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आज कल विद्यालयों में पीने के पानी हेतु कूलर की व्यवस्था की जाती है। कुछ अति सम्पन्न विद्यालय तो वातानुकूलित भी होते हैं ? आचार्य कक्ष में वातानुकूलन व्यवस्था और रेफ्रिजरेटर सामान्य व्यवस्था मानी जाती है। न हो तो उसे गरीबी का लक्षण माना जाता है। किन्तु विज्ञान पढ़ाने वाले विद्यालयों को यह पता होना ही चाहिये कि ये दोनों ही बातें स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये हानिकारक हैं । पेयजल हेतु मटके से उत्तम कोई व्यवस्था नहीं है । विद्यालय भवन का तापमान अध्ययन के अनुकूल रखने के अन्य कई तरीके अपनाये जा सकते हैं ? विद्यालयों को प्रारम्भ में कुछ असुविधा हो सकती है परन्तु उसे सहने की सिद्धता का मार्गदर्शन देकर, विद्यालयों में कूलर, फ्रीज और वातानुकूलन का परित्याग करना चाहिए ।
आज कल विद्यालयों में पीने के पानी हेतु कूलर की व्यवस्था की जाती है। कुछ अति सम्पन्न विद्यालय तो वातानुकूलित भी होते हैं ? आचार्य कक्ष में वातानुकूलन व्यवस्था और रेफ्रिजरेटर सामान्य व्यवस्था मानी जाती है। न हो तो उसे गरीबी का लक्षण माना जाता है। किन्तु विज्ञान पढ़ाने वाले विद्यालयों को यह पता होना ही चाहिये कि ये दोनों ही बातें स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये हानिकारक हैं । पेयजल हेतु मटके से उत्तम कोई व्यवस्था नहीं है । विद्यालय भवन का तापमान अध्ययन के अनुकूल रखने के अन्य कई तरीके अपनाये जा सकते हैं ? विद्यालयों को प्रारम्भ में कुछ असुविधा हो सकती है परन्तु उसे सहने की सिद्धता का मार्गदर्शन देकर, विद्यालयों में कूलर, फ्रीज और वातानुकूलन का परित्याग करना चाहिए ।
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समय मूल्यवान है ।
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==== ७. श्रम प्रतिष्ठा ====
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विद्यालय को स्वास्थ्यप्रद रखना चाहिए, सुशोभित रखना चाहिए, प्रसन्न और आकर्षक रखना चाहिए । किन्तु यह सब करेगा कौन ? यह सब पैसे दे कर नहीं कराना चाहिए । यह सब छात्र और शिक्षक सभी मिलकर करें यही अपेक्षित है। आज कोई यह नहीं करता क्योंकि दोनों को ही विद्यालय अपना नहीं लगता । दूसरे, यह भी मान्यता है कि ये सारे काम पढ़ाई का त्यागकर नहीं होने चाहिए । तीसरे, ऐसे काम करनेमें प्रतिष्ठा कम होना भी माना जाता है। चौथे, इन कार्यों को करने की कुशलता भी नहीं होती । पाँचवी बात है कि इन कार्यों को करने के लिये आवश्यक शरीर शक्ति भी नहीं होती। किन्तु इन सब कारणों को दूर कर श्रम की प्रतिष्ठा, विद्यालय के प्रति आत्मीयता, कार्यकुशलता में अभिवृद्धि से ही सार्थक विद्या हृदयंगम की जा सकती है।
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समय रत्नों से भी अधिक मूल्यवान है ।
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==== ८. पाठ्यक्रमेतर गतिविधियाँ ====
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शिक्षा को पाठ्यपुस्तकों, पाठ्यक्रमों और परीक्षा तक सीमित नहीं कर देना चाहिए । हम सबका अनुभव है कि यह सब करके हमने शिक्षा को अत्यन्त संकुचित बना दिया है। परिणाम स्वरुप बारह वर्ष का, सोलह वर्ष का, या चौबीस वर्षका पाठ्यक्रम पूरा करने वाले छात्र को अपने विषय के अपेक्षित ज्ञान का १०% ज्ञान भी नहीं होता ।
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समय हमेशा बीतता जाता है ।
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और वास्तविक जीवन में शिक्षा के व्यावहारिक उपयोग का परिणाम तो शून्य ही है । आज की इस व्यवस्था में सबकुछ परीक्षालक्षी बनाकर ऐसे सीमित ज्ञान वाले छात्र तैयार कर हम समाज का बड़ा अहित ही कर रहे हैं।
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बीता हुआ समय कभी लौटता नहीं ।
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इसलिये परीक्षा के अतिरिक्त वाचन, अंकों से न जुड़ी हो ऐसी गतिविधियाँ करना, और स्वनिरपेक्ष अन्यों के लाभ के काम करना आदि बातें विद्यालय में होना आवश्यक है ।
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समय का संग्रह नहीं किया जा सकता ।
+
==== ९. बिना बोझ की शिक्षा ====
+
'बिना बोज की शिक्षा' का नारा चतुर्दिक गूंज रहा है। किन्तु बस्ते का वजन तो रंचमात्र भी कम नहीं हो रहा है। बस्ते में अनेक प्रकार की सामग्री होती है । यह महँगी भी होती है। ऊपर से कापियाँ, गाइडों की संख्या भी बहुत होती है । वास्तव में तो 'अँगूठा छाप के नाटक बहुत' यह सूत्र विद्यालय में सबको स्पष्ट दिखाई दे, इस प्रकार लिखा जाना चाहिए । समग्र वर्ष के दौरान जिसकी पढ़ाई का खर्च कम से कम हो उसे पारितोषिक देना चाहिये । खर्च कम और पढ़ने में श्रेष्ठ, विद्यार्थी को विशेष पारितोषक देना चाहिये।
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समयका प्रदूषण नहीं करना, यह सभी का दायित्व है ।
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==== १०. मातापिता की शिक्षा ====
