आपने शिक्षा को भौतिक पदार्थ मान लिया उसके कारण कल्पना से भी अधिक नुकसान हुआ है। आपने अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये शिक्षा को प्रयुक्त किया है। परन्तु यह तो श्रेष्ठ सत्ता को कनिष्ठ सत्ता की सेवा में प्रयुक्त करने का काम है। इससे कनिष्ठ की सेवा तो नहीं होती उल्टे श्रेष्ठ का श्रेष्ठत्व कम होता है, उसका गौरव समाप्त होता है। इससे एक बहुत बडा मिथ्या संसार निर्माण हो जाता है जिसमें परिश्रम तो होता है पर फल नहीं मिलता। इसके स्थान पर यदि भौतिक पदार्थों के उत्पादन हेतु भौतिक स्तर पर प्रयास किये जाय तो अधिक भौतिक लाभ होगा। सही बात यह होगी कि शिक्षा को भौतिक से अधिक उन्नत स्तर पर उठाया जाना चाहिये। | आपने शिक्षा को भौतिक पदार्थ मान लिया उसके कारण कल्पना से भी अधिक नुकसान हुआ है। आपने अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये शिक्षा को प्रयुक्त किया है। परन्तु यह तो श्रेष्ठ सत्ता को कनिष्ठ सत्ता की सेवा में प्रयुक्त करने का काम है। इससे कनिष्ठ की सेवा तो नहीं होती उल्टे श्रेष्ठ का श्रेष्ठत्व कम होता है, उसका गौरव समाप्त होता है। इससे एक बहुत बडा मिथ्या संसार निर्माण हो जाता है जिसमें परिश्रम तो होता है पर फल नहीं मिलता। इसके स्थान पर यदि भौतिक पदार्थों के उत्पादन हेतु भौतिक स्तर पर प्रयास किये जाय तो अधिक भौतिक लाभ होगा। सही बात यह होगी कि शिक्षा को भौतिक से अधिक उन्नत स्तर पर उठाया जाना चाहिये। |