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| ==== ४. कृतज्ञता और उदारता ==== | | ==== ४. कृतज्ञता और उदारता ==== |
− | कहीं भी किसी से कुछ सहायता प्राप्त हुई तो कृतज्ञता का अनुभव करना चाहिये । आजकल कृतज्ञता बहुत कृत्रिम उपचार का विषय बन गई है । बात बात में थैन्क्यू, प्लीज | + | कहीं भी किसी से कुछ सहायता प्राप्त हुई तो कृतज्ञता का अनुभव करना चाहिये । आजकल कृतज्ञता बहुत कृत्रिम उपचार का विषय बन गई है । बात बात में थैन्क्यू, प्लीज और सॉरी कहने की प्रथा बन गई है । किसी बच्चे को खिडकी बन्द करने को कहा और उसने वह काम किया तो थैन्क्यू, होटेल में बैरेने पानी लाकर दिया तो थैन्क्यू, पिताजी ने खिलौना लाकर दिया तो थैन्क्यू । बात बात में थैन्क्यू कहना सिखाते हैं । इसी प्रकार से विद्यार्थी को ग्रन्थालय से कुछ लाने को कहना है तो प्लीज, प्रश्न का उत्तर देने को कहना है तो प्लीज, खडे होकर पास आने के लिये कहना है तो प्लीज । मुखर होकर सर्वत्र इन शब्दों का उच्चारण करने से वह अभिव्यक्ति सतही रह जाती है, केवल उपचार मात्र बन जाती है, भावना नहीं बनती । वास्तविक कृतज्ञता की भावना आदर, सम्मान, निःस्वार्थता, बिना स्वार्थ के सहायता, बिना स्वार्थ के दूसरों की सुरक्षा करने में प्रकट होती है । वह जीवन का स्थायी भाव बनती है। किसी का भी अपने लाभ के लिये उपयोग नहीं करने में प्रकट होती है । |
− | और सॉरी कहने की प्रथा बन गई है । किसी बच्चे को खिडकी बन्द करने को कहा और उसने वह काम किया तो थैन्क्यू, होटेल में बैरेने पानी लाकर दिया तो थैन्क्यू, पिताजी | |
− | ने खिलौना लाकर दिया तो थैन्क्यू । बात बात में थैन्क्यू कहना सिखाते हैं । इसी प्रकार से विद्यार्थी को ग्रन्थालय से कुछ लाने को कहना है तो प्लीज, प्रश्न का उत्तर देने को कहना है तो प्लीज, खडे होकर पास आने के लिये कहना है तो प्लीज । मुखर होकर सर्वत्र इन शब्दों का उच्चारण करने से वह अभिव्यक्ति सतही रह जाती है, केवल उपचार मात्र बन जाती है, भावना नहीं बनती । | |
− | वास्तविक कृतज्ञता की भावना आदर, सम्मान, निः्स्वार्थता, | |
− | बिना स्वार्थ के सहायता, बिना स्वार्थ के दूसरों की सुरक्षा | |
− | करने में प्रकट होती है । वह जीवन का स्थायी भाव बनती | |
− | है। किसी का भी अपने लाभ के लिये उपयोग नहीं करने | |
− | में प्रकट होती है । | |
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− | इसी प्रकार से उदारता क्षमाशीलता में प्रकट होती है । | + | इसी प्रकार से उदारता क्षमाशीलता में प्रकट होती है । दोष, गलतियाँ, अपराध, कृतघ्नता आदि को माफ कर देना उदारता है । परन्तु इसमें विवेक भी आवश्यक है । मेरे प्रति अपराध तो माफ करना चाहिये परन्तु किसी दुर्बल को परेशान किया तो उसे दण्ड भी देना चाहिये । दोषों और अवगुणों को दूर करने हेतु अवश्य प्रवृत्त होना चाहिये । परन्तु वह तिरस्कारपूर्वक नहीं अपितु उदारतापूर्वक, दयापूर्वक होना चाहिये । स्वकेन्द्री बनकर व्यवहार नहीं करना, दूसरे का विचार करना ही सामाजिकता है। विद्यालय की छोटी मोटी स्चनाओं में तथा व्यवहारों में यह |
− | दोष, गलतियाँ, अपराध, कृतघ्नता आदि को माफ कर देना | + | सब सिखाने की दक्षता बरतना चाहिये । यही नहीं तो गणित, भाषा, इतिहास आदि के पाठों में भी सामाजिकता अनुस्यूत होनी चाहिये । तत्त्वज्ञान को तो सामाजिकता का सन्दर्भ लेकर ही विकसित होना चाहिये । योग के प्रथम अंग यम के पाँच आयाम सामाजिकता की ही शिक्षा देते हैं और |
− | उदारता है । परन्तु इसमें विवेक भी आवश्यक है । मेरे प्रति | + | उन्हें सार्वभौम महाव्रत कहते हैं यह ध्यान देने योग्य बात है । |
