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सामान्यत: लोग इन दो शब्दों का प्रयोग इन के भिन्न अर्थों को समझे बिना ही करते रहते हैं। किसी पदार्थ की बनावट याने रचना को समझना विज्ञान है। और इस विज्ञान से प्राप्त जानकारी के आधारपर उस पदार्थ का क्यों, कैसे, किस के लिए उपयोग करना चाहिए आदि समझना यह शास्त्र है। जैसे मानव शरीर की रचना को जानना शरीर विज्ञान है। लेकिन इस विज्ञान के आधार पर शरीर को स्वस्थ बनाये रखने की जानकारी को आरोग्य शास्त्र कहेंगे।  
 
सामान्यत: लोग इन दो शब्दों का प्रयोग इन के भिन्न अर्थों को समझे बिना ही करते रहते हैं। किसी पदार्थ की बनावट याने रचना को समझना विज्ञान है। और इस विज्ञान से प्राप्त जानकारी के आधारपर उस पदार्थ का क्यों, कैसे, किस के लिए उपयोग करना चाहिए आदि समझना यह शास्त्र है। जैसे मानव शरीर की रचना को जानना शरीर विज्ञान है। लेकिन इस विज्ञान के आधार पर शरीर को स्वस्थ बनाये रखने की जानकारी को आरोग्य शास्त्र कहेंगे।  
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विभिन्न प्रकार के मानव जाति के लिए उपयुक्त खाद्य पदार्थों की जानकारी को आहार विज्ञान कहेंगे। जबकि व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार, मौसम के अनुसार क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, कब खाना चाहिए और कब नहीं खाना चाहिए, किसने कितना खाना चाहिए आदि की जानकारी आहारशास्त्र है। भारतीय दृष्टि से अर्थ से तात्पर्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए किये गए प्रयास और उपयोग में लाये गए धन, साधन और संसाधन होता है। इन इच्छाओं को और उनकी पूर्ति के प्रयासों तथा इस हेतु उपयोजित धन, साधन और संसाधनों की जानकारी को अर्थ विज्ञान कहेंगे। जबकि इस जानकारी का उपयोग मानव जीवन को सार्थक बनाने में किस तरह और क्यों करना है, इसे जानना समृद्धि शास्त्र कहलाएगा। परमात्मा के स्वरूप को समझने के लिए जो बताया या लिखा जाता है वह अध्यात्म विज्ञान है। और परमात्मा की प्राप्ति के लिए क्या क्या करना चाहिए यह जानना अध्यात्म शास्त्र है।
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विभिन्न प्रकार के मानव जाति के लिए उपयुक्त खाद्य पदार्थों की जानकारी को आहार विज्ञान कहेंगे। जबकि व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार, मौसम के अनुसार क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, कब खाना चाहिए और कब नहीं खाना चाहिए, किसने कितना खाना चाहिए आदि की जानकारी आहारशास्त्र है। धार्मिक (भारतीय) दृष्टि से अर्थ से तात्पर्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए किये गए प्रयास और उपयोग में लाये गए धन, साधन और संसाधन होता है। इन इच्छाओं को और उनकी पूर्ति के प्रयासों तथा इस हेतु उपयोजित धन, साधन और संसाधनों की जानकारी को अर्थ विज्ञान कहेंगे। जबकि इस जानकारी का उपयोग मानव जीवन को सार्थक बनाने में किस तरह और क्यों करना है, इसे जानना समृद्धि शास्त्र कहलाएगा। परमात्मा के स्वरूप को समझने के लिए जो बताया या लिखा जाता है वह अध्यात्म विज्ञान है। और परमात्मा की प्राप्ति के लिए क्या क्या करना चाहिए यह जानना अध्यात्म शास्त्र है।
    
तन्त्रज्ञान शास्त्र का ही एक हिस्सा है। क्योंकि शास्त्र में विज्ञान के माध्यम से प्रस्तुत जानकारी के प्रत्यक्ष उपयोजन का विषय भी होता है। और प्रत्यक्ष उपयोजन की प्रक्रिया ही तन्त्रज्ञान है। लेकिन इस के साथ ही उस विज्ञान का और तन्त्रज्ञान का उपयोग किसे करना चाहिये, किसे नहीं करना चाहिए, कब करना चाहिए, कब नहीं करना चाहिए, किसलिए करना चाहिए और किसलिए नहीं करना चाहिए, इन सब बातों को जानना शास्त्र है।
 
तन्त्रज्ञान शास्त्र का ही एक हिस्सा है। क्योंकि शास्त्र में विज्ञान के माध्यम से प्रस्तुत जानकारी के प्रत्यक्ष उपयोजन का विषय भी होता है। और प्रत्यक्ष उपयोजन की प्रक्रिया ही तन्त्रज्ञान है। लेकिन इस के साथ ही उस विज्ञान का और तन्त्रज्ञान का उपयोग किसे करना चाहिये, किसे नहीं करना चाहिए, कब करना चाहिए, कब नहीं करना चाहिए, किसलिए करना चाहिए और किसलिए नहीं करना चाहिए, इन सब बातों को जानना शास्त्र है।
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== भारतीय और यूरो अमरीकी जीवन दृष्टि और व्यवहार सूत्र ==
 
