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तो बिना टिकट यात्रा करना धूमधाम से चल रहा है । खुछ्ठम-खु्ठा चोरी, डकैती, लूट, हत्या आदि
तो बिना टिकट यात्रा करना धूमधाम से चल रहा है । खुछ्ठम-खु्ठा चोरी, डकैती, लूट, हत्या आदि
की बात तो अलग है, यह तो सारे अनीति के
की बात तो अलग है, यह तो सारे अनीति के
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मामले हैं । यह अनीति समाजविरोधी है, देशविरोधी है, धर्मविरोधी है । भारत की विचारधारा कभी भी इसका समर्थन नहीं करती । भारत की परम्परा इसकी कभी भी दुहाई नहीं देती । यहाँ तो दो शत्रुओं के बीच युद्ध भी धर्म के नियमों का पालन करके होते हैं। निहत्थे शत्रु के साथ लडने के लिये व्यक्ति अपना हथियार छोड देता है क्योंकि एक के हाथ में शस्त्र हो और दूसरे के हाथ में न हो तो शख्रधारी निःशसtra के साथ युद्ध करे यह अन्याय है, अधर्म है ।
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मामले हैं ।
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नीतिमत्ता का हलास वर्तमान समय का राष्ट्रीय संकट
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यह अनीति समाजविरोधी है, देशविरोधी है, धर्मविरोधी है । भारत की विचारधारा कभी भी इसका समर्थन नहीं करती । भारत की परम्परा इसकी कभी भी दुहाई नहीं देती । यहाँ तो दो शत्रुओं के बीच युद्ध भी धर्म के नियमों का पालन करके होते हैं। निहत्थे शत्रु के साथ लडने के लिये व्यक्ति अपना हथियार छोड देता है क्योंकि एक के हाथ में शस्त्र हो और दूसरे के हाथ में न हो तो शख्रधारी निःशस्त्र के साथ युद्ध करे यह अन्याय है, अधर्म है ।
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है । इसके साथ लडने हेतु और इस दृषण को दूर करने हेतु
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विद्यालय, घर और धर्माचार्यों ने जिम्मेदारी लेकर योजना
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बनानी होगी ।
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नीतिमत्ता का ह्रास वर्तमान समय का राष्ट्रीय संकट
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है । इसके साथ लडने हेतु और इस दृषण को दूर करने हेतु विद्यालय, घर और धर्माचार्यों ने जिम्मेदारी लेकर योजना बनानी होगी ।
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विद्यालय की भूमिका
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===== विद्यालय की भूमिका =====
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श्,
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1. विद्यालय का प्रमुख दायित्व है यह मानना होगा । जिस देश के विद्यालय नीतिमत्ता की रक्षा नहीं कर सकते उस देश का भविष्य धुंधला ही होता है ।
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2. विद्यालय संचालकों और शिक्षकों के नीतिमान होने
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से ही विद्यार्थियों को नीतिमान बना सकते हैं ।
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संचालकों के अनीतिमान होने के अनेक उदाहरण सर्वविदित हैं
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2 ५.
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ऐसे अनेक संचालक हैं जो पैसा कमाने के लिये ही विद्यालय चलाते हैं । उनके लिये बिद्या, शिक्षक,
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देश आदि के लिये कोई सम्मान नहीं होता । वे अनेक प्रकार की गलत बातें लागू कर पैसा कमाते हैं ।
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विद्यालय का प्रमुख दायित्व है यह मानना होगा ।
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जिस देश के विद्यालय नीतिमत्ता की रक्षा नहीं कर
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सकते उस देश का भविष्य धुंधला ही होता है ।
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विद्यालय संचालकों और शिक्षकों के नीतिमान होने
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से ही विद्यार्थियों को नीतिमान बना सकते हैं ।
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संचालकों के अनीतिमान होने के अनेक उदाहरण
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सर्वविदित हैं
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ऐसे अनेक संचालक हैं जो पैसा कमाने के लिये ही
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विद्यालय चलाते हैं । उनके लिये बिद्या, शिक्षक,
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देश आदि के लिये कोई सम्मान नहीं होता । वे
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अनेक प्रकार की गलत बातें लागू कर पैसा कमाते
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हैं ।
प्रवेश के लिये और नियुक्ति के लिये विद्यार्थियों और
प्रवेश के लिये और नियुक्ति के लिये विद्यार्थियों और
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शिक्षकों से डोनेशन लेना आम बात है । मजबूरी में
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शिक्षकों से डोनेशन लेना आम बात है । मजबूरी में या व्यवहार समझकर डोनेशन देनेवाले भी होते ही हैं ।
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या व्यवहार समझकर डोनेशन देनेवाले भी होते ही
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हैं ।
शिक्षकों को कम वेतन देकर पूरे वेतन पर हस्ताक्षर
शिक्षकों को कम वेतन देकर पूरे वेतन पर हस्ताक्षर
करवा लेना भी व्यापकरूप में प्रचलन में है ।
करवा लेना भी व्यापकरूप में प्रचलन में है ।
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ये तो सर्वविदित उदाहरण हैं, परन्तु यह तो हिमशिला
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का बाहर दिखनेवाला हिस्सा है । वास्तविकता
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ये तो सर्वविदित उदाहरण हैं, परन्तु यह तो हिमशिला का बाहर दिखनेवाला हिस्सा है । वास्तविकता अनेक गुना अधिक है ।
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अनेक गुना अधिक है ।
ऐसे संचालकों के विद्यालयों में नीतिमत्ता की
ऐसे संचालकों के विद्यालयों में नीतिमत्ता की
शिक्षा किस प्रकार दी जा सकेगी ?
शिक्षा किस प्रकार दी जा सकेगी ?
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शिक्षकों की नीतिमत्ता के अभाव का स्वरूप कुछ
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इस प्रकार का है
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3. शिक्षकों की नीतिमत्ता के अभाव का स्वरूप कुछ इस प्रकार का है.....
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शिक्षकों को पढाना आता नहीं है, पढाने की नीयत
शिक्षकों को पढाना आता नहीं है, पढाने की नीयत
नहीं होती है तब वे विद्यार्थियों को नकल करवाते हैं
नहीं होती है तब वे विद्यार्थियों को नकल करवाते हैं
और बदले में पैसे लेते हैं ।
और बदले में पैसे लेते हैं ।
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विद्यालय में पढाते नहीं और ट्यूशन में आने की
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बाध्यता निर्माण करते हैं ।
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वे स्वयं भी नकल करके परीक्षा में उत्तीर्ण हुए होते
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हैं ।
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विद्यालय में पढाते नहीं और ट्यूशन में आने की बाध्यता निर्माण करते हैं ।
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वे स्वयं भी नकल करके परीक्षा में उत्तीर्ण हुए होते हैं ।
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उन्हें परीक्षा में उत्तीर्ण होने में सहायता करते हैं । ये
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जो विद्यार्थी ट्यूशन में आते हैं उन्हें परीक्षा में उत्तीर्ण होने में सहायता करते हैं । ये
भी सर्वविदित उदाहरण हैं । पूर्व में कहा उससे भी
भी सर्वविदित उदाहरण हैं । पूर्व में कहा उससे भी