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| == भारतीय जीवनदृष्टि पर आधारित भारतीय तन्त्रज्ञान दृष्टि के सूत्र == | | == भारतीय जीवनदृष्टि पर आधारित भारतीय तन्त्रज्ञान दृष्टि के सूत्र == |
| हमें वर्तमान साईंस और भारतीय विज्ञान में अंतर को समझना होगा। वर्तमान साईंस का भारतीय विज्ञान के साथ या अध्यात्म के साथ कोई झगड़ा या विरोध नहीं है। उलटे वर्तमान साईंस भारतीय विज्ञान का एक हिस्सा मात्र है। इसे समझना भी महत्त्वपूर्ण है। | | हमें वर्तमान साईंस और भारतीय विज्ञान में अंतर को समझना होगा। वर्तमान साईंस का भारतीय विज्ञान के साथ या अध्यात्म के साथ कोई झगड़ा या विरोध नहीं है। उलटे वर्तमान साईंस भारतीय विज्ञान का एक हिस्सा मात्र है। इसे समझना भी महत्त्वपूर्ण है। |
− | विज्ञान की व्याख्या जो श्रीमद्भगवद्गीता में मिलती है उसके अनुसार<ref>श्रीमद भगवद गीता 4.7</ref> - <blockquote>भूमिरापोऽनलो वायू: खं मनो बुद्धिरेव च:</blockquote><blockquote>अहंकार इतियं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥ (4.7)</blockquote><blockquote>अर्थ: तेज, वायु पृथ्वी, जल, आकाश यह पाँच महाभूत तथा मन बुद्धि और अहंकार मिलकर 8 तत्वों से प्रकृति बनी है। याने प्रकृति का हर अस्तित्व बना है।</blockquote> इस अष्टधा प्रकृति के माध्यम से परमात्मा या ब्रह्म को जानने की प्रक्रिया ही विज्ञान है। अर्थात् ब्रह्म को जानने की प्रक्रिया ही विज्ञान है। ब्रह्म को जानने के लिये पहले अष्टधा प्रकृति को जानना होगा। वर्तमान साईंस केवल उपर्युक्त आठ तत्वों में से पाँच याने पंचमहाभौतिक तत्वों के अस्तित्त्व को स्वीकार करता है। इस दृष्टि से वर्तमान सायंस भारतीय विज्ञान का एक हिस्सा है। गणित की भाषा में वह एक सबसेट है। | + | विज्ञान की व्याख्या जो श्रीमद्भगवद्गीता में मिलती है उसके अनुसार<ref>श्रीमद भगवद गीता 7.4</ref> - <blockquote>भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।</blockquote><blockquote>अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।।</blockquote><blockquote>अर्थ: तेज, वायु पृथ्वी, जल, आकाश यह पाँच महाभूत तथा मन बुद्धि और अहंकार मिलकर 8 तत्वों से प्रकृति बनी है। याने प्रकृति का हर अस्तित्व बना है।</blockquote> इस अष्टधा प्रकृति के माध्यम से परमात्मा या ब्रह्म को जानने की प्रक्रिया ही विज्ञान है। अर्थात् ब्रह्म को जानने की प्रक्रिया ही विज्ञान है। ब्रह्म को जानने के लिये पहले अष्टधा प्रकृति को जानना होगा। वर्तमान साईंस केवल उपर्युक्त आठ तत्वों में से पाँच याने पंचमहाभौतिक तत्वों के अस्तित्त्व को स्वीकार करता है। इस दृष्टि से वर्तमान सायंस भारतीय विज्ञान का एक हिस्सा है। गणित की भाषा में वह एक सबसेट है। |
− | श्रीमद्भगवद्गीता में और भी कहा है<ref>श्रीमद भगवद गीता 3.7</ref>: <blockquote>इंद्रियाणि पराण्याहूरिन्द्रियेभ्य परं मन:</blockquote><blockquote>मनसस्तु परा बुधिर्यो बुध्दे परतस्तु स: ॥3.7॥</blockquote><blockquote>अर्थ : शरीर या हमारे इंद्रीयों से मन सूक्ष्म होता है। सूक्ष्म का अर्थ है अधिक व्यापक, अधिक बलवान। मनसे बुद्धि अधिक सूक्ष्म होती है। और आत्मतत्व तो अत्यंत सूक्ष्म होता है।</blockquote>जिस प्रकार से अत्यंत सूक्ष्म भौतिक कणों याने नैनो कणों का मापन हमारी सामान्य मापन पट्टी से नहीं हो सकता उसी प्रकार से मन जो पंचमहाभूतों से याने पंचमहाभूतों के सूक्ष्म कणों से भी अत्यंत सूक्ष्म है उसका मापन भौतिक सूक्ष्मतादर्शक से भी नहीं किया जा सकता। इसलिये मन और बुद्धि के व्यापार जानने के लिये मन और बुद्धि का ही सहारा लिया जा सकता है। इस का श्रेष्ठ साधन 'अष्टांग योग' है। आगे हम विज्ञान शब्द का वर्तमान साईंस के अर्थ से ही प्रयोग करेंगे।
