अतः भारत ने विश्वपटल पर जिस मूल्य प्रश्न को उठाना चाहिये वह है कि विश्व पर अर्थ का साम्राज्य स्थापित होना चाहिये या किसी और तत्त्व का। भारत ने तो इसका उत्तर सहस्राब्दियों पूर्व ही निश्चित कर लिया है। भारत निश्चयपूर्वक मानता है कि साम्राज्य धर्म का ही होना चाहिये, शेष सारी व्यवस्थायें धर्म के अविरोधी, धर्म के अनुकूल होनी चाहिये । धर्म के साम्राज्य को आँच नहीं आनी चाहिये । प्रजा की रक्षा करना राजा का कर्तव्य है और धर्म की रक्षा करना राजा और प्रजा दोनों का कर्तव्य है। धर्म की रक्षा का प्रथम चरण है धर्म का पालन करना अर्थात् आचरण करना। | अतः भारत ने विश्वपटल पर जिस मूल्य प्रश्न को उठाना चाहिये वह है कि विश्व पर अर्थ का साम्राज्य स्थापित होना चाहिये या किसी और तत्त्व का। भारत ने तो इसका उत्तर सहस्राब्दियों पूर्व ही निश्चित कर लिया है। भारत निश्चयपूर्वक मानता है कि साम्राज्य धर्म का ही होना चाहिये, शेष सारी व्यवस्थायें धर्म के अविरोधी, धर्म के अनुकूल होनी चाहिये । धर्म के साम्राज्य को आँच नहीं आनी चाहिये । प्रजा की रक्षा करना राजा का कर्तव्य है और धर्म की रक्षा करना राजा और प्रजा दोनों का कर्तव्य है। धर्म की रक्षा का प्रथम चरण है धर्म का पालन करना अर्थात् आचरण करना। |