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| == साइकिल चलाने का उदाहरण == | | == साइकिल चलाने का उदाहरण == |
− | हम साइकिल चलाने का उदाहरण ले सकते हैं । जब | + | हम साइकिल चलाने का उदाहरण ले सकते हैं। जब कोई बाल आयु का लड़का साइकिल चलाना चाहता है तब उसे पिता अथवा बड़ा भाई सिखाने का प्रारंभ करता है। वह साइकिल के विभिन्न अंग उपांग उसे दिखाता है, उनके बारे में जानकारी देता है । चालक चक्र कैसे पकड़ना और पैडल पर कैसे पैर जमाना यह दिखाता है । वह स्वयं चलाकर भी दिखाता है। प्रत्यक्ष सीखना शुरु करने से पहले भी उस बालक ने पिता को या बड़े भाई को साइकिल पर आते जाते देखा है, साइकिल की सफाई भी की है, साइकिल को इधर से उधर उठाकर रखा भी है। अब वह पिता की उपस्थिति में चक्र को पकड़कर देखता है, पैडल पर पैर जमाकर देखता है और पिता के मार्गदर्शन में साइकिल चलाता है । पिता उसे सहायता करते हैं । उसे गिरने नहीं देते । बालक को पहले पहले कुछ डर भी लगता है परंतु पिता के होने से वह स्वस्थ रहता है और साइकिल चलाने के प्रति उत्साहित भी रहता है। दो चार दिन इस प्रकार पिता साथ में रहकर उसे साइकिल के विषय में और साइकिल चलाने के विषय में ज्ञान देते हैं। यह उस बालक के लिए अधीति का पद है और पिता के लिए प्रवचन का। इसके बाद बालक स्वयं अकेले साइकिल चलाता है। वह गलतियां करता है, गिरता भी है। उसे चोट भी आती है। फिर भी वह साइकिल चलाना छोड़ता नहीं है। कभी कभी पिता उसे कहां गलती हो रही है वह दिखाते हैं। बालक सुधार करता है। अब उसे साइकिल पकड़ना, चक्र चलाना, घुमाना, पैडल मारना और संतुलन रखना ठीक से आ गया। निरीक्षण करके सबकुछ ठीक है यह देख भी लिया । यह उस बालक का बोध का पद है। परंतु इतने मात्र से बालक साइकिल लेकर भीड़ भरे रास्ते पर जाता नहीं है क्योंकि उसने अभी नया नया सीखा है। अभ्यास नहीं हुआ। वह रोज रोज अपने घर के परिसर में अथवा पास वाली निर्जन सड़क पर साइकिल चलाने का अभ्यास करता है। यह उसके लिए अत्यंत आनंददायक है । वह साइकिल चलाता ही रहता है। पैरों की तरह ही साइकिल उसके शरीर का अंग हो गई है। उसे साइकिल चलाने की क्रिया पर प्रभुत्व प्राप्त हुआ है । साइकिल चलाने के विषय में आत्मविश्वास से परिपूर्ण है। परंतु साइकिल चलाना केवल इस प्रकार के अभ्यास के लिए तो नहीं होता। वह विद्यालय जाता है, खरीदी करने के लिए बाजार जाता है, मित्रों के साथ सैर करने के लिए जाता है। इसके साइकिल सीखने का उपयोग स्वयं के लिए और औरों के लिए भी होता है । ऐसे ही कुछ दिन चले जाते हैं और एक दिन वह अपने छोटे भाई को या पड़ोस के किसी छोटे बालक को उसी प्रकार साइकिल चलाना सिखाना प्रारंभ करता है जैसे उसके पिता ने उसके साथ किया था । वह एक अच्छा शिक्षक हैं। एक अच्छा साइकिल चालक है जो दूसरों के भी काम आता है । सीखने सिखाने की यह प्रक्रिया पाँच पदों में होती है । |
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− | कोई बाल आयु का लड़का साइकिल चलाना चाहता है | |
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− | तब उसे पिता अथवा बड़ा भाई सिखाने का प्रारंभ करता | |
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− | है । वह साइकिल के विभिन्न अंग उपांग उसे दिखाता है,
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− | उनके बारे में जानकारी देता है । चालक चक्र कैसे पकड़ना | |
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− | और पैडल पर कैसे पैर जमाना यह दिखाता है । वह स्वयं | |
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− | चलाकर भी दिखाता है । प्रत्यक्षे सीखना शुरु करने से पहले | |
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− | भी उस बालक ने पिता को या बड़े भाई को साइकिल पर | |
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− | आते जाते देखा है, साइकिल की सफाई भी की है, | |
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− | साइकिल को इधर से उधर उठाकर | |
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− | रखा भी है aa ae fio की उपस्थिति में चक्र को | |
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− | पकड़कर देखता है, पैडल पर पैर जमाकर देखता है और | |
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− | पिता के मार्गदर्शन में साइकिल चलाता है । पिता उसे | |
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− | सहायता करते हैं । उसे गिरने नहीं देते । बालक को पहले | |