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अपने बच्चों की शिक्षा के सन्दर्भ में आजकल के शिक्षित मातापिताओं के मन में अनेक अवास्तविक अपेक्षाएँ, भ्रान्त धारणायें और अनावश्यक चिन्तायें और आग्रह घर कर गये हैं। इसका विपरीत परिणाम छात्रों की मानसिकता पर पड़ता है। परिणाम स्वरूप विद्यालयों को छात्र के साथ साथ उसके अभिभावक को भी अनिवार्य रूप से प्रशिक्षण देना चाहिये । वास्तव में तो स्वाभाविक मनोवृत्ति और समझदार मातापिता के बच्चों को ही अच्छी शिक्षा दी जा सकती है । ऐसे मातापिता ही अपने बच्चों का उचित पद्धति से विकास कर सकते हैं ।
−
इसलिए
+
वास्तविक स्थिति तो यह है कि आज मातापिता को योग्य मातापिता बनने का मार्गदर्शन कहीं उपलब्ध नहीं है । इससे वे भी उलझन में होते हैं । अतः छात्रों के लिये पाँच दिन का विद्यालय रख कर छठे दिन अभिभावक विद्यालय चलाना चाहिए ? कोई भी समझदार अभिभावक इससे लिये असहमत नहीं होगा।
−
हम समय खराब नहीं करेंगे ।
+
उपरोक्त १ से ९ क्रमांक के मुद्दे अभिभावक को समझाकर उसे सहमत करने के लिये भी ऐसी अभिभावक शाला की आवश्यकता है।
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हम व्यर्थ की बातें करने में समय नहीं गवायेंगे ।
+
यहाँ चर्चित दस मुद्दे कदाचित पहली बार में अस्वाभाविक लगेंगे। किन्तु शान्ति और धैर्यपूर्वक विचार करने पर पता चलेगा कि यह सब कितना लाभदायी होगा । एक बार प्रयोग करके देखें । तत्पश्चात् जो भी करेंगे उन्हें आपस में विचार विमर्श करना चाहिये ।
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−
हम निररर्थक और बेहूदे कार्यक्रम देखने में
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समय नहीं खर्च करेंगे ।
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हम कोई भी कार्य कम समय में करना सीख जाएँगे ।
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हम आज किया जानेवाला कार्य आज ही करेंगे ।
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हम समय का हिसाब रखेंगे ।
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−
समय सम्राट की विजय हो ।
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पर्यावरण प्रतिज्ञा - ८
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वाणी सरस्वती का वरदान है ।
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वाणी मनुष्य का अलंकार है ।
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−
वाणी विचारों का वाहन है ।
−
−
वाणी व्यवहार की प्रेरक है ।
−
−
वाणी का प्रदूषण रोकना चाहिए ।
−
−
इसलिए
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−
हम बिना विचार किये नहीं बोलेंगे ।
−
−
हम शुद्ध उच्चारण से बोलेंगे ।
−
−
हम मधुर वाणी बोलेंगे ।
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−
हम अपशब्द् नहीं बोलेंगे ।
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−
हम वाणी का जतन कर उसे दमदार बनाएंगे ।
−
−
हम गंदी बातें कभी नहीं बोलेंगे ।
−
−
हम सभी को अच्छा लगनेवाली वाणी बोलेंगे ।
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−
वाग्देवी नमोइस्तु ते ।
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−
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पर्यावरण प्रतिज्ञा - ९
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आचार परम धर्म है ।
−
−
आचार से सभी कार्य सिद्ध होते हैं ।
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−
आचार से मनुष्य पहचाना जाता है ।
−
−
आचार से मनुष्य की परख होती है ।
−
−
आचार से दुनिया का व्यवहार चलता है ।
−
−
आचार शुद्धि बनाए रखनी चाहिए |
−
−
इसलिए
−
−
हम हमारा आचार शुद्ध रखेंगे ।
−
−
हम जैसा बोलेंगे वैसा ही करेंगे ।
−
−
हम विचार और आचार समान रखेंगे ।
−
−
हम भूखों को भोजन कराएँगे ।
−
−
हम सारे कार्य स्वयं करना सीखेंगे ।
−
−
हम किसी को हानि नहीं पहुँचाएँगे ।
−
−
हम तोड़फोड़ नहीं करेंगे ।
−
−
आचार धर्म महान है ।
−
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−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
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पर्यावरण प्रतिज्ञा - १०
−
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विद्या मुक्ति प्रदान करती है ।
−
−
विद्या परम देवता है ।
−
−
विद्या सुख और समृद्धि प्रदान करती है ।
−
−
विद्या संस्कार और श्रेष्ठता प्रदान करती है ।
−
−
विद्या का प्रदूषण रोकना चाहिए ।
−
−
इसलिए
−
−
हम विद्या को पवित्र रखेंगे ।
−
−
हम विद्या का आदर करेंगे ।
−
−
हम विद्या का अपमान नहीं होने देंगे ।
−
−
हम विद्या को सत्ता की दासी नहीं होने देंगे ।
−
−
हम विद्या को स्वार्थ की दासी नहीं होने देंगे ।
−
−
हम विद्यावान का सम्मान करेंगे ।
−
−
हम विनयशील बनेंगे ।
−
−
हम विद्या प्राप्त करने के लिए साधना करेंगे ।
−
−
हम विद्या बेचेंगे नहीं ।
−
