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हम ऐसा करते हैं इसका कारण हमारा हीनताबोध है । ब्रिटिशों के आक्रमण का प्रभाव हमारे मानस पर कुछ ऐसा हुआ है कि हमें यूरोप अमेरिका का सब कुछ अच्छा और श्रेष्ठ लगने लगा है । जब कोई भी व्यक्ति हीनताबोध से ग्रस्त हो जाता है तब उसका विवेक नष्ट हो जाता है । हमारी संपूर्ण प्रजा की आज यही स्थिति हो गई है । अन्यथा हम तो ऋग्वेद काल से कहते ही आए हैं कि विश्वभर में जहाँ कहीं भी कुछ भी कल्याणकारी हो, हम उसे अपनाएँगे । इस हीनताबोध को समाप्त करने का उपाय शिक्षा और धर्म में है । धर्माचार्य ने प्रजा को धर्मनिष्ठ बनाने के और शिक्षाविदों ने प्रजा को ज्ञाननिष्ठ बनाने के प्रयास करने चाहिए । धर्म और ज्ञान ही आत्मबोध और स्वाभिमान निर्माण करते हैं । इन दोनों से ही विवेक जाग्रत होता है । जब तत्त्व का विवेक आता है, तब व्यवहार में भी विवेक आता है । उसके बाद हम दूसरों से अनेक बातें ग्रहण करते हैं और अपनी जीवन पद्धति के अनुसार उनको ढालकर लाभान्वित होते हैं । यही देशानुकूल परिवर्तन है । किसी भी विषय की चर्चा करते समय हम देश-काल- परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करें, ऐसा ही कहते हैं । यह सर्व स्वीकृत प्रचलन है ।
 
हम ऐसा करते हैं इसका कारण हमारा हीनताबोध है । ब्रिटिशों के आक्रमण का प्रभाव हमारे मानस पर कुछ ऐसा हुआ है कि हमें यूरोप अमेरिका का सब कुछ अच्छा और श्रेष्ठ लगने लगा है । जब कोई भी व्यक्ति हीनताबोध से ग्रस्त हो जाता है तब उसका विवेक नष्ट हो जाता है । हमारी संपूर्ण प्रजा की आज यही स्थिति हो गई है । अन्यथा हम तो ऋग्वेद काल से कहते ही आए हैं कि विश्वभर में जहाँ कहीं भी कुछ भी कल्याणकारी हो, हम उसे अपनाएँगे । इस हीनताबोध को समाप्त करने का उपाय शिक्षा और धर्म में है । धर्माचार्य ने प्रजा को धर्मनिष्ठ बनाने के और शिक्षाविदों ने प्रजा को ज्ञाननिष्ठ बनाने के प्रयास करने चाहिए । धर्म और ज्ञान ही आत्मबोध और स्वाभिमान निर्माण करते हैं । इन दोनों से ही विवेक जाग्रत होता है । जब तत्त्व का विवेक आता है, तब व्यवहार में भी विवेक आता है । उसके बाद हम दूसरों से अनेक बातें ग्रहण करते हैं और अपनी जीवन पद्धति के अनुसार उनको ढालकर लाभान्वित होते हैं । यही देशानुकूल परिवर्तन है । किसी भी विषय की चर्चा करते समय हम देश-काल- परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करें, ऐसा ही कहते हैं । यह सर्व स्वीकृत प्रचलन है ।
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==References==
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<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
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[[Category:Bhartiya Shiksha Granthmala(भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला)]]
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[[Category:Education Series]]
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[[Category:भारतीय शिक्षा : भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम]]
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