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| | ==== आज अनेक स्वरूपों में संस्कृतिविहीन समृद्धि प्राप्त करने के प्रयास दिख रहे हैं. . . ==== | | ==== आज अनेक स्वरूपों में संस्कृतिविहीन समृद्धि प्राप्त करने के प्रयास दिख रहे हैं. . . ==== |
| − | ०... जब रासायनिक खाद का और यंत्रों का प्रयोग होता
| + | * जब रासायनिक खाद का और यंत्रों का प्रयोग होता है तब अधिक फसल तो प्राप्त होती है परन्तु भूमि का प्रदूषण होता है और ऐसा अनाज खाने वालों का स्वास्थ्य खराब होता है । यह समय के बीतते भूमि को बंजर बनाती है और प्रजा को दुर्बल बनाकर नाश की ओर ले जाती है । यह संस्कृतिविहीन समृद्धि है । |
| | + | * जब यन्त्रआधारित बड़े बड़े कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन होता है तब उत्पादन अधिक होता है, कारखाने के मालिक को समृद्धि प्राप्त होती है परन्तु अनेक लोग बेरोजगार हो जाते हैं अथवा कारखानों में मजदूर बनने के लिये मजबूर बन जाते हैं, उनकी आर्थिक स्वतन्त्रता का नाश होता है । यह संस्कृतिविहीन समृद्धि का लक्षण है । |
| | + | * केन्द्रीकृत उत्पादन के कारण से परिवहन की व्यवस्था करनी पड़ती है, सड़कें बनानी पड़ती हैं, सड़कों के लिये खेतों का बलिदान दिया जाता है, खेतों के कम होने से अनाज का उत्पादन कम होता है, किसान और प्रजा दोनों परेशान होते हैं, विज्ञापन उद्योग में वृद्धि होती है, विज्ञापनों का आधार झूठ ही होता है। ये सब संस्कृति विहीनता के लक्षण हैं। यह विनाशक अर्थतन्त्र है जो गिनेचुने लोगों को समृद्ध, अधिकांश लोगों को दृरिद्रि बनाता है और अन्ततोगत्वा विनाश की ओर ले जाता है । |
| | + | * संस्कृतिविहीन समृद्धि दम्भ, अभिमान, मदोन्मत्तता, शोषण आदि में प्रवृत्त होती है । महानगरों की सडकों पर महँगी कारों या मोटरसाइकलों पर घूमते हुए, युवतियों को छेडते हुए, शराब पीकर उधम मचाते हुए, फूटपाथ पर सोने वालों को कुचलते हुए निठल्ले युवक समृद्ध पिताओं के पुत्र होते हैं जो आसुरी समृद्धि के जीतेजागते नमूने हैं । |
| | + | * अर्थात् आसुरी समृद्धि स्वयं का तथा दूसरों का नाश करती है । |
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| − | है तब अधिक फसल तो प्राप्त होती है परन्तु भूमि का | + | ==== समृद्धि के बिना संस्कृति की रक्षा कैसे नहीं हो सकती ? ==== |
| | + | * मनुष्य को खाने के लिये अन्न नहीं, पहनने के लिये वस्त्र नहीं हो तो वह अपने जीवित की रक्षा कैसे कर सकेगा ? उसे किसी न किसी प्रकार से अन्न और वस्त्र तो प्राप्त करने ही होंगे । वह नीति और संस्कारों को भी छोडने के लिये बाध्य हो ही जायेगा । जीवन बचाना तो कोई अपराध नहीं है । |
| | + | * बडे बडे कारखानों में यांत्रिकीकरण होता है । एक नया यंत्र आता है और सैंकडो कर्मचारी नौकरी में से मुक्त कर दिये जाते हैं । उनके पत्नी और बच्चों का पेट भरने के लिये वे यदि चोरी या डकैती करते हैं तो उसका पाप उन्हें नहीं अपितु कारखाने के मालिकों को ही लगेगा । अर्थ के अभाव में चोरी करने वाले नीति की रक्षा कैसे करेंगे ? |
| | + | * अनुचित अर्थव्यवस्था के कारण लोगों को दिन में बारह घण्टे अथार्जिन हेतु काम करना पडता है । उसके बाद भी मालिकों की हाँजी हाँजी और खुशामद करनी पड़ती है । उनकी अनैतिक प्रवृत्तियों की साझेदारी भी करनी पड़ती है । दिनभर काम करने के बाद स्वाध्याय, सत्संग, सत्प्रवृत्ति वे कैसे करेंगे ? बच्चों के चस्त्रि की चिन्ता कैसे करेंगे ? ऐसी स्थिति में संस्कृति की रक्षा कैसे होगी ? |
| | + | तात्पर्य यह है कि आर्थिक निश्चिन्तता नहीं रही तो संस्कृति की रक्षा सम्भव ही नहीं है। अतः समाज को समृद्धि और संस्कृति दोनों की एक साथ चिन्ता करनी चाहिये । यह चिन्ता करने का दायित्व समाज के सभी घटकों का है । इस दायित्व का हृदय से स्वीकार करना सामाजिक दायित्वबोध है । |
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| − | प्रदूषण होता है और ऐसा अनाज खाने वालों का
| + | ==== समाज के दायित्वबोध की शिक्षा के पहलू ==== |
| | + | विद्यालयों को अपने विद्यार्थियों को. सामाजिक दायित्वबोध की शिक्षा देनी चाहिए। सामाजिक दायित्वबोध की शिक्षा के पहलू इस प्रकार हैं.... |
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| − | स्वास्थ्य खराब होता है । यह समय के बीतते भूमि
| + | (१) सारे मनुष्य एक हैं, समान हैं, समान रूप से स्नेह और आदर के पात्र हैं ऐसा भाव जागय्रत करना प्रमुख बात है । इसे परिवारभावना कहते हैं, आत्मीयता कहते हैं । मिलबाँटकर उपभोग करने की वृत्ति और प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिले, ऐसा करने की प्रेरणा मिले. ऐसे कार्यक्रम और गतिविधियों का आयोजन करना चाहिये । ऐसी कहानियाँ, चरित्रकथन, सत्यघटनाओं का वृत्त विद्यार्थियों को बताना चाहिये । |