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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पर्यावरण प्रतिज्ञा - ११
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धनलक्ष्मी देवता है ।
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धन से समृद्धि आती है ।
−
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धन से वैभव आता है ।
−
−
धन से सुख आता है ।
−
−
धन से सभी वस्तुएँ मिलती हैं ।
−
−
धन की रक्षा करनी चाहिए ।
−
−
इसलिए
−
−
हम धन का प्रदूषण रोकेंगे ।
−
−
हम न रिश्वत देंगे न लेंगे ।
−
−
हम धन की चोरी और लूट नहीं करेंगे ।
−
−
हम धन का उपयोग दान में करेंगे ।
−
−
हम धन से दूसरों की गरीबी दूर करेंगे ।
−
−
हम खूब धन कमाएँगे और खूब दान करेंगे ।
−
−
हम धन का अभिमान नहीं करेंगे ।
−
−
हम धन सही मार्ग से कमाएँगे ।
−
−
हम धन का सही विनियोग करेंगे ।
−
−
धनलक्ष्मी का स्वागत हो ।
−
−
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−
−
पर्यावरण प्रतिज्ञा - १२
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−
स्वच्छता आरोग्य की कुँजी है ।
−
−
स्वच्छता समृद्धि की कुँजी है ।
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−
स्वच्छता सुंदरता का पहला सोपान है ।
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स्वच्छता संस्कारिता की निशानी है ।
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−
इसलिए
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हम स्वच्छता रखेंगे ।
−
−
हम हमारा शरीर स्वच्छ रखेंगे ।
−
−
हम हमारा मन स्वच्छ रखेंगे ।
−
−
हम हमारा घर स्वच्छ रखेंगे ।
−
−
हम हमारा आँगन और
−
−
हमारी गली स्वच्छ रखेंगे ।
−
−
हम हमारा विद्यालय स्वच्छ रखेंगे ।
−
−
हम हमारा कार्यालय स्वच्छ रखेंगे ।
−
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हम गंदगी नहीं करेंगे ।
−
−
हम गंदगी नहीं होने देंगे ।
−
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हमें सफाई करने में शर्म नहीं आएगी ।
−
−
सफाई करें पृथ्वी को स्वर्ग बनाएँ ।
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पर्यावरण प्रतिज्ञा - १३
−
−
हमें परमात्मा ने उत्तम शरीर प्रदान किया है ।
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−
शरीर हमारे सभी कार्य करता है ।
−
−
हमारी पहली पहचान हमारा शरीर है ।
−
−
इसलिए
−
−
हम हमारे शरीर का रक्षण करेंगे ।
−
−
हम हमारे शरीर स्वास्थ्य को बनाए रखेंगे।
−
−
हम हमारे शरीर की ताकत बनाए रखेंगे ।
−
−
हम हमारे शरीर को सहनशील बनाएंगे ।
−
−
हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे
−
−
हमारा शरीर कमज़ोर बने ।
−
−
हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे
−
−
शरीर को चोट पहुँचे । हम नित्य व्यायाम करेंगे ।
−
−
हम नित्य श्रम करेंगे ।
−
−
हम शरीर को मज़बूत बनाएँगे ।
−
−
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।
−
−
(पहला सुख नीरोगी काया)
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
पर्यावरण प्रतिज्ञा - १४
−
−
यह विश्व सुंदर है । यह सृष्टि समृद्ध है ।
−
−
यहाँ पृथ्वी है । पानी है ।
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−
आकाश है, अग्नि है, वायु है ।
−
−
पशु हैं, पक्षी हैं, जंतु हैं । वृक्ष हैं, पौधे हैं, घास है ।
−
−
समय है, ध्वनि है, और मनुष्य है ।
−
−
ये सभी एक ही विश्व के निवासी हैं ।
−
−
इन सभी को सुरक्षित रखना हमारा दायित्व है ।
−
−
इसलिए
−
−
हम हमारे शरीर और मन उत्तम रखेंगे ।
−
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हम हमारे वाणी, विचार और व्यवहार उत्तम रखेंगे ।
−
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हम इस विश्व परिवार को अपना ही मानेंगे
−
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और इसे प्रेम देंगे ।
−
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पर्यावरण देवता की जय ।
−
−
विद्यालय में ट्यूशन
−
−
१. ट्यूशन की मात्रा आज बहुत बढ़ गई है इसका
−
−
कारण क्या है ?
−
−
2. ट्यूशन के सम्बन्ध में आचार्य, छात्र एवं
−
−
अभिभावकों की मानसिकता कैसी होती है ?
−
−
३... ट्यूशन के सम्बन्ध में आदर्श स्थिति क्या है ?
−
−
ट्यूशन के आर्थिक पक्ष का विचार कैसे करना
−
−
चाहिये ?
−
−
५... ट्यूशन सम्बन्ध में आदर्श स्थिति क्या है ?
−
−
६... ट्यूशन किसने पढ़ाना उपयुक्त है ?
−
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७... ट्यूशन के हौवे से बचने के उपाय क्या हैं ?
−
−
प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर
−
−
कानपुर की बहन मीनाक्षी गणपुले के ge ga
−
−
प्रश्नावली के उत्तर शिक्षक अभिभावक मुख्याध्यापक एवं
−
−
संस्थाचालक इस प्रकार के शिक्षा से संबंधित गटों के ३०
−
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व्यक्तिओ से प्राप्त हुए । उसका सारांश इस प्रकार है ।
−
−
१, सर्वानुमत से ट्यूशन विद्यार्थीजीवन का अनिवार्य
−
−
हिस्सा है । ट्यूशन का प्रमाण बढ़ने के कारण बताते हुए
−
−
कहा...
