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=== पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ ===
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=== विद्यालय में मध्यावकाश का भोजन ===
 
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1. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन सम्बन्ध में कितने प्रकार की व्यवस्था होती है<ref>भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ३), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> ?  
=== अध्याय १० ===
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=== विद्यालय में भोजन एवं जल व्यवस्था ===
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==== विद्यालय में मध्यावकाश का भोजन ====
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1. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन सम्बन्ध में कितने प्रकार की व्यवस्था होती है ?  
      
2. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन की सबसे अच्छी व्यवस्था क्या हो सकती है ?  
 
2. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन की सबसे अच्छी व्यवस्था क्या हो सकती है ?  
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==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
 
==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
महाराष्ट्र के एक विद्यालय से १२ शिक्षक एवं ९ अभिभावकों ने यह प्रश्नावली भरकर भेजी है, जिससे कुल १० प्रश्न थे । प्ठवी कुलकर्णी (अकोला)ने यह भेजी है ।  
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महाराष्ट्र के एक विद्यालय से १२ शिक्षक एवं ९ अभिभावकों ने यह प्रश्नावली भरकर भेजी है, जिससे कुल १० प्रश्न थे । प्ठवी कुलकर्णी (अकोला) ने यह भेजी है ।  
    
पहला प्रश्न था. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजनसंबंध मे कितने प्रकार की व्यवस्था होती है ? इस प्रश्न के उत्तर में लगभग सभी ने अलग अलग प्रकार के मेनू ही लिखे हैं । वास्तव में समूहभोजन, वनभोजन, देवासुर भोजन, स्वेच्छाभोजन, कृष्ण और गोपी भोजन ऐसी अनेकविध व्यवस्थायें भोजन लेने में आनंद, संस्कार, विविधता की मजा का अनुभव देती है ।
 
पहला प्रश्न था. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजनसंबंध मे कितने प्रकार की व्यवस्था होती है ? इस प्रश्न के उत्तर में लगभग सभी ने अलग अलग प्रकार के मेनू ही लिखे हैं । वास्तव में समूहभोजन, वनभोजन, देवासुर भोजन, स्वेच्छाभोजन, कृष्ण और गोपी भोजन ऐसी अनेकविध व्यवस्थायें भोजन लेने में आनंद, संस्कार, विविधता की मजा का अनुभव देती है ।
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स्थिर आहार शरीर और मन को स्थिरता देता है, चंचलता कम करता है । शरीर की हलचल को सन्तुलित और लयबद्ध बनाता है, मन को एकाग्र होने में सहायता करता है।
 
स्थिर आहार शरीर और मन को स्थिरता देता है, चंचलता कम करता है । शरीर की हलचल को सन्तुलित और लयबद्ध बनाता है, मन को एकाग्र होने में सहायता करता है।
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हृद्य आहार मन को प्रसन्न रखता है । अच्छे मन से, अच्छी सामग्री से, अच्छी पद्धति से, अच्छे पात्रों में बनाया गया आहार हृद्य होता है ।
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हृद्य आहार मन को प्रसन्न रखता है । अच्छे मन से, अच्छी सामग्री से, अच्छी पद्धति से, अच्छे पात्रों में बनाया गया आहार हृद्य होता है।
    
ऐसे आहार से सुख, आयु, बल और प्रेम बढ़ता है ।
 
ऐसे आहार से सुख, आयु, बल और प्रेम बढ़ता है ।
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अतः जठराग्नि अच्छा होना चाहिये, प्रदीप्त होना चाहिये।
 
