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'''प्रशासक''' : हमने शिक्षकों के प्रशिक्षण की अच्छी व्यवस्था की है। शिक्षकों का वेतन भी अब सम्मानजनक है। सेवाकालीन प्रशिक्षण की भी अच्छी व्यवस्था है। हमने केन्द्र और राज्यों में प्रशिक्षण और अनुसन्धान की संस्थायें बनाई हैं। पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें बनाई है। पाठ्यपुस्तकें निःशुल्क दी जाती हैं। लडकियाँ पढ़ें इस दृष्टि से उन्हें अनेक विशेष सुविधायें दी जाती हैं। शत प्रतिशत साक्षरता के लिये अभियान के तौर पर प्रयास किये जाते हैं। माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा का भी विचार किया जाता है। विश्वविद्यालयों की संख्या क्रमशः प्रतिवर्ष बढ़ रही है। आईआईटी, आईआईएम जैसी विश्वस्तरीय संस्थायें है। आयुर्विज्ञान की संस्थायें भी लक्षणीय हैं। अनेक शोध संस्थान भी कार्यरत हैं। खैर, यह सब तो आप भी जानते ही होंगे। आपका कहना क्या है ?
 
'''प्रशासक''' : हमने शिक्षकों के प्रशिक्षण की अच्छी व्यवस्था की है। शिक्षकों का वेतन भी अब सम्मानजनक है। सेवाकालीन प्रशिक्षण की भी अच्छी व्यवस्था है। हमने केन्द्र और राज्यों में प्रशिक्षण और अनुसन्धान की संस्थायें बनाई हैं। पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें बनाई है। पाठ्यपुस्तकें निःशुल्क दी जाती हैं। लडकियाँ पढ़ें इस दृष्टि से उन्हें अनेक विशेष सुविधायें दी जाती हैं। शत प्रतिशत साक्षरता के लिये अभियान के तौर पर प्रयास किये जाते हैं। माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा का भी विचार किया जाता है। विश्वविद्यालयों की संख्या क्रमशः प्रतिवर्ष बढ़ रही है। आईआईटी, आईआईएम जैसी विश्वस्तरीय संस्थायें है। आयुर्विज्ञान की संस्थायें भी लक्षणीय हैं। अनेक शोध संस्थान भी कार्यरत हैं। खैर, यह सब तो आप भी जानते ही होंगे। आपका कहना क्या है ?
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'''शिक्षक''' : जी हाँ, यह सब तो मैं जानता हूँ। यह जानकारी इण्टरनेट पर उपलब्ध है। मेरी चिन्तायें कुछ और हैं जिनकी ओर हमें ध्यान देना है । मैं कुछ बातें आपके समक्ष बताता हूँ।
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# सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में कोई पढ़ना नहीं चाहता। आपके बच्चे भी सरकारी स्कूल में नहीं पढे होंगे।
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# सरकारी विद्यालयों में जो भी पढता है उसे आठ वर्ष की पढाई के बाद भी लिखना पढ़ना नहीं आता।
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# अन्य विद्यालयों में भी पन्द्रह वर्ष की पढाई के बाद ज्ञानात्मक दृष्टि से शिक्षित कहे जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या कदाचित दो प्रतिशत होगी।
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# शिक्षित लोगों में देशभक्ति, सामाजिक दायित्वबोध और व्यक्तिगत आचरण में संस्कार नहीं होते। हम सज्जन कह सकें ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण नहीं करते।
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# विश्व के प्रथम दोसौ विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है।
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मैंने सारी चिन्ताओं का सार केवल पाँच बिन्दुओं में बताया है। मैं आपके तन्त्र पर या सरकार पर आरोप नहीं लगा रहा हूँ। आप और हम मिलकर स्थिति में कुछ परिवर्तन कर सकें इस दृष्टि से कह रहा हूँ।
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'''प्रशासक''' : देखिये आपने जो बातें बताई हैं वे भी तो सब जानते हैं। परन्तु सरकार कर व्यवस्था बनाने के अलावा और क्या कर सकती है ? पढाना तो शिक्षकों को होता है। शिक्षक जैसा पढायेंगे वैसी ही तो शिक्षा होगी। सरकार वेतन अच्छा देती है, सुविधायें भी देती है तो भी वे अच्छा नहीं पढाते तो कोई क्या कर सकता है। अब आप ही देखिये, विश्वविद्यालयों के अध्यापकों का वेतन कितना अच्छा है। हमने उनके लिये शोधकार्य भी अनिवार्य बनाया है। तो भी वे अपने विश्वविद्यालयों की बराबर में अपनी संस्थाओं को खडा नहीं कर सकती। आखिर आपके पास भी कोई उपाय है ?
    
==References==
 
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