−
−
५, मातापिता दोनों का अथर्जिन हेतु बाहर जाना
−
−
२. अशिक्षित अभिभावक
−
−
३. अंग्रेजी माध्यम
−
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४. बच्चों के विकास के संबंध में अभिभावकों की
−
−
बढती हुई प्रतिस्पर्धा
−
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५. अक्षम अध्यापन
−
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६, बालकों कों कहीं ना कहीं बाँधकर रखने की
−
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अभिभावक की प्रवृत्ति
−
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−
−
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
−
−
७. अपने बालक को विशेष शिक्षा देने की लालसा पढाई में कमजोर है उसे ही ट्यूशन
−
−
८. विद्यालय का गृहकार्य पुरा हो इस प्रकार के. आवश्यक है ऐसे मत प्रदर्शित हुए ।
−
−
विविध कारण बताये गये । ४. ट्यूशन के आर्थिक पक्ष के संबंध में एक बहन
−
−
२. ट्यूशन आचार्य के लिये आर्थिक प्राप्ति का एक... कहती है कि विद्यालय में छात्र को व्यक्तिगत मार्गदर्शन
−
−
साधन है मिलेगा तो समय और व्यर्थ व्ययसे छुटकारा मिलेगा ।
−
−
छात्र के लिए प्रतिष्ठा का लक्षण और स्वयं को अभिमत :. अध्यापकों की. कमजोरी. और
−
−
जिम्मेदारीसे मुक्त होने का अनिवार्य मार्ग है । इस प्रकार की. अभिभावकों की गलत सोच का परिणाम apr A
−
−
मान्यता है । अनिवार्यता है । ट्यूशन में जाना यह गौरव की नहीं अपितु
−
−
३. ट्यूशन किनसे लेनी चाहिये ? इसके उत्तर में .. लज्जा की बात है यह विचार जाग्रत करना पडेगा । पढ़ाई में
−
−
वर्गशिक्षकों ने नहीं विषय के विशेज्ञों ने सिखाना चाहिये... जो छात्र कमजोर हैं उन्हें ज्यादा ध्यान से पढाना शिक्षक का
−
−
ऐसी अभिभावकों की अपेक्षा है। ट्यूशन की आदर्श... कर्तव्य है । समाज में जो ज्ञानी वृद्ध जन हैं वे यह काम कर
−
−
स्थिति कहते हुए श्री प्रि्स कुमारजी लिखते हैं ट्यूशन होना... सकते हैं। बाकी अन्य बालकों में स्वयं अध्ययन का
−
−
ही नहीं चाहिये अगर अनिवार्यता हो तो शिक्षक ने मुफ्त मे... कौशल निर्माण करें । अनिष्ट एवं गलत बातों को सोच
−
−
पढाना चाहिए । योग्य शिक्षक के ट्यूशन लगाना और जो... समझकर पूर्णविराम देना ही चाहिये ।
−
−
विद्यालय में पवित्रता
−
−
9. पवित्रता का क्या अर्थ है ? और चर्चा करके लिखे हैं, फिर भी वे अपने मतों पर दृढ हैं
−
−
2. विद्यालय में पवित्रता क्यों होनी चाहिये ? ऐसा लगता नहीं है ।
−
−
3. पवित्रता की मानसिकता क्या होती है ? १, विद्यालय में पवित्रता का अर्थ बताते हुए
−
−
४. विद्यालय में पवित्रता निर्माण करने के लिये क्या... आचार्य, प्रधानाचार्य एवं छात्र तीनों के बीच आपसी
−
−
क्या व्यवस्था हो सकती है ? प्रेमपूर्ण, ट्रेघरहित सम्बन्ध तथा आन्तरिक एवं बाह्य शुचिता
−
−
५... विद्यालय में पवित्रता बनाये रखने के लिये किन... अर्थात् पवित्रता इस प्रकार का अर्थगठन कुछ लोगों ने
−
−
किन का योगदान हो सकता है ? किया है । विद्यालय में पवित्रता क्यों होनी चाहिए ? इन
−
−
६. पवित्र वातावरण बनाने के लिये भौतिक, प्रश्न के उत्तर में लिखा है कि विद्यालय सरस्वती का मन्दिर
−
−
मानसिक एवं आचरणात्मक क्या क्या उपाय हो... है अतः पवित्रता आवश्यक है । शैक्षिक कार्य तनाव रहित
−
−
सकते हैं ? होने चाहिए, जो पत्रित्र वातावरण में ही सम्भव है । इस
−
−
७. कौन कौन सी बातें स्वत: पवित्र हैं और स्वतः: प्रकार के विभिन्न मत प्राप्त हुए । ३. एक ने मन की शुद्धता
−
−
अपचवित्र हैं ? एवं निष्कपटता, इन शब्दों में पवित्रता की मानसिकता का
−
−
वर्णन किया । अन्य सभी इस प्रश्न पर मौन रहे। ४.
−
−
विद्यालय में पवित्रता निर्माण करने हेतु व्यवस्थाओं में,
−
−
पवित्रता यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं अनुभूति का... विद्यालय की वन्दना सभा के अन्तर्गत प्रार्थथा, मानस की
−
−
विषय है । पवित्र क्या है और अपवित्र क्या है इसकी समझ. चौपाइयाँ, अष्टादश श्लोकी गीता, बोध-कथाएँ आदि का
−
−
है परन्तु उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है । सात प्रश्नों. उल्लेख किया । ५. पवित्रता का वातावरण निर्माण होने में
−
−
की इस प्रश्नावली के उत्तर सभी शिक्षकों ने विचारपूर्वक ... संस्थाचालक, प्रधानाचार्य, शिक्षक, कर्मचारी, अभिभावक
−
−
प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर
−
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−
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−
−
तथा विद्यार्थी सबका योगदान होना
−
−
चाहिए, ऐसा सबका मत था । प्रत्येक के योगदान का
−
−
स्वरूप कैसा हो, इस बात में अस्पष्टता दिखाई दी । ६.