अतः जठराग्नि अच्छा होना चाहिये, प्रदीप्त होना चाहिये।
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जठराग्नि का सम्बन्ध सूर्य के साथ है । सूर्य उगने के बाद जैसे जैसे आगे बढता है वैसे वैसे जठराग्नि भी प्रदीप्त होता जाता है । मध्याहन के समय जठराग्नि सर्वाधिक प्रदीप्त होता है । मध्याह्न के बाद धीरे धीरे शान्त होता जाता है । अतः मध्याह्न से आधा घण्टा पूर्व दिन का मुख्य भोजन करना चाहिये । दिन के सभी समय के आहार दिन दहते ही लेने चाहिये । प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व और सायंकाल सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिये । प्रातःकाल का नास्ता और सायंकाल का भोजन लघु अर्थात् हल्का होना चाहिये । समय के विपरीत भोजन करने से लाभ नहीं होता, उल्टे हानि ही होती है।
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जठराग्नि का सम्बन्ध सूर्य के साथ है । सूर्य उगने के बाद जैसे जैसे आगे बढता है वैसे वैसे जठराग्नि भी प्रदीप्त होता जाता है । मध्याहन के समय जठराग्नि सर्वाधिक प्रदीप्त होता है । मध्याह्न के बाद धीरे धीरे शान्त होता जाता है । अतः मध्याह्न से आधा घण्टा पूर्व दिन का मुख्य भोजन करना चाहिये । दिन के सभी समय के आहार दिन दहते ही लेने चाहिये । प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व और सायंकाल सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिये । प्रातःकाल का नास्ता और सायंकाल का भोजन लघु अर्थात् हल्का होना चाहिये। समय के विपरीत भोजन करने से लाभ नहीं होता, उल्टे हानि ही होती है।
    
इसी प्रकार ऋतु का ध्यान रखकर ही आहार लेना चाहिये।
 
इसी प्रकार ऋतु का ध्यान रखकर ही आहार लेना चाहिये।
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चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
 
चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
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कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी भी बनाई और खाई जा सकती है। ४. बेसन के लड्ड
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कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी भी बनाई और खाई जा सकती है। ४. बेसन के लड्ड, चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
 
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चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू। अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक, मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं। वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
      
===== ५. राब =====
 
===== ५. राब =====
 
घी में आटा सेंककर उसमें पानी और गुड मिलाकर उसे उबालने पर पीने जैसा जो तरल पदार्थ बनता है वह है राब । हलवा बनाने में प्रयुक्त सभी पदार्थ इसमें होते हैं परन्तु राब पतली होती है। पीने योग्य है।
 
घी में आटा सेंककर उसमें पानी और गुड मिलाकर उसे उबालने पर पीने जैसा जो तरल पदार्थ बनता है वह है राब । हलवा बनाने में प्रयुक्त सभी पदार्थ इसमें होते हैं परन्तु राब पतली होती है। पीने योग्य है।
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स्वादिष्ट, पाचनमें लघु, बीमारी के बाद भी पी सकते हैं, शरीरकी ताकत बनाये रखती है।
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स्वादिष्ट, पाचन में लघु, बीमारी के बाद भी पी सकते हैं, शरीरकी ताकत बनाये रखती है।
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कुछ लोग इसमें अजवाईन अथवा सुंठ भी डालते है। पीपरीमूल का चूर्ण मिलाने से यही राब औषधीगुण धारण करती है। कोई बारीक आटे की बनाता है तो कोई मोटे आटे की। कोई गेहूँ के आटे की बनाता है तो कोई बाजरी अथवा चावल के आटे की, जैसी जिसकी रुचि और सुविधा।  
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कुछ लोग इसमें अजवाईन अथवा सुंठ भी डालते है। पीपरीमूल का चूर्ण मिलाने से यही राब औषधीगुण धारण करती है। कोई बारीक आटे की बनाता है तो कोई मोटे आटे की। कोई गेहूँ के आटे की बनाता है तो कोई बाजरी अथवा चावल के आटे की, जैसी जिसकी रुचि और सुविधा।  
    
===== ६. चीला =====
 
===== ६. चीला =====
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घर में भी अनेक लोगों को पसंद होने पर भी चीले जितना यह पदार्थ प्रसिद्ध एवं प्रचलित नहीं है।
 
घर में भी अनेक लोगों को पसंद होने पर भी चीले जितना यह पदार्थ प्रसिद्ध एवं प्रचलित नहीं है।
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मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध
      
