| सन १९५६ में हंगेरी में स्टालिन के सोवियेट शासन के विरोध में सशस्त्र आंदोलन हुआ था उसे असफल बनाने के लिये स्टालिन प्रणीत साम्यवाद ने अमानुष प्रकार के प्रयास किये थे । उसके परिणाम स्वरूप युरोप में एवं विश्वभर में भी साम्यवाद बहुत बदनाम हुआ । साम्यवाद के समर्थक रहे युरोपीय चिंतकों को उस कारण से साम्यवाद की प्रगति अवरुद्ध होने का भय था । साम्यवाद की प्रतिष्ठा को जो हानि पहुंची थी उसके परिणाम स्वरूप युरोप में साम्यवादी आन्दोलन की हानि न हो इस विचार से जिसकी बदनामी हुई है वह साम्यवाद अलग है और हम उसके समर्थक नहीं हैं यह बात पश्चिमी जगत को दिखाने के लिये उन्हें कोई अलग प्रकार के साम्यवादी आन्दोलन की आवश्यकता प्रतीत हुई । कार्ल मार्क्स की समाजिक वर्ग व्यवस्था, मझदूर आन्दोलन, मझदूरों का सामाजिक क्रांति में सहभाग, मार्क्स प्रणीत सामाजिक न्याय इत्यादि साम्यवादी विचारों की अपेक्षा, किंबहुना <nowiki>'शास्त्रीय मार्क्सवाद' (classical Marxism) (जो कई कारणों से राजकीय दृष्टि से असफल रहा था ) की अपेक्षा वे कुछ अलग और नया तर्क दे रहे हैं यह बात प्रथम युरोप को और बाद में शेष विश्व को दिखाने के लिये एवं पारंपरिक मार्क्सवाद को कालानुरूप बनाने के लिये, तत्कालीन समाज को सुसंगत हो सके ऐसा 'नया पर्याय' वे विश्व को दे रहे हैं ऐसा आभास पैदा करने के लिये 'न्यू लेफ्ट' नाम से राजकीय ‘पर्याय'' की स्थापना की गई. सामान्य रूप से राजकीय एवं आर्थिक विषयों की (मार्क्स के मतानुसार संस्कृति और सामाजिक रिती और परंपरा जैसी सामाजिक संरचना का आधार आर्थिक व्यवस्था ही होती है) चर्चा करने वाले पारंपरिक मार्क्सवाद को प्रथम संस्कृति और दैनंदिन जीवन के विषय में विश्लेषणात्मक एवं आलोचनात्मक लेखन करने के लिये सक्षम बनाया गया । फिर उसी के आधार पर वर्तमान प्रस्थापित संस्कृति के मूलभूत विचारों पर 'सामाजिक नियंत्रण' प्राप्त करने के लिये प्रयत्नशील समाज में से कुछ वंश, धर्म, सामाजिक संस्था, शिक्षा व्यवस्था, कुटुंब और विवाहसंस्था, कला, मनोरंजन क्षेत्र, स्त्री पुरुष संबंध, लैंगिकता, कानून व्यवस्था इत्यादि 'संस्कृति दर्शक' विषयों पर आलोचनात्मक लेखन करने की एवं उसीके आधार पर 'सामाजिक, सांस्कृतिक, राजकीय क्रांति को सफल बनाने की सोच रखने वाले नव साम्यवादी 'पाश्चिमात्य बुद्धिवाद'का प्रारंभ इस 'न्यू लेफ्ट'के साथ हुआ । इस संगठन के कुछ घटक पारंपरिक मार्क्सवाद से अलग हो गये और मझदूर आन्दोलन तथा वर्ग संघर्ष से अपने आपको अलग कर उन्होंने 'संस्कृति' से संबंधित विषयों पर विशेष आलोचना के साथ वैकल्पिक संस्कृति एवं समाज व्यवस्था निर्माण करने का कार्य प्रारंभ किया । तो कुछ घटक मझदूर आन्दोलन और वर्ग संघर्ष को अधिक आक्रमक और अराजक ऐसे '</nowiki>माओवादी हिंसक मार्ग की और ले गये। | | सन १९५६ में हंगेरी में स्टालिन के सोवियेट शासन के विरोध में सशस्त्र आंदोलन हुआ था उसे असफल बनाने के लिये स्टालिन प्रणीत साम्यवाद ने अमानुष प्रकार के प्रयास किये थे । उसके परिणाम स्वरूप युरोप में एवं विश्वभर में भी साम्यवाद बहुत बदनाम हुआ । साम्यवाद के समर्थक रहे युरोपीय चिंतकों को उस कारण से साम्यवाद की प्रगति अवरुद्ध होने का भय था । साम्यवाद की प्रतिष्ठा को जो हानि पहुंची थी उसके परिणाम स्वरूप युरोप में साम्यवादी आन्दोलन की हानि न हो इस विचार से जिसकी बदनामी हुई है वह साम्यवाद अलग है और हम उसके समर्थक नहीं हैं यह बात पश्चिमी जगत को दिखाने के लिये उन्हें कोई अलग प्रकार के साम्यवादी आन्दोलन की आवश्यकता प्रतीत हुई । कार्ल मार्क्स की समाजिक वर्ग व्यवस्था, मझदूर आन्दोलन, मझदूरों का सामाजिक क्रांति में सहभाग, मार्क्स प्रणीत सामाजिक न्याय इत्यादि साम्यवादी विचारों की अपेक्षा, किंबहुना <nowiki>'शास्त्रीय मार्क्सवाद' (classical Marxism) (जो कई कारणों से राजकीय दृष्टि से असफल रहा था ) की अपेक्षा वे कुछ अलग और नया तर्क दे रहे हैं यह बात प्रथम युरोप को और बाद में शेष विश्व को दिखाने के लिये एवं पारंपरिक मार्क्सवाद को कालानुरूप बनाने के लिये, तत्कालीन समाज को सुसंगत हो सके ऐसा 'नया पर्याय' वे विश्व को दे रहे हैं ऐसा आभास पैदा करने के लिये 'न्यू लेफ्ट' नाम से राजकीय ‘पर्याय'' की स्थापना की गई. सामान्य रूप से राजकीय एवं आर्थिक विषयों की (मार्क्स के मतानुसार संस्कृति और सामाजिक रिती और परंपरा जैसी सामाजिक संरचना का आधार आर्थिक व्यवस्था ही होती है) चर्चा करने वाले पारंपरिक मार्क्सवाद को प्रथम संस्कृति और दैनंदिन जीवन के विषय में विश्लेषणात्मक एवं आलोचनात्मक लेखन करने के लिये सक्षम बनाया गया । फिर उसी के आधार पर वर्तमान प्रस्थापित संस्कृति के मूलभूत विचारों पर 'सामाजिक नियंत्रण' प्राप्त करने के लिये प्रयत्नशील समाज में से कुछ वंश, धर्म, सामाजिक संस्था, शिक्षा व्यवस्था, कुटुंब और विवाहसंस्था, कला, मनोरंजन क्षेत्र, स्त्री पुरुष संबंध, लैंगिकता, कानून व्यवस्था इत्यादि 'संस्कृति दर्शक' विषयों पर आलोचनात्मक लेखन करने की एवं उसीके आधार पर 'सामाजिक, सांस्कृतिक, राजकीय क्रांति को सफल बनाने की सोच रखने वाले नव साम्यवादी 'पाश्चिमात्य बुद्धिवाद'का प्रारंभ इस 'न्यू लेफ्ट'के साथ हुआ । इस संगठन के कुछ घटक पारंपरिक मार्क्सवाद से अलग हो गये और मझदूर आन्दोलन तथा वर्ग संघर्ष से अपने आपको अलग कर उन्होंने 'संस्कृति' से संबंधित विषयों पर विशेष आलोचना के साथ वैकल्पिक संस्कृति एवं समाज व्यवस्था निर्माण करने का कार्य प्रारंभ किया । तो कुछ घटक मझदूर आन्दोलन और वर्ग संघर्ष को अधिक आक्रमक और अराजक ऐसे '</nowiki>माओवादी हिंसक मार्ग की और ले गये। |