Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 48: Line 48:  
अन्य अनेक बातों की तरह अध्ययन-अध्यापन के समय में भी अव्यवस्था निर्माण हुई है । इसके कारण और परिणाम क्या हैं, यह तो हम बाद में देखेंगे परंतु प्रारंभ में उचित समय कौन सा है ? इसका ही विचार करेंगे । प्रथम हम विचार करेंगे कि दिन के २४ घंटे के समय में कौन सा समय अध्ययन करने के लिए अनुकूल है । हमारे सारे शाख्र, महात्मा और लोक परंपरा तीनों कहते हैं कि ब्राह्ममुहूर्त का समय चिंतन और मनन के लिए उपयुक्त है । सूर्योदय के पूर्व ४ घटिका ब्राह्ममुहूर्त का समय दर्शाती है । आज की काल गणना के अनुसार एक घटिका २४ मिनट की होती है । अर्थात्‌ सूर्योदय से पूर्व ९६ मिनट ब्राह्ममुहुरत  का काल है । इसके पूर्वार्ध में कंठस्थीकरण की शक्ति अधिक होती है । इसके उत्तराद्ध में चिंतन और मनन की शक्ति अधिक होती है । इसलिए जो भी बातें हमें कंठस्थ करनी है, वह ब्रह्ममुहूर्त के पूर्वार्ध में करनी चाहिए । जिस विषय को हम अच्छे से समझना चाहते हैं और जिसे हम कठिन मानते हैं उसके ऊपर ब्रह्ममुहूर्त के उत्तरार्ध में मनन और चिंतन करना चाहिए । ऐसा करने से कम समय में और कम परिश्रम से अधिक अच्छी तरह से ज्ञानार्जन होता है । यह तो हुई ब्रह्मुहूर्त की बात । परंतु सामान्य रूप से दिन में प्रात: काल ६:०० से १०:०० बजे तक और सायंकाल भी ६:०० से १०:०० बजे तक का समय अध्ययन के लिए उत्तम होता है। मध्यान्ह भोजन के बाद के दो प्रहर अध्ययन के लिए उपयुक्त नहीं हैं । इसका कारण बहुत सरल है, भोजन के बाद पाचन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । उस समय यदि हम अध्ययन करेंगे तो उर्जा विभाजित हो जाएगी और न अध्ययन ठीक से होगा, न पाचन ठीक से होगा, यह तो दोनों ओर से नुकसान है, इसलिए दोनों समय भोजन के बाद अध्ययन नहीं करना चाहिए । भोजन के बाद तो शारीरिक श्रम भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से पाचन और विश्राम में उर्जा विभाजित होती है और शरीर का स्वास्थ्य खराब होता है ।
 
