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चारसौ पाँचसौ वर्षों से तीसरा विश्व अनेक प्रकार के लाद दिये जानेवाले सकटों का शिकार बनता ही रहा है। जबसे तीसरा विश्व यूरोपीय आधिपत्य, उसकी संगठनात्मक हिकमतों, उसकी व्यूहात्मक रचना आदि का स्वीकार करने लगा तबसे ही ये संकट पैदा हुए हैं। इस आधिपत्य ने तीसरे विश्व को अत्यंत दरिद्र बना दिया है। साथ ही अमेरिका के समान वहाँ की मूल जातियाँ पूर्णतः नष्ट हो गई हैं। इसलिए यह संकट अत्यंत तीव्रता से अनुभव नहीं किया जा सकता है। आज तो तीसरा विश्व ऐसी स्थिति पर पहुँच गया है जहाँ इन सभी संकटों की पराकाष्ठा हो गई है।
 
चारसौ पाँचसौ वर्षों से तीसरा विश्व अनेक प्रकार के लाद दिये जानेवाले सकटों का शिकार बनता ही रहा है। जबसे तीसरा विश्व यूरोपीय आधिपत्य, उसकी संगठनात्मक हिकमतों, उसकी व्यूहात्मक रचना आदि का स्वीकार करने लगा तबसे ही ये संकट पैदा हुए हैं। इस आधिपत्य ने तीसरे विश्व को अत्यंत दरिद्र बना दिया है। साथ ही अमेरिका के समान वहाँ की मूल जातियाँ पूर्णतः नष्ट हो गई हैं। इसलिए यह संकट अत्यंत तीव्रता से अनुभव नहीं किया जा सकता है। आज तो तीसरा विश्व ऐसी स्थिति पर पहुँच गया है जहाँ इन सभी संकटों की पराकाष्ठा हो गई है।
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जवाहरलाल नेहरू एवं उनके जैसे आज के तीसरे विश्व के विद्वानों के मानस आधुनिक पाश्चात्य विज्ञान एवं टेक्नोलोजी की चमक एवं शक्ति से अभिभूत हो गए हैं, यहाँ तक कि उनकी स्वतन्त्र रूप से सोचने की क्षमता ही जैसे हर ली गई है। यह चमक एकाध शताब्दी से अधिक पुरानी नहीं है, परन्तु शक्ति कुछ शताब्दी पुरानी है। जिस प्रकार, जिस क्षेत्र में, जितने व्यापक रूप में इस शक्ति का प्रयोग हो रहा है वह पश्चिम का रहस्य है। वर्तमान पाश्चात्य विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान इस शक्ति का परिणाम है। मुझे लगता है कि यूरोप की शक्ति तथा उसके विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान का मूल उसके तत्त्वज्ञान एवं बाईबल की मान्यताओं में है। यूरोप का भूगोल एवं उसकी आवश्यकताओं ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इस तत्त्वज्ञान एवं इन मान्यताओं को स्वीकार करने की परंपरा निर्माण की है। यह उसकी असीम शक्ति का मूल आधार है।
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अति प्राचीन काल से भौतिक शक्ति का केन्द्रीकरण करना, यूरोप की संस्कृति का मुख्य लक्ष्य रहा है। इसी लक्ष्य के आधार पर सदियों से यूरोप की समग्र रचना बनी है। इसी लक्ष्य के आधार पर मनुष्य से व्यवहार करने की पद्धति का निर्माण हुआ है। जिस प्रकार यूरोप अन्य देशों के साथ व्यवहार करता है वैसा ही व्यवहार उसने अपने देश के नागरिकों के साथ भी किया है। इंग्लैंड में तो ऐसा बहुत ही बड़े पैमाने पर हुआ है। ऐसा व्यवहार अमेरिका की खोज या यूरोप समुद्रमार्ग से एशिया के देशो में पहुँचा उससे पूर्व का है। यूरोप तो बहुत ही प्राचीनकाल से स्वतन्त्रता, बंधुता एवं समानता में यकीन करता है यह उन्नीसवीं शताब्दी में रेडिकल एवं लिबरल हलचलों द्वारा पैदा की गई बहुत बड़ी भ्रान्ति है।
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इतिहास को देखते हुए ऐसा लगता है कि भिन्न भिन्न सभ्यताँए अपनी समकालीन सभ्यताओं से अलिप्त ही रही हैं। केवल अन्य सभ्यताओं की ही नहीं तो अपनी सभ्यता में भी मनुष्य की तो उन्होंने कभी परवाह ही नहीं की है। सैनिकी विजय के फलस्वरूप या अन्य किसी भी रूप में लोगों को गुलाम बनाने की प्रक्रिया हमेशा से अस्तित्व में रही है।
    
जवाहरलाल नेहरू एवं उनके जैसे आज के तीसरे विश्व के विद्वानों के मानस आधुनिक पाश्चात्य विज्ञान एवं टेक्नोलोजी की चमक एवं शक्ति से अभिभूत हो गए हैं, यहाँ तक कि उनकी स्वतन्त्र रूप से सोचने की क्षमता ही जैसे हर ली गई है। यह चमक एकाध शताब्दी से अधिक पुरानी नहीं है, परन्तु शक्ति कुछ शताब्दी पुरानी है। जिस प्रकार, जिस क्षेत्र में, जितने व्यापक रूप में इस शक्ति का प्रयोग हो रहा है वह पश्चिम का रहस्य है। वर्तमान पाश्चात्य विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान इस शक्ति का परिणाम है। मुझे लगता है कि यूरोप की शक्ति तथा उसके विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान का मूल उसके तत्त्वज्ञान एवं बाईबल की मान्यताओं में है। यूरोप का भूगोल एवं उसकी आवश्यकताओं ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इस तत्त्वज्ञान एवं इन मान्यताओं को स्वीकार करने की परंपरा निर्माण की है। यह उसकी असीम शक्ति का मूल आधार है।
 
जवाहरलाल नेहरू एवं उनके जैसे आज के तीसरे विश्व के विद्वानों के मानस आधुनिक पाश्चात्य विज्ञान एवं टेक्नोलोजी की चमक एवं शक्ति से अभिभूत हो गए हैं, यहाँ तक कि उनकी स्वतन्त्र रूप से सोचने की क्षमता ही जैसे हर ली गई है। यह चमक एकाध शताब्दी से अधिक पुरानी नहीं है, परन्तु शक्ति कुछ शताब्दी पुरानी है। जिस प्रकार, जिस क्षेत्र में, जितने व्यापक रूप में इस शक्ति का प्रयोग हो रहा है वह पश्चिम का रहस्य है। वर्तमान पाश्चात्य विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान इस शक्ति का परिणाम है। मुझे लगता है कि यूरोप की शक्ति तथा उसके विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान का मूल उसके तत्त्वज्ञान एवं बाईबल की मान्यताओं में है। यूरोप का भूगोल एवं उसकी आवश्यकताओं ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इस तत्त्वज्ञान एवं इन मान्यताओं को स्वीकार करने की परंपरा निर्माण की है। यह उसकी असीम शक्ति का मूल आधार है।
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