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6. आध्यात्मिक केन्द्रों में, मठों में, वेदाध्ययन केन्द्रों में जो विद्यालय चलते हैं वे आवासीय ही होते हैं । कई शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय भी अनिवार्य रूप से आवासीय होते हैं।
 
6. आध्यात्मिक केन्द्रों में, मठों में, वेदाध्ययन केन्द्रों में जो विद्यालय चलते हैं वे आवासीय ही होते हैं । कई शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय भी अनिवार्य रूप से आवासीय होते हैं।
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===== 2. स्वरूप =====
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विभिन्न प्रयोजनों से चलने वाले आवासीय विद्यालयों के स्वरूप भी भिन्न भिन्न होते हैं ।
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1. एक प्रकार ऐसा होता है जहाँ विद्यालय और आवास एक दूसरे से भिन्न व्यवस्था में चलते हैं। एक ही संस्था दोनों को चलाती है परन्तु विद्यालय मुख्याध्यापक या प्रधानाचार्य के द्वारा और छात्रावास गृहपति के द्वारा संचालित होता है । एक विद्यालय में पढने वाले एक ही छात्रावास में रहते हैं।
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2. कहीं विद्यालय और छात्रावास भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न व्यवस्थाओं में होते हैं । विद्यालय केवल विद्यालय होता है, छात्रावास केवल छात्रावास होता है। दोनों का एकदूसरे के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता है । एक छात्रावास में भिन्न भिन्न विद्यालयों के माध्यमिक, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय आदि सभी स्तरों के विद्यार्थी रहते हैं । एक ही विद्यालय में पढने वाले विद्यार्थी भिन्न भिन्न छात्रावासों में रहते हैं।
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3. विद्यालय और छात्रावास एक ही व्यक्ति के नियन्त्रण में चलते हैं और वह व्यक्ति होता है मुख्याध्यापक अथवा प्रधानाचार्य । इसमें एक ही विद्यालय, एक ही छात्रावास और शत प्रतिशत विद्यार्थी छात्रावास में रहने वाले होते हैं । ये २४ घण्टे के विद्यालय होते हैं और सही अर्थ में आवासी विद्यालय कहे जायेंगे।
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सही अर्थ में आवासीय विद्यालय की अधिक चर्चा करना उपयुक्त रहेगा।
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====== आवासीय विद्यालय ======
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ये विद्यालय वास्तव में हमें प्राचीन गुरुकुलों का स्मरण करवाने वाले हैं, जहाँ पूर्ण समय विद्यार्थी अपने अध्यापकों के साथ रहते हैं। परन्तु गुरुकुल की सही संकल्पना ज्ञात न होने के कारण से आज वे उनसे भिन्न रूप में चलते हैं।
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====== आज वे कैसे चलते हैं ? ======
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1. इन विद्यालयों की दिनचर्या बहुत आदर्श मानी जाय ऐसी होती है। प्रातः जल्दी जगना, प्रातःप्रार्थना, योगाभ्यास, व्यायाम आदि करना, अल्पाहार और गृहपाठ करना, ग्यारह बजे विद्यालय जाना, बीच में भोजन की छुट्टी होना, पुनः विद्यालय जाना, सायंकाल मैदान में खेलना, सायंप्रार्थना करना, भोजन करना, स्वाध्याय या गृहपाठ करना और सो जाना यही दिनक्रम रहता है। रविवार को छुट्टी रहती है । उस दिन की दिनचर्या कुछ विशेष रहती है। अन्य विद्यालयों की तरह ही परीक्षायें और अवकाश रहते हैं जब विद्यार्थी घर जाते हैं ।
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परन्तु इन विद्यालयों में भारतीय पद्धति से शिक्षा की अनेक सम्भावनायें हैं जिनका ज्ञान होने से उनको वास्तविक रूप दिया जा सकता है।
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1. ये चौबीस घण्टे के विद्यालय हैं। अर्थात् चौबीस घण्टे का जीवन ही शिक्षा का विषय है, वही पाठ्यक्रम है । इस बात को ध्यान में रखकर नियोजन किया जा सकता है। प्रातःकाल जगने से रात्रि को सोने तक की सारी बातें क्रियात्मक, भावात्मक और ज्ञानात्मक पद्धति से सिखाई जा सकती हैं।
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2. इन विद्यालयों की दिनचर्या प्रकृति के नियमानुसार
    
है। सायंकाल खेलने के बाद यदि छः बजे वापस... अधिक प्रचलन हो यह हितकारी है ।
 
है। सायंकाल खेलने के बाद यदि छः बजे वापस... अधिक प्रचलन हो यह हितकारी है ।
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