===== ८. पकोड़े =====
 
===== ८. पकोड़े =====
बेसन के आटे का घोल बनाते हैं। आलू, केला, बेंगन, मिर्ची, प्याज ऐसी कई सब्जियों से पतले टुकडे कर उन्हें घोल में डूबोकर तलने से पकोडे तैयार होते हैं। इसका पोषणमूल्य कम है पर खाने में अतिशय स्वादिष्ट है। बनाने में सरल, अल्पाहार एवं भोजन दोनो में चलते हैं। मेहमानदारी भी की जा सकती है। ____ गृहिणी कुशल है तो सोडा जैसी कोई चीज डाले बिना भी पकोडे खस्ता हो सकते हैं।  
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बेसन के आटे का घोल बनाते हैं। आलू, केला, बेंगन, मिर्ची, प्याज ऐसी कई सब्जियों से पतले टुकडे कर उन्हें घोल में डूबोकर तलने से पकोडे तैयार होते हैं। इसका पोषणमूल्य कम है पर खाने में अतिशय स्वादिष्ट है। बनाने में सरल, अल्पाहार एवं भोजन दोनो में चलते हैं। मेहमानदारी भी की जा सकती है। गृहिणी कुशल है तो सोडा जैसी कोई चीज डाले बिना भी पकोडे खस्ता हो सकते हैं।  
    
===== ९. बड़ा =====
 
===== ९. बड़ा =====
 
बेसन का थोडा मोटा आटा लेकर उसमें सब मसालों के साथ लौकी, मेथी अथवा उपलब्धता एवं रुचि के अनुसार अन्य कोई सब्जी मिलाकर पकोडे की तरह तेल में तलने पर बड़े तैयार होते हैं। वह किसी भी प्रकार की चटनी के साथ खाये जाते है।
 
बेसन का थोडा मोटा आटा लेकर उसमें सब मसालों के साथ लौकी, मेथी अथवा उपलब्धता एवं रुचि के अनुसार अन्य कोई सब्जी मिलाकर पकोडे की तरह तेल में तलने पर बड़े तैयार होते हैं। वह किसी भी प्रकार की चटनी के साथ खाये जाते है।
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पोषणमूल्य कम, कभी कभी अस्वास्थ्यकर, जब चाहे तब और चाहे जितना नहीं खा सकते। स्वाद में लिज्जतदार, अल्पाहारमें ठीक हैं। बनानेमें सरल।  
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पोषणमूल्य कम, कभी कभी अस्वास्थ्यकर, जब चाहे तब और चाहे जितना नहीं खा सकते। स्वाद में लिज्जतदार, अल्पाहारमें ठीक हैं। बनाने में सरल।  
    
===== ९. पोहे =====
 
===== ९. पोहे =====
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मुरमुरे भीगोकर पूरा पानी निकालकर सब मसाले एवं गाजर, पत्ता गोभी इत्यादि को मिलाकर थोडी देर पकाया हुआ पदार्थ। मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है।  माध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम प्रचलित।  
 
मुरमुरे भीगोकर पूरा पानी निकालकर सब मसाले एवं गाजर, पत्ता गोभी इत्यादि को मिलाकर थोडी देर पकाया हुआ पदार्थ। मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है।  माध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम प्रचलित।  
 
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हुआ पदार्थ । मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जात _है। मध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम
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हुआ पदार्थ । मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है। मध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम
    
===== ११. उपमा =====
 
===== ११. उपमा =====
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तरह तरह के वाटर बेग्ज, उनके आकर्षक रंग व आकार पर मोहित हो अभिभावक अपने पुत्र के नाम पर कितना पैसा व्यर्थ में लुटा देते हैं । आर ओ प्लान्ट के बिना जल शुद्ध हो ही नहीं सकता इस विचार के कारण कितना अनावश्यक धन खर्च होता है इसका अभिभावकों को भान ही नहीं है । मेरा खरीदा हुआ पानी, इसलिए उस पर केवल मेरा अधिकार, मैं जैसा चाहूँगा, वैसा उसका उपयोग करूँगा
 
तरह तरह के वाटर बेग्ज, उनके आकर्षक रंग व आकार पर मोहित हो अभिभावक अपने पुत्र के नाम पर कितना पैसा व्यर्थ में लुटा देते हैं । आर ओ प्लान्ट के बिना जल शुद्ध हो ही नहीं सकता इस विचार के कारण कितना अनावश्यक धन खर्च होता है इसका अभिभावकों को भान ही नहीं है । मेरा खरीदा हुआ पानी, इसलिए उस पर केवल मेरा अधिकार, मैं जैसा चाहूँगा, वैसा उसका उपयोग करूँगा
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यह व्यवहार अत्यन्त सहज हो गया है। । - प्यासे को पानी पिलाने के भाव ही अब उत्पन्न नहीं होता ।
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यह व्यवहार अत्यन्त सहज हो गया है। । प्यासे को पानी पिलाने के भाव ही अब उत्पन्न नहीं होता ।
    