−
−
पवित्र वातावरण बनाने हेतु भौतिक दृष्टि से सुन्दरता व
−
−
साज-सज्जा करना, मानसिक दृष्टि से मन को अच्छी प्रेरणा
−
−
प्राप्त हो, आचरण की दृष्टि से सबका आपसी व्यवहार
−
−
अच्छा हो, ऐसे सुझाव मिले । ७. परमात्मा, पुण्य, दान,
−
−
सत्य, ब्रह्मचर्य आदि बातें पवित्र हैं और शास्त्र विस्द्ध
−
−
व्यवहार यथा चोरी, हिंसा, असत्य, बेईमानी ये सब
−
−
अपवित्र हैं अतः ताज्य हैं ऐसा बताया ।
−
−
अभिमत :
−
−
यह प्रश्नावली सब लोगों को अन्तर्मुख करने वाली
−
−
थी । वास्तव में भारतीयों के रोम रोम में अच्छाई है ।
−
−
पवित्रता स्वभाव में तो हैं परन्तु पाश्चात्य अंधानुकरण एवं
−
−
अध्ययन में कमी आने के कारण पवित्रता जैसी स्वाभाविक
−
−
बात आज अव्यवहार्य हो गई है । स्वच्छता का बोलबाला
−
−
इतना बढ़ गया है कि वह प्रदर्शन की वस्तु बन गई है।
−
−
पर्यावरण की शुद्धि करने वाली प्रत्येक बात पवित्र है यह
−
−
भरातीय मान्यता है । 3%, वेद, ज्ञान, यज्ञ, सेवा, अन्न, गंगा,
−
−
तुलसी, औषधि, गोमय, गोमाता, पंचमहाभूत, सद्भावना एवं
−
−
सदाचार पतरित्र हैं । विद्यालयों के सन्दर्भ में पवित्रता निर्माण
−
−
करने हेतु दैनिक अग्िहोत्र, ब्रह्मनाद, सरस्वती वंदना, गीता के
−
−
श्लोक, मानस की चौपाइयाँ आदि सहजता से कर सकते हैं ।
−
−
कक्षा में जाते समय जूते बाहर उतारना अत्यन्त सहज कार्य
−
−
होना चाहिए । विद्यालय ज्ञान का केन्द्र है और ज्ञान
−
−
पवित्रतम है । वास्तव में व्यवसाय और राजनीति अपने अपने
−
−
स्थान पर उचित है, परन्तु उसे शिक्षा से जोडा गया तो शिक्षा
−
−
अपवित्र हो जायेगी । इस बात को ध्यान में रखकर व्यवहार
−
−
करेंगे तो विद्यालय की पवित्रता टिकेगी ।
−
−
वर्तमान समय का संकट यह है कि सामान्य जनों को
−
−
जो बातें बिना प्रयास से समझ में आती हैं वे विदट्रज्जनों को
−
−
नहीं आरतीं, जो बातें अनपढ़ लोगों को ज्ञात हैं वे पढे लिखें
−
−
को नहीं । ऐसी अनेक बातों में से एक बात है पवित्रता की ।
−
−
लोगों को स्वच्छता की बात तो समझ में आती है परन्तु
−
−
१३६
−
−
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
−
−
पवित्रता की नहीं । जिस प्रकार भोजन में पौष्टिकता तो समझ
−
−
में आती है सात्त्विकता नहीं उसी प्रकार से स्वच्छता और
−
−
पवित्रता का है ।
−
−
विमर्श
−
−
पवित्रता मन का विषय है
−
−
स्वच्छता भौतिक स्तर की बात है, पवित्रता मानसिक
−
−
स्तर की । मानसिक स्तर अन्तःकरण का स्तर है जिसमें
−
−
मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त का समावेश होता है।
−
−
पवित्रता इस अन्तःकरण के स्तर का विषय है ।
−
−
पवित्रता अन्तःकरण का विषय अवश्य है परन्तु वह
−
−
व्यक्त तो भौतिक स्तर पर ही होता है इसलिये पवित्रता का
−
−
सीधा सम्बन्ध स्वच्छता से है । जो पवित्र है वह स्वच्छ है
−
−
ही परन्तु जो स्वच्छ है वह हमेशा पवित्र होता ही है ऐसा
−
−
नहीं है। अर्थात् कभी कभी ऐसा भी होता है कि जो
−
−
स्वच्छ नहीं है वह भी पवित्र होता है ।
−
−
हम कौन सी बात को पवित्र कहते हैं ? परम्परा से
−
−
हम अन्न को, पानी को, विद्या को, मन्दिर को, पुस्तक को
−
−
पवित्र मानते हैं । इसका कारण क्या है ?
−
−
अन्न मनुष्य के शरीर और प्राण का पोषण करता है,
−
−
सभी प्राणियों के जीवन का आधार है इसलिये उसके प्रति
−
−
अहोभाव है । पानी का भी वैसा ही है, पृथ्वी का भी वैसा
−
−
ही है। पृथ्वी तो अन्न और पानी का भी आधार है ।
−
−
अर्थात् पंचमहाभूत मनुष्य और प्राणियों की जीवन का
−
−
आधार है इसलिये मनुष्य उनके प्रति कृतज्ञ है और कृतज्ञता
−
−
ही पवित्रता की प्रेरक है ।
−
−
मन्दिर पवित्र है क्योंकि वह धर्म का केन्द्र है । धर्म
−
−
सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है इसलिये उसके प्रतीक रूप
−
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भगवान की प्रतिमां और उसका स्थान पवित्र है ।
−
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तीर्थस्थान पवित्र है क्योंकि वहाँ जाने वाले हजारों
−
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यात्रियों के मन के सद्भाव और सद्वृत्तियों का वहाँ पुंज
−
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बनकर वातावरण al amar aa है। वह
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कल्याणकारी है इसलिये पतित्र है ।
−
−
ज्ञान पवित्र है क्योंकि वह मुक्ति दिलाता है, सबको
−
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सज्जन बनाता है, हिंसा कम करता है, सद्भाव बढ़ाता है,
−
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
−
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विवेक और विनय सिखाता है ।
−
−
सन्तजन पवित्र हैं क्योंकि वे भी यही कार्य करते हैं ।
−
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पुस्तक पवित्र है क्योंकि वह ज्ञान का प्रतीक है ।
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अर्थात् कोई भी पदार्थ, व्यक्ति, व्यवस्था जब
−
−
जीवनरक्षक, संस्काररक्षक, सद्भावरक्षक होते है, शुभ,
−
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कल्याणकारी होते है तब वह पवित्र होते है ।
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पवित्रता का व्यावहारिक सूत्र
−
−
पवित्रता का जतन करना चाहिये । पवित्रता के प्रति
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व्यवहार करने के भी तरीके हमारी परम्परा ने बनायें हैं ।
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जैसे कि -
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०... पतरित्र वस्तु को अस्वच्छ नहीं किया जाता, अस्वच्छ
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स्थान पर रखा नहीं जाता, अस्वच्छ वस्तुओं के साथ
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नहीं रखा जाता ।
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पवित्र वस्तु के पास अस्वच्छ रहकर जाया नहीं जाता ।
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पवित्र वस्तु के प्रति मन में दुर्भाव नहीं रखा जाता ।
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पवित्र वस्तु का प्रयोग अनुचित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये
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नहीं किया जाता ।
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पवित्र वस्तु को अपवित्र भाव से दूषित नहीं किया
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जाता ।
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भारतीय मानस को पवित्र वस्तु के साथ कैसा व्यवहार
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करना चाहिये यह सहज समझता है । केवल पवित्र वस्तु को
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पवित्र नहीं मानते तभी गडबड होती है ।
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वर्तमान में विद्यालय को पवित्र नहीं माना जाता
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इसलिये अनेक अकरणीय बातें होती हैं ।
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विद्यालय मन्दिर है
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परन्तु विद्यालय परम्परा से पवित्र स्थान है क्योंकि
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विद्या पवित्र है । विद्यालय में पवित्रता
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बनाये रखना चाहिय यह सहज अपेक्षा है ।
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क्या किया जा सकता है ?
