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| '''प्रशासक''' : देखिये आपने जो बातें बताई हैं वे भी तो सब जानते हैं। परन्तु सरकार कर व्यवस्था बनाने के अलावा और क्या कर सकती है ? पढाना तो शिक्षकों को होता है। शिक्षक जैसा पढायेंगे वैसी ही तो शिक्षा होगी। सरकार वेतन अच्छा देती है, सुविधायें भी देती है तो भी वे अच्छा नहीं पढाते तो कोई क्या कर सकता है। अब आप ही देखिये, विश्वविद्यालयों के अध्यापकों का वेतन कितना अच्छा है। हमने उनके लिये शोधकार्य भी अनिवार्य बनाया है। तो भी वे अपने विश्वविद्यालयों की बराबर में अपनी संस्थाओं को खडा नहीं कर सकती। आखिर आपके पास भी कोई उपाय है ? | | '''प्रशासक''' : देखिये आपने जो बातें बताई हैं वे भी तो सब जानते हैं। परन्तु सरकार कर व्यवस्था बनाने के अलावा और क्या कर सकती है ? पढाना तो शिक्षकों को होता है। शिक्षक जैसा पढायेंगे वैसी ही तो शिक्षा होगी। सरकार वेतन अच्छा देती है, सुविधायें भी देती है तो भी वे अच्छा नहीं पढाते तो कोई क्या कर सकता है। अब आप ही देखिये, विश्वविद्यालयों के अध्यापकों का वेतन कितना अच्छा है। हमने उनके लिये शोधकार्य भी अनिवार्य बनाया है। तो भी वे अपने विश्वविद्यालयों की बराबर में अपनी संस्थाओं को खडा नहीं कर सकती। आखिर आपके पास भी कोई उपाय है ? |
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| + | '''शिक्षक''' : पहली बात तो यह है कि व्यवस्थाओं, वेतन और सुविधाओं से शिक्षा नहीं होती। स्वेच्छा, स्वन्त्रता और प्रेरणा से होती है। हमारे वर्तमान तन्त्र में शिक्षक के पास इन तीन में से एक भी नहीं है। शिक्षक आपके तन्त्र में नौकरी करता है। चाहे प्राथमिक विद्यालय हो चाहे विश्वविद्यालय, शिक्षक नौकर है । क्या आप शिक्षा को सरकारी तन्त्र से मुक्त कर सकते |
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| + | '''प्रशासक''' : अरे, यह कैसे हो सकता है ? नियन्त्रण के बाद भी कोई अपना काम ठीक से करता नहीं है, स्वतन्त्र हो जायेंगे तो तो फिर कौन करेगा ? नहीं यह तो सम्भव नहीं है, यह व्यावहारिक नहीं है। और प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था को तो हम छेड नहीं सकते। ऐसा किया तो यह संविधान के विरुद्ध होगा। |
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| + | '''शिक्षक''' : कब तक आप व्यवस्था की और संविधान की दुहाई देते रहेंगे । कब तक आप शिक्षा का बोज ढोते रहेंगे जो निरर्थक और अनर्थक है ? |
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| + | '''प्रशासक''' : लेकिन यह तो मन्त्रियों के अधिकार की बात है। हम तो केवल व्यवस्था देखते हैं। वे नीतियाँ बनाते हैं, हम उन नीतियों का क्रियान्वयन करते हैं। आप उनके पास जाइये, उन्हें समझाइये । यह हमारा काम नहीं |
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| + | '''शिक्षक''' : अरे महाशय, आप उत्तेजित हो गये । कृपा करके शान्त हों । मैं दोष नहीं दे रहा हूँ। शिक्षा की मुक्ति की सम्भावनाओं की बात कर रहा हूँ। |
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| + | देखिये, सरकार कितनी भी कार्यक्षम हो, अच्छी नीयत वाली हो या परिश्रमी भी हो परन्तु शिक्षा उसका विषय नहीं है इसलिये सरकार उसके प्रयासों में कभी भी यशस्वी होने वाली नहीं है। सरकार यदि इस स्थिति में परिवर्तन नहीं करेगी तो शिक्षा का और समाज का कोई भला होने वाला नहीं है। अब यह बडा साहसी विचार होगा क्योंकि सरकार ने पूर्ण रूप से शिक्षा को नियन्त्रण में रखा है। आप ही विचार करें कि इसमें क्या हो सकता है। आप किस प्रकार शिक्षा को अपने नियन्त्रण से मुक्त करेंगे और स्वयं भी इस व्यर्थ बोज से मुक्त होंगे ? |
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| + | '''प्रशासक''' : परन्तु यह कैसे हो सकता है ? परापूर्व से ही ऐसी व्यवस्था चली आ रही है। सरकार का यह कर्तव्य है। वह अपने कर्तव्य से पीछे नहीं रह सकती। सरकार नहीं करेगी तो कौन करेगा ? यह तो प्रजा के कल्याण का विषय है। सरकार नहीं करेगी तो और कोई भला क्यों करेगा ? और फिर यह तो प्रस्थापित व्यवस्था है। इसमें बदल कैसे हो सकता है ? यह संविधान का विषय है। उसमें कोई भी परिवर्तन करने के लिये जिस पक्ष की सरकार है उस पक्ष का दो तिहई बहुमत चाहिये। और वह बहुमत हो तो भी ऐसी विचित्र बात कैसे हो सकती है ? आप वास्तविक धरातल पर विचार ही नहीं कर रहे हैं । मुझे बहुत परेशानी हो रही है। |
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| + | '''शिक्षक''' : खेद की बात है। मैं वास्तविक धरातल की ही बात कर रहा हूँ । सुनिये, मैं एक एक कर आपके समक्ष स्थिति स्पष्ट करता हूँ। |
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| + | एक, आप सच्चे भारतीय हैं । आप प्रशासकीय सेवा में हैं इसलिये भारत का इतिहास जानते हैं। इस देश की शिक्षाव्यवस्था विश्व में सबसे प्राचीन है यह तो आप जानते ही हैं। अत्यन्त प्राचीन काल से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक भारत में शिक्षा सरकार के नियन्त्रण में नहीं थी। ब्रिटीशों ने भारत की प्रजा के मानस को अपने अधीन करने हेतु शिक्षा को अपने नियन्त्रण में ले लिया। उसके बाद भारत की शिक्षा और शिक्षा की व्यवस्था का सर्वनाश किया। यह कड़वा सच है कि आप स्वाधीन भारत में भी ब्रिटीशों की ही पद्धति चला रहे हैं। क्या आपका उद्देश्य भी प्रजा के मानस को अपने अधीन रखने का ही है ? क्या प्रजा को स्वतन्त्र नहीं होने देना चाहते हैं ? |
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| + | '''प्रशासक''' : यह तो गम्भीर आरोप है। भारत में शिक्षा थी ही नहीं, ब्रिटीशों ने शुरू की और आज भी हमारे लिये वह व्यवस्था का उत्तम नमूना है। स्वतन्त्रता से पूर्व वह व्यवस्था शुरू हुई इसलिये उसका श्रेय तो उनका ही माना जाना चाहिये । हमें ब्रिटीशों के प्रति |
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| ==References== | | ==References== |