Line 1: |
Line 1: |
− | सौतिरुवाच
| |
| | | |
− | नागाश्च संविदं कृत्वा कर्तव्यमिति तद्वचः।
| |
| | | |
− | निःस्नेहा वै दहेन्माता असम्प्राप्तमनोरथा॥ 1-22-1
| |
| | | |
− | प्रसन्ना मोक्षयेदस्मांस्तस्माच्छापाच्च भामिनी।
| |
| | | |
− | कृष्णं पुच्छं करिष्यामस्तुरगस्य न संशयः॥ 1-22-2 | + | सौतिरुवाच |
− | | + | नागाश्च संविदं कृत्वा कर्तव्यमिति तद्वचः। |
− | तथा हि गत्वा ते तस्य पुच्छे वाला इव स्थिताः। | + | निःस्नेहा वै दहेन्माता असम्प्राप्तमनोरथा॥ 1-22-1 |
− | | + | प्रसन्ना मोक्षयेदस्मांस्तस्माच्छापाच्च भामिनी। |
− | एतस्मिन्नन्तरे ते तु सपत्न्यौ पणिते तदा॥ 1-22-3 | + | कृष्णं पुच्छं करिष्यामस्तुरगस्य न संशयः॥ 1-22-2 |
− | | + | तथा हि गत्वा ते तस्य पुच्छे वाला इव स्थिताः। |
− | ततस्ते पणितं कृत्वा भगिन्यौ द्विजसत्तम। | + | एतस्मिन्नन्तरे ते तु सपत्न्यौ पणिते तदा॥ 1-22-3 |
− | | + | ततस्ते पणितं कृत्वा भगिन्यौ द्विजसत्तम। |
− | जग्मतुः परया प्रीत्या परं पारं महोदधेः॥ 1-22-4 | + | जग्मतुः परया प्रीत्या परं पारं महोदधेः॥ 1-22-4 |
− | | + | कद्रूश्च विनता चैव दाक्षायण्यौ विहायसा। |
− | कद्रूश्च विनता चैव दाक्षायण्यौ विहायसा। | + | आलोकयन्त्यावक्षोभ्यं समुद्रं निधिमम्भसाम्॥ 1-22-5 |
− | | + | वायुनातीव सहसा क्षोभ्यमाणं महास्वनम्। |
− | आलोकयन्त्यावक्षोभ्यं समुद्रं निधिमम्भसाम्॥ 1-22-5 | + | तिमिङ्गिलसमाकीर्णं मकरैरावृतं तथा॥ 1-22-6 |
− | | + | संयुतं बहुसाहस्रैः सत्त्वैर्नानाविधैरपि। |
− | वायुनातीव सहसा क्षोभ्यमाणं महास्वनम्। | + | घोरैर्घोरमनाधृष्यं गम्भीरमतिभैरवम्॥ 1-22-7 |
− | | + | आकरं सर्वरत्नानामालयं वरुणस्य च। |
− | तिमिङ्गिलसमाकीर्णं मकरैरावृतं तथा॥ 1-22-6 | + | नागानामालयं चापि सुरम्यं सरितां पतिम्॥ 1-22-8 |
− | | + | पातालज्वलनावासमसुराणां तथाऽऽलयम्। |
− | संयुतं बहुसाहस्रैः सत्त्वैर्नानाविधैरपि। | + | भयंकराणां सत्त्वानां पयसो निधिमव्ययम्॥ 1-22-9 |
− | | + | शुभ्रं दिव्यममर्त्यानाममृतस्याकरं परम्। |
− | घोरैर्घोरमनाधृष्यं गम्भीरमतिभैरवम्॥ 1-22-7 | + | अप्रमेयमचिन्त्यं च सुपुण्यजलसम्मितम्॥ 1-22-10 |
− | | + | महानदीभिर्बह्वीभिस्तत्र तत्र सहस्रशः। |
− | आकरं सर्वरत्नानामालयं वरुणस्य च। | + | आपूर्यमाणमत्यर्थं नृत्यन्तमिव चोर्मिभिः॥ 1-22-11 |
− | | + | इत्येवं तरलतरोर्मिसंकुलं तं गम्भीरं विकसितमम्बरप्रकाशम्। |
− | नागानामालयं चापि सुरम्यं सरितां पतिम्॥ 1-22-8 | + | पातालज्वलनशिखाविदीपिताङ्गं गर्जन्तं द्रुतमभिजग्मतुस्ततस्ते॥ 1-22-12 |
− | | + | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सौपर्णे समुद्रदर्शनं नाम द्वाविंशोऽध्यायः॥ 22 ॥ |
− | पातालज्वलनावासमसुराणां तथाऽऽलयम्। | + | [[:Category:Ucchaishrava|''Ucchaishrava'']] [[:Category:Tail of Ucchaishrava|''Tail of Ucchaishrava'']] [[:Category:Tail|''Tail'']] |
− | | + | [[:Category:Black Tail of Ucchaishrava|''Black Tail of Ucchaishrava'']] [[:Category:Black|''Black'']] [[:Category:snakes|''snakes'']] |
− | भयंकराणां सत्त्वानां पयसो निधिमव्ययम्॥ 1-22-9 | + | [[:Category:nagas|''nagas'']] |
− | | + | [[:Category:उच्चैश्रवाकी पूँछ|''उच्चैश्रवाकी पूँछ'']] [[:Category:काली|''काली'']] [[:Category:पूँछ|''पूँछ'']] |
− | शुभ्रं दिव्यममर्त्यानाममृतस्याकरं परम्। | + | [[:Category:काली पूँछ|''काली पूँछ'']] [[:Category:नागोद्वारा उच्चैश्रवाकी काली पूँछ|''नागोद्वारा उच्चैश्रवाकी काली पूँछ'']] |
− | | + | [[:Category:नाग|''नाग'']] |
− | अप्रमेयमचिन्त्यं च सुपुण्यजलसम्मितम्॥ 1-22-10 | |
− | | |
− | महानदीभिर्बह्वीभिस्तत्र तत्र सहस्रशः। | |
− | | |
− | आपूर्यमाणमत्यर्थं नृत्यन्तमिव चोर्मिभिः॥ 1-22-11 | |
− | | |
− | इत्येवं तरलतरोर्मिसंकुलं तं गम्भीरं विकसितमम्बरप्रकाशम्। | |
− | | |
− | पातालज्वलनशिखाविदीपिताङ्गं गर्जन्तं द्रुतमभिजग्मतुस्ततस्ते॥ 1-22-12 | |
− | | |
− | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सौपर्णे समुद्रदर्शनं नाम द्वाविंशोऽध्यायः॥ 22 ॥ | |