एक विद्यालय की ट्रिप रेल से जा रही थी । उसमें ५० विद्यार्थी थे । प्रत्येक विद्यार्थी को ५-५- बोतल दी गईं थी। हिसाब लगाये तो ५ x ५० x २० = ५००० रु. केवल पानी का खर्च था। फिर आवश्यकता, स्वतन्त्रता का अधिकार, अपव्यय, आर्थिकपक्ष आदि बिन्दुओं का विचार ही नहीं किया जाता । हमें इसका विचार करना चाहिए।
 
एक विद्यालय की ट्रिप रेल से जा रही थी । उसमें ५० विद्यार्थी थे । प्रत्येक विद्यार्थी को ५-५- बोतल दी गईं थी। हिसाब लगाये तो ५ x ५० x २० = ५००० रु. केवल पानी का खर्च था। फिर आवश्यकता, स्वतन्त्रता का अधिकार, अपव्यय, आर्थिकपक्ष आदि बिन्दुओं का विचार ही नहीं किया जाता । हमें इसका विचार करना चाहिए।
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४. अनेक विद्यालयों में छात्र घर से पानी लेकर आते हैं । वे ऐसा करें इसका आग्रह विद्यालय और अभिभावक दोनों का होता है। विद्यालय कभी कभी विचार करता है कि छात्र यदि घर से पानी लाते हैं तो विद्यालय का बोज कम होगा। अभिभावकों को कभी कभी विद्यालय की व्यवस्था पर सन्देह होता है। वहाँ शुद्ध पानी मिलेगा कि नहीं इसकी आशंका रहती है। इसलिए वे घर से ही पानी भेजते हैं। विद्यालय में भीड़ होने के कारण भी अपना पानी अलग रखने की आवश्यकता उन्हें लगती है। घर से विद्यालय की दूरी भी होती है और रास्ते में पानी की आवश्यकता होती है इसलिए भी अभिभावक पानी घर से देते हैं।  
 
४. अनेक विद्यालयों में छात्र घर से पानी लेकर आते हैं । वे ऐसा करें इसका आग्रह विद्यालय और अभिभावक दोनों का होता है। विद्यालय कभी कभी विचार करता है कि छात्र यदि घर से पानी लाते हैं तो विद्यालय का बोज कम होगा। अभिभावकों को कभी कभी विद्यालय की व्यवस्था पर सन्देह होता है। वहाँ शुद्ध पानी मिलेगा कि नहीं इसकी आशंका रहती है। इसलिए वे घर से ही पानी भेजते हैं। विद्यालय में भीड़ होने के कारण भी अपना पानी अलग रखने की आवश्यकता उन्हें लगती है। घर से विद्यालय की दूरी भी होती है और रास्ते में पानी की आवश्यकता होती है इसलिए भी अभिभावक पानी घर से देते हैं।  
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५. अब इसमें शैक्षिक दृष्टि से विचारणीय बातें कौनसी
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५. अब इसमें शैक्षिक दृष्टि से विचारणीय बातें कौन सी हैं ?पहली बात तो यह है कि विद्यालय में पानी की व्यवस्था है और वह अच्छी है इस बात पर अभिभावकों का विश्वास बनना चाहिये । इसके आधार पर ही आगे की बातें सम्भव हो सकती हैं।
 
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हैं ?पहली बात तो यह है कि विद्यालय में पानी की व्यवस्था है और वह अच्छी है इस बात पर अभिभावकों का विश्वास बनना चाहिये । इसके आधार पर ही आगे की बातें सम्भव हो सकती हैं।  
      
