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− | === अध्याय १९ ===
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− | '''तुलसी टावरी व दु. बालसुब्रमण्यम'''
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| ==== विकास की अवधारणा ==== | | ==== विकास की अवधारणा ==== |
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| बिना किसी प्रकार के पुरुषार्थ व नव-निर्माण के कम से कम समय में अधिक से अधिक धन हथियाने का लालच । मजे की बात यह है कि इस कार्य में हर राष्ट्र की बुद्धिमान व शक्तिशाली स्वार्थी ताकतें आपस में मिलजुल कर, अपने-अपने राष्ट्र के हितों को ताक पर रख कर, अपने ही राष्ट्र की सामान्य जनता को भ्रम में फंसा कर गुमराह कर रही हैं। पूरे संसार में ऐसी विकट स्थिति आज बनी हुई है । | | बिना किसी प्रकार के पुरुषार्थ व नव-निर्माण के कम से कम समय में अधिक से अधिक धन हथियाने का लालच । मजे की बात यह है कि इस कार्य में हर राष्ट्र की बुद्धिमान व शक्तिशाली स्वार्थी ताकतें आपस में मिलजुल कर, अपने-अपने राष्ट्र के हितों को ताक पर रख कर, अपने ही राष्ट्र की सामान्य जनता को भ्रम में फंसा कर गुमराह कर रही हैं। पूरे संसार में ऐसी विकट स्थिति आज बनी हुई है । |
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− | ==== ख) ऐसी तात्कालिक समस्याएं, जिन के परिणाम '''दूरगामी है''' ==== | + | ==== ख) ऐसी तात्कालिक समस्याएं, जिन के परिणाम दूरगामी है ==== |
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− | ==== '''स्वत्व की पहचान (Identity) का भ्रम''' ==== | + | ==== स्वत्व की पहचान (Identity) का भ्रम ==== |
| एक लम्बे समय से कई विभिन्न कारणों से विश्व के लगभग सभी देशों में विभिन्न प्रकार की पहचानों (Identities) का तालमेल सही सही स्थापित नहीं हुआ है। इस कारण से अनेक आपसी रिश्ते इस कदर बिगड़े हुए हैं कि उनकी आपसी स्थिति हमेशा एक ज्वालामुखी के समान लगती है। इन देशों में जब तक ऐसे नेतृत्व बल नहीं पकड़ते जो विविधता में एकता के सूत्र को न केवल समझते है बल्कि उसे स्थापित करने की क्षमता रखते हैं, सर्वमंगल व सबका विकास चाहते हैं, तब तक इस स्थिति का हल नहीं हो सकता। अहंकार से प्रेरित युद्ध जैसी स्थितियों में समूर्ण विश्व एक अत्यंत कष्टदायी वातावरण में जीने के लिए बाध्य हो रहा हैं। हर राष्ट्र अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रहना चाहता है व विश्व की बहुत बड़ी शक्ति सिर्फ फौजें और युद्ध-सामग्रियां जुटाने में ही व्यस्त है । इस विषय की गंभीरता तब और भी भीषण लगने लगती है, जब हम ऐसे अणु-बमों के बारे में सुनते हैं जिनसे पूरा विश्व ही नष्ट किया जा सकता है। कई तरह की मानसिक रूप से विक्षिप्त अव्यवहारिक ताकतें उभरने लगी हैं। जेहाद के नाम पर तो सब कुछ विस्फोटक ही प्रतीत होता है। इस परिस्थिति को बनाये रखने में जिन शक्तियों का संकुचित स्वार्थ छुपा है, वे इस समस्या को निरंतर जिन्दा ही रखना चाहती हैं। जब तक शक्तिशाली नयी पीढ़ी खड़ी नहीं होती, जिसे शांति के मार्ग से ही आगे बढ़ने में रुची हैं। बौद्धिक-भ्रष्टाचार के विभिन्न प्रकारों में यह भी एक प्रकार है जिसकी जड़ें राजनैतिक गलियारों में भी | | एक लम्बे समय से कई विभिन्न कारणों से विश्व के लगभग सभी देशों में विभिन्न प्रकार की पहचानों (Identities) का तालमेल सही सही स्थापित नहीं हुआ है। इस कारण से अनेक आपसी रिश्ते इस कदर बिगड़े हुए हैं कि उनकी आपसी स्थिति हमेशा एक ज्वालामुखी के समान लगती है। इन देशों में जब तक ऐसे नेतृत्व बल नहीं पकड़ते जो विविधता में एकता के सूत्र को न केवल समझते है बल्कि उसे स्थापित करने की क्षमता रखते हैं, सर्वमंगल व सबका विकास चाहते हैं, तब तक इस स्थिति का हल नहीं हो सकता। अहंकार से प्रेरित युद्ध जैसी स्थितियों में समूर्ण विश्व एक अत्यंत कष्टदायी वातावरण में जीने के लिए बाध्य हो रहा हैं। हर राष्ट्र अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रहना चाहता है व विश्व की बहुत बड़ी शक्ति सिर्फ फौजें और युद्ध-सामग्रियां जुटाने में ही व्यस्त है । इस विषय की गंभीरता तब और भी भीषण लगने लगती है, जब हम ऐसे अणु-बमों के बारे में सुनते हैं जिनसे पूरा विश्व ही नष्ट किया जा सकता है। कई तरह की मानसिक रूप से विक्षिप्त अव्यवहारिक ताकतें उभरने लगी हैं। जेहाद के नाम पर तो सब कुछ विस्फोटक ही प्रतीत होता है। इस परिस्थिति को बनाये रखने में जिन शक्तियों का संकुचित स्वार्थ छुपा है, वे इस समस्या को निरंतर जिन्दा ही रखना चाहती हैं। जब तक शक्तिशाली नयी पीढ़ी खड़ी नहीं होती, जिसे शांति के मार्ग से ही आगे बढ़ने में रुची हैं। बौद्धिक-भ्रष्टाचार के विभिन्न प्रकारों में यह भी एक प्रकार है जिसकी जड़ें राजनैतिक गलियारों में भी |
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| ==References== | | ==References== |
− | <references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
| + | भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे |
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