| + | इसी प्रकार से अध्याय ३, श्लोक ४२ में बताया गया है<ref name=":0" />: <blockquote>इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन।</blockquote><blockquote>मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुध्दे: परतस्तु स: ॥ 3-42 ॥ </blockquote><blockquote>अर्थात् इंद्रियों से मन सूक्ष्म है। मन से बुद्धि सूक्ष्म है। और आत्म तत्व तो बुद्धि से भी कहीं अधिक सूक्ष्म है। </blockquote>जिस प्रकार से अत्यंत सूक्ष्म भौतिक कणों याने नैनो कणों का मापन हमारी सामान्य मापन पट्टी से नहीं हो सकता उसी प्रकार से मन जो पंचमहाभूतों से याने पंचमहाभूतों के सूक्ष्म कणों से भी अत्यंत सूक्ष्म है उसका मापन भौतिक सूक्ष्मतादर्शक से भी नहीं किया जा सकता। इसलिये मन और बुद्धि के व्यापार जानने के लिये मन और बुद्धि का ही सहारा लिया जा सकता है। इस का श्रेष्ठ साधन 'अष्टांग योग' है। आगे हम विज्ञान शब्द का वर्तमान साईंस के अर्थ से ही प्रयोग करेंगे। |
| # मानव जीवन का लक्ष्य यदि परमात्मपद प्राप्ति है तो विज्ञान और तन्त्रज्ञान के विकास और उपयोग का लक्ष्य भी परमात्मपद प्राप्ति ही रहेगा। अन्य नहीं। और मोक्षप्राप्ति का या परमात्मपदप्राप्ति का मार्ग तो ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ ही है। कुछ लोग कहेंगे कि मोक्ष मानव जीवन का लक्ष्य नहीं है। मानव जीवन का लक्ष्य सुख है। फिर भी व्यक्ति समाज का और सृष्टि का अविभाज्य ऐसा हिस्सा होने से जब तक सुख समाजव्याप्त और सृष्टिव्याप्त नहीं होता व्यक्ति भी सुख से नहीं जी सकता। विज्ञान और तन्त्रज्ञान का उपयोग ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के लिये करने से ही व्यक्तिगत सुख की आश्वस्ति मिल सकेगी। | | # मानव जीवन का लक्ष्य यदि परमात्मपद प्राप्ति है तो विज्ञान और तन्त्रज्ञान के विकास और उपयोग का लक्ष्य भी परमात्मपद प्राप्ति ही रहेगा। अन्य नहीं। और मोक्षप्राप्ति का या परमात्मपदप्राप्ति का मार्ग तो ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ ही है। कुछ लोग कहेंगे कि मोक्ष मानव जीवन का लक्ष्य नहीं है। मानव जीवन का लक्ष्य सुख है। फिर भी व्यक्ति समाज का और सृष्टि का अविभाज्य ऐसा हिस्सा होने से जब तक सुख समाजव्याप्त और सृष्टिव्याप्त नहीं होता व्यक्ति भी सुख से नहीं जी सकता। विज्ञान और तन्त्रज्ञान का उपयोग ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के लिये करने से ही व्यक्तिगत सुख की आश्वस्ति मिल सकेगी। |
| # ‘प्रकृति के नियम’ ही विज्ञान है। विज्ञान के व्यवहार में उपयोग को ही तन्त्रज्ञान कहते हैं। विज्ञान वैश्विक होता है। तन्त्रज्ञान नहीं। तन्त्रज्ञान स्थानिक प्राकृतिक संसाधनों के आधारपर चयन करने या विकास करने की बात है। | | # ‘प्रकृति के नियम’ ही विज्ञान है। विज्ञान के व्यवहार में उपयोग को ही तन्त्रज्ञान कहते हैं। विज्ञान वैश्विक होता है। तन्त्रज्ञान नहीं। तन्त्रज्ञान स्थानिक प्राकृतिक संसाधनों के आधारपर चयन करने या विकास करने की बात है। |
