सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक पढाते क्यों नहीं है इसका भी ठीक से विचार करना चाहिये । यदि निदान ठीक करेंगे तो उपाय भी ठीक कर पायेंगे।
सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक पढाते क्यों नहीं है इसका भी ठीक से विचार करना चाहिये । यदि निदान ठीक करेंगे तो उपाय भी ठीक कर पायेंगे।
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1. आज के शैक्षिक वातावरण में प्रेरणा का तत्त्व गायब है। कोई कहे या न कहे, कोई देखे या न देखे, पुरस्कार या प्रशंसा मिले या न मिले, कोई दण्ड दे या न
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1. आज के शैक्षिक वातावरण में प्रेरणा का तत्त्व गायब है। कोई कहे या न कहे, कोई देखे या न देखे, पुरस्कार या प्रशंसा मिले या न मिले, कोई दण्ड दे या न दे अपना कर्तव्य है इसलिये पढाना ही चाहिये ऐसी भावना बनने के लिये वातावरण चाहिये । सामने आदर्श चाहिये, शिक्षा मिली हुई होनी चाहिये, आज ऐसी शिक्षा नहीं है। कर्तव्यपालन करना चाहिये, स्वेच्छा से करना चाहिये, अपने कारण से किसी का अकल्याण नहीं होना चाहिये ऐसी शिक्षा किसी भी स्तर पर, किसी भी प्रकार से नहीं दी जाती । समाज में अपने से बडे, अपने अधिकारी कर्तव्यपालन कर रहे हैं ऐसा प्रेरणादायक चरित्र कहीं दिखाई नहीं देता, सर्वत्र वातवरण ही अपने लाभ का विचार करने का है। शिक्षाक्षेत्र में प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक तो बहुत छोटे हैं । अन्य सरकारी विभागों में भी वातावरण तो ऐसा ही है । शिक्षा के उपर के स्तरों पर भी वातावरण तो ऐसा ही है । सर्वत्र सबका व्यवहार ऐसा है इसलिये इन शिक्षकों का व्यवहार भी ऐसा ही है ।
कानून, सुविधा, सामग्री, fem, (२) पढ़ाने न पढ़ाने का मूल्यांकन करने की पद्धति अत्यन्त
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