इस काल में इंग्लैण्ड की बडी गर्वोक्ति रही कि ब्रिटीश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता ।
इस काल में इंग्लैण्ड की बडी गर्वोक्ति रही कि ब्रिटीश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता ।
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यूरोप विश्व के अनेक देशों पर आधिपत्य जमाने में
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यूरोप विश्व के अनेक देशों पर आधिपत्य जमाने में यशस्वी हुआ। उसने अन्य देशों पर आधिपत्य जमाया परन्तु उन देशों की प्रजा को अपना नहीं माना । इसलिये यूरोप का आधिपत्य गुलामी, अत्याचार और इसाई मतमें मतान्तरण का पर्याय बना । जहाँ इतने से भी काम नहीं चला वहाँ शिक्षा के माध्यम से यूरोपीकरण का प्रयास हुआ । भारत जैसे देश के लिये यह विशेष रूप से अपनाया गया मार्ग था । आफ्रिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे महाद्वीपों में इसाईकरण से ही उनका काम चल गया ।
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यूरोपीय जीवनदृष्टि मुख्य रूप से कामनापूर्ति के लक्ष्य को लेकर व्यवहार में अर्थकेन्द्री रही है । अतः जहाँ जहाँ भी वे गये वहाँ की समृद्धि को हस्तगत करना उनका प्रथम उद्देश्य रहा । इस दृष्टि से व्यापार करना उनका मुख्य काम था। व्यापार में मुनाफा कमाना ही उनकी नीति रही। इसलिये अधिक से अधिक कर वसूलना, अधिक से अधिक मजदूरी करवाकर कम से कम वेतन देना, सारे आर्थिक सूत्र अपने हाथ में रखना उनकी मुख्य प्रवृत्ति रही । अपने यूरोयीप होने का घमण्ड, जिन प्रजाओं पर राज्य करते थे उनकी संस्कृति के विषय में अज्ञान और उपेक्षा तथा उन प्रजाओं को अपने से कम दर्जे की मानने की वृत्ति-प्रवृत्ति उनके आधिपत्य का प्रमुख लक्षण रहा । विश्व के अनेक देशों को इस प्रकार के आधिपत्य की कल्पना भी नहीं थी। भारत को तो नहीं ही थी । भारत में राजा और प्रजा के सम्बन्ध की जो कल्पना रही
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इससे तो यह सर्वथा विपरीत था। इसलिये इन लोगों के तरीके भारत के लोग समझ नहीं सके । संक्षेप में लूट, शोषण, अत्याचार और अन्यायपूर्वक उन्होंने विश्व के अनेक देशों पर राज्य किया।
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जिन आधारों पर राज्य चल रहा था वह लम्बा चलना सम्भव नहीं होता। दो ढाई सौ वर्षों के अन्दर अन्दर यूरोप के देशों का आधिपत्य सिमट गया। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक सारे देश स्वाधीन हो गये। अमेरिका तो अठारहवीं शताब्दी में ही स्वाधीन हो गया था । परन्तु विश्व का यूरोपीकरण करने में उन्हें यश मिला। वर्तमान अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तो यूरोप वासियों का ही बना है। एशिया और आफ्रीका तान्त्रिक दृष्टि से तो अब आफ्रीकी और एशियाई लोगों का हैं परन्तु राष्ट्रजीवन को संचालित करनेवाली सारी व्यवस्थायें यूरोपीय हैं। इस दृष्टि से विगत पाँच सौ वर्ष सम्पूर्ण विश्व के लिये बहुत महँगे सिद्ध हुए है।
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इन पाँचसौ वर्षों के इतिहास के विषय में अनेक विद्वानों ने लिखा है । उसे पढने पर ध्यान में आता है कि सांस्कृतिक दृष्टि से यह काल विनाशकारी हलचल मचाने वाला रहा है। विश्व आज भी इससे उबरने का प्रयास कर रहा है। विश्व के इन प्रयासों में भारत को नेतृत्व लेना है। इस दृष्टि से अध्ययन और चिंतन की आवश्यकता है।