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| ===== कालखण्ड - ३ (१९८० से लगभग १९९० तक): ===== | | ===== कालखण्ड - ३ (१९८० से लगभग १९९० तक): ===== |
| भ्रष्ट नेतृत्व का बढ़ता उबाल : किसी भी समाज की व्यवस्था तीन प्रकार की शक्तियों में बांटी जा सकती है। एक, ईमानदार व सृजनात्मक शक्ति जो पूरे देश का नेतृत्व करती है; दूसरी, भ्रष्ट व ताकतवर शक्ति जो स्वयं के स्वार्थ हेतु पूरे देश को लूटने का कार्य करती है; और तीसरी सीधी-सादी सामान्य जनता जो निरपेक्ष भाव से जीवन की जद्दोजहद में व्यस्त रहती है तथा रेलगाड़ी के डिब्बे के समान, ताकतवर नेतृत्व की दिशा में चलने को बाध्य रहती है। | | भ्रष्ट नेतृत्व का बढ़ता उबाल : किसी भी समाज की व्यवस्था तीन प्रकार की शक्तियों में बांटी जा सकती है। एक, ईमानदार व सृजनात्मक शक्ति जो पूरे देश का नेतृत्व करती है; दूसरी, भ्रष्ट व ताकतवर शक्ति जो स्वयं के स्वार्थ हेतु पूरे देश को लूटने का कार्य करती है; और तीसरी सीधी-सादी सामान्य जनता जो निरपेक्ष भाव से जीवन की जद्दोजहद में व्यस्त रहती है तथा रेलगाड़ी के डिब्बे के समान, ताकतवर नेतृत्व की दिशा में चलने को बाध्य रहती है। |
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| + | भारत के लिए यह तीसरा कालखंड दूसरे भ्रष्ट कालखंड का अगला पड़ाव बन गया । जब बेईमानी के जरिये आगे बढ़ना आसान हो गया और समाज के हर क्षेत्र में ईमानदारी पर चलने वाले अपने आत्म -सम्मान की रक्षा करते मूक-दर्शक बनते गए व ज्यादा से ज्यादा नेतृत्व के अवसर चालबाजी व चाटुकारिता करने वालों के हाथों में चला गया । |
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| + | ===== कालखण्ड - ४ (१९९० से लगभग २०१० तक) अर्थ व्यवस्था में सम्पन्नता व भ्रष्टता का दोहरा विकास : ===== |
| + | ब्यूरोक्रेटिक लाइसेंस-राज से मुक्ति का यह कालखंड आर्थिक-विकास में प्रगति का कारण तो बना, मगर व्यवस्था के जड़ में विद्यमान भ्रष्टता के कारण इस कालखंड का नेतृत्व भी ज्यादातर क्षेत्रों में ऐसे व्यक्तियों के ही हाथों में बना रहा जिनके मूल में लोक-मंगल की कामना न होकर लूट से संपन्न होने की चाहत प्रबल रही । ऐसे में, वैश्विक रूप से अधिक से अधिक जुड़ने के कारण, भारत पर वैश्विक घटनाओं का सर्वाधिक प्रभाव हआ जो बढ़ता ही गया। |
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| + | इसी कालखंड में इंटरनेट के आविष्कार ने, भारत की ईमानदार शक्तियों के भी बल में वृद्धि के अवसरों को बढ़ाया । और भारत की बौद्धिक व मेहनती शक्तियों का पूरे विश्व में परचम लहराया । इस तरह, भारत में जहाँ एक और आर्थिक सम्पन्नता बढ़ी, वहीं दूसरी ओर भ्रष्टता भी अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गयी। |
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| + | एक तरह से देखें तो भारत का प्रथम कालखंड (१९४७ से १९६७ तक) भारत के इस चौथे कालखंड (१९९० से २०१० तक) का ठीक उल्टे-स्वरुप का परिचायक रहा है। जहाँ प्रथम काल-खंड ईमानदारी की मूर्ती तो रही, मगर आर्थिक रूप से कमजोर भी थी; वहीं यह चौथा कालखंड सम्पन्नता से तो बढ़ा है, पर ईमानदारी का सर्वथा अभाव साफ़-साफ दिखाई देता है। और इसी कारण से, एक बहुत बड़ी ईमानदार ग्रामीण जनसँख्या गरीबी से झूझ रही है। |
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| + | भारत की सत्तर वर्षों की यात्रा में भ्रष्टता उसकी स्वयं की कमजोरी का मापदंड है। वैश्विक शक्तियों व समस्याओं का असर तो अब आया है। |
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| + | ऐसे में, भारत की आवश्यकता एक और ऐसे नेतृत्व की है, जो भारत को भ्रष्टता के चंगुल से मुक्त करा पाए, साथ ही ऐसी आर्थिक-व्यवस्था का निर्माण कर सके जहाँ ईमानदारी पूर्वक पुरुषार्थ के द्वारा ही विकास व सम्पन्नता में वृद्धि संभव हो सके। |
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| + | आर्थिक-सम्पन्नता से भी बड़ी चुनौती भारत के नेतृत्व के लिए इस बात में है कि, भारत अपनी विकास यात्रा कैसे बनाये जो पश्चिम की अर्थ-व्यवस्था की उपरोक्त अनेकों कमजोरियों से मुक्त हो । भारत की प्राचीन ग्रामव्यवस्था के सूत्रों को कैसे आज के परिप्रेक्ष्य में शामिल कर सकें, जहाँ एक और आर्थिक समृद्धि भी संभव हो, तो दूसरी ओर प्रतियोगिता के नाम पर रिश्ते, बाजार की बलि न चढ़ने पाएं । स्वार्थ की आंधी ऐसी न उमड़ पड़े कि दूरगामी परिणामों को अनदेखा कर प्रकृति, वायुमंडल, स्वास्थ्य, मानवीय-गुणों को ही तिलांजलि देने लगे, जैसा कि आज पूरे विश्व में चारों ओर दिखाई दे रहा है, और भारत भी इसी दौड़ में आज शामिल है। इतना ही नहीं, नए युग में भारत के पास वह अनमोल विरासत है, जो सदियों से चली आ रही है, और आज भी जिन्दा है, जहाँ विकास की परिभाषा आर्थिक आंकड़ों में सीमित नहीं है। |
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| + | ===== (३) विश्व के ज्ञान और शिक्षा के विभिन्न प्रतिमान ===== |
| + | आज की भाषा में आर्थिक-विकास का सूचक रोजगार है इसी एक बात को ध्यान में रख कर ही दुनिया के तकरीबन हर राष्ट्र की शिक्षा-व्यवस्था का निर्माण किया गया है। रोजगार के अवसर सीमित होते हैं, इसलिए ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया गया है जिससे कि शिक्षा के नाम पर मिलने वाली डिग्री के जरिये ही व्यक्ति की छंटनी की जा सके; बजाय इसके कि उसके अन्तःनिहित गुणों के आधार पर उसका चयन हो सके। |
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| + | यही नहीं, शिक्षा को रोजगार से सीधा जोड़ देने के कारण ही यह अपने आप में समाज में व्यवस्था निर्माण करने का एक राजनैतिक औजार बन गया है । |
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| ==References== | | ==References== |