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| वास्तव में धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों के ज्ञाता जब वर्तमान साईंस का भी ठीक अध्ययन कर दोनों की संतुलित विश्लेषणात्मक प्रस्तुति करेंगे तब न केवल कसौटी की समस्या दूर होगी साथ ही में साईंस का मार्ग जो आज पंचमहाभौतिक में उलझ जाने के कारण अवरूध्द हुआ है, वह भी प्रशस्त होगा। वैसे तो एस्ट्रो फिजिक्स या पार्टिकल फिजिक्स जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले वैज्ञानिक अपने प्रगत प्रयोगों के माध्यम से पंचमहाभौतिक से आगे मन और बुद्धि के क्षेत्र में विचार करने को बाध्य हो रहे हैं। आईन्स्टीन, नील बोर, हायज़ेनबर्ग, व्हीलर आदि और उन के अनुयायी ऐसे वैज्ञानिकों में रहे हैं जो धार्मिक (भारतीय) दर्शनों में साईंस को आगे बढाने की सम्भावनाएँ देखते हैं। उन के लिये भी ऐसा संतुलित और बुद्धियुक्त विश्लेषण लाभदायी होगा। | | वास्तव में धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों के ज्ञाता जब वर्तमान साईंस का भी ठीक अध्ययन कर दोनों की संतुलित विश्लेषणात्मक प्रस्तुति करेंगे तब न केवल कसौटी की समस्या दूर होगी साथ ही में साईंस का मार्ग जो आज पंचमहाभौतिक में उलझ जाने के कारण अवरूध्द हुआ है, वह भी प्रशस्त होगा। वैसे तो एस्ट्रो फिजिक्स या पार्टिकल फिजिक्स जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले वैज्ञानिक अपने प्रगत प्रयोगों के माध्यम से पंचमहाभौतिक से आगे मन और बुद्धि के क्षेत्र में विचार करने को बाध्य हो रहे हैं। आईन्स्टीन, नील बोर, हायज़ेनबर्ग, व्हीलर आदि और उन के अनुयायी ऐसे वैज्ञानिकों में रहे हैं जो धार्मिक (भारतीय) दर्शनों में साईंस को आगे बढाने की सम्भावनाएँ देखते हैं। उन के लिये भी ऐसा संतुलित और बुद्धियुक्त विश्लेषण लाभदायी होगा। |
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− | श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय का नाम ही ज्ञान-विज्ञान योग है। इसमें श्लोक ४ में की हुई विज्ञान की व्याख्या निम्न है<ref>श्रीमद्भगवद्गीता, 7-4</ref>:<blockquote>भूमिरापोऽनलोवायू: खं मनो बुद्धिरेव च ।</blockquote><blockquote>अहंकार इतियं मे भिन्ना प्रकृतिरष्ट्धा: ॥ 7-4 ॥ </blockquote><blockquote>अर्थात् भूमि, जल, अग्नि, वायु और पृथ्वी इन पंचमहाभूतों के साथ मन, बुद्धि और अहंकार मिलकर अष्टधा प्रकृति बनती है। </blockquote>परमात्म तत्व के अलावा सृष्टि में कुछ भी नहीं है। चराचर सृष्टि का प्रत्येक अस्तित्व इसी अष्टधा प्रकृति का ही बना हुआ है। यह प्रत्येक अस्तित्व अन्य कुछ नहीं, परमात्म तत्व के ही विविध रूप हैं इसे जानना ही विज्ञान है।
| + | परमात्म तत्व के अलावा सृष्टि में कुछ भी नहीं है। चराचर सृष्टि का प्रत्येक अस्तित्व इसी अष्टधा प्रकृति का ही बना हुआ है। यह प्रत्येक अस्तित्व अन्य कुछ नहीं, परमात्म तत्व के ही विविध रूप हैं इसे जानना ही विज्ञान है। |
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− | इसी प्रकार से अध्याय ३, श्लोक ४२ में बताया गया है<ref>श्रीमद्भगवद्गीता, 3-42</ref>:<blockquote>इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन।</blockquote><blockquote>मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुध्दे: परतस्तु स: ॥ 3-42 ॥ </blockquote><blockquote>अर्थात् इंद्रियों से मन सूक्ष्म है। मन से बुद्धि सूक्ष्म है। और आत्म तत्व तो बुद्धि से भी कहीं अधिक सूक्ष्म है। </blockquote>संस्कृत में सूक्ष्म का अर्थ होता है बलवान और व्यापक। पंचमहाभूतों से बनीं इंद्रियाँ स्थूल महाभूतों से तो सूक्ष्म है किन्तु मन उन से भी अधिक सूक्ष्म है। बुद्धि मन से और आत्म तत्व बुद्धि से भी अत्यंत सूक्ष्म है। जो सूक्ष्म होता है उसकी मापन पट्टी से तो जो उस से स्थूल है उस का मापन किया जा सकता है, किन्तु जो उस से अधिक सूक्ष्म है उस का मापन नहीं किया जा