− | अपराध तो माफ करना चाहिये परन्तु किसी दुर्बल को | |
− | परेशान किया तो उसे दण्ड भी देना चाहिये । दोषों और | |
− | अवगुणों को दूर करने हेतु अवश्य प्रवृत्त होना चाहिये । | |
− | परन्तु वह तिरस्कारपूर्वक नहीं अपितु उदारतापूर्वक, | |
− | दयापूर्वक होना चाहिये । स्वकेन्द्री बनकर व्यवहार नहीं | |
− | करना, दूसरे का विचार करना ही सामाजिकता है। | |
− | विद्यालय की छोटी मोटी स्चनाओं में तथा व्यवहारों में यह | |
− | सब सिखाने की दक्षता बरतना चाहिये । यही नहीं तो | |
− | गणित, भाषा, इतिहास आदि के पाठों में भी सामाजिकता | |
− | अनुस्यूत होनी चाहिये । तत्त्वज्ञान को तो सामाजिकता का | |
− | सन्दर्भ लेकर ही विकसित होना चाहिये । योग के प्रथम अंग | |
− | यम के पाँच आयाम सामाजिकता की ही शिक्षा देते हैं और | |
− | उन्हें सार्वभौम महाव्रत कहते हैं यह ध्यान देने योग्य बात | |
− | है । | |
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− | ५. सामाजिक समरसता
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| + | ==== ५. सामाजिक समरसता ==== |
| सामाजिकता का यह परम साध्य है । हलुवा बनता है | | सामाजिकता का यह परम साध्य है । हलुवा बनता है |
− | तब उसमें आटा, घी, गुड और पानी होते हैं, उन सबके | + | तब उसमें आटा, घी, गुड और पानी होते हैं, उन सबके गुण और विशेषतायें भी पहचाने जाते हैं, यहाँ तक कि घी गाय का है कि भैस का, आटा गेहूँ का है या मूँग का, गुड देशी है कि रासायणयुक्त यह सब पहचाना जाता है परन्तु ये चीजें एक दूसरे से अलग नहीं की जा सकतीं, किंबहुना एक दूसरे में उचित प्रक्रिया से समरस होने पर ही हलवा बनता है। विभिन्न पदार्थों को उचित मात्रा में, उचित प्रक्रिया अपनाकर समरस नहीं किया जाता तब तक कोई पदार्थ नहीं बनता, फिर वह खाद्य पदार्थ हो या और कोई । |
− | गुण और विशेषतायें भी पहचाने जाते हैं, यहाँ तक कि घी | |
− | गाय का है कि भैस का, आटा गेहूँ का है या मूँग का, गुड | |
− | देशी है कि रासायणयुक्त यह सब पहचाना जाता है परन्तु ये | |
− | चीजें एक दूसरे से अलग नहीं की जा सकतीं, किंबहुना एक | |
− | दूसरे में उचित प्रक्रिया से समरस होने पर ही हलवा बनता | |
− | है। विभिन्न पदार्थों को उचित मात्रा में, उचित प्रक्रिया | |
− | अपनाकर समरस नहीं किया जाता तब तक कोई पदार्थ नहीं | |
− | बनता, फिर वह खाद्य पदार्थ हो या और कोई । | |
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− | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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− | समाज को भी एकसंध बनाने के लिये समरसता की | + | समाज को भी एकसंध बनाने के लिये समरसता की आवश्यकता होती है । समाज में भेद तो होते ही हैं । भेद गुणों और विशेषताओं को दशतते हैं । इनके मिलाप से ही सामाजिक रचनायें सुन्दर बनती हैं । इन रचनाओं में सम्मान और आत्मीयता की, सुरक्षा और सम्हाल की प्रक्रिया अपनाने से समरसता निर्माण होती है । |
− | आवश्यकता होती है । समाज में भेद तो होते ही हैं । भेद | |
− | गुणों और विशेषताओं को दशतते हैं । इनके मिलाप से ही | |
− | सामाजिक रचनायें सुन्दर बनती हैं । इन रचनाओं में सम्मान | |
− | और आत्मीयता की, सुरक्षा और सम्हाल की प्रक्रिया | |
− | अपनाने से समरसता निर्माण होती है । | |
