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है । इसके साथ लडने हेतु और इस दृषण को दूर करने हेतु विद्यालय, घर और धर्माचार्यों ने जिम्मेदारी लेकर योजना बनानी होगी ।
 
है । इसके साथ लडने हेतु और इस दृषण को दूर करने हेतु विद्यालय, घर और धर्माचार्यों ने जिम्मेदारी लेकर योजना बनानी होगी ।
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===== विद्यालय की भूमिका =====
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=====विद्यालय की भूमिका=====
 
1. विद्यालय का प्रमुख दायित्व है यह मानना होगा । जिस देश के विद्यालय नीतिमत्ता की रक्षा नहीं कर सकते उस देश का भविष्य धुंधला ही होता है ।
 
1. विद्यालय का प्रमुख दायित्व है यह मानना होगा । जिस देश के विद्यालय नीतिमत्ता की रक्षा नहीं कर सकते उस देश का भविष्य धुंधला ही होता है ।
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शिक्षकों को पढाना आता नहीं है, पढाने की नीयत
 
शिक्षकों को पढाना आता नहीं है, पढाने की नीयत
नहीं होती है तब वे विद्यार्थियों को नकल करवाते हैं
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नहीं होती है तब वे विद्यार्थियों को नकल करवाते हैं और बदले में पैसे लेते हैं ।
और बदले में पैसे लेते हैं ।
      
विद्यालय में पढाते नहीं और ट्यूशन में आने की बाध्यता निर्माण करते हैं ।
 
विद्यालय में पढाते नहीं और ट्यूशन में आने की बाध्यता निर्माण करते हैं ।
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वे स्वयं भी नकल करके परीक्षा में उत्तीर्ण हुए होते हैं ।
 
वे स्वयं भी नकल करके परीक्षा में उत्तीर्ण हुए होते हैं ।
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जो विद्यार्थी ट्यूशन में आते हैं उन्हें परीक्षा में उत्तीर्ण होने में सहायता करते हैं । ये
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जो विद्यार्थी ट्यूशन में आते हैं उन्हें परीक्षा में उत्तीर्ण होने में सहायता करते हैं । ये भी सर्वविदित उदाहरण हैं । पूर्व में कहा उससे भी वास्तविकता अनेक गुणा भीषण है ।
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भी सर्वविदित उदाहरण हैं । पूर्व में कहा उससे भी
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4. विद्यार्थियों में नीतिमत्ता का ह्रास । विद्यार्थी भी पीछे नहीं हैं । उनकी अनीति के कुछ उदाहरण इस प्रकार है...
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वास्तविकता अनेक गुणा भीषण है
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परीक्षा में नकल करना आम बात है । नकल करने के अनेक अफलातून नुस्खे उनके पास होते हैं निरीक्षकों को बडी सरलता से सहज में ही वे बुद्ध बनाते हैं
¥. विद्यार्थियों में नीतिमत्ता का छलास विद्यार्थी भी पीछे
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नहीं हैं । उनकी अनीति के कुछ उदाहरण इस प्रकार
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विद्यालय की मालमिल्कत को नुकसान पहुँचाने में इन्हें कोई संकोच नहीं होता है ।
०... परीक्षा में नकल करना आम बात है । नकल करने
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के अनेक अफलातून नुस्खे उनके पास होते हैं ।
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झूठ बोलना, चुनावी राजनीति करना, गुंडागर्दी को प्रश्रय देना आदि भी सहज है ।
 
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निरीक्षकों को बडी सरलता से सहज में ही वे बुद्ध
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बनाते हैं ।
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०... विद्यालय की मालमिल्कत को नुकसान पहुँचाने में
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इन्हें कोई संकोच नहीं होता है ।
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०. झूठ बोलना, चुनावी राजनीति करना, गुंडागर्दी को
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way देना आदि भी सहज है ।
      
इसके भी अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं ।
 
इसके भी अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं ।
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जब सर्वसामान्य रूप से ऐसी अनीति छाई हो तो
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जब सर्वसामान्य रूप से ऐसी अनीति छाई हो तो आशा कहाँ है ? इस अनीति को कम करने में, नष्ट करने में कानून की कोई भूमिका नहीं है । कानून से अनीति दूर हो ही नहीं सकती । अनीति अधर्म है और धर्म से ही उसके साथ लड़ना और उस पर विजय पाना सम्भव हो सकता है ।
आशा कहाँ है ? इस अनीति को कम करने में, नष्ट करने में
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कानून की कोई भूमिका नहीं है । कानून से अनीति दूर
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हो ही नहीं सकती । अनीति अधर्म है और धर्म से ही
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उसके साथ लड़ना और उस पर विजय पाना सम्भव हो
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सकता है ।
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धर्म और अधर्म के युद्ध में धर्म की ही विजय होती
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धर्म और अधर्म के युद्ध में धर्म की ही विजय होती है ऐसा हमारा इतिहास कहता है परन्तु वह तब होता है जब धर्म का पक्ष लेने वाला, धर्म के लिये लडनेवाला कोई खडा हो । धर्म का पक्ष लेने पर अन्तिम विजय होती भले ही हो परन्तु कष्ट भी बहुत उठाने पड़ते हैं । आज का सवाल तो यह है कि धर्म का पक्ष तो लिया जा सकता है परन्तु उसके लिये कष्ट उठाने की सिद्धता नहीं होती । धर्म के गुण तो गाये जा सकते हैं परन्तु धर्ममार्ग पर चलना कठिन है। ऐसा तो कोई क्यों करेगा ? धर्ममार्ग पर चलने से दिखने वाला कोई लाभ हो तब तो
है ऐसा हमारा इतिहास कहता है परन्तु वह तब होता है
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जब धर्म का पक्ष लेने वाला, धर्म के लिये लडनेवाला
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कोई खडा हो । धर्म का पक्ष लेने पर अन्तिम विजय
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होती भले ही हो परन्तु कष्ट भी बहुत उठाने पड़ते हैं ।
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आज का सवाल तो यह है कि धर्म का पक्ष तो लिया जा
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सकता है परन्तु उसके लिये कष्ट उठाने की सिद्धता नहीं
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होती । धर्म के गुण तो गाये जा सकते हैं परन्तु धर्ममार्ग
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पर चलना कठिन है। ऐसा तो कोई क्यों करेगा ?
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धर्ममार्ग पर चलने से दिखने वाला कोई लाभ हो तब तो
   
ठीक है । अधर्म मार्ग पर चलकर लाभ मिलता हो तो
 
ठीक है । अधर्म मार्ग पर चलकर लाभ मिलता हो तो
 
अधर्म ही सही ।
 
अधर्म ही सही ।
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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===== इस स्थिति में विद्यालय क्या करें ? =====
 
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इस स्थिति में विद्यालय क्या करें ?
   
कुछ इस प्रकार से विचार किया जा सकता है...
 
कुछ इस प्रकार से विचार किया जा सकता है...
  
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