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| # प्रेम | | # प्रेम |
| # प्रसन्नता | | # प्रसन्नता |
| + | २. इन सभी व्यवस्थाओं का शैक्षिक मूल्य क्या है ? |
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| + | ३. इन सभी व्यवस्थाओं में छात्रों एवं आचार्यों की सहभागिता किस प्रकार बने ? |
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| + | ४. इन सुविधाओं के आर्थिक पक्ष में किस प्रकार से विचार करना चाहिये ? |
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| + | ५. इन व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में शास्त्रीय या वैज्ञानिक दृष्टि क्या है ? |
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| + | ६. क्या ऐसा होगा कि वैज्ञानिक दृष्टि से सही व्यवस्थायें व्यावहारिक नहीं होंगी और व्यावहारिक होंगी वे वैज्ञानिक नहीं होंगी ? |
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| + | ७. तब क्या किया जाय ? |
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| + | शिक्षकों के साथ वार्तालाप करके इस प्रश्नावली के उत्तर प्राप्त किये है । वह इस प्रकार है । |
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| + | १. विद्यालय में विद्यार्थी ज्ञान ग्रहण करते हैं । अतः तापमान हवा प्रकाश ध्वनि इत्यादि की बाबत अच्छी से अच्छी सुविधा प्राप्त होती तो पढाई अच्छी होगी। सुन्दरता, स्वच्छता तो अनिवार्य ही है । शिक्षक उनके प्रेरक व्यक्तित्व होने चाहिये । छात्र शिक्षक के मानसपुत्र कहलाते है तो मातापिता और पुत्र में प्रेम होता ही है । बात रही पवित्रता की तो विद्यालय तो सरस्वती का मंदिर है हम मंदिर का पवित्र्य समझते है इसलिये विद्यालय तो पवित्र होता ही है । शौचालय की व्यवस्था छात्र छात्रायें शिक्षक कर्मचारी सबके लिये अलग अलग होना आवश्यक है । |
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| + | २. विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त होती है परन्तु व्यवस्था का भी कोई शैक्षिक मूल्य होता है यह बात समझ नही पाते । |
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| + | ३. आचार्योंने सारी व्यवस्था बनाने में उचित समय पर छात्रों को निर्देश देने चाहिये यह भी सबके अध्यापन काही भाग समझना चाहिये । स्थान स्थान पर सुविचारो के फलक लगाना चाहिये । फिर भी जो छात्र व्यवस्थाओ में बाधा डालता है उसे दण्डित करना चाहिये ऐसा मत व्यक्त हुआ । |
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| + | ४. सुविधा बनाये रखने में व्यय तो होगा ही परन्तु अच्छी सुविधा के लिये उदा. फिल्टर पेय जल, पंखे आदि के लिये अभिभावक खुशी से धन देने तैयार है क्योंकी उनके ही बच्चे इस सुविधा का उपभोग लेनेवाले है। प्र. ५, ६ व ७ प्रश्नो का उत्तर किसि से प्राप्त नहीं हुआ । |
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| + | ==== '''अभिमत''' ==== |
| + | जबाब सुनकर ऐसा लगा वास्तव में ज्ञानार्जन यह साधना है और साधना कभी भी अच्छे सुख सुविधाओं से प्राप्त नहीं होती । यह बात आज समाज भूल गया है ऐसा लगा । शिक्षक केवल पढाई का तथा व्यवस्था के संदर्भ में निर्देश देने का कार्य करेंगे ऐसा उनका मन बन गया है । अतः व्यवस्था निर्माण करने के प्रत्यक्ष सहयोग का विचार भी उनके मन में आता नहीं । आजकल शहरो में भीड के स्थान पर विद्यालय होते हैं अतः ध्वनि, प्रकाश, हवा, तापमान आदि के विषय में शास्त्रीय विचार जानते हुए भी सब शहरवासियों को वह असंभव लगता है । और गाँव में विद्यालय की जगह निसर्ग की गोद में तो होती है परंतु सारी व्यवस्था शास्त्रीय होते हुए भी उन्हें शास्त्र तो समझमे नहीं आता उल्टा शहर जैसे मंजिल के भवन आदि बनाने के लिये वे भी प्रयत्नशील रहते है । बिना कॉम्प्यूटर के अपना विद्यालय पिछडा है ऐसा हीनता का भाव उनके मन में होता है । जहा पवित्रता नहीं होती उस स्थान पर प्रसन्नता और शान्ति भी नहीं रहती यह तो सब जानते हैं । |
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| + | ==== सुविधा किसे चाहिए ==== |
| + | १. अध्ययन हेतु सुविधा का विचार गौण रूप से ही करना चाहिये। |
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| सहभागिता किस प्रकार बने ? सरस्वती का मंदिर है हम मंदिर का पवित््य समझते है | | सहभागिता किस प्रकार बने ? सरस्वती का मंदिर है हम मंदिर का पवित््य समझते है |
| ¥. इन सुविधाओं के आर्थिक पक्ष में किस प्रकार से इसलिये विद्यालय तो पवित्र होता ही है । शौचालय | | ¥. इन सुविधाओं के आर्थिक पक्ष में किस प्रकार से इसलिये विद्यालय तो पवित्र होता ही है । शौचालय |
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| दिया । | | दिया । |
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| प्रदर्शित हुआ । | | प्रदर्शित हुआ । |
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