− | | |
− | पहले कुछ डर भी लगता है परंतु पिता के होने से वह | |
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− | स्वस्थ रहता है और साइकिल चलाने के प्रति उत्साहित भी | |
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− | रहता है । दो चार दिन इस प्रकार पिता साथ में रहकर उसे | |
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− | साइकिल के विषय में और साइकिल चलाने के विषय में | |
− | | |
− | ज्ञान देते हैं । यह उस बालक के लिए अधीति का पद है | |
− | | |
− | और पिता के लिए प्रवचन का । इसके बाद बालक स्वयं | |
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− | अकेले साइकिल चलाता है । वह गलतियां करता है, | |
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− | गिरता भी है। उसे चोट भी आती है। फिर भी वह | |
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− | साइकिल चलाना छोड़ता नहीं है । कभी कभी पिता उसे | |
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− | कहां गलती हो रही है वह दिखाते हैं । बालक सुधार करता | |
− | | |
− | है । अब उसे साइकिल पकड़ना, चक्र चलाना, घुमाना,
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− | पैडल मारना और संतुलन रखना ठीक से आ गया । | |
− | | |
− | निरीक्षण करके सबकुछ ठीक है यह देख भी लिया । यह | |
− | | |
− | उस बालक का बोध का पद है । परंतु इतने मात्र से बालक | |
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− | साइकिल लेकर भीड़ भरे रास्ते पर जाता नहीं है क्योंकि | |
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− | उसने अभी नया नया सीखा है । अभ्यास नहीं हुआ । वह | |
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− | रोज रोज अपने घर के परिसर में अथवा पास वाली निर्जन | |
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− | सड़क पर साइकिल चलाने का अभ्यास करता है। यह | |
− | | |
− | उसके लिए अत्यंत आनंददायक है । वह साइकिल चलाता | |
− | | |
− | ही रहता है । पैरों की तरह ही साइकिल उसके शरीर का | |
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− | अंग हो गई है । उसे साइकिल चलाने की क्रिया पर प्रभुत्व | |
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− | प्राप्त हुआ है । साइकिल चलाने के विषय में आत्मविश्वास | |
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− | से परिपूर्ण है । परंतु साइकिल चलाना केवल इस प्रकार के | |
− | | |
− | अभ्यास के लिए तो नहीं होता । वह विद्यालय जाता है, | |
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− | खरीदी करने के लिए बाजार जाता है, मित्रों के साथ सैर | |
− | | |
− | करने के लिए जाता है । इसके साइकिल सीखने का उपयोग | |
− | | |
− | स्वयं के लिए और औरों के लिए भी होता है । ऐसे ही | |
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− | कुछ दिन चले जाते हैं और एक दिन वह अपने छोटे भाई | |
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− | को या पड़ोस के किसी छोटे बालक को उसी प्रकार | |
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− | श्र
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− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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− | साइकिल चलाना सिखाना प्रारंभ करता है जैसे उसके पिता | |
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− | ने उसके साथ किया था । वह एक अच्छा शिक्षक हैं । एक | |
− | | |
− | अच्छा साइकिल चालक है जो दूसरों के भी काम आता | |
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− | है । सीखने सिखाने की यह प्रक्रिया पाँच पदों में होती है । | |
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| == गीत सिखाने का उदाहरण == | | == गीत सिखाने का उदाहरण == |
