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| शिक्षा जिसका नियमन करती है ऐसे अर्थ ने स्वयं शिक्षा को ही कैसे जकड लिया है इसका विचार करने पर स्थिति अत्यन्त विषम है यह बात ध्यान में आती है । अतः शिक्षा को प्रथम तो अर्थ के नियमन से मुक्त करना होगा, बाद में वह मुक्ति का मार्ग दिखायेगी । अर्थ के चंगुल से शिक्षा को कैसे मुक्त किया जा सकता है इसका विचार यहाँ किया गया है । इस विचार को अधिक मुखर, अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है इसका भी संकेत किया गया है । | | शिक्षा जिसका नियमन करती है ऐसे अर्थ ने स्वयं शिक्षा को ही कैसे जकड लिया है इसका विचार करने पर स्थिति अत्यन्त विषम है यह बात ध्यान में आती है । अतः शिक्षा को प्रथम तो अर्थ के नियमन से मुक्त करना होगा, बाद में वह मुक्ति का मार्ग दिखायेगी । अर्थ के चंगुल से शिक्षा को कैसे मुक्त किया जा सकता है इसका विचार यहाँ किया गया है । इस विचार को अधिक मुखर, अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है इसका भी संकेत किया गया है । |
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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| अनुक्रमणिका | | अनुक्रमणिका |
− | 93. विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाएँ २१५
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− | १४. ... विद्यालय की आर्थिक व्यवस्थाएँ २३५
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− | १५... सम्पूर्ण शिक्षा क्षेत्र का विचार २७९
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− | र्श्ढ
| + | १३. विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाएँ |
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− | ............. page-231 ............. | + | १४. विद्यालय की आर्थिक व्यवस्थाएँ |
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− | पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
| + | १५. सम्पूर्ण शिक्षा क्षेत्र का विचार |
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| + | == विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाएँ == |
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− | अध्याय १३
| + | === विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाएँ एवं वातावरण === |
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− | विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाएँ | + | ==== (१) विद्यालय सरस्वती का पावन मंदिर है ==== |
| + | विद्यालय ईंट और गारे का बना हुआ भवन नहीं है, विद्यालय आध्यात्मिक संगठन है । विद्यालय पतित्र मन्दिर है, जहाँ विद्या की देवी सरस्वती की निरन्तर आराधना होती है । विद्यालय साधनास्थली है, जहाँ चरित्र का विकास होता है । विद्यालय ज्ञान-विज्ञान, कला और संस्कृति का गतिशील केन्द्र है, जो समाज में जीवनीशक्ति का संचार करता है । |
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− | विद्यालय की भौतिक व्यवस्थाएँ एवं वातावरण | + | ==== (२) विद्यालय परिसर प्रकृति की गोद में हो ==== |
| + | सरस्वती के पावन मंदिर की अवधारणा गुरुकुलों, आश्रमों एवं प्राचीन विश्व विद्यालयों में पुष्पित एवं पट्लवित होती थी । ये विद्याकेन्द्र नगरों से दूर वन में नदी या जलाशय के समीप स्थापित किये जाते थे, जिससे नगरों का कोलाहल और कुप्रभाव छात्रों को प्रभावित न कर सके । |
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− | (१) विद्यालय सरस्वती का पावन मंदिर है
| + | आकाश, अग्नि, वायु, जल तथा मिट्टी इन पंचमहाभूतों से बने जगत को ध्यान पूर्वक देखना तथा उसके महत्त्व को समझना ही वास्तविक शिक्षा है । ऐसी शिक्षा नगरों के अप्राकृतिक वातावरण में स्थित विद्यालयों में नहीं दी जा सकती । अतः हम आदर्श विद्यालय स्थापित करना चाहते हैं तो हमें प्रकृति माता की गोद में खुले आकाश के नीचे, विशाल मैदान में, वृक्षों के मध्य उसका प्रबन्ध करना चाहिये । |
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− | विद्यालय ईंट और गारे का बना हुआ भवन नहीं
| + | सांख्यदर्शन के अनुसार, “गुरु अथवा आचार्य को भवन या मठ आदि बनाने के चक्कर में न पड़कर प्रकृति एवं जंगल, नदीतट या समाज का कोई स्थान चुनकर शिक्षण कार्य करना चाहिए । इसी प्रकार योगदर्शन कहता है कि विद्यालय गुरुगृह ही होता था । योग दर्शन के आचार्य शान्त, एकान्त, प्राकृतिक स्थानों पर रहते थे । उनके आश्रम ही विद्यालय कहे जा सकते हैं । |
− | है, विद्यालय आध्यात्मिक संगठन है । विद्यालय पतित्र
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− | मन्दिर है, जहाँ विद्या की देवी सरस्वती की निरन्तर
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− | आराधना होती है । विद्यालय साधनास्थली है, जहाँ चरित्र
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− | का विकास होता है । विद्यालय ज्ञान-विज्ञान, कला और
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− | संस्कृति का गतिशील केन्द्र है, जो समाज में जीवनीशक्ति
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− | का संचार करता है ।
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− | (२) विद्यालय परिसर प्रकृति की गोद में हो
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− | सरस्वती के पावन मंदिर की अवधारणा गुरुकुलों,
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− | आश्रमों एवं प्राचीन विश्व विद्यालयों में पुष्पित एवं
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− | पट्लवित होती थी । ये विद्याकेन्द्र नगरों से दूर वन में नदी
