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==== अन्य राष्ट्रों के प्रति बड़प्पन : सोच व जिम्मेदारी ====
 
==== अन्य राष्ट्रों के प्रति बड़प्पन : सोच व जिम्मेदारी ====
 
जैसे परिवार में बड़ों की भूमिका होती है कि वे छोटों के लिए अवसर उपलब्ध कराने में गर्वित महसूस करे, वैसे ही समाज में जो उन्नति के शीर्ष पर होते हैं उनकी स्वाभाविक जिम्मेदारी बनती है कि नयी पीढ़ी और अन्य कमजोर वर्ग के लिए मार्ग प्रशस्त करने में योगदान करें।
 
जैसे परिवार में बड़ों की भूमिका होती है कि वे छोटों के लिए अवसर उपलब्ध कराने में गर्वित महसूस करे, वैसे ही समाज में जो उन्नति के शीर्ष पर होते हैं उनकी स्वाभाविक जिम्मेदारी बनती है कि नयी पीढ़ी और अन्य कमजोर वर्ग के लिए मार्ग प्रशस्त करने में योगदान करें।
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ठीक इसी तरह जो राष्ट्र उन्नति के शिखर की ओर आगे बढ़ते हों वे अपने साथ छोटे व कमजोर राष्ट्रों को बल प्रदान करें तभी मानवता का विकास सम्भव है। कोई अकेला नहीं है हम सब जुड़े हुए हैं। एक की पीड़ा कहीं न कहीं सबकी पीड़ा बन कर कब खड़ी हो जाये कोई नहीं बता सकता । ऐसे में यदि ताकतवर राष्ट्र दूसरों का शोषण करना चाहें अथवा उन्हें अपना पिळू बनाना चाहें तो विश्व में कभी  शांति नहीं हो सकती। हर समय स्वार्थ, अविश्वास व अस्थिरता का वातावरण बना ही रहता है। बड़प्पन त्याग और देने से ही होता है, ताकत के इस्तेमाल से नहीं।
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नई पीढ़ी में सामाजिक व राष्ट्रीय सोच, जिम्मेदारी उठाने की क्षमता, व्यक्ति में मानवीय गुणों व क्षमताओं का विकास, मीडिया का सामाजिकता व व्यक्ति के विकास में योगदान, असामाजिक तत्वों व विषयों की स्थिति, बच्चों व नयी पीढ़ी में व्यसन व अराजकता; जेल, कैदियों, व सुरक्षाकर्मी की आवश्यकता; सट्टे द्वारा प्राप्त धन व उसके प्रति समाज की सोच, आदि चिन्ता के विषय हैं।
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==== क-४) बौद्धिक-भ्रष्टाचार ====
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बौद्धिक-भ्रष्टाचार के जाल में हर राष्ट्र ऐसा जकड़ा हुआ है, जिसके कारण समाज, राष्ट्र, मानवीयता यह सारे शब्द बेमानी है । इन शक्तियों का एकमात्र उद्देश्य यह है कि कैसे धन की ताकत को नए नए प्रकार की चालाकियों के जरिये वश में रखा जाए। वैश्विक स्तर पर खेली जाने वाली ये चालाकियों का पता आम आदमी को तो दशकों तक ही नहीं चल पाता हैं। चाहे ये चालाकियाँ दवाइयों के बढ़ते दामों की हो, प्राकृतिक संसाधनों के लूट की हो, युद्धजैसी-स्थिति बनाये रखने की हो, टीवी पर झूठे लुभावने प्रचार के जरिये फिजूल की चीज़ों की बिक्री में हो, विश्वविद्यालयों के जरिये झूठे अनुसन्धान की हो, स्टॉकमार्केट जैसी व्यवस्थाओं का कानूनी दुरुपयोग सट्टा जैसी प्रवृत्ति को बढ़ाने में हो, प्रजातंत्र को पैसे की ताकत से खरीदने की हो, पढ़े-लिखे समुदाय द्वारा अनपढ़ गरीबों को मूर्ख बनाने की हो, बैंकों द्वारा राष्ट्रीय मुद्राओं के सट्टे की हो । और इन सब समस्याओं के जड़ में सिर्फ एक कारण है
    
==References==
 
==References==
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