== भारतीय और यूरो अमरीकी जीवन दृष्टि और व्यवहार सूत्र ==
इन के विषय में हमने जीवन के प्रतिमान विषय की चर्चा में मोटी मोटी बातें जानीं हैं। इसलिए अब हम इस सत्र में केवल उनका अति-संक्षिप्त पुनर्स्मरण करते हुए आगे बढ़ेंगे। (अभारतीय जीवन दृष्टि के ३ और भारतीय जीवन दृष्टि के ५ सूत्र तथा उनपर आधारित व्यवहार सूत्र [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (भारतीय/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|यहाँ]] देखें)      
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इन के विषय में हमने जीवन के प्रतिमान विषय की चर्चा में मोटी मोटी बातें जानीं हैं। इसलिए अब हम इस सत्र में केवल उनका अति-संक्षिप्त पुनर्स्मरण करते हुए आगे बढ़ेंगे। (अभारतीय जीवन दृष्टि के ३ और धार्मिक (भारतीय) जीवन दृष्टि के ५ सूत्र तथा उनपर आधारित व्यवहार सूत्र [[Elements of Hindu Jeevan Drishti and Life Style (भारतीय/हिन्दू जीवनदृष्टि और जीवन शैली के सूत्र)|यहाँ]] देखें)      
    
== वर्तमान साईंस और तन्त्रज्ञान  के विकास की पृष्ठभूमि ==
 
== वर्तमान साईंस और तन्त्रज्ञान  के विकास की पृष्ठभूमि ==
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== वर्तमान साईंस और तन्त्रज्ञान दृष्टि ==
 
== वर्तमान साईंस और तन्त्रज्ञान दृष्टि ==
वर्तमान में भारतीय विज्ञान और तन्त्रज्ञान  दृष्टि नष्ट हो गयी है। जो भी है वह अभारतीय साईंस और तन्त्रज्ञान  दृष्टि ही है। रेने देकार्ते को इस यूरोपीय साईंस दृष्टि का जनक माना जाता है। रेने देकार्ते एक गणिति तथा फिलॉसॉफर था। उस के द्वारा प्रतिपादित साईंस दृष्टि के महत्वपूर्ण पहलू निम्न हैं:      
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वर्तमान में धार्मिक (भारतीय) विज्ञान और तन्त्रज्ञान  दृष्टि नष्ट हो गयी है। जो भी है वह अधार्मिक (अभारतीय) साईंस और तन्त्रज्ञान  दृष्टि ही है। रेने देकार्ते को इस यूरोपीय साईंस दृष्टि का जनक माना जाता है। रेने देकार्ते एक गणिति तथा फिलॉसॉफर था। उस के द्वारा प्रतिपादित साईंस दृष्टि के महत्वपूर्ण पहलू निम्न हैं:      
# द्वैतवाद : इस का भारतीय द्वैतवाद से कोई संबंध नहीं है। इस में यह माना गया है कि विश्व में मैं और अन्य सारी सृष्टि ऐसे दो घटक है। मैं इस सृष्टि का ज्ञान प्राप्त करने वाला हूं। मैं इस सृष्टि का भोग करनेवाला हूँ। मैं इस सृष्टि से भिन्न हूँ।      
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# द्वैतवाद : इस का धार्मिक (भारतीय) द्वैतवाद से कोई संबंध नहीं है। इस में यह माना गया है कि विश्व में मैं और अन्य सारी सृष्टि ऐसे दो घटक है। मैं इस सृष्टि का ज्ञान प्राप्त करने वाला हूं। मैं इस सृष्टि का भोग करनेवाला हूँ। मैं इस सृष्टि से भिन्न हूँ।      
 
# वस्तुनिष्ठता : जो प्रत्येक सामान्य मनुष्य द्वारा समान रूप से जाना जा सकता है वही वस्तुनिष्ठ है। १ साडी की लम्बाई और चौडाई तो सभी महिलाओं के लिये एक जितनी ही होगी। किन्तु उसका स्पर्श का अनुभव हर स्त्री को भिन्न होगा। १ किलो लड्डू का वजन कोई भी करे वह १ किलो ही होगा। किन्तु उस लड्डू का स्वाद हर मनुष्य के लिये भिन्न हो सकता है। इस लिये जिसका मापन किया जा सकता है वह साईंस के दायरे में आता है। लेकिन स्पर्श, स्वाद आदि जो हर व्यक्ति के अनुसार भिन्न भिन्न होंगे वे साईंस के विषय नहीं बन सकते।      
 
# वस्तुनिष्ठता : जो प्रत्येक सामान्य मनुष्य द्वारा समान रूप से जाना जा सकता है वही वस्तुनिष्ठ है। १ साडी की लम्बाई और चौडाई तो सभी महिलाओं के लिये एक जितनी ही होगी। किन्तु उसका स्पर्श का अनुभव हर स्त्री को भिन्न होगा। १ किलो लड्डू का वजन कोई भी करे वह १ किलो ही होगा। किन्तु उस लड्डू का स्वाद हर मनुष्य के लिये भिन्न हो सकता है। इस लिये जिसका मापन किया जा सकता है वह साईंस के दायरे में आता है। लेकिन स्पर्श, स्वाद आदि जो हर व्यक्ति के अनुसार भिन्न भिन्न होंगे वे साईंस के विषय नहीं बन सकते।      
 