− | दूसरा उदाहरण देखें । संगीत की कक्षा में शिक्षक | + | दूसरा उदाहरण देखें । संगीत की कक्षा में शिक्षक अपने छात्रों को एक गीत सिखा रहा है । वह गीत के शब्दों को सुनाता है । गीत गाकर सुनाता है । एक बार दो बार गाता है और छात्र सुनते हैं । उसके बाद छात्र भी सुना हुआ गाते हैं । यह क्रिया एक से अधिक बार होती है । इस समय शिक्षक छात्र के उच्चार सही है कि नहीं, स्वर ठीक है कि नहीं यह देखता है । यदि ठीक नहीं है तो उसमें सुधार करता है । छात्र को सही सही आने तक वह यह क्रिया बार बार करता है । शिक्षक के लिए यह प्रवचन है और छात्र के लिए अधीति । इसके बाद छात्र स्वयं गाता है, गाने का प्रयास करता है । आचार्य ने क्या सिखाया था इसका स्मरण करता है । गाते समय उसका स्वर ठीक नहीं होता तो उसे स्वयं को समझ में आता है । वह ठीक करने का प्रयास करता है । शिक्षक भी गाता है, परखता है । ऐसा करते करते कुछ समय के बाद छात्र का स्वर ठीक हो जाता है । उसे गीत आ गया ऐसा शिक्षक को भी लगता है और छात्र को भी प्रतीति होती है । यह उसका बोध का पद है । इसके बाद उसका अभ्यास शुरू होता है । वह उसी गीत को बार बार गाता है । गाते गाते वह गीत उसके गले में बैठता है । अब वह गलती नहीं करता, न उसे भूलता है । |
− | | |
− | अपने छात्रों को एक गीत सिखा रहा है । वह गीत के शब्दों | |
− | | |
− | को सुनाता है । गीत गाकर सुनाता है । एक बार दो बार | |
− | | |
− | गाता है और छात्र सुनते हैं । उसके बाद छात्र भी सुना हुआ | |
− | | |
− | गाते हैं । यह क्रिया एक से अधिक बार होती है । इस | |
− | | |
− | समय शिक्षक छात्र के उच्चार सही है कि नहीं, स्वर ठीक है | |
− | | |
− | कि नहीं यह देखता है । यदि ठीक नहीं है तो उसमें सुधार | |
− | | |
− | करता है । छात्र को सही सही आने तक वह यह क्रिया बार | |
− | | |
− | बार करता है । शिक्षक के लिए यह प्रवचन है और छात्र के | |
− | | |
− | लिए अधीति । इसके बाद छात्र स्वयं गाता है, गाने का | |
− | | |
− | प्रयास करता है । आचार्य ने क्या सिखाया था इसका स्मरण | |
− | | |
− | करता है । गाते समय उसका स्वर ठीक नहीं होता तो उसे | |
− | | |
− | स्वयं को समझ में आता है । वह ठीक करने का प्रयास | |
− | | |
− | करता है । शिक्षक भी गाता है, परखता है । ऐसा करते | |
− | | |
− | करते कुछ समय के बाद छात्र का स्वर ठीक हो जाता है । | |
− | | |
− | उसे गीत आ गया ऐसा शिक्षक को भी लगता है और छात्र | |
− | | |
− | को भी प्रतीति होती है । यह उसका बोध का पद है । | |
− | | |
− | इसके बाद उसका अभ्यास शुरू होता है । वह उसी गीत | |
− | | |
− | को बार बार गाता है । गाते गाते वह गीत उसके गले में | |
− | | |
− | बैठता है । अब वह गलती नहीं करता, न उसे भूलता है । | |
− | | |
− | अभ्यास के साथ साथ वह गीत उसके गले में और
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− | | |
− | मस्तिष्क में भी बैठता है । अब वह उसका आनंद ले रहा
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− | | |
− | है । उसकी खूबियां समझ रहा है । अब वह इस गीत के
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− | | |
− | जैसे अन्य गीतों के साथ इसकी तुलना कर रहा है । अब
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− | | |
− | वह उस के रहस्य को भी जानने लगा है, समझ रहा है ।
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− | अभ्यास करते करते वह इस गीत को अपने अस्तित्व का
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− | अंग बना रहा है । वह गीत सुनता है तब के और गीत का
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− | अभ्यास होने के बाद में जो आनंद आता है उसमें बहुत
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− | पर्व ३ : शिक्षा का मनोविज्ञान
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− | अंतर है । अंतर उसे स्वयं समझ में आता है । यह अंतर... सिद्धांत किस प्रकार लागू होता है ? इन
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− | | |
− | उसके साथ रहने वालों के भी समझ में आता है । अभ्यास... विषयों में अधीति और बोध तो समझ में आता है परंतु
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− | | |
− | के बाद प्रयोग का पद है । उस गीत को वह अपने आनंद. अभ्यास और प्रयोग का पद कैसा होगा ? उत्तर यह है कि
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− | | |
− | के लिए गाता है और दूसरों को आनंद देने के लिए भी... बुद्धि से और मन से ग्रहण किए जाने वाले विषयों में
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− | | |
− | गाता है । गीतका अभ्यास जैसे जैसे बढ़ता जाता है वैसे. पंचपदी का सिद्धांत किस प्रकार काम करता है यह जानना
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− | | |
− | वैसे उसके स्वर, ताल और लय परिपक्क होते जाते हैं । इस... भी महत्त्वपूर्ण है । अभी हमने देखा कि अधीति और बोध