सकता। इस दृष्टि से आत्म तत्व की मापन पट्टी से बुद्धि का, बुद्धि की मापन पट्टी से मन का और मन की मापन पट्टी से इंद्रियों का और इंद्रियों की मापन पट्टी से स्थूल पंचमहाभूतों का मापन किया जा सकता है। किन्तु इस से उलट नहीं किया जा सकता। भौतिक उपकरणों से मन, बुद्धि और आत्म तत्व के व्यापारों का मापन नहीं किया जा सकता। वर्तमान साईंस के मापन के जो उपकरण हैं वे प्रकृति के पंचमहाभौतिक घटकों का तो मापन कर सकते है लेकिन इस से सूक्ष्म घटकों का मापन नहीं कर सकते। | + | इसी प्रकार से अध्याय ३, श्लोक ४२ में बताया गया है<ref name=":0">श्रीमद्भगवद्गीता, 3-42</ref>:<blockquote>इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन।</blockquote><blockquote>मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुध्दे: परतस्तु स: ॥ 3-42 ॥ </blockquote><blockquote>अर्थात् इंद्रियों से मन सूक्ष्म है। मन से बुद्धि सूक्ष्म है। और आत्म तत्व तो बुद्धि से भी कहीं अधिक सूक्ष्म है। </blockquote>संस्कृत में सूक्ष्म का अर्थ होता है बलवान और व्यापक। पंचमहाभूतों से बनीं इंद्रियाँ स्थूल महाभूतों से तो सूक्ष्म है किन्तु मन उन से भी अधिक सूक्ष्म है। बुद्धि मन से और आत्म तत्व बुद्धि से भी अत्यंत सूक्ष्म है। जो सूक्ष्म होता है उसकी मापन पट्टी से तो जो उस से स्थूल है उस का मापन किया जा सकता है, किन्तु जो उस से अधिक सूक्ष्म है उस का मापन नहीं किया जा सकता। इस दृष्टि से आत्म तत्व की मापन पट्टी से बुद्धि का, बुद्धि की मापन पट्टी से मन का और मन की मापन पट्टी से इंद्रियों का और इंद्रियों की मापन पट्टी से स्थूल पंचमहाभूतों का मापन किया जा सकता है। किन्तु इस से उलट नहीं किया जा सकता। भौतिक उपकरणों से मन, बुद्धि और आत्म तत्व के व्यापारों का मापन नहीं किया जा सकता। वर्तमान साईंस के मापन के जो उपकरण हैं वे प्रकृति के पंचमहाभौतिक घटकों का तो मापन कर सकते है लेकिन इस से सूक्ष्म घटकों का मापन नहीं कर सकते। |
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| इस तरह इस से यह स्पष्ट होता है कि आत्म तत्व (इस मुख्य सेट का) यानी अध्यात्म के क्षेत्र के बुद्धि, मन और इन्द्रियाँ यह एक-एक हिस्से (सब-सेट) हैं। इसे समझने के उपरांत साईंस जो आज पंचमहाभूतों में उलझ गया है उस का मन, बुद्धि और अहंकार के अध्ययन का क्षेत्र खुल जाता है। | | इस तरह इस से यह स्पष्ट होता है कि आत्म तत्व (इस मुख्य सेट का) यानी अध्यात्म के क्षेत्र के बुद्धि, मन और इन्द्रियाँ यह एक-एक हिस्से (सब-सेट) हैं। इसे समझने के उपरांत साईंस जो आज पंचमहाभूतों में उलझ गया है उस का मन, बुद्धि और अहंकार के अध्ययन का क्षेत्र खुल जाता है। |
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| वर्तमान में तथाकथित वैज्ञानिक दृष्टिकोण को या केवल साईंस ही को प्रमाण माना जा सकता है ऐसी धारणा सार्वत्रिक हो गई है। इस लिये सब से पहले वैज्ञानिक दृष्टिकोण का या साईंस के स्वरूप (साईंटिफिक एप्रोच) के आधार पर विश्लेषण करना ठीक होगा। | | वर्तमान में तथाकथित वैज्ञानिक दृष्टिकोण को या केवल साईंस ही को प्रमाण माना जा सकता है ऐसी धारणा सार्वत्रिक हो गई है। इस लिये सब से पहले वैज्ञानिक दृष्टिकोण का या साईंस के स्वरूप (साईंटिफिक एप्रोच) के आधार पर विश्लेषण करना ठीक होगा। |
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| == सत्य जानने के तरीके == | | == सत्य जानने के तरीके == |
| सामान्यत: सत्य जानने के तरीके निम्न माने जाते है: | | सामान्यत: सत्य जानने के तरीके निम्न माने जाते है: |