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− | या जलाशय के समीप स्थापित किये जाते थे, जिससे
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− | नगरों का कोलाहल और कुप्रभाव छात्रों को प्रभावित न
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− | कर सके ।
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− | आकाश, अग्नि, वायु, जल तथा मिट्टी इन
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− | पंचमहाभूतों से बने जगत को ध्यान पूर्वक देखना तथा
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− | उसके महत्त्व को समझना ही वास्तविक शिक्षा है । ऐसी
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− | शिक्षा नगरों के अप्राकृतिक वातावरण में स्थित विद्यालयों
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− | में नहीं दी जा सकती । अतः हम आदर्श विद्यालय
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− | स्थापित करना चाहते हैं तो हमें प्रकृति माता की गोद में
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− | खुले आकाश के नीचे, विशाल मैदान में, वृक्षों के मध्य
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− | उसका प्रबन्ध करना चाहिये ।
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− | सांख्यदर्शन के अनुसार, “गुरु अथवा आचार्य को | |
− | भवन या मठ आदि बनाने के चक्कर में न पड़कर प्रकृति | |
− | एवं जंगल, नदीतट या समाज का कोई स्थान चुनकर | |
− | शिक्षण कार्य करना चाहिए । इसी प्रकार योगदर्शन कहता | |
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− | है कि विद्यालय गुरुगृह ही होता था । योग दर्शन के | |
− | आचार्य शान्त, एकान्त, प्राकृतिक स्थानों पर रहते थे । | |
− | उनके आश्रम ही विद्यालय कहे जा सकते हैं । | |
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− | (३) चार दीवारी के विद्यालय कल कारखाने हैं
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| + | ==== (३) चार दीवारी के विद्यालय कल कारखाने हैं ==== |
| प्रकृति माता की गोद से वंचित और अंग्रेजी दासता | | प्रकृति माता की गोद से वंचित और अंग्रेजी दासता |
| के प्रतीक चार दीवारों के भीतर स्थापित विद्यालयों को | | के प्रतीक चार दीवारों के भीतर स्थापित विद्यालयों को |
| शान्तिनिकेतन के जन्मदाता रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कारखाना | | शान्तिनिकेतन के जन्मदाता रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कारखाना |
− | कहा है । वे इनका सजीव चित्रण कहते हुए कहते हैं, | + | कहा है । वे इनका सजीव चित्रण कहते हुए कहते हैं, “हम विद्यालयों को शिक्षा देने का कल या कारखाना समझते हैं । अध्यापक इस कारखाने के पुर्ज हैं । दस बजे घंटा बजाकर कारखाने खुलते हैं । अध्यापकों की जबान रूपी पुर्ज चलने लगते हैं । चार बजे कारखाने बन्द हो जाते हैं । अध्यापक भी पुर्ज रूपी अपनी जबान बन्द कर लेते हैं । उस समय छात्र भी इन पुर्जों की कटी-छटी दो चार पृष्ठों की शिक्षा लेकर अपने-अपने घरों को वापस चले जाते हैं ।' |
− | “हम विद्यालयों को शिक्षा देने का कल या कारखाना | |
− | समझते हैं । अध्यापक इस कारखाने के पुर्ज हैं । दस बजे | |
− | घंटा बजाकर कारखाने खुलते हैं । अध्यापकों की जबान | |
− | रूपी पुर्ज चलने लगते हैं । चार बजे कारखाने बन्द हो | |
− | जाते हैं । अध्यापक भी पुर्ज रूपी अपनी जबान बन्द कर | |
− | लेते हैं । उस समय छात्र भी इन पुर्जों की कटी-छटी दो | |
− | चार पृष्ठों की शिक्षा लेकर अपने-अपने घरों को वापस | |
− | चले जाते हैं ।' | |
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− | विदेशों में विद्यालयों और महाविद्यालयों के साथ | + | विदेशों में विद्यालयों और महाविद्यालयों के साथ चलने वाले छात्रावासों की नकल हमारे देश में करने वालों के लिए वे कहते हैं कि इस प्रकार के विद्यालयों को एक प्रकार के पागलखाने, अस्पताल या बन्दीगृह ही समझना चाहिए । |
− | चलने वाले छात्रावासों की नकल हमारे देश में करने | |
− | वालों के लिए वे कहते हैं कि इस प्रकार के विद्यालयों | |
− | को एक प्रकार के पागलखाने, अस्पताल या बन्दीगृह ही | |
− | समझना चाहिए । | |
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− | रवीन्ट्रनाथजी तो कहते हैं कि “शिक्षा के लिए अब | + | रवीन्ट्रनाथजी तो कहते हैं कि “शिक्षा के लिए अब भी हमें जंगलों और वनों की आवश्यकता है । समय के हेर फेर से स्थितियाँ चाहे कितनी ही क्यों न बदल जायें, परन्तु इस गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के लाभदायक सिद्ध होने में कदापि तनिक भी अन्तर नहीं पड़ सकता । कारण यह है कि यम नियम मनुष्य के चरित्र के अमर सत्य पर निर्भर हैं । |
− | भी हमें जंगलों और वनों की आवश्यकता है । समय के | |
− | हेर फेर से स्थितियाँ चाहे कितनी ही क्यों न बदल जायें, | |
− | परन्तु इस गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के लाभदायक सिद्ध | |
− | होने में कदापि तनिक भी अन्तर नहीं पड़ सकता । कारण | |
− | यह है कि यम नियम मनुष्य के चरित्र के अमर सत्य पर | |
− | निर्भर हैं ।' | |
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| सौंदर्यदृष्टि भी बदल गई है इसलिए हम | | सौंदर्यदृष्टि भी बदल गई है इसलिए हम |
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| र२५ | | र२५ |
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| पढाने वाले एक ही नहीं होते, पराये | | पढाने वाले एक ही नहीं होते, पराये |