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| | दूसरा है मानसिक तप । मानसिक तप करने पर ही बौद्धिक तप करने की क्षमता प्राप्त होती है। मानसिक तप के कुछ आयाम इस प्रकार हैं... | | दूसरा है मानसिक तप । मानसिक तप करने पर ही बौद्धिक तप करने की क्षमता प्राप्त होती है। मानसिक तप के कुछ आयाम इस प्रकार हैं... |
| − | | + | # सम्मान और प्रतिष्ठा का त्याग करना, उसकी अपेक्षा नहीं करना यह प्रथम चरण है। इसका उल्लेख पूर्व में भी हुआ है। |
| − | १. सम्मान और प्रतिष्ठा का त्याग करना, उसकी अपेक्षा नहीं करना यह प्रथम चरण है। इसका उल्लेख पूर्व में भी हुआ है।
| + | # सामाजिक स्वीकृति के लिये आसान तरीके, लुभावने रास्ते अपनाने का मोह टालना यह जरा कठिन मानसिक तप है। |
| − | | + | # सही बातें कहने पर अनेक अवरोध निर्माण हो सकते हैं, प्रतिरोध भी हो सकता है। इन प्रतिरोधों और अवरोधों को सहना और डटे रहना भी मानसिक तप है |
| − | २. सामाजिक स्वीकृति के लिये आसान तरीके, लुभावने रास्ते अपनाने का मोह टालना यह जरा कठिन मानसिक तप है।
| + | # आर्थिक और राजनीतिक लालचों में न फंसना बहुत बडा मानसिक तप है। |
| − | | + | # निहित स्वार्थों का पोषण कर लाभ प्राप्त करने के लिये प्रवृत्त नहीं होना मानसिक तप है । |
| − | ३. सही बातें कहने पर अनेक अवरोध निर्माण हो सकते हैं, प्रतिरोध भी हो सकता है। इन प्रतिरोधों और अवरोधों को सहना और डटे रहना भी मानसिक तप है
| + | # धर्माचार्यों को भोग विलास के साधन बहत सुलभ हो जाते हैं। इनसे प्रभावित नहीं होना भी मानसिक तप है. |
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| − | ४. आर्थिक और राजनीतिक लालचों में न फंसना बहुत बडा मानसिक तप है।
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| − | ५. निहित स्वार्थों का पोषण कर लाभ प्राप्त करने के लिये प्रवृत्त नहीं होना मानसिक तप है ।
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| − | ६. धर्माचार्यों को भोग विलास के साधन बहत सुलभ हो जाते हैं। इनसे प्रभावित नहीं होना भी मानसिक तप है.
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| | * धर्माचार्यों के लिये तप का तीसरा आयाम है शारीरिक तप का । इसके कुछ आयाम इस प्रकार हैं... | | * धर्माचार्यों के लिये तप का तीसरा आयाम है शारीरिक तप का । इसके कुछ आयाम इस प्रकार हैं... |
| | १. धर्माचार्य गृहस्थ हो, वानप्रस्थ हो या संन्यासी उसे धर्म के विरोधी किसी भी प्रकार का आचरण नहीं करना चाहिये। | | १. धर्माचार्य गृहस्थ हो, वानप्रस्थ हो या संन्यासी उसे धर्म के विरोधी किसी भी प्रकार का आचरण नहीं करना चाहिये। |