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| − | को बंजर बनाती है और प्रजा को दुर्बल बनाकर नाश | + | (२) समाज में तरह तरह के मनुष्य होते हैं । सब एकदूसरे से भिन्न होते हैं । सबके स्वभाव, रूपरंग, कौशल, ज्ञान, गुणदोष भिन्न भिन्न होते हैं । इन भेदों के कारण सुन्दरता निर्माण होती है । भेदों को ऊँचनीच न मानकर वैविध्य और सुन्दरता मानना सिखाना चाहिये । भेदभाव न पनपे यह देखना चाहिये । जो जैसा है वैसा ही स्नेह का पात्र है, आत्मीय है ऐसा भाव जागृत करना चाहिये । यह सामाजिक समरसता है । समरसता से ही समाज में सुख, शान्ति, सुरक्षा, निश्चितता पनपते हैं, संस्कृति की रक्षा होती है और समृद्धि बढती है । |
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| − | की ओर ले जाती है । यह संस्कृतिविहीन समृद्धि है ।
| + | (३) समाज में रहना मनुष्य के लिये स्वाभाविक भी है और अनिवार्य भी । स्वाभाविक इसलिये कि स्नेह, प्रेम, मैत्री आदि के बिना जीवन उसके लिये दूभर बन जाता है। दूसरों के साथ संवाद या विसंवाद, चर्चा, विचारविमर्श, आनन्दुप्रमोद, सहवास के बिना जीवन असह्य बन जाता है। परमात्माने अपने आपको स्त्रीधारा और पुरुषधारा में विभाजित किया परन्तु दोनों पुनः एक हों इस हतु से दोनों के बीच ऐसा आकर्षण निर्माण किया कि वे विविध उपायों से एक होने के लिये, साथ रहने के लिये प्रवृत्त होते हैं । इसीमें से विवाहसंस्था निर्माण हुई । विवाहसंस्था कुटुम्बसंस्था का केन्द्र बनी । आगे बढ़ते हुए मातापिता और सन्तान, भाईबहन तथा आगे सगेसम्बन्धी, कुट्म्बीजन आदि के रूप में विस्तार होता गया । इसमें आत्मीयता और स्नेह तथा आदर्युक्त लेनदेन, परस्परावलम्बन बनता... गया, बढ़ता. गया ।.. परिवारभावना समाजव्यवस्था का आधार बनी । समाज के सभी घटकों के साथ, सभी व्यवस्थाओं में परिवारभावना को बनाये रखना सभी घटकों का सामाजिक दायित्व है । यह विषय विद्यार्थियों तक पहुँचना चाहिये । |
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| − | ०... जब यन्त्रआधारित बड़े बड़े कारखानों में वस्तुओं का
| + | (४) समाज में कोई भी व्यक्ति अकेले ही अपनी सारी व्यवस्थाओं की पूर्ति नहीं कर सकता । स्वभाव से ही समाज के सभी घटक परस्परावलम्बी हैं । इस दृष्टि से विभिन्न व्यवसाय और समाज के पोषण और रक्षण की व्यवस्था हमारे पूर्व मनीषियों ने की है । हर युग में ऐसी परस्परावलम्बी व्यवस्था उस युग के मनीषियों को करनी ही होती है । परस्परावलम्बन की इस रचना में हरेक को अपना अपना काम निश्चित करना होता है । किसी को शिक्षक का, किसी को डॉक्टर का, किसी को दर्जी का, किसी को मोची का, |
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| − | उत्पादन होता है तब उत्पादन अधिक होता है,
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| − | कारखाने के मालिक को समृद्धि प्राप्त होती है परन्तु
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| − | अनेक लोग बेरोजगार हो जाते हैं अथवा कारखानों में
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| − | मजदूर बनने के लिये मजबूर बन
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| − | जाते हैं, उनकी आर्थिक स्वतन्त्रता का नाश होता
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| − | है । यह संस्कृतिविहीन समृद्धि का लक्षण है ।
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| − | ०... केन्द्रीकृत उत्पादन के कारण से परिवहन की व्यवस्था
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| − | करनी पड़ती है, सड़कें बनानी पड़ती हैं, सड़कों के
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| − | लिये खेतों का बलिदान दिया जाता है, खेतों के कम
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| − | होने से अनाज का उत्पादन कम होता है, किसान
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| − | और प्रजा दोनों परेशान होते हैं, विज्ञापन उद्योग में
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| − | वृद्धि होती है, विज्ञापनों का आधार झूठ ही होता
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| − | है। ये सब संस्कृति विहीनता के लक्षण हैं। यह
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| − | विनाशक अर्थतन्त्र है जो गिनेचुने लोगों को समृद्ध,
