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| (१) ऐसा यदि आवाहन करते हैं और वे सब भारत में वापस आ जाते हैं तो देश को बहुत लाभ होगा। देश का विकास होगा। प्रधानमन्त्री ने ऐसा आवाहन करना ही चाहिये । | | (१) ऐसा यदि आवाहन करते हैं और वे सब भारत में वापस आ जाते हैं तो देश को बहुत लाभ होगा। देश का विकास होगा। प्रधानमन्त्री ने ऐसा आवाहन करना ही चाहिये । |
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− | (२) परन्तु यह सम्भव नहीं है । ऐसे उच्च श्रेणी के लोगों को काम दे सके, सुविधायें दे सके, उनकी कदर बूझ सके ऐसी क्षमता ही भारत में नहीं है । वे आयेंगे तो भी यहाँ का वातावरण और व्यवस्था देखकर वापस चले जायेंगे । प्रधानमन्त्री | + | (२) परन्तु यह सम्भव नहीं है । ऐसे उच्च श्रेणी के लोगों को काम दे सके, सुविधायें दे सके, उनकी कदर बूझ सके ऐसी क्षमता ही भारत में नहीं है । वे आयेंगे तो भी यहाँ का वातावरण और व्यवस्था देखकर वापस चले जायेंगे । प्रधानमन्त्री का आवाहन भावात्मक है, व्यावहारिक नहीं क्योंकि वे भी व्यवस्था नहीं दे पायेंगे । |
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| + | (३) प्रधानमंत्री जीवनयापन की और काम करने की अच्छी से अच्छी सुविधा यदि दे भी दें तो भी जिन्हें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या अरब देशों का धन और विलास का स्वाद लग गया है वे वापस आना पसन्द नहीं करेंगे। |
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| + | (४) भारत से विदेशों में गये हुए लोग भारत के निन्दक हो जाते हैं यह सबका अनुभव है । भारत की सडकें, भारत का यातायात, भारत के लोगों की आदतें और रहनसहन, भारत की गर्मी और गन्दगी उन्हें जरा भी नहीं सुहाती । इसलिये वे भारत आना पसन्द नहीं करते। |
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| + | इन उत्तरों को देखते हुए समझ में आता है कि भारतीय लोगों की मानसिकता कितनी देशनिरपेक्ष बन गई है । जिस देश में जन्म लिया, जिस देश के जलवायु ने पोषण किया, जहाँ के अध्यापकों ने शिक्षा दी, जिस देश की प्रजा के पैसे और व्यवस्था से शिक्षा प्राप्त की, जिन मातापिता ने कष्ट उठाकर पालन किया उनके प्रति किसी भी प्रकार का लगाव ही नहीं होना, केवल धन ही दिखाई देना केवल अपनी सुविधा का विचार करना, जिनके कारण लायक बने उनके प्रति कृतज्ञ नहीं होना, अध्ययन और अनुसन्धान करने के अथवा अधिक धन कमाने के अथवा स्वर्ग के नन्दनवन जैसे भोगविलास के साधन पाने के अवसर नहीं होना और इस कारण से देश, देशवासी और सरकार को उलाहना देना या उनकी आलोचना करना चरित्र के कौन से गुण का निदर्शन करता है ? ज्ञान-सम्पादन करने हेतु विश्व में कहीं भी जाया जाता है। परन्तु ज्ञान का विनियोग करने हेतु स्वदेशमें ही रहना होता है यह कितनी सामान्य बात है । इस बात का विस्मरण होना, किसी के द्वारा स्मरण करवाने पर उसकी उपेक्षा करना अथवा उसके बारे में तर्कवितर्क करना किस बात का संकेत है ? केवल इसका ही कि वर्तमान भारत के लोगों को