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− | | |
− | ज्ञान का उपयोग वह अन्य गीत सीखने में करता है ।.. के पद को समझना कठिन नहीं है । अब हम देखें कि एक
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− | | |
− | शास्त्रीय संगीत में वह प्रगति करता है । आगे के अभ्यास. सिद्धांत हमारे सामने रखा जा रहा है । प्रथम तो हमने पूरा
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− | | |
− | के लिए इस गीत का अभ्यास उसे उपयोगी होता है । यह... विवेचन आँखों से, मन से, बुद्धि से ग्रहण किया । हमारा
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− | | |
− | उसके लिए प्रयोग का पद है । जब वह गाता है तब और... ग्रहण करना निर्दोष है, प्रामाणिक है । हमें स्वयं को ही यह
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− | | |
− | लोग सुनते हैं । कोई एक व्यक्ति उससे यह गीत सीखना भी... बात समझ में आती है । पढ़ लेने के बाद भी वह हमारे मन
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− | | |
− | चाहता है । छात्र उसे सिखाता है । यह उसके लिए प्रवचन. में रहता है और धीरे धीरे बोध परिपक्क होता है । हमने ठीक
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− | | |
− | का पद है । सुनने वाले के और सीखने वाले के लिए यह... समझा कि नहीं उसे परखने के लिए हम अन्य feel
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− | | |
− | अधीति का पद है । और किसीको न भी सिखाएं तब भी... भी पूछेंगे । हमारा विचार प्रस्तुत भी करेंगे । इस प्रकार
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− | | |
− | छात्र अपनी ही प्रस्तुति में विविधता लाता है, नवीनता.. अपने अंतःकरण की सहायता से और अन्य लोगों की
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− | | |
− | लाता है । यह उसके लिए स्वाध्याय है । दूसरे किसी गीत. सहायता से या अन्य ग्रंथों की सहायता से हम सुने हुए
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− | | |
− | की स्वर रचना बनाता है । यह भी उसके लिए स्वाध्याय.... सिद्धांतों को ठीक से समझेंगे । इसके बाद अभ्यास का पद
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− | | |
− | का ही पद है । इस प्रकार उसका अध्ययन पाँच पदों में. शुरू होगा । कर्मेन्ट्रियों से होने वाली क्रिया का अभ्यास
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− | | |
− | चलता है । ये पांच पद नहीं है तो उसका अध्ययन पूरा नहीं... और अंतःकरण से होने वाले अभ्यास में अंतर है।
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− | | |
− | होता, परिपक्क नहीं होता, उसके व्यक्तित्व का वह अंग नहीं... कर्मेन्ट्रियों की क्रियाएं देखी जाती हैं, उनका पुनरावर्तन
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− | | |
− | बनता । प्रत्यक्ष होता है । अंतःकरण से होने वाला अभ्यास सूक्ष्म
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− | | |
− | होता है । पंचपदी की प्रक्रिया को हम अनेक विषयों को
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− | | |
− | लागू करने का अभ्यास करते हैं । हम अनेक उदाहरण Gad
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− | | |
− | इस लेख का ही उदाहरण लें । जो भी पाठक इसे. हैं । केवल सिद्धांत समझने का ही नहीं तो प्रक्रियाओं को
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− | | |
− | पढ़ते हैं उनके लिए यह अधीति है । पढ़ने के बाद पाठक. समझने का कार्य भी हमारी बुद्धि कर रही है। इसके
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− | | |
− | जब उस पर मनन, चिंतन, चर्चा करेंगे तब वह बोध के पद अभ्यास के द्वारा हमारा मन एकाग्र होता है और बुद्धि
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− | | |
− | से गुजर रहा है । ध्यान देने योग्य बात यह है कि aia a परिष्कृत होती रहती है । यह भी अभ्यास का ही परिणाम
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− | | |
− | होने वाली क्रियाओं के संबंध में पांच पद किस प्रकार. है । एक विषय को या मुद्दे को समझते समझते हमारी बुद्धि
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− | | |
− | व्यवहार में आते हैं यह सरलता से समझ में आता है परंतु सक्षम, निर्दोष और परिपक्क बनती जाती है । यह हमारी