# विखंडित विश्लेषण पध्दति : वैज्ञानिक दृष्टिकोण की विचारधारा को देकार्ते की यह सब से बडी देन है। उस ने पेंचिदा बातों को समझने के लिये सामान्य मनुष्य के लिये विखंडित विश्लेषण पध्दति के रूप में एक प्रणालि बताई। इस पध्दति के अनुसार पूर्ण वस्तू का ज्ञान उसके छोटे छोटे टुकडों के प्राप्त किये ज्ञान का जोड होगा।      
 
# विखंडित विश्लेषण पध्दति : वैज्ञानिक दृष्टिकोण की विचारधारा को देकार्ते की यह सब से बडी देन है। उस ने पेंचिदा बातों को समझने के लिये सामान्य मनुष्य के लिये विखंडित विश्लेषण पध्दति के रूप में एक प्रणालि बताई। इस पध्दति के अनुसार पूर्ण वस्तू का ज्ञान उसके छोटे छोटे टुकडों के प्राप्त किये ज्ञान का जोड होगा।      
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अपने अधिकार कोई छोडना नहीं चाहता। यह बात स्वाभाविक है। इसी के कारण आज का साईंटिस्ट प्रमाण के क्षेत्र में अपना महत्व खोना नहीं चाहता।      
 
अपने अधिकार कोई छोडना नहीं चाहता। यह बात स्वाभाविक है। इसी के कारण आज का साईंटिस्ट प्रमाण के क्षेत्र में अपना महत्व खोना नहीं चाहता।      
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== भारतीय जीवनदृष्टि पर आधारित भारतीय तन्त्रज्ञान दृष्टि के सूत्र                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            ==
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== भारतीय जीवनदृष्टि पर आधारित धार्मिक (भारतीय) तन्त्रज्ञान दृष्टि के सूत्र                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            ==
इस सन्दर्भ में हमें वर्तमान साईंस और भारतीय विज्ञान में अंतर को समझना होगा। वर्तमान साईंस का भारतीय विज्ञान के साथ या अध्यात्म के साथ कोइ झगड़ा या विरोध नहीं है। उलटे वर्तमान साईंस यह भारतीय विज्ञान का एक हिस्सा मात्र है। इसे समझना भी महत्त्वपूर्ण है।      
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इस सन्दर्भ में हमें वर्तमान साईंस और धार्मिक (भारतीय) विज्ञान में अंतर को समझना होगा। वर्तमान साईंस का धार्मिक (भारतीय) विज्ञान के साथ या अध्यात्म के साथ कोइ झगड़ा या विरोध नहीं है। उलटे वर्तमान साईंस यह धार्मिक (भारतीय) विज्ञान का एक हिस्सा मात्र है। इसे समझना भी महत्त्वपूर्ण है।      
विज्ञान की भारतीय व्याख्या जो श्रीमद्भगवद्गीता में मिलती है उसके अनुसार<ref>श्रीमद भगवद गीता 4.7</ref> -     <blockquote>भूमिरापोऽनलो वायू: खं मनो बुद्धिरेव च:</blockquote><blockquote>अहंकार इतियं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥ (4.7)</blockquote><blockquote>अर्थ: तेज, वायु पृथ्वी, जल, आकाश यह पाँच महाभूत तथा मन बुद्धि और अहंकार मिलकर 8 तत्वों से प्रकृति बनी है। याने प्रकृति का हर अस्तित्व बना है।</blockquote> इस अष्टधा प्रकृति के माध्यम से परमात्मा या ब्रह्म को जानने की प्रक्रिया ही विज्ञान है। अर्थात् ब्रह्म को जानने की प्रक्रिया ही विज्ञान है। ब्रह्म को जानने के लिये पहले अष्टधा प्रकृति को जानना होगा। वर्तमान साईंस केवल उपर्युक्त आठ तत्वों में से पाँच याने पंचमहाभौतिक तत्वों के अस्तित्त्व को स्वीकार करता है। इस दृष्टि से वर्तमान सायंस भारतीय विज्ञान का एक हिस्सा है। गणित की भाषा में एक सबसेट है।      
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विज्ञान की धार्मिक (भारतीय) व्याख्या जो श्रीमद्भगवद्गीता में मिलती है उसके अनुसार<ref>श्रीमद भगवद गीता 4.7</ref> -     <blockquote>भूमिरापोऽनलो वायू: खं मनो बुद्धिरेव च:</blockquote><blockquote>अहंकार इतियं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥ (4.7)</blockquote><blockquote>अर्थ: तेज, वायु पृथ्वी, जल, आकाश यह पाँच महाभूत तथा मन बुद्धि और अहंकार मिलकर 8 तत्वों से प्रकृति बनी है। याने प्रकृति का हर अस्तित्व बना है।</blockquote> इस अष्टधा प्रकृति के माध्यम से परमात्मा या ब्रह्म को जानने की प्रक्रिया ही विज्ञान है। अर्थात् ब्रह्म को जानने की प्रक्रिया ही विज्ञान है। ब्रह्म को जानने के लिये पहले अष्टधा प्रकृति को जानना होगा। वर्तमान साईंस केवल उपर्युक्त आठ तत्वों में से पाँच याने पंचमहाभौतिक तत्वों के अस्तित्त्व को स्वीकार करता है। इस दृष्टि से वर्तमान सायंस धार्मिक (भारतीय) विज्ञान का एक हिस्सा है। गणित की भाषा में एक सबसेट है।      
 
