==== '''१०. धर्मतंत्र, समाजतंत्र और राज्यतंत्र का शिक्षा के साथ समायोजन''' ====
==== '''१०. धर्मतंत्र, समाजतंत्र और राज्यतंत्र का शिक्षा के साथ समायोजन''' ====
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शिक्षा की व्यवस्था समाजधारणा के लिये होती है। शिक्षा मनुष्य को इस लायक बनाती है कि वह अपनी सभी क्षमताओं का विकास करे और उन सभी क्षमताओं का विनियोग परिवार से लेकर सम्पूर्ण विश्व के मानव समाज को
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शिक्षा की व्यवस्था समाजधारणा के लिये होती है। शिक्षा मनुष्य को इस लायक बनाती है कि वह अपनी सभी क्षमताओं का विकास करे और उन सभी क्षमताओं का विनियोग परिवार से लेकर सम्पूर्ण विश्व के मानव समाज को सुखी, समृद्ध, ज्ञानवान और सद्गुणसम्पन्न बनाने में और सृष्टि का रक्षण एवं पोषण करने में करे और इसी मार्ग से जाते हुए अपने लिये मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करे । वास्तव में यह कार्य धर्म का है। धर्म की परिभाषा है - धारणाद्धर्ममित्याहुः धर्मो धारयते प्रजाः । अर्थात् प्रजाओं को धारण करता है इसीलिये वह धर्म है। शिक्षा धर्मतंत्र की प्रतिनिधि है। धर्मतंत्र की प्रतिनिधि बनकर वह समाज का और राज्य का मार्गदर्शन और निर्देशन करती है।
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शिक्षा का सम्बन्ध समष्टि और सृष्टि के साथ होने के कारण विभिन्न व्यवस्थाओं के साथ, विभिन्न तंत्रों के साथ उसका समायोजन होना आवश्यक है। इन विभिन्न तंत्रों में प्रमुख रूप से हैं राज्यतंत्र, समाजतंत्र और धर्मतंत्र । अर्थतंत्र, न्यायतंत्र, दण्डविधान आदि समाजतंत्र और राज्यतंत्र के अन्तर्गत होंगे। इन चारों का समायोजन कुछ इस प्रकार हो सकता है।
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धर्मतंत्र, जैसे पूर्व में उल्लेख किया है, शिक्षातंत्र का मार्गदर्शक और नियामक है।
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राज्यतंत्र वर्तमान में शिक्षातंत्र का नियंत्रक और नियामक है। इस व्यवस्था को बदलना आवश्यक है। नियंत्रण और नियमन धर्मतंत्र को सौंपकर राज्यतंत्र ने शिक्षा का सहायक और पोषक होना चाहिये। भारत में ऐसी व्यवस्था दीर्घकाल तक रही है। विद्वानों का और विद्याकेन्द्रों का पोषण करना शासक को शोभा देने वाला कर्तव्य माना गया है। शासन करने में इसका लाभकारी योगदान भी रहा है।
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समाज शिक्षा का व्यवहारक्षेत्र है। व्यक्तिगत जीवन में और संपूर्ण समाज के जीवन में शिक्षा नित्य अनुस्यूत होकर पुष्टिकरण का और उन्नयन का कार्य निरन्तर रूप से करती है। जहाँ ऐसी व्यवस्था है वहाँ समाज स्वस्थ, समृद्ध, सद्गुणसम्पन्न और चिरंजीव होता है।
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कोई भी व्यक्ति, संस्था, संगठन या शासन इन सूत्रों पर कार्य कर समर्थ राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दे सकता है।
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समग्र शिक्षा की इस योजना पर सार्वत्रिक चर्चा आमंत्रित है।