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− | | |
− | अध्ययन केवल कर्मेन्ट्रियों से ही नहीं होता है । वह हमेशा. उपलब्धि है । अन्यत्र कहीं हमने सुना है कि विषयों की
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− | | |
− | क्रिया ही नहीं होता है। उदाहरण & fee site, जानकारी का उपयोग ज्ञानार्जन के करणों के विकास में होता
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− | | |
− | मनोविज्ञान या तत्त्वज्ञान का अध्ययन कर्मेन्ट्रि यों का विषय है। इन सिद्धांतों को लागू करने का अभ्यास स्वयं इस
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− | | |
− | नहीं है । विज्ञान और तंत्रज्ञान के सिद्धांत समझना केवल. सिद्धांत को ठीक से समझने में तो होता ही है परंतु अन्य
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− | | |
− | कर्मेन्ट्रियों का विषय नहीं है । इनके बारे में पंचपदी का... सिद्धांत समझने के लिए भी उपयोगी होता है । विषय और
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− | == लेख का उदाहरण ==
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− | Bua
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− | करण दोनों एक दूसरे के लिए सहयोगी
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− | बनते हैं । यह भी ज्ञानार्जन की प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण
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− | | |
− | अंग है । अभ्यास से विषय तो पक्का होता ही है, साथ ही
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− | | |
− | विवेक भी बढ़ता है और ज्ञान प्राप्त करने से जो प्रसन्नता
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− | | |
− | होती है उसका भी अनुभव होता है। यह कदाचित
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− | | |
− | अंतःकरण के स्तर पर होने वाली ज्ञानार्जन की प्रक्रिया है ।
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− | | |
− | यह हमारे लिए अभ्यास का पद है । इसके बाद हम प्रयोग
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− | | |
− | के पद पर पहुंचते हैं । हमारे अध्यापन कार्य में पंचपदी के
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− | सिद्धांत का ज्ञान व्यक्त होता है । हमारा अध्यापन अध्ययन
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− | | |
− | का कार्य अधिक समर्थ और अधिक प्रभावी बनता है । हम
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− | | |
− | भी अध्यापन का कार्य इस सिद्धांत के प्रकाश में करते हैं ।
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− | | |
− | छात्र अध्ययन के किस पद से गुजर रहा है इसका भी पता
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− | | |
− | हमें चलता है । छात्र का बोध का पद ठीक हुआ कि नहीं
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− | इसकी और हमारा विशेष ध्यान रहता है । हमारा अध्यापन
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− | छात्रों को भी ठीक लगता है । सामान्य भाषा में इसे ही
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− | | |
− | अनुभवी अध्यापक कहते हैं । यह हमारे लिए प्रयोग का पद
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− | है । हम देख रहे हैं कि पंचपदी के सिद्धांत को लेकर लेखक
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− | | |
− | के लिए प्रसार का पद है । लेखक प्रवचन कर रहा है।
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− | | |
− | अर्थात उसने जो समझा है वह पाठकों तक पहुंचाने का
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− | | |
− | प्रयास वह कर रहा है । हम जब वैसा करेंगे तब वह हमारे
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− | | |
− | लिए प्रसार का पद होगा । परंतु केवल पाठकों के समक्ष
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− | | |
− | प्रस्तुत करना ही प्रसार नहीं है । वह उसका एक आयाम
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− | | |
− | है । यह प्रवचन है । पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते समय
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− | | |
− | लेखक स्वयं का परीक्षण करता है । वह देखता है कि उसे
