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इस ग्रन्थ का यह प्रथम पर्व है।  
 
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प्रथम पर्व, प्रथम और दूसरे पर्वों को जोडने की भूमिका निभाता है, साथ ही किसी भी विषय को कितने विभिन्न आयामों में देखने की आवश्यकता होती है इसकी ओर भी संकेत करता है । इन आयामों को सूत्रों में बाँधने का प्रयास किया गया है । तत्व और व्यवहार सम्बन्ध के सूत्र के समान ही आगे व्यवहार सूत्र भी दिये गये हैं ।
 
प्रथम पर्व, प्रथम और दूसरे पर्वों को जोडने की भूमिका निभाता है, साथ ही किसी भी विषय को कितने विभिन्न आयामों में देखने की आवश्यकता होती है इसकी ओर भी संकेत करता है । इन आयामों को सूत्रों में बाँधने का प्रयास किया गया है । तत्व और व्यवहार सम्बन्ध के सूत्र के समान ही आगे व्यवहार सूत्र भी दिये गये हैं ।
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[[Category:पर्व 1: उपोद्धात्‌]]

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