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विद्यालय में पाद्त्राण पहनकर नहीं जाना । इसके लिये
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विशेष व्यवस्था करनी चाहिये ।
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विद्यालय में आत्यन्तिक स्वच्छता होनी चाहिये ।
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विद्यालय में शैक्षिक सामग्री का सम्मान किया जाना
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चाहिये । पुस्तक को पैर नहीं लगाना ऐसा ही एक
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आचार है ।
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०... बिना स्नान किये विद्यालय में नहीं आना ऐसा भी एक
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आचार है ।
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अपवित्र, अमेध्य भोजन कर अध्ययन नहीं किया जाता
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यह स्वाभाविक सत्य है ।
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किसी का अकल्याण करने हेतु विद्या का उपयोग करना
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उसे अपवित्र बनाना है, किसी के भले के लिये विद्या
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का प्रयोग करना उसकी पवित्रता की रक्षा करना है ।
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पानी के स्थान को, भोजन के स्थान को, अध्ययन के
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स्थान को स्वच्छ और सम्मानित रखना पवित्रता है ।
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व्यापक अर्थ में प्लास्टिक का प्रयोग करना भी
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विद्याकेन्द्र को दूषित करना ही है । आज हमने अपने
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आपको चारों और से सिन्थेटिक वस्तुओं से घेर
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लियाहै । यह अपवित्रता है ।
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अर्थात् पवित्रता की भावना को तिलांजलि देकर हमने
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जीवन को सांस्कृतिक धरातल से गिराकर भौतिक स्तर पर ला
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दिया है, संस्कृति और भौतिकता का सम्बन्ध विच्छेद् कर
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दिया है और अपने आपको संकटग्रस्त बना लिया है ।
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संकटों के कठिन कवच को तोडकर उससे मुक्त होने में
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पवित्रता का जतन करने की आवश्यकता है ।
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विद्यालयों के लिये विचारणीय
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विद्यालय समाज के निर्माण, स्वास्थ्य, सुखसुविधा,
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संस्कारिता और ज्ञान के महत्त्वपूर्ण केन्द्र हैं । वर्तमान में
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कुछ समस्यायें वैश्विक व्याप्ति लिये हुए हैं । इनमें मुख्य
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समस्यायें स्वास्थ्य, संस्कारिता और पर्यावरण से सम्बन्धित
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१३७
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हैं । विद्यालय में आने वाले छात्र का स्वास्थ्य सामान्यतः
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कमजोर होता है। आँख, कान आदि ज्ञानेन्द्रियों की
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अनुभव शक्ति, हाथ पैर आदि कर्मन्द्रियों की कार्यकुशलता,
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श्रसनतन्त्र, चेतातन्त्र, पाचनतन्त्र आदि की मन्दता और सारे
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शरीर की दुर्बलता यह दर्शाती है कि
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छात्र के समग्र स्वास्थ्य का सूचकांक बहुत नीचा है ।
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FEM Aa का अभाव, ओछापन, ग्रहणशीलता का
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अभाव, शिष्टाचार और नम्रता का अभाव आदि दृशति हैं
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कि उसकी संस्कारिता का सूचकांक बहुत नीचा है । और
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पर्यावरण प्रदूषण की विश्वव्यापी समस्या के लिये किसी
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उदाहरण की आवश्यकता नहीं रह जाती ।
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इन परिस्थितियों में यह विचार करने योग्य बात है कि
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विद्यालय नीचे बताई गई कुछ बातों पर अमल कर सकते हैं
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क्या ?
