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| ==== सामाजिक समरसता ==== | | ==== सामाजिक समरसता ==== |
− | अर्थात् आंतरिक सुरक्षा व शांति, विभिन्न समुदायों के आपसी सम्बन्धों की प्रगाढ़ता। आर्थिक उन्नति को ही | + | अर्थात् आंतरिक सुरक्षा व शांति, विभिन्न समुदायों के आपसी सम्बन्धों की प्रगाढ़ता। आर्थिक उन्नति को ही सर्वोपरी समझने के कारण व्यक्ति की पहचान मूल रूप से आर्थिक ही हो जाए तो सामाजिक समरसता का निर्माण असंभव सा होने लगता है। फिर पारिवारिक पृष्ठभूमि ही जब डांवाडोल होने लगे तो कैसे हो सकता है एक ऐसे समाज का निर्माण जहाँ हर व्यक्ति हर स्थान पर स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सके । फिर आर्थिक विषमता इस समाज में आपसी घृणा को बढ़ाये तो इसमें क्या आश्चर्य। |
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| + | ==== प्राकृतिक संपदा का संरक्षण व सदुपयोग ==== |
| + | आर्थिक उन्नति की चाहत में प्रकृति का अंधाधुंध दोहन जहाँ आने वाली पीढ़ियों के लिए घातक परिणाम का कारण बन गया है, वहीं पश्चिम के विचारों में जो मूल आधारभूत गलतियाँ हैं उन्हें भी स्पष्ट दर्शाता है। |
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| + | उन्नति का अर्थ सिर्फ क्षणिक समय में पैसे को बढ़ाना, जैसे कि पूंजीवादी व्यवस्था में कहते हैं, न केवल स्वार्थ की पराकाष्ठा है, बल्कि दीर्घ-कालीन दृष्टि के अभाव को भी व्यक्त करता है। पूंजी की ताकत को सर्वोपरि समझने से विश्व के सभी राष्ट्रों की जो दुर्गती हो रही है और जिस तरह आर्थिक-शक्ति विश्व के मुठ्ठी भर लोगों के हाथों में सीमित हो रही है, यह पश्चिम की आर्थिक सोच के दिवालियेपन को स्पष्ट करता है। आर्थिक विकास को माध्यम के रूप में न देखने की भूल व जीवन का लक्ष्य विकास की पराकाष्ठा को न समझने के कारण ही पश्चिम आज अपने ही बुने हुए पहले मार्क्सवाद के और अब पूंजीवाद के पतन के कगार पर आकर खड़ा हो गया है। मनुष्य द्वारा निर्मित प्राकृतिक विपदाएँ ही इन विचारधाराओं के अधूरे या गलत होने का प्रमाण है। |
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| + | ==== अन्य राष्ट्रों के प्रति बड़प्पन : सोच व जिम्मेदारी ==== |
| + | जैसे परिवार में बड़ों की भूमिका होती है कि वे छोटों के लिए अवसर उपलब्ध कराने में गर्वित महसूस करे, वैसे ही समाज में जो उन्नति के शीर्ष पर होते हैं उनकी स्वाभाविक जिम्मेदारी बनती है कि नयी पीढ़ी और अन्य कमजोर वर्ग के लिए मार्ग प्रशस्त करने में योगदान करें। |
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