श्रीमद्भगवद्गीता में और भी कहा है:     <blockquote>इंद्रियाणि पराण्याहूरिन्द्रियेभ्य परं मन:</blockquote><blockquote>मनसस्तु परा बुधिर्यो बुध्दे परतस्तु स: ॥3.7॥</blockquote><blockquote>अर्थ : शरीर या हमारे इंद्रीयों से मन सूक्ष्म होता है। सूक्ष्म का अर्थ है अधिक व्यापक, अधिक बलवान। मनसे बुद्धि अधिक सूक्ष्म होती है। और आत्मतत्व तो अत्यंत सूक्ष्म होता है।</blockquote>जिस प्रकार से अत्यंत सूक्ष्म भौतिक कणों याने नॅनो कणों का मापन हमारी सामान्य मापन पट्टी से नहीं हो सकता उसी प्रकार से मन जो पंचमहाभूतों से याने पंचमहाभूतों के सूक्ष्म कणों से भी अत्यंत सूक्ष्म है उसका मापन भौतिक सूक्ष्मतादर्शक से भी नहीं किया जा सकता। इसलिये मन और बुद्धि के व्यापार जानने के लिये मन और बुद्धि का ही सहारा लिया जा सकता है। इस का श्रेष्ठ साधन 'अष्टांग योग' है। आगे हम विज्ञान शब्द का वर्तमान साईंस के अर्थ से ही प्रयोग करेंगे।      
 
श्रीमद्भगवद्गीता में और भी कहा है:     <blockquote>इंद्रियाणि पराण्याहूरिन्द्रियेभ्य परं मन:</blockquote><blockquote>मनसस्तु परा बुधिर्यो बुध्दे परतस्तु स: ॥3.7॥</blockquote><blockquote>अर्थ : शरीर या हमारे इंद्रीयों से मन सूक्ष्म होता है। सूक्ष्म का अर्थ है अधिक व्यापक, अधिक बलवान। मनसे बुद्धि अधिक सूक्ष्म होती है। और आत्मतत्व तो अत्यंत सूक्ष्म होता है।</blockquote>जिस प्रकार से अत्यंत सूक्ष्म भौतिक कणों याने नॅनो कणों का मापन हमारी सामान्य मापन पट्टी से नहीं हो सकता उसी प्रकार से मन जो पंचमहाभूतों से याने पंचमहाभूतों के सूक्ष्म कणों से भी अत्यंत सूक्ष्म है उसका मापन भौतिक सूक्ष्मतादर्शक से भी नहीं किया जा सकता। इसलिये मन और बुद्धि के व्यापार जानने के लिये मन और बुद्धि का ही सहारा लिया जा सकता है। इस का श्रेष्ठ साधन 'अष्टांग योग' है। आगे हम विज्ञान शब्द का वर्तमान साईंस के अर्थ से ही प्रयोग करेंगे।      
 
# मानव जीवन का लक्ष्य यदि परमात्मपद प्राप्ति है तो विज्ञान और तन्त्रज्ञान  के विकास और उपयोग का लक्ष्य भी परमात्मपद प्राप्ति ही रहेगा। अन्य नहीं। और मोक्षप्राप्ति का या परमात्मपदप्राप्ति का मार्ग तो ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ ही है। कुछ लोग कहेंगे कि मोक्ष मानव जीवन का लक्ष्य नहीं है। मानव जीवन का लक्ष्य सुख है। फिर भी व्यक्ति समाज का और सृष्टि का अविभाज्य ऐसा हिस्सा होने से जब तक सुख समाजव्याप्त और सृष्टिव्याप्त नहीं होता व्यक्ति भी सुख से नहीं जी सकता। विज्ञान और तन्त्रज्ञान का उपयोग ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के लिये करने से ही व्यक्तिगत सुख की आश्वस्ति मिल सकेगी।      
 
# मानव जीवन का लक्ष्य यदि परमात्मपद प्राप्ति है तो विज्ञान और तन्त्रज्ञान  के विकास और उपयोग का लक्ष्य भी परमात्मपद प्राप्ति ही रहेगा। अन्य नहीं। और मोक्षप्राप्ति का या परमात्मपदप्राप्ति का मार्ग तो ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ ही है। कुछ लोग कहेंगे कि मोक्ष मानव जीवन का लक्ष्य नहीं है। मानव जीवन का लक्ष्य सुख है। फिर भी व्यक्ति समाज का और सृष्टि का अविभाज्य ऐसा हिस्सा होने से जब तक सुख समाजव्याप्त और सृष्टिव्याप्त नहीं होता व्यक्ति भी सुख से नहीं जी सकता। विज्ञान और तन्त्रज्ञान का उपयोग ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के लिये करने से ही व्यक्तिगत सुख की आश्वस्ति मिल सकेगी।      
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# आहार, निद्रा, भय और मैथुन ये चार प्राणिक आवेग मनुष्यों और पशुओं में दोनों में एक जैसे ही होते हैं। मनुष्य की आवश्यकताओं का निर्धारण प्राणिक आवेग करते हैं। लेकिन मनुष्य का मन इच्छाएँ भी करता हैं। प्राणिक आवेगों की तृप्ति की सीमा होती है। लेकिन इच्छाओं की और इस कारण से तृप्ति की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन प्रकृति के संसाधन मर्यादित होते हैं। इस विसंगति को दूर करने का एकमात्र उपाय ‘उपभोग संयम’ ही है। उपभोग संयम की शिक्षा के अभाव में हर नया तन्त्रज्ञान प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग बढाकर पर्यावरणीय समस्याओं में वृद्धि करता है।      
 
