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१. क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा के बाद ही अथवा कम से कम साथ ही ज्ञानात्मक शिक्षा होनी चाहिये । आज के सन्दर्भ में तो इस बात की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज की शिक्षा क्रियाशून्य और भावनाशून्य हो गई है, केवल जानकारी प्राप्त कर, उसे याद कर, परीक्षा में लिखकर अंक प्राप्त करने तक सीमित हो गई है। इससे अधिक निरर्थक या अनर्थक क्या हो सकता है ? अतः क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा का क्रम प्रथम होना अनिवार्य है।  
 
१. क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा के बाद ही अथवा कम से कम साथ ही ज्ञानात्मक शिक्षा होनी चाहिये । आज के सन्दर्भ में तो इस बात की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज की शिक्षा क्रियाशून्य और भावनाशून्य हो गई है, केवल जानकारी प्राप्त कर, उसे याद कर, परीक्षा में लिखकर अंक प्राप्त करने तक सीमित हो गई है। इससे अधिक निरर्थक या अनर्थक क्या हो सकता है ? अतः क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा का क्रम प्रथम होना अनिवार्य है।  
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२. पानी कहाँ से आता है, पानी के क्या क्या उपयोग
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२. पानी कहाँ से आता है, पानी के क्या क्या उपयोग हैं, पानी शुद्ध और अशुद्द कैसे होता है, पानी को शुद्ध किस प्रकार किया जाना चाहिये आदि बातों का ज्ञान प्रारम्भिक स्तर पर देना चाहिये ।
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३. पानी कम पड जाने से, पानी अशुद्द हो जाने से कौन कौन से संकट निर्माण होते हैं इसका ज्ञान दिया जाना चाहिये । इन संकटों का उपाय क्या हो सकता है इसका भी ज्ञान दिया जाना चाहिये ।
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४. पानी के वर्तमान संकट का स्वरूप क्या है इसकी विस्तारपूर्वक चर्चा की जानी चाहिये।
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५. कुएँ, तालाब, बावडी वर्षाजल संग्रह की घर घर में की जानेवाली व्यवस्था नष्ट हो जाने के कितने गम्भीर परिणाम हुए हैं इसका भी विचार होना चाहिये ।
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६. खेतों को पानी क्यों नहीं मिलता, पीने के लिये पानी क्यों नहीं मिलता, अनावृष्टि क्यों होती हैं, नदियाँ क्यों सूख जाती हैं इत्यादि बातों की गम्भीर चर्चा होना आवश्यक है।
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७. पानी की निकासी के लिये जो व्यवस्था बनाई जाती है वह कितनी उचित या अनुचित है इसका विमर्श होना चाहिये।
    
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