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| − | अधिकांश लोगों को दृरिद्रि बनाता है और
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| − | अन्ततोगत्वा विनाश की ओर ले जाता है ।
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| − | ०... संस्कृतिविहीन समृद्धि दम्भ, अभिमान, मदोन्मत्तता,
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| − | शोषण आदि में प्रवृत्त होती है । महानगरों की सडकों
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| − | पर महँगी कारों या मोटरसाइकलों पर घूमते हुए,
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| − | युवतियों को छेडते हुए, शराब पीकर उधम मचाते
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| − | हुए, फूटपाथ पर सोने वालों को कुचलते eu fag
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| − | युवक समृद्ध पिताओं के पुत्र होते हैं जो आसुरी
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| − | समृद्धि के जीतेजागते नमूने हैं ।
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| − | ०... अर्थात् आसुरी समृद्धि स्वयं का तथा दूसरों का नाश
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| − | करती है ।
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| − | समृद्धि के बिना संस्कृति की रक्षा
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| − | कैसे नहीं हो सकती ?
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| − | ०... मनुष्य को खाने के लिये अन्न नहीं, पहनने के लिये
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| − | वस्त्र नहीं हो तो वह अपने जीवित की रक्षा कैसे कर
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| − | सकेगा ? उसे किसी न किसी प्रकार से अन्न और
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| − | वस्त्र तो प्राप्त करने ही होंगे । वह नीति और संस्कारों
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| − | को भी छोडने के लिये बाध्य हो ही जायेगा । जीवन
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| − | बचाना तो कोई अपराध नहीं है ।
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| − | ०... बडे बडे कारखानों में यांत्रिकीकरण होता है । एक
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| − | नया यंत्र आता है और सैंकडो कर्मचारी नौकरी में से
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| − | मुक्त कर दिये जाते हैं । उनके पत्नी और बच्चों का
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| − | पेट भरने के लिये वे यदि चोरी या डकैती करते हैं तो
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| − | उसका पाप उन्हें नहीं अपितु कारखाने के मालिकों
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| − | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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| − | को ही लगेगा । अर्थ के अभाव में जैसा है वैसा ही स्नेह का पात्र है, आत्मीय है ऐसा
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| − | चोरी करने वाले नीति की रक्षा कैसे करेंगे ? भाव जागृत करना चाहिये । यह सामाजिक समरसता
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| − | ०... अनुचित अर्थव्यवस्था के कारण लोगों को दिन में है । समरसता से ही समाज में सुख, शान्ति, सुरक्षा,
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| − | बारह घण्टे अथार्जिन हेतु काम करना पडता है । उसके निश्चितता पनपते हैं, संस्कृति की रक्षा होती है और
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| − | बाद भी मालिकों की हाँजी हाँजी और खुशामद करनी समृद्धि बढती है ।
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| − | पड़ती है । उनकी अनैतिक प्रवृत्तियों की साझेदारी भी. (३) समाज में रहना मनुष्य के लिये स्वाभाविक भी है और
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| − | करनी पड़ती है । दिनभर काम करने के बाद स्वाध्याय, अनिवार्य भी । स्वाभाविक इसलिये कि स्नेह, प्रेम,
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| − | सत्संग, सत्प्रवृत्ति वे कैसे करेंगे ? बच्चों के चस्त्रि की मैत्री आदि के बिना जीवन उसके लिये दूभर बन जाता
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| − | चिन्ता कैसे करेंगे ? ऐसी स्थिति में संस्कृति की रक्षा है। दूसरों के साथ संवाद या विसंवाद, चर्चा,