# आहार, निद्रा, भय और मैथुन ये चार प्राणिक आवेग मनुष्यों और पशुओं में दोनों में एक जैसे ही होते हैं। मनुष्य की आवश्यकताओं का निर्धारण प्राणिक आवेग करते हैं। लेकिन मनुष्य का मन इच्छाएँ भी करता हैं। प्राणिक आवेगों की तृप्ति की सीमा होती है। लेकिन इच्छाओं की और इस कारण से तृप्ति की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन प्रकृति के संसाधन मर्यादित होते हैं। इस विसंगति को दूर करने का एकमात्र उपाय ‘उपभोग संयम’ ही है। उपभोग संयम की शिक्षा के अभाव में हर नया तन्त्रज्ञान प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग बढाकर पर्यावरणीय समस्याओं में वृद्धि करता है।      
 
# किसी भी समाज में ९०-९५ प्रतिशत लोग सामान्य प्रतिभा के होते हैं। केवल ५ -१० प्रतिशत लोग ही विशेष प्रतिभा के धनी होते हैं। इन्हें श्रीमद्भगवद्गीता में ‘श्रेष्ठ’ कहा गया है। शेष ९०-९५ प्रतिशत सामान्य लोग इन श्रेष्ठ जनों का अनुसरण करते हैं। सामान्य लोगों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कोई लेना देना नहीं होता। वे तो सामान्य ज्ञान के आधारपर अपने हित या अहित का विचार करते हैं। जब उन्हें ऐसा समझने में कठिनाई होती है वे श्रेष्ठ मनुष्यों की ओर मार्गदर्शन के लिये देखते हैं। इसीलिये वैज्ञानिक दृष्टि इन ५ -१० प्रतिशत श्रेष्ठ जनों के लिये आवश्यक होती है। ऐसे लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि की गलत समझ ही तन्त्रज्ञान  के दुरूपयोग से उपजी समस्याओं के मूल में है।      
 
# किसी भी समाज में ९०-९५ प्रतिशत लोग सामान्य प्रतिभा के होते हैं। केवल ५ -१० प्रतिशत लोग ही विशेष प्रतिभा के धनी होते हैं। इन्हें श्रीमद्भगवद्गीता में ‘श्रेष्ठ’ कहा गया है। शेष ९०-९५ प्रतिशत सामान्य लोग इन श्रेष्ठ जनों का अनुसरण करते हैं। सामान्य लोगों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कोई लेना देना नहीं होता। वे तो सामान्य ज्ञान के आधारपर अपने हित या अहित का विचार करते हैं। जब उन्हें ऐसा समझने में कठिनाई होती है वे श्रेष्ठ मनुष्यों की ओर मार्गदर्शन के लिये देखते हैं। इसीलिये वैज्ञानिक दृष्टि इन ५ -१० प्रतिशत श्रेष्ठ जनों के लिये आवश्यक होती है। ऐसे लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि की गलत समझ ही तन्त्रज्ञान  के दुरूपयोग से उपजी समस्याओं के मूल में है।      
# वर्तमान में उच्च तन्त्रज्ञान की व्याख्या क्या है? उच्च तन्त्रज्ञान वह है जो पुराने तंत्रज्ञान द्वारा निर्माण हुई किसी समस्या को तो दूर करता है और साथ ही में और नई समस्याएँ निर्माण कर और अधिक महंगे तन्त्रज्ञान की आवश्यकता निर्माण करता है। भारतीय दृष्टि से ऐसे उच्च तन्त्रज्ञान का विकास जो समस्याओं का निर्माण करता है या ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का विरोधी है, अमान्य है। जैसे एलोपॅथी की प्रतिजैविक दवाईयाँ पुराने रोगों के जन्तुओं को और साथ ही में मनुष्य के लिये स्वास्थ्योपयोगी जन्तुओं को भी मारकर रोग के जन्तुओं की नई प्रजातियों के निर्माण की संभावनाएँ बढाते हैं। यह ठीक नहीं है।      
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# वर्तमान में उच्च तन्त्रज्ञान की व्याख्या क्या है? उच्च तन्त्रज्ञान वह है जो पुराने तंत्रज्ञान द्वारा निर्माण हुई किसी समस्या को तो दूर करता है और साथ ही में और नई समस्याएँ निर्माण कर और अधिक महंगे तन्त्रज्ञान की आवश्यकता निर्माण करता है। धार्मिक (भारतीय) दृष्टि से ऐसे उच्च तन्त्रज्ञान का विकास जो समस्याओं का निर्माण करता है या ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का विरोधी है, अमान्य है। जैसे एलोपॅथी की प्रतिजैविक दवाईयाँ पुराने रोगों के जन्तुओं को और साथ ही में मनुष्य के लिये स्वास्थ्योपयोगी जन्तुओं को भी मारकर रोग के जन्तुओं की नई प्रजातियों के निर्माण की संभावनाएँ बढाते हैं। यह ठीक नहीं है।      
 
