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==== इस्लाम काल में संघर्ष ====
 
==== इस्लाम काल में संघर्ष ====
आठवीं शताब्दी से १७वीं शताब्दी तक भारत पर इस्लाम का आक्रमण होता रहा था। अनेक भूभागों में संघर्ष होता रहता था । विदेशी लोग जीतते गये, राज्य करते गये, हमारे अधिकांश राजा हार गये । देश के बहुत बड़े भूभाग पर विदेशी और विधर्मियों का राज्य था। उन्होंने अनेक मंदिर तोड़े, भयंकर लूट मचाई, लगातार सौ वर्ष तक निरंतर विध्वंस होता रहा । विश्व में इतने लम्बे समय तक
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आठवीं शताब्दी से १७वीं शताब्दी तक भारत पर इस्लाम का आक्रमण होता रहा था। अनेक भूभागों में संघर्ष होता रहता था । विदेशी लोग जीतते गये, राज्य करते गये, हमारे अधिकांश राजा हार गये । देश के बहुत बड़े भूभाग पर विदेशी और विधर्मियों का राज्य था। उन्होंने अनेक मंदिर तोड़े, भयंकर लूट मचाई, लगातार सौ वर्ष तक निरंतर विध्वंस होता रहा । विश्व में इतने लम्बे समय तक का आक्रमण अन्य किसी भी देश पर नहीं हुआ है। फिर भी अनेक देश नामशेष हो गये हैं परंतु भारतीय राष्ट्र जीवंत रहा । भारतीय संस्कृति का प्रवाह अखंड, अविचल रहा । यह कैसे हुआ ?
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का आक्रमण अन्य किसी भी देश पर नहीं हुआ है। फिर भी अनेक देश नामशेष हो गये हैं परंतु भारतीय राष्ट्र जीवंत
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भारत में सांस्कृतिक प्रवाह को निरंतर प्रवाहित रखने में सन्तों की बहुत बड़ी भूमिका रही है। श्री रामानुजाचार्य, स्वामी विद्यारण्य, स्वामी रामानंद, चैतन्य महाप्रभु, गुरु नानकदेव, सन्त कबीर, बसवेश्वर, सन्त नामदेव, समर्थ गुरु रामदास, गोस्वामी तुलसीदास, श्रीमंत शंकरदेव आदि असंख्य सन्तों की लम्बी परम्परा सामने आती है। देश के हर प्रांत में हर भाषा में अध्यात्म को आधार बनाकर वैदिक दर्शन, गीता, रामायण, महाभारत तथा भागवत को ले कर पूरे देश में सांस्कृतिक जागरण चलता रहा ।
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अंग्रेजों के कालखंड में कुटिलता से, शिक्षा पद्धति बदल कर भावनात्मक दासता का निर्माण किया गया । अंग्रेजों का मानना था कि भारत समाप्त हो जायेगा । इ.स. १७५७ से लेकर १९४७ तक वे भारत को लूटते रहे फिर भी भारत भारत बना रहा क्योंकि समाज की रक्षा करने वाला सांस्कृतिक प्रवाह विद्यमान था। रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, नारायण गुरु, योगी अरविंद, बंकिम चन्द्र, सुब्रह्मण्यम भारती जैसे अनेक महानुभावों ने सांस्कृतिक जागरण किया।
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स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद भी स्वार्थी राजनीति के लोगों ने तथा विदेश प्रेरित लोगों ने राष्ट्र को तोड़ने के कई प्रयास किये । पूर्वोत्तर भारत एवं सीमावर्ती प्रान्तों को भारत से अलग करने के अनेक प्रयास हुए । भाषा एवं जाति भेद बढ़ा कर देश को तोड़ने के प्रयास हुए। परंतु भारत राष्ट्र के नाते विजयी होते हुए आगे ही बढ़ रहा है उसका कारण हमारी सांस्कृतिक एकता है।
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प्राचीन समय में भारत के मनीषी विश्व के अनेक देशों में गये थे। वहाँ उन्होंने सेवा और ज्ञान में बहुत योगदान किया परंतु वहाँ के लोगों का कभी शोषण नहीं किया। इतना ही नहीं तो जहाँ भी स्थानिक लोगों पर विदेशीयों द्वारा अत्याचार होते थे वहां के लोगों को भारत में आश्रय भी दिया गया था और प्रेम भी दिया था। सिरिअन लोगों पर जब उनके ही ईसाई देश में अत्याचार हुआ तब भारत ने ही उनको आश्रय दिया था। यह भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विशेषता है ।
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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा में देश को माता मान कर समाज उसका पुत्र है इस रूप में व्यवहार करता है। इस भूमि में जन्म लेकर इस राष्ट्र के लिये अनेक महापुरुषों ने अपना जीवन समर्पित किया । शरणागत शत्रु और मित्र के साथ उनका व्यवहार समान रहा ।
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भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवादमें उपासना तथा संप्रदाय की पूर्ण स्वतंत्रता है । धर्म, पंथ अथवा संप्रदाय राष्ट्र निर्माण __ का आधार नहीं हैं । राष्ट्र के लम्बे इतिहास में केवल सम्राट __ अशोक ने बौद्ध धर्म को अपने राज्य का आधिकारिक धर्म बनाया था। इस अपवाद को छोडकर भारत कभी भी धर्म शासित राज्य नहीं रहा है।
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भारत में जन्में सभी पंथ अथवा संप्रदाय केवल सहिष्णु ही नहीं तो सब धर्मों के प्रति सम्मान का भाव रखने वाले रहे हैं। मतांतरण करना भारत की सांस्कृतिक धारा में कहीं भी नहीं रहा है। इसीलिये भारतीय राष्ट्रीय चिह्न बहुमतवादी (प्लुरालिस्टिक) है।
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==== राष्ट्र दर्शन की अवधारणा ====
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राष्ट्र के विकास के विषय में प्राचीन ऋषियों ने बहुत स्पष्ट वर्णन किया हुआ है। ॐ भद्रम् इच्छन्त ऋषयः स्वर्विदः तपोदिक्षामुपनिषेदुरग्रे ततो राष्ट्र बलम् ओजस्व जातंतदस्मै देवाः उपसन्नमन्तु ॥ (अथर्व वेद १६:४१:१)
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ऋषियों में लोक मंगलकारी इच्छा प्रकट हुई। वे ऋषि श्रेष्ठ ज्ञानी थे। 'तपो दीक्षाम्' अर्थात उन्होंने दीक्षा भी प्राप्त की थी। उन्होंने अपने कठोर तप एवं परिश्रम से इस राष्ट्र जीवन में बल और तेज निर्माण किया । ऋषि कहते हैं 'तदस्मै देवा उपसन्नमस्तु"आइये हम सब मिलकर इस राष्ट्र भावना की उपासना करें, अभिनन्दन करें, उसकी सेवा करें । इस राष्ट्र को प्रणाम करें और राष्ट्र के प्रति अपना सब समर्पण करें । ऋषियों की भद्र इच्छाओं में निहित था सर्व मंगलकारी दर्शन । इस के अंदर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था एकात्म बोध । यह एकात्म बोध भारतीय सांस्कृतिक दर्शन
    
==References==
 
==References==
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