कृतज्ञता, आदर, सम्मान, देश का गौरव, देश की अस्मिता, देशभक्ति आदि कुछ भी सिखाया नहीं गया है, केवल स्वार्थ साधना ही सिखाया गया है। यह शिक्षा का बहुत बडा दोष है। इस दोष को यदि जानते हैं तो प्रधानमन्त्री ऐसा आवाहन करने का साहस ही नहीं करेंगे क्योंकि उस आवाहन की उपेक्षा होगी, अवमानना होगी, उसके स्वीकार के लिये तरह तरह की शर्ते रखी जायेंगी, उस आवाहन की संचार माध्यमों द्वारा और विरोध पक्षों द्वारा आलोचना होगी और सोशल मीडिया पर उसका मजाक होगा । अतः आवाहन करने के स्थान पर प्रधानमन्त्री को चाहिये कि वे भारत के समस्त प्रजाजनों के लिये धर्मकी, राष्ट्रधर्म की शिक्षा अनिवार्य बनायें । ताकि भविष्य में ऐसा आवाहन करने का अवसर ही न आये, शिक्षित लोग अपने देश की सेवा को ही अपनी शिक्षा का लक्ष्य मानें । ऐसा करना क्या असम्भव है ? |
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| + | ==== प्रश्न १४ मान लीजिये कि भारत में रहनेवाला और भारत में प्रवेश करने वाला या अपने आपको भारतीय कहलानेवाला प्रत्येक व्यक्ति अंग्रेजी से पूर्ण रूप से अपरिचित हो जाय तो क्या होगा ? ==== |
| + | उत्तर |
| + | # यह तो बड़ी आपदा होगी, दैवी आपदा होगी । अंग्रेजी के अभाव में हम विश्व भर के आधुनिक ज्ञान से वंचित हो जायेंगे । हमें विश्व के अन्य देशों में जाने में असुविधा हो जायेगी । ज्ञानविज्ञान के क्षेत्र के अधिकतर ग्रन्थ अंग्रेजी में होते हैं । हम उनसे वंचित हो जायेंगे। अतः ऐसा नहीं होना चाहिये, हो भी नहीं सकता, आप केवल भयभीत कर रहे हैं। |
| + | # हमारे देश में कई ऐसे लोग हैं जिनकी प्रथम भाषा अंग्रेजी है । कई ऐसे हैं जिन्हें मातृभाषा और अंग्रेजी ऐसी दो ही भाषायें आती हैं । अंग्रेजी के अभाव में वे भारत के ही अन्य प्रान्तों के निवासियों के साथ वार्तालाप नहीं कर पायेंगे । |
| + | # अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय और महाविद्यालय बन्द हो जायेंगे । अंग्रेजी के समाचार पत्र और वाहिनियाँ बन्द हो जायेंगी । उन्हें भारी नुकसान होगा। इस नुकसान को हम किस प्रकार भरपाई करेंगे ? |
| + | # हमारा सरकारी कामकाज अधिकांश अंग्रेजी में होता है, विशेष रूप से उच्चस्तरीय कामकाज तो अंग्रेजी में ही होता है । यदि अंग्रेजी नहीं रही तो यह सारा कामकाज ठप्प हो जायेगा । |
| + | # आज के जमाने में अंग्रेजी नहीं आना कैसे चल सकता है ? यह जमाना वैश्विकता का है और विश्व की भाषा अंग्रेजी है। हम विश्व के अन्य देशों से अलग थलग पड़ जायेंगे, अकेले पड जायेंगे । नहीं, यह नहीं हो सकता । हम उसे होने नहीं देगे। |
| + | # अंग्रेजी भले ही विदेशी भाषा हो, हमें दो सो वर्ष गुलामी में रखने वालों की भाषा हो तो भी अंग्रेजी का स्वीकार तो हमें करना ही होगा । हमें अंग्रेजों से बैर हो सकता है, अब तो वह भी नहीं होना चाहिये क्योंकि अब वे यहां नहीं है, परन्तु केवल उनकी भाषा है इसलिये अंग्रेजी से विमुख होना ठीक नहीं है। यह तो हमारी उदारता का अभाव है। |