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| − | कैसे होगी ? विचारविमर्श, आनन्दुप्रमोद, सहवास के बिना जीवन
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| − | तात्पर्य यह है कि आर्थिक निश्चिन्तता नहीं रही तो Ad बन जाता है। परमात्माने अपने आपको
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| − | संस्कृति की रक्षा सम्भव ही नहीं है। अतः समाज को स्त्रीधारा और पुरुषधारा में विभाजित किया परन्तु दोनों
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| − | समृद्धि और संस्कृति दोनों की एक साथ चिन्ता करनी पुनः एक हों इस हतु से दोनों के बीच ऐसा आकर्षण
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| − | चाहिये । यह चिन्ता करने का दायित्व समाज के सभी निर्माण किया कि वे विविध उपायों से एक होने के
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| − | घटकों का है । इस दायित्व का हृदय से स्वीकार करना लिये, साथ रहने के लिये प्रवृत्त होते हैं । इसीमें से
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| − | सामाजिक दायित्वबोध है । विवाहसंस्था निर्माण हुई । विवाहसंस्था कुटुम्बसंस्था
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| − | का केन्द्र बनी । आगे बढ़ते हुए मातापिता और
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| − | समाज के दायित्वबोध की शिक्षा के पहलू सन्तान, भाईबहन तथा आगे सगेसम्बन्धी, कुट्म्बीजन
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| − | विद्यालयों को अपने विद्यार्थियों को. सामाजिक आदि के रूप में विस्तार होता गया । इसमें आत्मीयता
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| − | दायित्वबोध की शिक्षा देनी alti सामाजिक और स्नेह तथा आदर्युक्त लेनदेन, परस्परावलम्बन
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| − | दायित्वबोध की शिक्षा के पहलू इस प्रकार हैं बनता... गया, बढ़ता. गया ।.. परिवारभावना
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| − | (१) सारे मनुष्य एक हैं, समान हैं, समान रूप से स्नेह समाजव्यवस्था का आधार बनी । समाज के सभी
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| − | और आदर के पात्र हैं ऐसा भाव जागय्रत करना प्रमुख घटकों के साथ, सभी व्यवस्थाओं में परिवारभावना को
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| − | बात है । इसे परिवारभावना कहते हैं, आत्मीयता बनाये रखना सभी घटकों का सामाजिक दायित्व है ।
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| − | कहते हैं । मिलबाँटकर उपभोग करने की वृत्ति और यह विषय विद्यार्थियों तक पहुँचना चाहिये ।
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| − | प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिले, ऐसा करने की प्रेरणा मिले. (४) समाज में कोई भी व्यक्ति अकेले ही अपनी सारी
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| − | ऐसे कार्यक्रम और गतिविधियों का आयोजन करना व्यवस्थाओं की पूर्ति नहीं कर सकता । स्वभाव से
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| − | चाहिये । ऐसी कहानियाँ, चरित्रकथन, सत्यघटनाओं ही समाज के सभी घटक परस्परावलम्बी हैं । इस
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| − | का वृत्त विद्यार्थियों को बताना चाहिये । दृष्टि से विभिन्न व्यवसाय और समाज के पोषण और
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| − | (२) समाज में तरह तरह के मनुष्य होते हैं । सब एकदूसरे रक्षण की व्यवस्था हमारे पूर्व मनीषियों ने की है । हर
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| − | से भिन्न होते हैं । सबके स्वभाव, रूपरंग, कौशल, युग में ऐसी परस्परावलम्बी व्यवस्था उस युग के
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| − | ज्ञान, गुणदोष भिन्न भिन्न होते हैं । इन भेदों के कारण मनीषियों को करनी ही होती है । परस्परावलम्बन की
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| − | सुन्दरता निर्माण होती है । भेदों को ऊँचनीच न इस रचना में हरेक को अपना अपना काम निश्चित
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| − | मानकर वैविध्य और सुन्दरता मानना सिखाना करना होता है । किसी को शिक्षक का, किसी को
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| − | चाहिये । भेदभाव न पनपे यह देखना चाहिये । जो डॉक्टर का, किसी को दर्जी का, किसी को मोची का,
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