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अतः लकड़ी का उपयोग जितना आवश्यक है, उतना ही करना चाहिए । हम अनावश्यक लकड़ी जलाकर उसका बिगाड़ करते हैं। एक दूसरे की देखादेखी में भी व्यर्थ खर्च करते हैं।
 
अतः लकड़ी का उपयोग जितना आवश्यक है, उतना ही करना चाहिए । हम अनावश्यक लकड़ी जलाकर उसका बिगाड़ करते हैं। एक दूसरे की देखादेखी में भी व्यर्थ खर्च करते हैं।
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लकड़ी का इस तरह बिगाड़ करना, यह ना समझी है। वृक्ष उगाओ, वृक्षों का पालन करो और वृक्षों का रक्षण करो।
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==== पेट्रोल - डीजल बचाओ ====
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क्यों, बालमित्रों । गर्मी की छुट्टी में बड़ा मजा आता है। पढ़ने की चिन्ता नहीं, खेलना और धूमना बस ! आनन्द ही आनन्द।
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तुम्हें घूमने जाना पसन्द है, न ?
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हम रेल, बस, कार, विमान, जहाज द्वारा यात्रा करते हैं। इन सभी वाहनों के लिए पेट्रोल, डीजल या बिजली की आवश्यकता पड़ती है।
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तुम अपनी माँ के साथ नजदीक ही दुकान पर जाते हो । किस साधन से ? स्कूटर से । स्कूटर के लिए भी तो पेट्रोल या डीजल की जरूरत पड़ती है। इसलिए इतना निकट जाने के लिए स्कूटर का उपयोग करना ठीक नहीं । क्यों ?
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इन वाहनों को चलाने में लगने वाला पेट्रोल या डीजल जमीन में से निकाला जाता है। हम वाहनों को जहाँ चाहें, वहाँ ले जायेंगे तो कुछ ही समय में पेट्रोल-डीजल समाप्त हो जायेंगे । ये लकड़ी की तरह तो है नहीं कि पेड़ काटा तो वह फिर से उग आयेगा । ये तो एकबार समाप्त हुए हुए तो फिर नहीं बनते । इसके अतिरिक्त ये महंगे होने से पैसा भी बहुत खर्च होता है।
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लगातार वाहन पर चलने से, पैदल चलने की आदत छूट जाती है। चलना स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त उपयोगी और आवश्यक है। पैदल चलने से पेट्रोल व डीजल की भी बचत होती है।
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इन वाहनों के अधिक उपयोग से वायु प्रदूषण अधिक होता है । इसका धुंआ सारी हवा में फैल जाता है। दूसरी और सारे वाहनों की चिल्ल-पौं से ध्वनि प्रदूषण भी होता है। ये सभी प्रदूषण पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं।
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इसलिए यों ही चक्कर मारने के लिए बड़ों से वाहन चलाने की जिद मत करना । इससे ईंधन की बचत होगी और पैसा भी बचेगा । काम से दूर दूर जाने के लिए ही वाहन का उपयोग कीजिए । निकट में जाना है तो साइकिल का उपयोग कीजिए । यही सबके लिए योग्य है।
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सादगी अपनाओ, ईंधन बचाओ।
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==== अन्न को बचाओ ====
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माँ ने नन्दिनी को भोजन करने के लिए बुलाया । 
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नन्दिनी ने कहा, हाथ धोकर आ रही हूँ।
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नन्दिनी हाथ-पैर धोकर भोजन करने बैठी। अरे वाह ! आज तो सभी मन पसन्द वस्तुएँ बनी हैं। भूख भी जोर की लगी है । उसने तो फटाफट खाना शुरु कर दिया । गरमागरम मस्त दाल-भात बने हैं । वह तो मजे ले लेकर खाये जा रही है । इतने में उसकी माँ का ध्यान नन्दिनी की ओर गया तो देखा कि फटाफट खाने से भोजन के कण नीचे गिर रहे हैं।
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माँ ने डाँटते हुए कहा, नन्दिनी ! अच्छी तरह भोजन कर, बाहर मत गिरा।
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नन्दिनी ने तो अपनी उसी मस्ती में जवाब दे दिया, थोड़ा गिर गया होगा । क्या फर्क पड़ता है, गिरने से ?
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माँ ने समझाया, देख बेटा ! इस तरह खाकर अन्न को बिगाड़ मत । यह गिरा हुआ व्यर्थ जाता है। तुझे पता है, अन्न कितनी मुश्किल से उगाया जाता है ?
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माँ ने बात को आगे बढ़ाया, ऐसे कितने ही लोग हैं जिन्हें एक समय भी भरपेट खाने को नहीं मिलता, उन्हें भूखा ही सोना पड़ता है। हमें तो भरपेट खाने को मिलता है, इसलिए अन्न बिगाड़ना नहीं, व्यवस्थित ढंग से खाना चाहिए।
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इतने में ही नन्दिनी खड़ी हो गई। उसने थाली में बहुत सारी सामग्री छोड़ दी थी। माँ ने फिर कहा, बेटा ! थाली में झूठा नहीं छोड़ते । अन्न बहुत मूल्यवान है । अन्न तो पूर्णब्रह्म है, झूठा छोड़कर उसका अपमान नहीं करना चाहिए। उसे खाजा।
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अपनी आवश्यकता से थोड़ा कम ही लेना चाहिए। आवश्यकता हो तो दुबारा ले लेना चाहिए, परन्तु बिगाड़ना नहीं चाहिए।