अन्य अनेक बातों की तरह अध्ययन-अध्यापन के समय में भी अव्यवस्था निर्माण हुई है । इसके कारण और परिणाम क्या हैं, यह तो हम बाद में देखेंगे परंतु प्रारंभ में उचित समय कौन सा है ? इसका ही विचार करेंगे । प्रथम हम विचार करेंगे कि दिन के २४ घंटे के समय में कौन सा समय अध्ययन करने के लिए अनुकूल है । हमारे सारे शाख्र, महात्मा और लोक परंपरा तीनों कहते हैं कि ब्राह्ममुहूर्त का समय चिंतन और मनन के लिए उपयुक्त है । सूर्योदय के पूर्व ४ घटिका ब्राह्ममुहूर्त का समय दर्शाती है । आज की काल गणना के अनुसार एक घटिका २४ मिनट की होती है । अर्थात्‌ सूर्योदय से पूर्व ९६ मिनट ब्राह्ममुहुरत  का काल है । इसके पूर्वार्ध में कंठस्थीकरण की शक्ति अधिक होती है । इसके उत्तराद्ध में चिंतन और मनन की शक्ति अधिक होती है । इसलिए जो भी बातें हमें कंठस्थ करनी है, वह ब्रह्ममुहूर्त के पूर्वार्ध में करनी चाहिए । जिस विषय को हम अच्छे से समझना चाहते हैं और जिसे हम कठिन मानते हैं उसके ऊपर ब्रह्ममुहूर्त के उत्तरार्ध में मनन और चिंतन करना चाहिए । ऐसा करने से कम समय में और कम परिश्रम से अधिक अच्छी तरह से ज्ञानार्जन होता है । यह तो हुई ब्रह्मुहूर्त की बात । परंतु सामान्य रूप से दिन में प्रात: काल ६:०० से १०:०० बजे तक और सायंकाल भी ६:०० से १०:०० बजे तक का समय अध्ययन के लिए उत्तम होता है। मध्यान्ह भोजन के बाद के दो प्रहर अध्ययन के लिए उपयुक्त नहीं हैं । इसका कारण बहुत सरल है, भोजन के बाद पाचन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । उस समय यदि हम अध्ययन करेंगे तो उर्जा विभाजित हो जाएगी और न अध्ययन ठीक से होगा, न पाचन ठीक से होगा, यह तो दोनों ओर से नुकसान है, इसलिए दोनों समय भोजन के बाद अध्ययन नहीं करना चाहिए । भोजन के बाद तो शारीरिक श्रम भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से पाचन और विश्राम में उर्जा विभाजित होती है और शरीर का स्वास्थ्य खराब होता है ।
   −
............. page-135 .............
+
इसी प्रकार मास की अवधि के ३० दिन, तीन प्रकार से विभाजित किए जाते हैं । एक प्रकार है उत्तम अध्ययन के दिन, दूसरा है मध्यम अध्ययन के दिन और तीसरा है अनध्ययन के दिन । दोनों पक्षों की प्रतिपदा, अष्टमी और चतुर्दशी तथा पूर्णिमा और अमावस्या अन ध्ययन के दिन हैं । इन दिनों में अध्ययन करने से अध्ययन तो नहीं ही होता उल्टा नुकसान होता है । शेष २२ दिनों में आधे मध्यम अध्ययन के हैं और आधे उत्तम अध्ययन के । शुक्ल पक्ष की नवमी से त्रयोद्शी तक और कृष्ण पक्ष की द्वितीया से सप्तमी तक के दिन उत्तम अध्ययन के दिन हैं । कृष्ण पक्ष की नवमी से त्रयोदशी तक, शुक्ल पक्ष की द्वितीया से सप्तमी तक के दिन मध्यम अध्ययन के हैं । उत्तम अध्ययन के दिनों में नया विषय शुरू करना चाहिए, गंभीर विषय का अध्ययन करना चाहिए और अधिक कठिन और अटपटे विषय अध्ययन के लिए चुनना चाहिए । मध्यम अध्ययन के दिनों में पुनरावर्तन कर सकते हैं, सरल विषयों का चयन कर सकते हैं और क्रियात्मक अध्ययन भी कर सकते हैं । अध्ययन-अनध्ययन और उत्तम अध्ययन का यह विभाजन परंपरा से चला आ रहा है, यह तो हम जानते हैं । गावों में भी लोग इसे जानते हैं परंतु इस विभाजन का आधार क्या है प्रमाण क्या है ?
   −
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
+
हम अध्ययन के दिन के विषय में कुछ अनुमान कर सकते हैं । अमावस्या को वैसे भी अपवित्र माना जाता है । उस समय अध्ययन जैसा पवित्र कार्य नहीं करना चाहिए, चतुर्दशी भी अमावस्या के समान अपवित्र मानी जाती है इसलिए उसे भी अनध्ययन के दिन में गिना जा सकता है । इतना ही ध्यान में आता है शेष दिनों के लिए अनुमान नहीं हो सकता है । एक बहुत सीधा-साधा अनुमान है कि १ मास के चार भाग बनाकर नियमित अंतराल में अनध्ययन की व्यवस्था करने से व्यवहारिक सुविधा रहती हैं, इसलिए अनध्ययन की व्यवस्था की होगी । अनध्ययन के दिनों में व्यवहार के अन्य अनेक उपयोगी कार्य हो सकते हैं । एक व्यवस्था बनाने से सबके लिए सुविधा रहती है ।
 
