१. क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा के बाद ही अथवा कम से कम साथ ही ज्ञानात्मक शिक्षा होनी चाहिये । आज के सन्दर्भ में तो इस बात की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज की शिक्षा क्रियाशून्य और भावनाशून्य हो गई है, केवल जानकारी प्राप्त कर, उसे याद कर, परीक्षा में लिखकर अंक प्राप्त करने तक सीमित हो गई है। इससे अधिक निरर्थक या अनर्थक क्या हो सकता है ? अतः क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा का क्रम प्रथम होना अनिवार्य है। | १. क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा के बाद ही अथवा कम से कम साथ ही ज्ञानात्मक शिक्षा होनी चाहिये । आज के सन्दर्भ में तो इस बात की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज की शिक्षा क्रियाशून्य और भावनाशून्य हो गई है, केवल जानकारी प्राप्त कर, उसे याद कर, परीक्षा में लिखकर अंक प्राप्त करने तक सीमित हो गई है। इससे अधिक निरर्थक या अनर्थक क्या हो सकता है ? अतः क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा का क्रम प्रथम होना अनिवार्य है। |