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इतिहास को देखते हुए ऐसा लगता है कि भिन्न भिन्न सभ्यताँए अपनी समकालीन सभ्यताओं से अलिप्त ही रही हैं। केवल अन्य सभ्यताओं की ही नहीं तो अपनी सभ्यता में भी मनुष्य की तो उन्होंने कभी परवाह ही नहीं की है। सैनिकी विजय के फलस्वरूप या अन्य किसी भी रूप में लोगों को गुलाम बनाने की प्रक्रिया हमेशा से अस्तित्व में रही है।
 
इतिहास को देखते हुए ऐसा लगता है कि भिन्न भिन्न सभ्यताँए अपनी समकालीन सभ्यताओं से अलिप्त ही रही हैं। केवल अन्य सभ्यताओं की ही नहीं तो अपनी सभ्यता में भी मनुष्य की तो उन्होंने कभी परवाह ही नहीं की है। सैनिकी विजय के फलस्वरूप या अन्य किसी भी रूप में लोगों को गुलाम बनाने की प्रक्रिया हमेशा से अस्तित्व में रही है।
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बहुत बड़े पैमाने पर मनुष्य को गुलाम बनाने की प्रवृत्ति यूरोपीय सभ्यता का प्रमुख लक्षण है। बहुत ही विशाल पैमाने पर लोगों को गुलाम बनाया जाता था। सोलहवीं, सत्रहवीं, एवं अठाहरवीं शताब्दी में गुलामों का व्यापार होता था, केवल उसी को याद करना पर्याप्त है। इससे भी पूर्व ग्रीक एवं रोमन साम्राज्य के काल में भी इसी प्रकार होता था यह बात समझने की आवश्यकता है। आफ्रिका से गुलाम के रूप में लाखों लोगों को पकड़कर लाया जाता था। उसे 'शाही व्यापार' की संज्ञा फर्नाड ब्रोडेल ने दी है। प्लेटो ने गुलामों के साथ किए जानेवाले कठोर व्यवहार की निंदा की है, परन्तु एक वर्ग के रूप में गुलामों का तिरस्कार भी किया है, एवं गुलामी की व्यवस्था का उसने स्वीकार भी किया है। एथेन्स सहित समग्र ग्रीस में, लोकतांत्रिक ग्रीस में गुलाम ही शारीरिक या कारीगरी की मजदूरी करते थे।
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समय बीतने पर गुलामी निरस्त हुई एवं उमरावशाही ने उसका स्थान लिया। उमरावशाही की जड़ें अनेक हैं, वे सभी विवाद का विषय भी हैं। इंग्लैंड में तो ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य में नोर्मन विजय के बाद उमरावशाही प्रस्थापित हुई। अन्य देशों में उसके प्रस्थापित होने के अनेक कारण हैं। कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एन्जल्स, एवं अन्यों के मतानुसार टेक्नोलोजी में होनेवाला बड़ा परिवर्तन भी एक कारण है। अब तक गुलामों की जो स्थिति थी वही अब सर्फ एवं विलियन्स के रूप में पहचाने जानेवाले विशाल संख्या के लोगों की थी। जिनकी संपत्ति में वृद्धि हुई उनकी सत्ता में भी वृद्धि हुई। सत्ता एवं संपत्ति ने मिलकर यूरोप में विशाल भवन एवं जहाजों का निर्माण करके और अधिक संपत्ति प्राप्त करने का जतन किया।
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यूरोप ने विश्वविजय के परिणाम स्वरूप औद्योगिकरण किया। अठारहवीं शताब्दी के अंत में शुरू हुआ औद्योगिकरण ऐसे विजय के बिना संभव ही नहीं था। यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि विजय के फलस्वरूप नई खोजें, नई टेक्नोलोजी की आवश्यकता का निर्माण हुआ। जो हमेशा कहा जाता है कि युद्धों के कारण विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान को गति प्राप्त होती है वह यूरोप के
    
==References==
 
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