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१, सूती गणवेश
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स्वास्थ्य की दृष्टि से सूती गणवेश उत्तम है । सूती
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वस्त्र पर्यावरण की दृष्टि से भी लाभदायक है । हम जानते हैं
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कि प्लास्टिक के उपयोग ने पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों
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का बहुत नुकसान किया है । वैसे तो सभी को सूती वख्र
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पहनने चाहिए । अनपढ़, मन्दबुद्धि, दुष्प्रभाव से अनजान,
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सभी के प्रति लापरवाह रहने वाले लोग सूती कपड़े भले ही
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न पहनें, किन्तु समझदार, होशियार और शिक्षित लोगों को
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तो सूती कपड़े पहनने ही चाहिए । अतः विद्यालयों को
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अपने छात्रों और शिक्षकों को सूती कपड़े पहनने की प्रेरणा
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देनी ही चाहिये । परामर्श देने के साथ साथ आग्रह भी
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करना चाहिए । इस हेतु विद्यालय का गणवेश सूती होना
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चाहिए । शुरुआत में सूती और क्रमशः खादी का स्वीकार
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किया जा सकता है ।
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लेकिन सूती गणवेश अनिवार्य होना ही पर्याप्त नहीं
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है, उचित भी नहीं है । सूती कपड़े की गुणात्मकता, योग्यता
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के बारे में समझदारी देनी चाहिए । यह आस्था, आग्रह और
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स्वैच्छिक रूप से स्वीकृत सिद्धान्त बनना चाहिए ।
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2. विद्यालय या कक्षाकक्ष में जूते नहीं पहनना
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विद्या, कक्षाकक्ष, विद्यालय सभी पवित्र हैं । पवित्र
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स्थान पर हम जूते पहन कर नहीं जाते ? आज भी इस
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आचरण का सर्वत्र पालन होता है । हम मन्दिर में जूते पहन
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कर नहीं जाते । रसोईघर में जूते नहीं पहनते । विद्यालय में
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१३८
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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पहनते हैं क्योंकि विद्या और विद्यालय को पवित्र नहीं
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मानते । कुछ समय पूर्व ऐसा नहीं था । किन्तु विद्या को
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पवित्र नहीं मानना यह संस्कारिता नहीं है। इससे इस
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संस्कार का पुनः्प्रस्थापित करने हेतु विद्यालय में जूते
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उतारकर पढ़ने और पढ़ाने का नियम बना सकते हैं ।
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वास्तव में यह कोई मुश्किल काम नहीं है । केवल हमारे
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ध्यान में नहीं आता ।
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भूमि पर बैठने की व्यवस्था
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विद्यालयों में छात्र बैंचों या कुर्सियों पर बैठते हैं ।
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शिक्षक कुर्सी पर बैठकर या खड़े होकर पढ़ाते हैं । आज
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यह धारणा बन गई है कि मेज कुर्सी के बिना काम नहीं
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चलेगा । आर्थिक दृष्टि से कमजोर विद्यालयों में तो ऐसी
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व्यवस्था नहीं होती किन्तु ऊँची फीस लेने वाले विद्यालयों
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के छात्र तो भूमि पर बैठ कर पढ़ ही नहीं सकते ? किन्तु
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खड़े होकर पढ़ाना असंस्कारिता है । पढ़ने वाला छात्र बैठा
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हो और पढ़ाने वाला शिक्षक खड़ा हो यह भी संस्कार के
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विरुद्ध है । पालथी लगाकर पढ़ने बैठना और छात्र से कुछ
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ऊँचे आसन पर बैठ कर पढ़ाना, योग्य पद्धति है । पालथी
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लगाकर बैठने से ऊर्जा मस्तिष्क की ओर प्रवाहित होती है
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जिससे ज्ञान ग्रहण आसान बनता है । पैर लटकाकर बैठने
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या खड़े रहने से अकारण ही ऊर्जा नीचे की ओर प्रवाहित
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होती है और ज्ञानार्जन में अवरोध उत्पन्न होता है । इसके
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उपाय के तौर पर ऊर्जा के कुचालक आसन (सूत या ऊन)
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पर पालथी लगाकर बैठकर पढ़ाने की व्यवस्था विद्यालय
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कर सकते हैं ।
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आर्थिक दृष्टि से भी इसमें काफी बचत है यह एक
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अतिरिक्त लाभ है ।
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3.
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४. घर का भोजन
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घर का बना भोजन स्वास्थ्य और संस्कार दोनों ही
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रूप से अधिक लाभदायक है । घर पर माँ द्वारा प्रेम से
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बनाया गया भोजन मन को अच्छा बनाता है और ताजा
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होने के कारण से वह स्वास्थ्यप्रद भी होता है । अतः
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विद्यालयों का यह आग्रह होना चाहिए कि छात्र घर में बना
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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भोजन ही विद्यालय में लायें । वह भी स्वास्थ्य के अनुकूल... ७. श्रम प्रतिष्ठा
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होना चाहिए । भोजन विषयक संस्कार, भोजन की आदतें, विद्यालय को स्वास्थ्यप्रद रखना चाहिए, सुशोभित
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भोजन के विषय में आग्रह अति आवश्यक है, यह सुज्ञजन रखना चाहिए, प्रसन्न और आकर्षक रखना चाहिए । किन्तु
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भली भाँति समझ सकते हैं । वैसे भी बाहर का, जंकफूड, . यह सब करेगा कौन ? यह सब पैसे दे कर नहीं कराना
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कहीं भी कुछ भी न खाना यह सिखाना शिक्षा का... चाहिए । यह सब छात्र और शिक्षक सभी मिलकर करें यही
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महत्त्वपूर्ण विषय तो है ही । इसीके अंश के तौर पर छात्रों. अपेक्षित है। आज कोई यह नहीं करता क्योंकि दोनों को