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बात समझ में आई उसने निश्चय किया कि आज से भोजन करते समय कभी नीचे नहीं गिराउँगी और थाली में झूठा भी नहीं छोडूंगी । और किसी भी तरह से अन्न का बिगाड़ नहीं करूंगी।
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अब नन्दिनी समझदार हो गई थी।
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==== पुस्तकों व कॉपियों को सम्भालकर रखो ====
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मित्रों । कक्षा चल रही है, तुम्हारी कॉपी तुम्हारे सामने रखी है और तुम उसमें लिख रहे हो ।
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लिखते समय भूल हो जाती है और तुम पूरा पन्ना ही फाड़ डालते हो। कभी-कभी कॉपी में से पन्ना फाड़कर उसकी हवाई जहाज बनाकर उड़ाते हो। ऐसा करने से कॉपी का बन्धन ढीला पड़ जाता है और कॉपी खराब हो जाती है।
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कक्षा में पेंसिल से लिखते समय भार देकर लिखते हो, जिससे उसकी नौंक टूट जाती है और उसे बार बार छीलना पड़ता है। बार-बार छीलने से पेंसिल जल्दी खत्म हो जाती है।
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पुस्तक पढ़ते समय हम उसे दोहरी मोड़ देते हैं, जिससे पुस्तक खराब हो जाती है । पुस्तक पर पैन से या पेंसिल से लकीरें बना डालते हैं, कुछ भी लिख देते हैं । ऐसी पुस्तकें पढ़ने लायक नहीं रहती । पुस्तक को हम सम्भालकर नहीं रखते, उसका मुखपृष्ठ फट जाता है। परीक्षा आने आने तक तो वह फटेहाल हो जाती है, इसलिए नई लानी पड़ती है।
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पैन से लिखते समय भी सावधनी रखनी पड़ती है। बार बार स्याही नहीं छिटकनी चाहिए। भार देकर नहीं लिखना चाहिए अन्यथा निब या रीफिल खराब हो जाती है। हम रीफिल खत्म होने से पहले ही फेंक देते हैं, पैन बेकार हो जाता है।
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यह सब नहीं करना चाहिए। ऐसी छोटी-छोटी कितनी सारी वस्तुएँ हम बेकार करके फेंक देते हैं । घर पर सभी वस्तुओं को व्यवस्थित रखना चाहिए । कापियाँ व किताबें सही सलामत रखनी चाहिए । पुस्तकों व कॉपियों पर पुढे चढ़ाने चाहिए। उन्हें अच्छी तरह सम्भालना  चाहिए। बस्ते में चाहे जैसे लूंस-ठूस कर नहीं भरना चाहिए।
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ऐसा करने से हमारी कोई भी वस्तु बेकार नहीं  जायेगी । हम अधिक समय तक उनका उपयोग ले पायेंगे।<blockquote>'''नई पुस्तकें रखो सम्भाल ।''' </blockquote><blockquote>'''देखो बुद्धि का कमाल ।'''</blockquote>
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==== कपड़ों को साफ रखो ====
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भगवान ने हमें सुन्दर रूप दिया है। उसे हमें सजाना चाहिए । सर्दी, गर्मी व वर्षा से उसकी रक्षा करने के लिए हमें मौसम के अनुकूल कपड़े भी पहनने चाहिए।
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हमें अपने कपड़े स्वच्छ व व्यवस्थित रखने चाहिए। परन्तु हम क्या क्या करते हैं, यह जानते हो ? तुम्हें तुम्हारे माता-पिता सुन्दर कपड़े खरीद कर देते हैं। कुछ ही दिन पहनने के बाद तुम उन कपड़ों से ऊब जाते हो और फिर से नये कपड़े लाने की जिद करते हो । इस तरह पुराने कपड़े बेकार हो जाते हैं।
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हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। आवश्यकतानुसार ही हमें कपड़े लेने चाहिए । बहुत अधिक महँगे कपड़े भी नहीं लेने चाहिए। क्योंकि तुम्हारी उम्र बढ़ने के साथ साथ तुम्हारा शरीर भी बढ़ता है और कपड़े छोटे पड़ जाते हैं या तंग हो जाते हैं । फिर वे काम नहीं आते ।
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तब फिर से नये कपड़े लेने पड़ते हैं। पुराने कपड़े छोड़ने पड़ते हैं। उन पर खर्च किये गये पैसे भी बेकार जाते है।
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तैयार कपड़े लेने के बदले अपने माप के अनुसार कपड़े सिलाने चाहिए। वे अधिक टिकाऊ होते हैं। उन्हें हर बार धोकर स्वच्छ रखना चाहिए। कहीं से थोड़ा फट जाय अथवा बटन टूट जाय तो तुरन्त टाका लगाना चाहिए या बटन लगाना चाहिए। ऐसा करने से कपड़े अधिक समय तक चलते हैं।
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जो कपड़े छोटे पड़ गये हैं या तंग हो गये हैं, उन्हें जरूरतमंद लोगों को दे देना चाहिए । इस तरह वे बेकार पड़े नहीं रहेंगे, उनका भी सदुपयोग हो जायेगा।
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माँ पुराने कपड़ो से रुमाल, गमछा आदि बना देती
    
आहति देने योग्य पदार्थ ही अहम माना जाता था। किन्तु इसका लाक्षणिक अर्थ है, गुरु के लिये उपयोगी हो ऐसा कुछ न कछ लेकर जाना। क्या आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त उत्तर इस प्रकार रहे -
 
आहति देने योग्य पदार्थ ही अहम माना जाता था। किन्तु इसका लाक्षणिक अर्थ है, गुरु के लिये उपयोगी हो ऐसा कुछ न कछ लेकर जाना। क्या आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त उत्तर इस प्रकार रहे -
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