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− | उदाहरण के लिये हमारे गाँवों में जब किसी के भी घर | + | उदाहरण के लिये हमारे गाँवों में जब किसी के भी घर में विवाह होता था तो मंडप के लिये सुधार का, मटकी के लिये कुम्हार का, वस्त्र के लिये दर्जी का, न्यौते के लिये नायी का, वाद्यों के लिये ढोली आदि का प्रथम सम्मान किया जाता था, उनके द्वारा निर्मित और प्रदत्त पदार्थ का पूजन किया जाता था, दानदक्षिणा वस्त्राभोजन से उन्हें सन्तुष्ट किया जाता था और बाद में अन्य कार्य किये जाते थे । किसी के घर मृत्यु हो तब ये ही सब अपने द्वारा निर्मित साधन लेकर उपस्थित हो जाते थे और उसके पैसे नहीं माँगते थे । समरसता हेतु अत्यन्त बुद्धिमानी से की गई ये रचनायें हैं । इसीसे भाईचारा बना रहता है, सबको अपनी उपयोगिता लगती है। अपने जीवन की सार्थकता का अनुभव होता हैं । इससे ही वास्तविक सुख मिलता है । इसके चलते हिंसा कम होती है, दंगे फसाद कम होते हैं । व्यक्तिगत स्तर पर सृजनशीलता का विकास होता है और समाज वैभवशाली बनता है । |
− | में विवाह होता था तो मंडप के लिये सुधार का, मटकी के | |
− | लिये कुम्हार का, वख््र के लिये दर्जी का, न्यौते के लिये | |
− | नायी का, वाद्यों के लिये ढोली आदि का प्रथम सम्मान | |
− | किया जाता था, उनके द्वारा निर्मित और प्रदत्त पदार्थ का | |
− | पूजन किया जाता था, दानदक्षिणा वस््रभोजन से उन्हें सन्तुष्ट | |
− | किया जाता था और बाद में अन्य कार्य किये जाते थे । | |
− | किसी के घर मृत्यु हो तब ये ही सब अपने द्वारा निर्मित | |
− | साधन लेकर उपस्थित हो जाते थे और उसके पैसे नहीं | |
− | माँगते थे । समरसता हेतु अत्यन्त बुद्धिमानी से की गई ये | |
− | रचनायें हैं । इसीसे भाईचारा बना रहता है, सबको अपनी | |
− | उपयोगिता लगती है। अपने जीवन की सार्थकता का | |
− | अनुभव होता हैं । इससे ही वास्तविक सुख मिलता है । | |
− | इसके चलते हिंसा कम होती है, दंगे फसाद कम होते हैं । | |
− | व्यक्तिगत स्तर पर सृजनशीलता का विकास होता है और | |
− | समाज वैभवशाली बनता है । | |
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− | वर्तमान में हमने दीर्घदृष्टि और व्यापकदूष्टि के अभाव | + | वर्तमान में हमने दीर्घदृष्टि और व्यापकदूष्टि के अभाव में काम करने वाले और काम करवाने वाले के दो वर्ग निर्माण किये हैं और काम करनेवालों को नीचा और करवाने वालों को ऊँचा मानना शुरू किया है । साथ ही काम करने वालों के स्थान पर यन्त्रों को अपनाना शुरू किया है। परिणाम स्वरूप लोगों के पास काम करने के अवसर भी कम हो रहे हैं, काम करवाने वाले संख्या में कम ही होते हैं और अभाव और वर्गभेद बढ़ते ही जाते हैं । किस बात के लिये किसका सम्मान करें, किस बात के लिये किसकी उपयोगिता है यही प्रश्न है । सबको टिकने के लिये स्पर्धा ही करनी पड़ती है, संघर्ष ही करना पडता है । इसमें समरसता कैसे होगी ? बिना समरसता के सुख कहाँ ? सुख की आश्वस्ति के बिना संस्कृति पनप नहीं सकती । |
− | में काम करने वाले और काम करवाने वाले के दो वर्ग | |
− | निर्माण किये हैं और काम करनेवालों को नीचा और | |
− | करवाने वालों को ऊँचा मानना शुरू किया है । साथ ही | |
− | काम करने वालों के स्थान पर यन्त्रों को अपनाना शुरू | |
− | किया है। परिणाम स्वरूप लोगों के पास काम करने के | |
− | अवसर भी कम हो रहे हैं, काम करवाने वाले संख्या में कम | |
− | ही होते हैं और अभाव और वर्गभेद बढ़ते ही जाते हैं । | |
− | किस बात के लिये किसका सम्मान करें, किस बात के लिये | |
− | किसकी उपयोगिता है यही प्रश्न है । सबको टिकने के लिये | |
− | स्पर्धा ही करनी पड़ती है, संघर्ष ही करना पडता है । इसमें | |
− | समरसता कैसे होगी ? बिना समरसता के सुख कहाँ ? सुख | |
− | की आश्वस्ति के बिना संस्कृति पनप नहीं सकती । | |
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