६. आजकल जो बात सर्वाधिक प्रचलन में है वह है प्लास्टिक का प्रयोग । टंकी, बोतल, नलिका और नल, प्याले आदि सबकुछ प्लास्टिक का ही बना होता है। भौतिक विज्ञान स्पष्ट कहता है कि प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है । इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का प्रयोग न करे और उसके निषेध के लिए छात्रों की सिद्धता बनाए और अभिभावकों का प्रबोधन करे । विद्यालय के शिक्षाक्रम का यह एक महत्त्वपूर्ण अंग होना चाहिये । विश्वभर के संकट मनुष्य की अनुचित मन:स्थिति और उससे प्रेरित होने वाले अनुचित व्यवहार के कारण ही तो निर्माण होते हैं। मन और व्यवहार ठीक करने का प्रमुख अथवा कहो कि एकमेव केन्द्र ही तो विद्यालय है । वहाँ भी यदि प्लास्टिक का प्रयोग किया जाय तो इससे बढ़कर पाप कौनसा होगा। इस सन्दर्भ में सुभाषित देखें <blockquote>अन्यक्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति । </blockquote><blockquote>तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ।।</blockquote>अर्थात अन्य स्थानों पर किया गया पाप तीर्थक्षेत्र में धुल जाता है परन्तु तीर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप वज्रलेप बन जाता है। विद्यालय ज्ञान के क्षेत्र में तीर्थक्षेत्र ही तो है । अतः विद्यालय ने इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिये ।  
 
६. आजकल जो बात सर्वाधिक प्रचलन में है वह है प्लास्टिक का प्रयोग । टंकी, बोतल, नलिका और नल, प्याले आदि सबकुछ प्लास्टिक का ही बना होता है। भौतिक विज्ञान स्पष्ट कहता है कि प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है । इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का प्रयोग न करे और उसके निषेध के लिए छात्रों की सिद्धता बनाए और अभिभावकों का प्रबोधन करे । विद्यालय के शिक्षाक्रम का यह एक महत्त्वपूर्ण अंग होना चाहिये । विश्वभर के संकट मनुष्य की अनुचित मन:स्थिति और उससे प्रेरित होने वाले अनुचित व्यवहार के कारण ही तो निर्माण होते हैं। मन और व्यवहार ठीक करने का प्रमुख अथवा कहो कि एकमेव केन्द्र ही तो विद्यालय है । वहाँ भी यदि प्लास्टिक का प्रयोग किया जाय तो इससे बढ़कर पाप कौनसा होगा। इस सन्दर्भ में सुभाषित देखें <blockquote>अन्यक्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति । </blockquote><blockquote>तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ।।</blockquote>अर्थात अन्य स्थानों पर किया गया पाप तीर्थक्षेत्र में धुल जाता है परन्तु तीर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप वज्रलेप बन जाता है। विद्यालय ज्ञान के क्षेत्र में तीर्थक्षेत्र ही तो है । अतः विद्यालय ने इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिये ।  
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७. एक ओर प्लास्टीक का आतंक है तो दूसरी ओर
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७. एक ओर प्लास्टीक का आतंक है तो दूसरी ओर शुद्धीकरण का भूत बुद्धि पर सवार हो गया है। हम कहते हैं कि आज का जमाना वैज्ञानिकता का है। परन्तु पानी के शुद्धीकरण के लिए जो यंत्र लगाए जाते हैं और जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वह विज्ञापनों ने रची हुई मायाजाल है। विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं से 'शुद्ध' हुआ पानी शरीर के लिए उपयोगी क्षारों को भी गँवा चुका होता है । अभ्यस्त लोगों को स्वाद से भी इसका पता चल जाता है। हमारे बड़े बड़े कार्यक्रमों में और घरों में शुद्ध पानी के नाम पर मिनरल पानी और प्लास्टिक के पात्र प्रयोग में लाये जाते हैं वह हमारी बुद्धि कितनी विपरीत हो गई है और अतार्किक तर्कों से ग्रस्त हो गई है इसका ही द्योतक है। विद्यालयों ने इस संकट के ज्ञानात्मक और भावनात्मक उपाय करने चाहिए । इस दृष्टि से तो प्रथम इन दोनों बातों का प्रयोग बन्द करना चाहिये ।
 
