब नहीं करना चाहिए, किसलिए करना चाहिए और किसलिए नहीं करना चाहिए, इन सब बातों को जानना शास्त्र है।
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तन्त्रज्ञान शास्त्र का ही एक हिस्सा है। क्योंकि शास्त्र में विज्ञान के माध्यम से प्रस्तुत जानकारी के प्रत्यक्ष उपयोजन का विषय भी होता है। और प्रत्यक्ष उपयोजन की प्रक्रिया ही तन्त्रज्ञान है। लेकिन इस के साथ ही उस विज्ञान का और तन्त्रज्ञान का उपयोग किसे करना चाहिये, किसे नहीं करना चाहिए, कब करना चाहिए, कब नहीं करना चाहिए, किसलिए करना चाहिए और किसलिए नहीं करना चाहिए, इन सब बातों को जानना शास्त्र है।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड २, अध्याय ३५, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
    
== वर्तमान का वास्तव ==
 
== वर्तमान का वास्तव ==

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