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− | | |
− | ठीक से प्रस्तुत करना आया कि नहीं । लेखक ज्ञानार्जन की
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− | प्रक्रिया के अन्य सिद्धांतों के साथ पंचपदी के सिद्धांत की
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− | | |
− | तुलना करता है । वह यह प्रक्रिया किस प्रकार होती है
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− | इसका भी चिंतन करता है । पाठक भी यह करेंगे । तब
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− | लेखक और पाठक सबके लिए यह स्वाध्याय का पद
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− | | |
− | होगा । इसी प्रकार से अन्य विषयों को भी समझा जाता है ।
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− | | |
− | दोनों पद्धतियों की तुलना
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− | शिक्षक प्रशिक्षण के कई पाठ्यक्रमों में हमने हर्बर्ट की
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− | | |
− | पंचपदी के विषय में सुना है और पढ़ा भी है । यहाँ जो
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− | | |
− | श्ढंद
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− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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− | पंचपदी प्रस्तुत हुई है उसमें Bik wid की पंचपदी में क्या
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− | | |
− | अंतर है ? क्या दोनों का समन्वय किया जा सकता है ?
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− | हर्बर्ट की पंचपदी मूल रूप से अध्यापन की पंचपदी
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− | | |
− | है । अध्यापक को कक्षाकक्ष में विषय किस प्रकार प्रस्तुत
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− | करना है उसका मार्गदर्शन यह पंचपदी करती है । व्यापक
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− | संदर्भ में कहे तो पाश्चात्य जगत की सारी अध्ययन अध्यापन
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− | | |
− | प्रक्रिया यांत्रिकता से ग्रस्त हो गई है। aera a
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− | | |
− | कालांश नामक समयसीमा में बद्ध करती है । अध्यापन
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− | कौशल को छोटे छोटे हिस्सों में बांटती है । जिस प्रकार
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− | एक यंत्र के छोटो छोटे हिस्से बनते हैं उसी प्रकार एक
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− | विषय को उपपविषयों में विभाजित किया जाता है उस के
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− | मुद्दे बनाए जाते हैं और एक ३५ या ४५ मिनट की समय
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− | सीमा में कया पढ़ाना है यह तय किया जाता है । उस समय
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− | सीमा के भी हिस्से किए जाते हैं और उन हिस्सों में क्या
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− | क्या करना है किस प्रकार करना है यह निश्चित किया जाता
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− | है । मोटे मोटे यह पांचपद से होते हैं और वे क्रमशः भी
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− | होते हैं इसलिए उसे पंचपदी कहा जाता है । हर्बर्ट नामक
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− | | |
− | शिक्षाशास्त्री उस का आविष्कार किया था इसलिए उसे हर्बर्ट
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− | | |
− | की पंचपदी कहते हैं । हमारे पंचपदी के सिद्धांत और हर्बर्ट
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− | | |
− | की पंचपदी में जो मौलिक अंतर है वह है हर्ब्ट की पंचपदी
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− | | |
− | अध्यापक की पंचपदी है जबकि हमारी पंचपदी अध्ययन
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− | | |
− | की पंचपदी है । aid की पंचपदी क्रिया है और हमारी
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− | | |
− | पंचपदी प्रक्रिया है । क्रिया कौशल के साथ जुड़ी हुई है
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− | | |