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शुद्धीकरण का भूत बुद्धि पर सवार हो गया है। हम कहते हैं कि आज का जमाना वैज्ञानिकता का है। परन्तु पानी के शुद्धीकरण के लिए जो यंत्र लगाए जाते हैं और जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वह विज्ञापनों ने रची हुई मायाजाल है। विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं से 'शुद्ध' हुआ पानी शरीर के लिए उपयोगी क्षारों को भी गँवा चुका होता है । अभ्यस्त लोगों को स्वाद से भी इसका पता चल जाता है। हमारे बड़े बड़े कार्यक्रमों में और घरों में शुद्ध पानी के नाम पर मिनरल पानी और प्लास्टिक के पात्र प्रयोग में लाये जाते हैं वह हमारी बुद्धि कितनी विपरीत हो गई है और अतार्किक तर्कों से ग्रस्त हो गई है इसका ही द्योतक है। विद्यालयों ने इस संकट के ज्ञानात्मक और भावनात्मक उपाय करने चाहिए । इस दृष्टि से तो प्रथम इन दोनों बातों का प्रयोग बन्द करना चाहिये ।  
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८. भौतिक विज्ञान के प्रयोगों ने यह सिद्ध किया है कि मिट्टी के पात्र पानी के शुद्धिकारण के लिए बहुत लाभकारी हैं। तांबे के पात्र भी उतने ही लाभकारी हैं । पीने के पानी के लिए गर्मी के दिनों में मिट्टी के
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और ठंड के दिनों में तांबे के पात्र सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। शुद्धीकरण के कृत्रिम उपायों में पैसा खर्च करने के स्थान पर मिट्टी और तांबे के पात्रों का प्रयोग करना दूरगामी और तात्कालिक दोनों दृष्टि से अधिक समुचित है । टंकियों में भरे पानी को शुद्ध करने के लिए भी रसायनों का प्रयोग करने के स्थान पर सहजन और निर्मली के बीज और फिटकरी जैसे पदार्थों का प्रयोग अधिक लाभकारी होते हैं । छात्रों को कूलर और शीतागार का पानी भी नहीं पिलाना चाहिये।  
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८. भौतिक विज्ञान के प्रयोगों ने यह सिद्ध किया है कि मिट्टी के पात्र पानी के शुद्धिकारण के लिए बहुत लाभकारी हैं। तांबे के पात्र भी उतने ही लाभकारी हैं । पीने के पानी के लिए गर्मी के दिनों में मिट्टी के और ठंड के दिनों में तांबे के पात्र सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। शुद्धीकरण के कृत्रिम उपायों में पैसा खर्च करने के स्थान पर मिट्टी और तांबे के पात्रों का प्रयोग करना दूरगामी और तात्कालिक दोनों दृष्टि से अधिक समुचित है । टंकियों में भरे पानी को शुद्ध करने के लिए भी रसायनों का प्रयोग करने के स्थान पर सहजन और निर्मली के बीज और फिटकरी जैसे पदार्थों का प्रयोग अधिक लाभकारी होते हैं । छात्रों को कूलर और शीतागार का पानी भी नहीं पिलाना चाहिये।
    
९. पानी के सम्यक उपयोग का ज्ञान भी देने की आवश्यकता है। पानी निकासी की व्यवस्था भी गम्भीरतापूर्वक करनी चाहिये । इसकी चर्चा भी स्वतन्त्र रूप से अन्यत्र की गई है।
 
९. पानी के सम्यक उपयोग का ज्ञान भी देने की आवश्यकता है। पानी निकासी की व्यवस्था भी गम्भीरतापूर्वक करनी चाहिये । इसकी चर्चा भी स्वतन्त्र रूप से अन्यत्र की गई है।
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२. पानी जीवनधारणा के लिये अनिवार्य रूप से आवश्यक है। पानी के बिना जीवन सम्भव नहीं । पानी का एक नाम ही जीवन है।  
 
२. पानी जीवनधारणा के लिये अनिवार्य रूप से आवश्यक है। पानी के बिना जीवन सम्भव नहीं । पानी का एक नाम ही जीवन है।  
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३. पानी पंचमहाभूतों में एक है। वह सर्वव्यापी है। सृष्टि के हर पदार्थ में पानी होता है । पानी के कारण ही पदार्थ का संधारण होता है ।
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३. पानी पंचमहाभूतों में एक है। वह सर्वव्यापी है। सृष्टि के हर पदार्थ में पानी होता है । पानी के कारण ही पदार्थ का संधारण होता है।
    
४. भौतिक विज्ञान कहता है कि पानी स्वयं स्वादहीन है, उसका अपना कोई स्वाद नहीं है, परन्तु यह भी सत्य है कि पानी के कारण ही किसी भी पदार्थ को स्वाद प्राप्त होता है।  
 
४. भौतिक विज्ञान कहता है कि पानी स्वयं स्वादहीन है, उसका अपना कोई स्वाद नहीं है, परन्तु यह भी सत्य है कि पानी के कारण ही किसी भी पदार्थ को स्वाद प्राप्त होता है।  

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