६. जलदेवता को सन्तुष्ट और प्रसन्न करने के लिये यज्ञों
६. जलदेवता को सन्तुष्ट और प्रसन्न करने के लिये यज्ञों
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की रचना करनी चाहिये । यज्ञ में जलदेवता के लिये आहुति देनी चाहिये । जलदेवता प्रसन्न हों इस दृष्टि से जिस प्रकार नये मन्त्रों की रचना होगी उसी प्रकार यज्ञ में होम करने की सामग्री का भी भौतिक विज्ञान की दृष्टि से विचार होगा। यज्ञ तो वैज्ञानिक अनुष्ठान है ही, उसे आज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके ऐसा स्वरूप दिया जाना चाहिये
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७. पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। संग्रहित पानी का प्राकृतिक स्रोत नदियाँ हैं। संग्रहित पानी का मानवसर्जिक स्रोत तालाब, कुएँ, बावडी आदि हैं । संग्रहित पानी के इससे भी कृत्रिम स्रोत पानी की टँकियों से लेकर घर के छोटे मटकों तक के पात्र हैं । वर्षा की और नदियों की स्तुति के अनुष्टान किये जाने चाहिये तथा मानव सर्जित पानी के संग्रहस्थानों के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार होना चाहिये । यहीं से पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा शुरू होती है ।
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==== पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा ====
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क्रिया और भावना के साथ ज्ञान नहीं जुडा तो क्रिया कर्मकाण्ड बन जाती है और भावना निरुद्धेश्य । दोनों ही अपनी सार्थकता खो बैठते हैं । इसलिये ज्ञानात्मक पक्ष का भी विचार अनिवार्य रूप से करना चाहिये, ज्ञानात्मक शिक्षा के पहलु इस प्रकार सोचे जा सकते हैं...
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१. क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा के बाद ही अथवा कम से कम साथ ही ज्ञानात्मक शिक्षा होनी चाहिये । आज के सन्दर्भ में तो इस बात की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज की शिक्षा क्रियाशून्य और भावनाशून्य हो गई है, केवल जानकारी प्राप्त कर, उसे याद कर, परीक्षा में लिखकर अंक प्राप्त करने तक सीमित हो गई है। इससे अधिक निरर्थक या अनर्थक क्या हो सकता है ? अतः क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा का क्रम प्रथम होना अनिवार्य है।