− | और प्रक्रिया अर्जन के साथ । हर्बर्ट की पंचपदी अध्यापन
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− | | |
− | कौशल को विकसित करती है जबकि हमारी पंचपदी
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− | | |
− | अध्ययन के मनोविज्ञान को दर्शाती है । मुझे लगता है कि
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− | | |
− | इस मूल अंतर को समझने से सारी बातें स्पष्ट हो जाती हैं ।
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− | कवि श्रीहर्ष के नैषधिचरित नामक महाकाव्य में एक प्रकार
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− | | |
− | से इसका उल्लेख आता है । नल राजा गुरुकुल में पढ़ते हैं
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− | | |
− | तब उनका अध्ययन जिस पद्धति से चलता है उसे ४ पदों में
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− | | |
− | बताया गया है | ये चार पद है अधीति, बोध, आचरण
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− | | |
− | और प्रचार । हमारे देश में शिक्षा क्षेत्र में अभी विद्याभारती
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− | | |
− | नामक एक अखिल भारतीय संगठन कार्यरत हैं । इस
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− | | |
− | संगठन के प्रथम संगठन मंत्री थे श्री लज्जाराम जी तोमर ।
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− | पर्व ३ : शिक्षा का मनोविज्ञान
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− | Se Ase चरित नामक महाकाव्य में उल्लेखित चार पदों
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− | में अपनी ओर से एक पद और जोड़ दिया । वह पद था
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− | अभ्यास का । उसके साथ यह पांच पद हुए । इस पद्धति
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− | | |
− | का उन्होंने विस्तार भी किया । हम अपनी पंचपदी को
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− | | |
− | उनका नाम जोड़ सकते हैं । अतः एक पद्धति है हर्बर्ट की
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− | | |
− | पंचपदी और दूसरी है तोमर की पंचपदी । एक पाश्चात्य है
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− | | |
− | एक भारतीय । एक अध्यापक की पंचपदी है दूसरी अध्येता
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− | | |
− | की । एक क्रिया है दूसरी प्रक्रिया है । एक कौशल है दूसरी
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− | | |
− | अर्जन । एक का संबंध कक्षा कक्ष की गतिविधि के साथ है
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− | दूसरे का संबंध छात्र के स्वयं के प्रयास के साथ है । यह
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− | प्रयास कक्षाकक्ष तक सीमित नहीं है। यह एक निरंतर
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− | चलनेवाली प्रक्रिया है । पूर्व का अभ्यास नए विषय के
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− | अध्ययन के लिए अधिती कार्य भी कर सकता है । पूर्व
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− | प्रयोग से नए विषय का बोध अधिक सुगमता से होता है ।
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− | ज्ञानार्जन निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है इसी बात को पंचपदी
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− | | |
− | दर्शाती है ।
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− | विषय अनुसार कक्ष रचना
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− | | |
− | हमने पूर्व में पंचपदी अध्ययन पद्धति की चर्चा की ।
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− | बालक तो क्या सभी के लिए किसी भी विषय को
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− | आत्मसात करने की प्रक्रिया वही होती है । घर और
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− | विद्यालय दोनों में वैसी ही होती है । इस प्रक्रिया को ध्यान
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− | | |
− | में लेकर व्यवस्थायें बनाना आचार्य का काम है ।
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− | व्यवस्था के मुख्य अंग इस प्रकार हैं ...