# बडी मात्रा में उत्पादन के तंत्रज्ञानों ने भी कई प्रकारकी समस्याओं को जन्म दिया है। जैसे:      
 
# बडी मात्रा में उत्पादन के तंत्रज्ञानों ने भी कई प्रकारकी समस्याओं को जन्म दिया है। जैसे:      
 
## रोजगार की संभावनाएँ कम कर बेरोजगारी बढाना।      
 
## रोजगार की संभावनाएँ कम कर बेरोजगारी बढाना।      
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# इसी तरह से नॅनो तन्त्रज्ञान भी सूक्ष्म तन्त्रज्ञान है। इनका भी चराचर के ऊपर क्या और कैसा सूक्ष्म प्रभाव होगा इसकी जानकारी नहीं होती। लाखों जीवजातियों के ऊपर इनका होनेवाला सूक्ष्म प्रभाव जानना असंभव है। मनुष्य के आहार में मैदे के अधिक मात्रा में उपयोग का इसीलिये निषेध है।      
 
# इसी तरह से नॅनो तन्त्रज्ञान भी सूक्ष्म तन्त्रज्ञान है। इनका भी चराचर के ऊपर क्या और कैसा सूक्ष्म प्रभाव होगा इसकी जानकारी नहीं होती। लाखों जीवजातियों के ऊपर इनका होनेवाला सूक्ष्म प्रभाव जानना असंभव है। मनुष्य के आहार में मैदे के अधिक मात्रा में उपयोग का इसीलिये निषेध है।      
 
# कौटुम्बिक उद्योगों की अर्थव्यवस्था में सभी मालिक होते हैं। जब की बडे उद्योगों के लिये बननेवाले तन्त्रज्ञान सब को नौकर बना देते हैं। स्वयंचलितीकरण और विशाल उत्पादन करनेवाले वर्तमान तन्त्रज्ञान विश्वभर में नौकरों की मानसिकतावाले लोग निर्माण कर रहे हैं। इसलिये बडे उद्योगों के लिये बनाया जानेवाले तन्त्रज्ञान का केवल चराचर के हित की दृष्टि से अनिवार्यता से सुपात्र व्यक्ति को ही अंतरण होना चाहिये। साथ ही में तेजी से कौटुम्बिक उद्योगों के लिये तन्त्रज्ञान का विकास करने की आवश्यकता है।      
 
# कौटुम्बिक उद्योगों की अर्थव्यवस्था में सभी मालिक होते हैं। जब की बडे उद्योगों के लिये बननेवाले तन्त्रज्ञान सब को नौकर बना देते हैं। स्वयंचलितीकरण और विशाल उत्पादन करनेवाले वर्तमान तन्त्रज्ञान विश्वभर में नौकरों की मानसिकतावाले लोग निर्माण कर रहे हैं। इसलिये बडे उद्योगों के लिये बनाया जानेवाले तन्त्रज्ञान का केवल चराचर के हित की दृष्टि से अनिवार्यता से सुपात्र व्यक्ति को ही अंतरण होना चाहिये। साथ ही में तेजी से कौटुम्बिक उद्योगों के लिये तन्त्रज्ञान का विकास करने की आवश्यकता है।      
# वर्तमान में अभारतीय समाजोंने जो संहारक शस्त्र निर्माण किये हैं उनसे सुरक्षा के लिये तन्त्रज्ञान का निर्माण और उपयोग तो आज हमारी अनिवार्यता है। आक्रमण यह सुरक्षा का श्रेष्ठ तरीका होता है। इसे ध्यान में रखकर उनसे भी अधिक घातक तंत्रज्ञानों का विकास भी हमें करना ही होगा। लेकिन यह आपध्दर्म है इसे ध्यान में रखना होगा। साथ ही में संभाव्य शत्रुओं के शस्त्रों का उपशम करने के लिये याने उन शस्त्रोंकी संहारकता नष्ट करने के लिये हमें तंत्रज्ञानों का विकास करना होगा।      
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# वर्तमान में अधार्मिक (अभारतीय) समाजोंने जो संहारक शस्त्र निर्माण किये हैं उनसे सुरक्षा के लिये तन्त्रज्ञान का निर्माण और उपयोग तो आज हमारी अनिवार्यता है। आक्रमण यह सुरक्षा का श्रेष्ठ तरीका होता है। इसे ध्यान में रखकर उनसे भी अधिक घातक तंत्रज्ञानों का विकास भी हमें करना ही होगा। लेकिन यह आपध्दर्म है इसे ध्यान में रखना होगा। साथ ही में संभाव्य शत्रुओं के शस्त्रों का उपशम करने के लिये याने उन शस्त्रोंकी संहारकता नष्ट करने के लिये हमें तंत्रज्ञानों का विकास करना होगा।      
 
# गति और मति का संबंध व्यस्त होता है। जब मनुष्य का शरीर गतिमान होता है तो उसकी मति मंदगति से चलती है। और जब मनुष्य शांत या मंद गति से जा रहा होता है तब उसकी मति तेज चलती है। यह सामान्य ज्ञान की बात है। वर्तमान तंत्रज्ञानने जीवन को बेशुमार गति देकर उसे सामान्य मनुष्य के लिये असहनीय बना दिया है। वह आधुनिक तन्त्रज्ञान के साथ समायोजन करने में असमर्थ होने के कारण तन्त्रज्ञान के पीछे छातीफाड़ गति से भी भाग नहीं पा रहा। वह मजबूर है घसीटे जाने के लिये।      
 