  −
इसी प्रकार मास की अवधि के ३० दिन, तीन
  −
 
  −
प्रकार से विभाजित किए जाते हैं । एक प्रकार है उत्तम
  −
 
  −
अध्ययन के दिन, दूसरा है मध्यम अध्ययन के दिन और
  −
 
  −
तीसरा है अनध्ययन के दिन । दोनों पक्षों की प्रतिपदा,
  −
 
  −
अष्टमी और चतुर्दशी तथा पूर्णिमा और अमावस्या अन
  −
 
  −
ध्ययन के दिन हैं । इन दिनों में अध्ययन करने से अध्ययन
  −
 
  −
तो नहीं ही होता उल्टा नुकसान होता है । शेष २२ दिनों में
  −
 
  −
आधे मध्यम अध्ययन के हैं और आधे उत्तम अध्ययन के ।
  −
 
  −
शुक्ल पक्ष की नवमी से त्रयोद्शी तक और कृष्ण पक्ष की
  −
 
  −
द्वितीया से सप्तमी तक के दिन उत्तम अध्ययन के दिन हैं ।
  −
 
  −
कृष्ण पक्ष की नवमी से त्रयोदशी तक, शुक्ल पक्ष की
  −
 
  −
द्वितीया से सप्तमी तक के दिन मध्यम अध्ययन के हैं । उत्तम
  −
 
  −
अध्ययन के दिनों में नया विषय शुरू करना चाहिए, गंभीर
  −
 
  −
विषय का अध्ययन करना चाहिए और अधिक कठिन और
  −
 
  −
अटपटे विषय अध्ययन के लिए चुनना चाहिए । मध्यम
  −
 
  −
अध्ययन के दिनों में पुनरावर्तन कर सकते हैं, सरल विषयों
  −
 
  −
का चयन कर सकते हैं और क्रियात्मक अध्ययन भी कर
  −
 
  −
सकते हैं । अध्ययन-अनध्ययन और
  −
 
  −
उत्तम अध्ययन का यह विभाजन परंपरा से चला आ रहा
  −
 
  −
है, यह तो हम जानते हैं । गावों में भी लोग इसे जानते हैं
  −
 
  −
परंतु इस विभाजन का आधार क्या है प्रमाण क्या है ?
  −
 
  −
हम अध्ययन के दिन के विषय में कुछ अनुमान कर
  −
 
  −
सकते हैं । अमावस्या को वैसे भी अपवित्र माना जाता है ।
  −
 
  −
उस समय अध्ययन जैसा पवित्र कार्य नहीं करना चाहिए,
  −
 
  −
चतुर्दशी भी अमावस्या के समान अपवित्र मानी जाती है
  −
 
  −
इसलिए उसे भी अनध्ययन के दिन में गिना जा सकता है ।
  −
 
  −
इतना ही ध्यान में आता है शेष दिनों के लिए अनुमान नहीं
  −
 
  −
हो सकता है । एक बहुत सीधा-साधा अनुमान है कि १
  −
 
  −
मास के चार भाग बनाकर नियमित अंतराल में अनध्ययन
  −
 
  −
की व्यवस्था करने से व्यवहारिक सुविधा रहती हैं, इसलिए
  −
 
  −
अनध्ययन की व्यवस्था की होगी । अनध्ययन के दिनों में
  −
 
  −
व्यवहार के अन्य अनेक उपयोगी कार्य हो सकते हैं । एक
  −
 
  −
व्यवस्था बनाने से सबके लिए सुविधा रहती है ।
      
अध्ययन दिन तथा अनध्ययन दिन : चन्द्रमा का प्रभाव
 
अध्ययन दिन तथा अनध्ययन दिन : चन्द्रमा का प्रभाव
1,815

edits

Navigation menu