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द्वारा विद्यालय मे लाया जाने वाला भोजन भी उचित प्रकार. ही विद्यालय अपना नहीं लगता । दूसरे, यह भी मान्यता है
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का होना चाहिए । कि ये सारे काम पढ़ाई का त्यागकर नहीं होने चाहिए ।
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५. प्लास्टिक का निषेध तीसरे, ऐसे काम करनेमें प्रतिष्ठा कम होना भी माना जाता
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आब यह बात सब जानने लगे हैं कि स्वास्थ्य और. है! चौथे, इन कार्यों को करने की कुशलता भी नहीं
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वैश्विक पर्यावरण की दृष्टि से प्लास्टिक कितना हानिकारक होती । पाँचवी बात है कि इन कार्यों को करने के लिये
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है । सार्वजनिक दैनन्दिन जीवन में प्लास्टिक का उपयोग... 'वश्यक शरीर शक्ति भी नहीं होती। किन्तु इन सब
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बहुत दिखाई देता है । इसीसे उसका उपाय भी छोटी बड़ी... फौरणों को दूर कर श्रम की प्रतिष्ठा, विद्यालय के प्रति
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सभी बातों में सार्वजनिक ही होना चाहिए ? इसीके एक आत्मीयता, कार्यकुशलता में अभिवृद्धि से ही सार्थक विद्या
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अंश के तौर पर छात्र को पानी की बोतल, भोजन का... दयंगम की जा सकती है ।
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डिब्बा, बस्ता प्लास्टिक के स्थान पर पीतल या स्टील का
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डिब्बा, काँच या ताँबे की बोतल और सूती बस्ता लाने के
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लिये कहा जा सकता है । इनकी सामूहिक व्यवस्था भी की
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जा सकती है । इस प्रकार यह काम मुश्किल भी नहीं
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रहेगा ।
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८. पाठ्यक्रमेतर गतिविधियाँ
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शिक्षा को पाठ्यपुस्तकों, पाठ्यक्रमों और परीक्षा तक
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सीमित नहीं कर देना चाहिए । हम सबका अनुभव है कि
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यह सब करके हमने शिक्षा को अत्यन्त संकुचित बना दिया
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है। परिणाम स्वरुप बारह वर्ष का, सोलह वर्ष का, या
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६. कूलर के पानी का निषेध चौबीस वर्षका पाठ्यक्रम पूरा करने वाले छात्र को अपने
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आज कल विद्यालयों में पीने के पानी हेतु कूलर की. विषय के अपेक्षित ज्ञान का १०% ज्ञान भी नहीं होता ।
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व्यवस्था की जाती है। कुछ अति सम्पन्न विद्यालय तो... और वास्तविक जीवन में शिक्षा के व्यावहारिक उपयोग का
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वातानुकूलित भी होते हैं ? आचार्य कक्ष में वातानुकूलन . परिणाम तो शून्य ही है । आज की इस व्यवस्था में सबकुछ
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व्यवस्था और रेफ्रिजरेटर सामान्य व्यवस्था मानी जाती है ।.. परीक्षालक्षी बनाकर ऐसे सीमित ज्ञान वाले छात्र तैयार कर
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न हो तो उसे गरीबी का लक्षण माना जाता है। किन्तु हम समाज का बड़ा अहित ही कर रहे हैं ।
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विज्ञान पढ़ाने वाले विद्यालयों को यह पता होना ही चाहिये इसलिये परीक्षा के अतिरिक्त वाचन, अंकों से न जुड़ी
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कि ये दोनों ही बातें स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये. हो ऐसी गतिविधियाँ करना, और स्वनिरपेक्ष अन्यों के लाभ
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हानिकारक हैं । पेयजल हेतु मटके से उत्तम कोई व्यवस्था. के काम करना आदि बातें विद्यालय में होना आवश्यक है ।
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नहीं है । विद्यालय भवन का तापमान अध्ययन के अनुकूल
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रखने के अन्य कई तरीके अपनाये जा सकते हैं? १.८. बिना बोझ की शिक्षा
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विद्यालयों को प्रारम्भ में कुछ असुविधा हो सकती है परन्तु *बिना बोज की शिक्षा' का नारा चतुर्दिक गूँज रहा
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उसे सहने की सिद्धता का मार्गदर्शन देकर, विद्यालयों में _ है। किन्तु बस्ते का वजन तो रंचमात्र भी कम नहीं हो रहा
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कूलर, फ्रीज और वातानुकूलन का परित्याग करना चाहिए । है । बस्ते में अनेक प्रकार की सामग्री होती है । यह महँगी
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$38
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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भी होती है । ऊपर से कापियाँ, गाइडों .. शिक्षा दी जा सकती है । ऐसे मातापिता ही अपने बच्चों का
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की संख्या भी बहुत होती है । वास्तव में तो “अँगूठा छाप. उचित पद्धति से विकास कर सकते हैं ।
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के नाटक बहुत' यह सूत्र विद्यालय में सबको स्पष्ट दिखाई वास्तविक स्थिति तो यह है कि आज मातापिता को
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दे, इस प्रकार लिखा जाना चाहिए । समग्र वर्ष के दौरान... योग्य मातापिता बनने का मार्गदर्शन कहीं उपलब्ध नहीं है ।
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जिसकी पढ़ाई का खर्च कम से कम हो उसे पारितोषिक देना... इससे वे भी उलझन में होते हैं ।
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चाहिये । खर्च कम और पढ़ने में श्रेष्ठ, विद्यार्थी को विशेष अतः छात्रों के लिये पाँच दिन का विद्यालय रख कर
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पारितोषक देना चाहिये । छठे दिन अभिभावक विद्यालय चलाना चाहिए ? कोई भी
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समझदार अभिभावक इससे लिये असहमत नहीं होगा ।
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१०. मातापिता की शिक्षा उपरोक्त १ से ९ क्रमाँक के मुद्दे अभिभावक को
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अपने बच्चों की शिक्षा के सन्दर्भ में आजकल के. समझाकर उसे सहमत करने के लिये भी ऐसी अभिभावक
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शिक्षित मातापिताओं के मन में अनेक saree शाला की आवश्यकता है ।
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अपेक्षाएँ, भ्रान्त धारणायें और अनावश्यक चिन्तायें और यहाँ चर्चित दस मुद्दे कदाचित पहली बार में
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आग्रह घर कर गये हैं । इसका विपरीत परिणाम छात्रों की. अस्वाभाविक लगेंगे । किन्तु शान्ति और धैर्यपूर्वक विचार
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मानसिकता पर पड़ता है । परिणाम स्वरूप विद्यालयों को... करने पर पता चलेगा कि यह सब कितना लाभदायी होगा ।
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छात्र के साथ साथ उसके अभिभावक को भी अनिवार्य रूप... एक बार प्रयोग करके देखें । तत्पश्चात् जो भी करेंगे उन्हें
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से प्रशिक्षण देना चाहिये । वास्तव में तो स्वाभाविक... आपस में विचार विमर्श करना चाहिये ।
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मनोवृत्ति और समझदार मातापिता के बच्चों को ही अच्छी