विद्यालय में केवल पानी की व्यवस्था करना ही पर्याप्त नहीं है, पानी के प्रयोग की शिक्षा देना भी अत्यन्त आवश्यक है। छोटी आयु से ही पानी के विषय में शिक्षा नहीं देने का परिणाम इतना भीषण हो रहा है कि लोग अब कह रहे हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा । इसका अर्थ यह है कि वैश्विक स्तर पर पानी का संकट बढ गया है। इस वैश्विक संकट को विद्यालयीन शिक्षा के साथ जोडकर समस्या के हल का विचार करना चाहिये ।
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==== शिक्षा योजना के बिन्दु ====
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पानी के सम्बन्ध में शिक्षा की योजना करते समय इन बिन्दुओं को ध्यान में लेना आवश्यक है ।
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१. पानी विषयक शिक्षा छोटी से लेकर बड़ी कक्षाओं तक देने की आवश्यकता है।
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२. पानी जीवनधारणा के लिये अनिवार्य रूप से आवश्यक है। पानी के बिना जीवन सम्भव नहीं । पानी का एक नाम ही जीवन है।
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३. पानी पंचमहाभूतों में एक है। वह सर्वव्यापी है। सृष्टि के हर पदार्थ में पानी होता है । पानी के कारण ही पदार्थ का संधारण होता है ।
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४. भौतिक विज्ञान कहता है कि पानी स्वयं स्वादहीन है, उसका अपना कोई स्वाद नहीं है, परन्तु यह भी सत्य है कि पानी के कारण ही किसी भी पदार्थ को स्वाद प्राप्त होता है।
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५. पानी पंचमहाभूतों में एक महाभूत है । पंचमहाभूतों के सूक्ष्म स्वरूप को तन्मात्रा कहते हैं। पानी की तन्मात्रा रस है। रस का अनुभव करने वाली ज्ञानेन्द्रिय जीभ है । वह रस का अनुभव करती है इसलिये उसे रसना कहते हैं। रसना स्वाद का अनुभव करती है। हम सब जानते हैं कि जीभ के बिना हम सृष्टि में जो रस अर्थात् स्वाद है उसका अनुभव नहीं कर सकते ।
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६. पानी पवित्र है। पानी देवता है। वेदों में जलदेवता