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| विद्यालय में ज्ञानार्जन का कार्य मुख्य तथा अन्य सब बातें गौण, इसे ध्यान में रखते हुए विद्यालय का समय निर्धारित करना ही भारतीय शिक्षा विचार है । | | विद्यालय में ज्ञानार्जन का कार्य मुख्य तथा अन्य सब बातें गौण, इसे ध्यान में रखते हुए विद्यालय का समय निर्धारित करना ही भारतीय शिक्षा विचार है । |
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| + | ==== अध्ययन का समय ==== |
− | | + | अन्य अनेक बातों की तरह अध्ययन-अध्यापन के समय में भी अव्यवस्था निर्माण हुई है । इसके कारण और परिणाम क्या हैं, यह तो हम बाद में देखेंगे परंतु प्रारंभ में उचित समय कौन सा है ? इसका ही विचार करेंगे । प्रथम हम विचार करेंगे कि दिन के २४ घंटे के समय में कौन सा समय अध्ययन करने के लिए अनुकूल है । हमारे सारे शाख्र, महात्मा और लोक परंपरा तीनों कहते हैं कि ब्राह्ममुहूर्त का समय चिंतन और मनन के लिए उपयुक्त है । सूर्योदय के पूर्व ४ घटिका ब्राह्ममुहूर्त का समय दर्शाती है । आज की काल गणना के अनुसार एक घटिका २४ मिनट की होती है । अर्थात् सूर्योदय से पूर्व ९६ मिनट ब्राह्ममुहुरत का काल है । इसके पूर्वार्ध में कंठस्थीकरण की शक्ति अधिक होती है । इसके उत्तराद्ध में चिंतन और मनन की शक्ति अधिक होती है । इसलिए जो भी बातें हमें कंठस्थ करनी है, वह ब्रह्ममुहूर्त के पूर्वार्ध में करनी चाहिए । जिस विषय को हम अच्छे से समझना चाहते हैं और जिसे हम कठिन मानते हैं उसके ऊपर ब्रह्ममुहूर्त के उत्तरार्ध में मनन और चिंतन करना चाहिए । ऐसा करने से कम समय में और कम परिश्रम से अधिक अच्छी तरह से ज्ञानार्जन होता है । यह तो हुई ब्रह्मुहूर्त की बात । परंतु सामान्य रूप से दिन में प्रात: काल ६:०० से १०:०० बजे तक और सायंकाल भी ६:०० से १०:०० बजे तक का समय अध्ययन के लिए उत्तम होता है। मध्यान्ह भोजन के बाद के दो प्रहर अध्ययन के लिए उपयुक्त नहीं हैं । इसका कारण बहुत सरल है, भोजन के बाद पाचन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है । उस समय यदि हम अध्ययन करेंगे तो उर्जा विभाजित हो जाएगी और न अध्ययन ठीक से होगा, न पाचन ठीक से होगा, यह तो दोनों ओर से नुकसान है, इसलिए दोनों समय भोजन के बाद अध्ययन नहीं करना चाहिए । भोजन के बाद तो शारीरिक श्रम भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से पाचन और विश्राम में उर्जा विभाजित होती है और शरीर का स्वास्थ्य खराब होता है । |
− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | अन्य अनेक बातों की तरह अध्ययन-अध्यापन के | |
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− | समय में भी अव्यवस्था निर्माण हुई है । इसके कारण और | |
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− | परिणाम क्या हैं, यह तो हम बाद में देखेंगे परंतु प्रारंभ में | |
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− | उचित समय कौन सा है ? इसका ही विचार करेंगे । प्रथम | |
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− | हम विचार करेंगे कि दिन के २४ घंटे के समय में कौन सा | |
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− | समय अध्ययन करने के लिए अनुकूल है । हमारे सारे | |
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− | शाख्र, महात्मा और लोक परंपरा तीनों कहते हैं कि | |
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− | ब्राह्ममुहूर्त का समय चिंतन और मनन के लिए उपयुक्त है । | |
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− | सूर्योदय के पूर्व ४ घटिका ब्राह्ममुहूर्त का समय दर्शाती है । | |
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− | आज की काल गणना के अनुसार एक घटिका २४ मिनट | |
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− | की होती है । अर्थात् सूर्योदय से पूर्व ९६ मिनट ब्राह्ममुह्ूर्त | |
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− | का काल है । इसके पूर्वार्ध में कंठस्थीकरण की शक्ति | |
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− | अधिक होती है । इसके उत्तराद्ध में चिंतन और मनन की | |
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− | शक्ति अधिक होती है । इसलिए जो भी बातें हमें कंठस्थ | |
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− | करनी है, वह ब्रह्ममुहूर्त के पूर्वार्ध में करनी चाहिए । जिस | |
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− | विषय को हम अच्छे से समझना चाहते हैं और जिसे हम | |
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− | कठिन मानते हैं उसके ऊपर ब्रह्ममुहूर्त के उत्तरार्ध में मनन | |
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− | और चिंतन करना चाहिए । ऐसा करने से कम समय में और | |
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− | कम परिश्रम से अधिक अच्छी तरह से ज्ञानार्जन होता है । | |
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− | प्रात: काल ६:०० से १०:०० बजे तक और सायंकाल भी | |
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− | उत्तम होता है। मध्यान्ह भोजन के बाद के दो प्रहर | |
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− | अध्ययन के लिए उपयुक्त नहीं हैं । इसका कारण बहुत | |
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− | सरल है, भोजन के बाद पाचन के लिए ऊर्जा की | |
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− | आवश्यकता होती है । उस समय यदि हम अध्ययन करेंगे | |
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− | तो उर्जा विभाजित हो जाएगी और न अध्ययन ठीक से | |
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− | होगा, न पाचन ठीक से होगा, यह तो दोनों ओर से | |
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− | नुकसान है, इसलिए दोनों समय भोजन के बाद अध्ययन | |
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− | नहीं करना चाहिए । भोजन के बाद तो शारीरिक श्रम भी | |
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− | नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से पाचन और | |
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