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इस ग्रन्थ का यह प्रथम पर्व है।

इस ग्रन्थमाला का प्रथम ग्रन्थ है: भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप । उसमें शिक्षा विषयक तात्विक बातें की गई हैं । परन्तु जैसा इस पर्व में कहा गया है व्यवहार के बिना तत्व को व्यक्तरूप प्राप्त नहीं होता। यह जगत व्यवहार से चलता है इसलिये व्यवहार की चर्चा तत्व के साथ साथ करनी चाहिये।

प्रथम ग्रन्थ में शिक्षा के जिन तात्विक आयामों की चर्चा की गई है उन्हीं के व्यावहारिक आयामों की चर्चा इस ग्रन्थ में की गई है । अतः दोनों ग्रन्थों को साथ साथ पढने की आवश्यकता रहेगी। साथ ही एक बात यह भी ध्यान में आती है कि व्यवहार और व्यवस्थाओं के अनेक आयाम ऐसे हैं जिनका वास्तव में शैक्षिक मूल्य होता है। अतः भौतिक दिखाई देनेवाली अनेक बातों को तत्व के प्रकाश में देखने से उनका स्वरूप और महत्व बदल जाता है ।

प्रथम पर्व, प्रथम और दूसरे पर्वों को जोडने की भूमिका निभाता है, साथ ही किसी भी विषय को कितने विभिन्न आयामों में देखने की आवश्यकता होती है इसकी ओर भी संकेत करता है । इन आयामों को सूत्रों में बाँधने का प्रयास किया गया है । तत्व और व्यवहार सम्बन्ध के सूत्र के समान ही आगे व्यवहार सूत्र भी दिये गये हैं ।

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