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6. व्यवस्थाओं के विषय में भी गुरुकुल के समान अलग ही पद्धति से विचार किया जा सकता है। उदाहरण के लिये एक एक शिक्षक के साथ दस-बीस-पचीस विद्यार्थी रहते हों, वे सब भिन्न भिन्न आयु के भी हों और पूरा चौबीस घण्टों का जीवन एक बड़े परिवार की तरह रहते हों ऐसी व्यवस्था बनाई जा सकती है । सारे काम शिक्षक, उनकी पत्नी, विद्यार्थी सब मिलकर करते हों, अध्ययन भी सब कामों में एक काम हो ऐसी व्यवस्था बनाई जा सकती है।  
 
6. व्यवस्थाओं के विषय में भी गुरुकुल के समान अलग ही पद्धति से विचार किया जा सकता है। उदाहरण के लिये एक एक शिक्षक के साथ दस-बीस-पचीस विद्यार्थी रहते हों, वे सब भिन्न भिन्न आयु के भी हों और पूरा चौबीस घण्टों का जीवन एक बड़े परिवार की तरह रहते हों ऐसी व्यवस्था बनाई जा सकती है । सारे काम शिक्षक, उनकी पत्नी, विद्यार्थी सब मिलकर करते हों, अध्ययन भी सब कामों में एक काम हो ऐसी व्यवस्था बनाई जा सकती है।  
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7. आजकल छात्रावासों में विद्यार्थी केवल पढेंगे, खेलेंगे
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7. आजकल छात्रावासों में विद्यार्थी केवल पढेंगे, खेलेंगे और अन्य शैक्षिक गतिविधियों में सहभागी बनेंगे परन्तु और कोई काम नहीं करेंगे ऐसी अपेक्षा की जाती है। उनके निवास के कक्ष की स्वच्छता, उनके अपने कपड़ों की धुलाई, बर्तनों की सफाई आदि के लिये नौकर होंगे, भोजन बनाने आदि में सहभागी होना तो बहुत दूर की बात है । इन कामों को हेय मानने की यह प्रवृत्ति बहुत हानिकारक है।
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====== एक समझने लायक उदाहरण ======
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एक उदाहरण समझने लायक है। मजदूरी करना ही जिनका स्वाभाविक जीवनक्रम है ऐसी एक जाति का मुखिया चुनाव जीतकर विधायक बन गया । उसकी जाति में गरीबी और निरक्षरता की मात्रा बहुत अधिक थी। उसे लगा कि अपनी जाति के लडके और लडकियों के लिये शिक्षा का प्रबन्ध करना चाहिये । इसलिये उसने दो छात्रावास बनाये और एक विद्यालय बनाया। एक छात्रावास लडकियों के लिये और दूसरा लडकों के लिये था । वे छात्रावास सारी सुविधाओं से पूर्ण थे । कपडे धोने के लिये नौकर, सोने के लिये पलंग, भोजन के लिये स्टील के बर्तन और कुर्सी मेज । विद्यार्थियों को केवल अपने निवासकक्ष की स्वच्छता और अपने भोजन के बर्तनों की सफाई करने का ही काम था । भोजन, आवास, शिक्षा सब निःशुल्क था । ये सारे लडके और लडकियाँ ऐसे परिवारों से थे जहाँ एक छोटे कमरे में सात आठ लोग रहते थे, रूखा सूखा भोजन करते थे, कभी दान में मिले किसी के पुराने कपडे भी पहनते थे और सोने के लिये टाट या दरी ही मिलती थी। छात्रावास के जीवन का वैभव भोगकर एक दो वर्षों में तो सबकी आदतें ऐसी बिगड गई कि वे अब घर जाना नहीं चाहते थे, अपने माँबाप से सम्बन्ध बताने में लज्जा का अनुभव करते थे और छात्रावास में भी वे कहने लगे कि अब कक्ष की और बर्तनों की सफाई के लिये भी नौकर हो तो अच्छा है । उस विधायक को बार बार मन में प्रश्न उठ रहा था कि उसने अच्छा काम किया या बुरा, अपनी जाति के लडके-लडकियों का भला किया या बुरा । वास्तव में वह भला करना चाहता था परन्तु शिक्षा विषयक दृष्टि के अभाव में उसने सबको हानि पहुँचाई ।
    
है। सायंकाल खेलने के बाद यदि छः बजे वापस... अधिक प्रचलन हो यह हितकारी है ।
 
है। सायंकाल खेलने के बाद यदि छः बजे वापस... अधिक प्रचलन हो यह हितकारी है ।
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