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इन कारणों से विवाह के सम्बन्ध में भारत में विस्तारपूर्वक और सूक्ष्मतापूर्वक निरूपण किया गया है। सन्तानों को जन्म देने का भी अत्यन्त विस्तृत शास्त्र बनाया गया है। पंचमहायज्ञ और तीन प्रकार के ऋणों की संकल्पना विकसित की गई है।
 
इन कारणों से विवाह के सम्बन्ध में भारत में विस्तारपूर्वक और सूक्ष्मतापूर्वक निरूपण किया गया है। सन्तानों को जन्म देने का भी अत्यन्त विस्तृत शास्त्र बनाया गया है। पंचमहायज्ञ और तीन प्रकार के ऋणों की संकल्पना विकसित की गई है।
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भारत में समाजशास्त्र को स्मृति और स्मृति को मानवधर्मशास्त्र कहा गया है। वहाँ धर्म का अर्थ कर्तव्य
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भारत में समाजशास्त्र को स्मृति और स्मृति को मानवधर्मशास्त्र कहा गया है। वहाँ धर्म का अर्थ कर्तव्य है। अर्थात् समाजशास्त्र हर व्यक्ति का । सामाजिक सन्दर्भ में कर्तव्य निर्धारित करता है। वह समाज के बारे में नहीं बताता है, समाज की धारणा के मूल तत्त्व क्या हैं यह बताकर व्यक्ति का कर्तव्य क्या है और वह उसे कैसे निभाये यह बताता है।
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इस प्रकार स्थिर समाज की रचना के आधार क्या हैं यह बताने के बाद शासन की समाज में और समाज के प्रति क्या भूमिका है इसका भी विचार करना चाहिये । राज्य समाज की स्वायत्तता बनी रहे इस का ध्यान रखने के लिये हैं। सब अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं कि नहीं और करते हैं कि नहीं यह देखना शासक का काम है । इस दृष्टि से न्याय और दण्ड शासक के अधीन है । परराष्ट्र से रक्षा यह भी शासक का कर्तव्य है । परराष्ट्र के साथ यदि युद्ध का अवसर आता है तो शासक के नेतृत्व में समस्त प्रजा उसमें सहभागी होती है । परम्परा से भारत में राजा ही शासक रहा है। स्वाधीनता के बाद हमने डेमोक्रसी अपनाई है । परन्तु राजा और प्रजा का सम्बन्ध शासक और शासित का नहीं अपितु पालक और पाल्य, पिता और पुत्र का रहा है । प्रजा का हित देखना राजा का कर्तव्य है।
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इस प्रकार शिक्षा, अर्थोत्पादन, धर्मपालन, समाजव्यवस्था आदि के आन्तर्सम्बन्धों का सुव्यवस्थित गुम्फन कर राष्ट्र को चिरंजीव बनाने की व्यवस्था भारत में सहस्राब्दियों में विकसित हुई। इस व्यवस्था को छिन्नविच्छिन्न करने का पराक्रम' ब्रिटीशों ने किया । भीषण आक्रमण के बाद भी भारत में बहुत कुछ बचा है। उसके प्रताप से ही भारत अभी चल रहा है । ब्रिटीशों को तो तब भी पता नहीं था और आज भी नहीं है कि उन्होंने किन बातों का नाश किया और आज भी क्या बचा है । भारतीय जीवन के तत्त्वों को समझना उनकी क्षमता के परे था। उनकी शिक्षा के प्रभाव से आज भी एक वर्ग ऐसा है जिसका बोध ब्रिटीशों जैसा है, एक छोटा वर्ग ऐसा है जो जानता है और बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो जानता तो नहीं है परन्तु अन्तःकरण में भारतीयता का अनुभव करता है। इन दो वर्गों के सामर्थ्य पर हमें भारतीय भारत की पुनर्रचना करनी है।
    
==References==
 
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