# गति और मति का संबंध व्यस्त होता है। जब मनुष्य का शरीर गतिमान होता है तो उसकी मति मंदगति से चलती है। और जब मनुष्य शांत या मंद गति से जा रहा होता है तब उसकी मति तेज चलती है। यह सामान्य ज्ञान की बात है। वर्तमान तंत्रज्ञानने जीवन को बेशुमार गति देकर उसे सामान्य मनुष्य के लिये असहनीय बना दिया है। वह आधुनिक तन्त्रज्ञान के साथ समायोजन करने में असमर्थ होने के कारण तन्त्रज्ञान के पीछे छातीफाड़ गति से भी भाग नहीं पा रहा। वह मजबूर है घसीटे जाने के लिये।      
 
*  आपध्दर्म के रूप में जैविक, नॅनो, संहारक शस्त्र आदि जैसे तंत्रज्ञानों का उपयोग किया जा सकता है।
 
*  आपध्दर्म के रूप में जैविक, नॅनो, संहारक शस्त्र आदि जैसे तंत्रज्ञानों का उपयोग किया जा सकता है।
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# व्यक्तिवादिता या स्वार्थ आधारित संबंध : स्वार्थ आधारित सामाजिक संबंधों के कारण प्रत्येक सामाजिक संबंध में अधिकारों के लिए संघर्ष और इस कारण बलवानों का वर्चस्व, अमर्याद व्यक्तिगत स्वातंत्र्य के कारण स्वैराचार, अपने से दुर्बल ऐसे प्रत्येक का शोषण, बलवानों के स्वार्थ का पोषण करनेवाली व्यवस्थाएँ आदि बातें समाज में स्थापित हो जातीं हैं। जब बलवानों का स्वार्थ समाज जीवन के परस्पर संबंधों का आधार होगा तो जीवन की गति का निर्धारण भी जिन की बुद्धि बलवान होती है याने की बुद्धि की गति तेज है ऐसे स्वार्थी लोग ही करते हैं।  
 
# व्यक्तिवादिता या स्वार्थ आधारित संबंध : स्वार्थ आधारित सामाजिक संबंधों के कारण प्रत्येक सामाजिक संबंध में अधिकारों के लिए संघर्ष और इस कारण बलवानों का वर्चस्व, अमर्याद व्यक्तिगत स्वातंत्र्य के कारण स्वैराचार, अपने से दुर्बल ऐसे प्रत्येक का शोषण, बलवानों के स्वार्थ का पोषण करनेवाली व्यवस्थाएँ आदि बातें समाज में स्थापित हो जातीं हैं। जब बलवानों का स्वार्थ समाज जीवन के परस्पर संबंधों का आधार होगा तो जीवन की गति का निर्धारण भी जिन की बुद्धि बलवान होती है याने की बुद्धि की गति तेज है ऐसे स्वार्थी लोग ही करते हैं।  
 
# ईहवादिता और जडवदिता : जो भी कुछ है बस यही जीवन है। इस जन्म के आगे कुछ नहीं होगा और इस जन्म से पहले भी कुछ नहीं था ऐसी मान्यता को इहवादिता कहते हैं। इस के कारण जितना भी अधिक से अधिक उपभोग मैं इस जन्म में कर सकता हूँ कर लूँ ऐसी महत्वाकांक्षा निर्माण हो जाती है। उपभोक्तावाद को बढावा मिलता है। प्रकृति का अनावश्यक विनाश होता है। इस अधिक से अधिक उपभोग करने की होड के कारण जीवन को अनावश्यक तेज गति प्राप्त हो जाती है। सारी सृष्टि जड से बनीं है ऐसा मान लेने से जीवन की गति का विचार ही नष्ट हो जाता है। वर्तमान विज्ञान के अनुसार जड पदार्थों की अधिकतम गति प्रकाश की गति होती है। इसलिए इस प्रकाश की गति के अधिक से अधिक निकट की गति प्राप्त करने के प्रयास वर्तमान में हो रहे हैं। जड की गति की सहायता से जीवन की गति बढाने को ही विकास माना जा रहा है। इस कारण भी जीवन की गति इष्ट गति से बहुत अधिक हो गई है।  
 