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| + | हम देख सकते हैं कि इन तर्कों में खास कोई वजूद नहीं है, केवल अंग्रेजी का मोह ही है। ऐसा नहीं है कि देश बिना अंग्रेजी के चल नहीं सकता, उल्टे लोगों को अंग्रेजी से भी संस्कृत सीखना अधिक सुविधाजनक है। हमें इस बात का कष्ट नहीं है कि संस्कृत नहीं आने के कारण हम अपने ही देश के कितने मूल्यवान ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। देश की सम्पर्कभाषा बहुत सरलता से हिन्दी हो जायेगी। |
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| + | भारत के लोग यदि अंग्रेजी छोडकर हिन्दी और संस्कृत बोलना प्रारम्भ करेंगे, अंग्रेजी नहीं बोलेंगे ऐसा दृढतापूर्वक कहेंगे तो तुरन्त अमेरिका के विश्वविद्यालयों में हिन्दी और संस्कृत का अध्यापन शुरू हो जायेगा क्योंकि विश्व को भारत के साथ सम्पर्क बनाये रखने की आवश्यकता है। |
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| + | सरकारी कामकाज तो वैसे भी हिन्दी अथवा प्रादेशिक भाषा में ही होना चाहिये, वैसा नहीं करना ही अंग्रेजी नहीं जाननेवालों के प्रति अपराध है अतः वे सब उच्च पदस्थ अधिकारी अपराध करने से बच जायेंगे । |
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| + | लगता ऐसा है कि समस्या अंग्रेजी की नहीं है, हमारे हीनताबोध की है। हीनताबोध मनोवैज्ञानिक समस्या है, बौद्धिक नहीं । मनोवैज्ञानिक समस्या बौद्धिक उपायों से सुलझ नहीं सकतीं । यहाँ दिये गये तर्क तर्क नहीं, मनोभाव हैं । उनके तार्किक उत्तर कोई सुनता भी नहीं है तो मानने का तो प्रश्न ही नहीं। उस पर क्रियान्वयन की तो कोई सम्भावना ही नहीं है। |
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| + | अंग्रेजी जैसे राष्ट्रीय संकट का उपाय जब बौद्धिक प्रयासों से नहीं होता और मनोवैज्ञानिक उपाय करने का हमारा साहस नहीं होता तब दैवी सहारा ही कार्यसाधक होता है । इसलिये यहाँ चमत्कार की बात की गई है। अंग्रेजी अब मनुष्य के नहीं, दैव के बस की बात है। |
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| + | ==== प्रश्न १५ मान लिजीये कि विश्वभर से बिजली भी दैवयोग से अलोप हो जाय तो क्या होगा ? ==== |
| + | उत्तर |
| + | # विश्व फिर आदि मानव की दुनिया बन जायेगा। |
| + | # विश्व फिर बैलगाडी के युग में चला जायेगा। |
| + | # विश्व की गति रुक जायेगी। |
| + | # विश्व फिर पिछड जायेगा। |
| + | # सारे वैज्ञानिक आविष्कार विफल हो जायेंगे । यन्त्रसामग्री बेकार हो जायेगी। |
| + | # जीवन असुविधाओं से भर जायेगा। |
| + | # कारखाने, वाहन, उत्पादन आदि सब बन्द हो जायेंगे तो हमारा जीवन दूभर हो जायेगा । |
| + | <nowiki>*</nowiki> * फिर वही मनोवैज्ञानिक समस्या । उन्नीसवीं शताब्दी से पूर्व विश्व जी रहा था । संस्कृति और सभ्यता के अनेक शिखर अनेक प्रजाओं ने सर किये थे । 'बैलगाडी के युग' में सब काम हाथ से करने पडते थे, पैरों से चलना पडता था परन्तु सब |
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| ==References== | | ==References== |