# ईहवादिता और जडवदिता : जो भी कुछ है बस यही जीवन है। इस जन्म के आगे कुछ नहीं होगा और इस जन्म से पहले भी कुछ नहीं था ऐसी मान्यता को इहवादिता कहते हैं। इस के कारण जितना भी अधिक से अधिक उपभोग मैं इस जन्म में कर सकता हूँ कर लूँ ऐसी महत्वाकांक्षा निर्माण हो जाती है। उपभोक्तावाद को बढावा मिलता है। प्रकृति का अनावश्यक विनाश होता है। इस अधिक से अधिक उपभोग करने की होड के कारण जीवन को अनावश्यक तेज गति प्राप्त हो जाती है। सारी सृष्टि जड से बनीं है ऐसा मान लेने से जीवन की गति का विचार ही नष्ट हो जाता है। वर्तमान विज्ञान के अनुसार जड पदार्थों की अधिकतम गति प्रकाश की गति होती है। इसलिए इस प्रकाश की गति के अधिक से अधिक निकट की गति प्राप्त करने के प्रयास वर्तमान में हो रहे हैं। जड की गति की सहायता से जीवन की गति बढाने को ही विकास माना जा रहा है। इस कारण भी जीवन की गति इष्ट गति से बहुत अधिक हो गई है।  
# तन्त्रज्ञान  : वैसे तो विज्ञान और तन्त्रज्ञान दोनों ही तटस्थ होते हैं। अपने आप में वे हानिकारक या लाभकारक नहीं होते। उनके विकास और उपयोजन के पीछे काम करनेवाली जीवनदृष्टि ही उन्हें उपकारक या हानिकारक बनाती है। यूरो-अमरीकी याने अभारतीय जीवनदृष्टिवाले लोगों के हाथ में नेतृत्व होने से तन्त्रज्ञान  उपकारक कम और संहारक अधिक हो गया है। २०० वर्ष पहले भी अभारतीय समाजों की जीवनदृष्टि तो वही थी जो आज है। लेकिन उस समय उनके पास तन्त्रज्ञान  का साधन नहीं था। इसलिए वे जीवन को अधिक गति दे नहीं पाए थे। लेकिन जब से तन्त्रज्ञान  का शस्त्र उनके हाथ में लगा है, तन्त्रज्ञान  के विकास और उपयोजन के कारण जीवन की गति इष्ट गति से अत्यंत अधिक हो गई है।  
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# तन्त्रज्ञान  : वैसे तो विज्ञान और तन्त्रज्ञान दोनों ही तटस्थ होते हैं। अपने आप में वे हानिकारक या लाभकारक नहीं होते। उनके विकास और उपयोजन के पीछे काम करनेवाली जीवनदृष्टि ही उन्हें उपकारक या हानिकारक बनाती है। यूरो-अमरीकी याने अधार्मिक (अभारतीय) जीवनदृष्टिवाले लोगों के हाथ में नेतृत्व होने से तन्त्रज्ञान  उपकारक कम और संहारक अधिक हो गया है। २०० वर्ष पहले भी अधार्मिक (अभारतीय) समाजों की जीवनदृष्टि तो वही थी जो आज है। लेकिन उस समय उनके पास तन्त्रज्ञान  का साधन नहीं था। इसलिए वे जीवन को अधिक गति दे नहीं पाए थे। लेकिन जब से तन्त्रज्ञान  का शस्त्र उनके हाथ में लगा है, तन्त्रज्ञान  के विकास और उपयोजन के कारण जीवन की गति इष्ट गति से अत्यंत अधिक हो गई है।  
    
== भारतीय तन्त्रज्ञान नीति के महत्त्वपूर्ण सूत्र ==
 
== भारतीय तन्त्रज्ञान नीति के महत्त्वपूर्ण सूत्र ==
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== उपसंहार ==
 
== उपसंहार ==
तन्त्रज्ञान दृष्टि में बदलाव लाना सहज बात नहीं है। लेकिन फिर भी यह करणीय होने से विशेष ध्यान देकर इसे स्थापित करना होगा। यह बदलाव अकेले तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में नहीं आ सकता। इसलिये हम जिस प्रतिमान में जी रहे हैं उस अभारतीय प्रतिमान के प्रत्येक घटक को बदलने की प्रक्रिया समांतर ंतथा साथ साथ चलानी होगी। साथ साथ चलाने से ऐसे परिवर्तन के प्रयास एक दूसरे के पूरक और पोषक होंगे। परिवर्तन की प्रक्रिया को भूमितीय प्रमाण में गति देंगे। वैसे तो दुनियाँ के अन्य समाज भी उनके वर्तमान प्रतिमान के कारण दु:खी ही है। लेकिन उनके पास वर्तमान प्रतिमान से अधिक श्रेष्ठ विकल्प ही नहीं है। हमारे पास जीवन के भारतीय प्रतिमान का कालसिध्द श्रेष्ठ विकल्प भी है और करने की सामर्थ्य भी है। आवश्यकता है इस परिवर्तन के संकल्प की।
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तन्त्रज्ञान दृष्टि में बदलाव लाना सहज बात नहीं है। लेकिन फिर भी यह करणीय होने से विशेष ध्यान देकर इसे स्थापित करना होगा। यह बदलाव अकेले तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में नहीं आ सकता। इसलिये हम जिस प्रतिमान में जी रहे हैं उस अधार्मिक (अभारतीय) प्रतिमान के प्रत्येक घटक को बदलने की प्रक्रिया समांतर ंतथा साथ साथ चलानी होगी। साथ साथ चलाने से ऐसे परिवर्तन के प्रयास एक दूसरे के पूरक और पोषक होंगे। परिवर्तन की प्रक्रिया को भूमितीय प्रमाण में गति देंगे। वैसे तो दुनियाँ के अन्य समाज भी उनके वर्तमान प्रतिमान के कारण दु:खी ही है। लेकिन उनके पास वर्तमान प्रतिमान से अधिक श्रेष्ठ विकल्प ही नहीं है। हमारे पास जीवन के धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान का कालसिध्द श्रेष्ठ विकल्प भी है और करने की सामर्थ्य भी है। आवश्यकता है इस परिवर्तन के संकल्प की।
    
==References==
 
==References==
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[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन प्रतिमान - भाग २)]]
 
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