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− | | |
− | १... वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन : वर्तमान में विद्यालयों
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− | | |
− | और महाविद्यालयों में कालांश पद्धति चलती है ।
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− | | |
− | शिशुवाटिका में बीस मिनट से लेकर क्रमश: तीस,
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− | | |
− | पैंतीस, चालीस, पैंतालीस और साठ मिनट के
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− | | |
− | कालांशों का प्रचलन होता है । इस निश्चित अवधि
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− | | |
− | के साथ विषय बदलता है, शिक्षक बदलता है और
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− | | |
− | कभी कभी स्थान भी बदलता है । स्थान बदलने के
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− | | |
− | अवसर तुलना में कम होते हैं । कभी खेल के मैदान
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− | | |
− | में या विज्ञान की प्रयोगशाला में जाना होता है।
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− | | |
− | परन्तु यह सभी विषयों को लागू नहीं है । अधिकांश
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− | | |
− | श्ढ७
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− | | |
− | विषय एक ही स्थान पर बैठकर
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− | | |
− | पढे जाते हैं । इस व्यवस्था में परिवर्तन आवश्यक
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| | | |
− | है।
| + | अभ्यास के साथ साथ वह गीत उसके गले में और मस्तिष्क में भी बैठता है । अब वह उसका आनंद ले रहा है । उसकी खूबियां समझ रहा है । अब वह इस गीत के जैसे अन्य गीतों के साथ इसकी तुलना कर रहा है । अब वह उस के रहस्य को भी जानने लगा है, समझ रहा है । अभ्यास करते करते वह इस गीत को अपने अस्तित्व का अंग बना रहा है । वह गीत सुनता है तब के और गीत का अभ्यास होने के बाद में जो आनंद आता है उसमें बहुत अंतर है । अंतर उसे स्वयं समझ में आता है । |
| | | |
− | कालांश के ही समान आज की व्यवस्था स्थान से
| + | ''यह अंतर... सिद्धांत किस प्रकार लागू होता है ? इन'' |
| | | |
− | बद्ध हो गई है । विभिन्न कक्षाओं को विभिन्न कक्षों
| + | ''उसके साथ रहने वालों के भी समझ में आता है । अभ्यास... विषयों में अधीति और बोध तो समझ में आता है परंतु'' |
| | | |
− | के साथ जोड़ दिया गया है । यह आठवीं का, यह | + | ''के बाद प्रयोग का पद है । उस गीत को वह अपने आनंद. अभ्यास और प्रयोग का पद कैसा होगा ? उत्तर यह है कि'' |
| | | |
− | पाँचवीं का, यह प्रथमा का कक्ष है ऐसा निश्चित
| + | ''के लिए गाता है और दूसरों को आनंद देने के लिए भी... बुद्धि से और मन से ग्रहण किए जाने वाले विषयों में'' |
| | | |
− | किया जाता है और उस कक्षा के छात्र सारे विषय
| + | ''गाता है । गीतका अभ्यास जैसे जैसे बढ़ता जाता है वैसे. पंचपदी का सिद्धांत किस प्रकार काम करता है यह जानना'' |
| | | |
− | उसी कक्ष में बैठकर पढ़ते हैं । स्वाभाविक बात तो
| + | ''वैसे उसके स्वर, ताल और लय परिपक्क होते जाते हैं । इस... भी महत्त्वपूर्ण है । अभी हमने देखा कि अधीति और बोध'' |
| | | |
− | यह है कि सारे विषय केवल कक्षाकक्ष में पढे जाते हैं
| + | ''ज्ञान का उपयोग वह अन्य गीत सीखने में करता है ।.. के पद को समझना कठिन नहीं है । अब हम देखें कि एक'' |
| | | |
− | ऐसा भी नहीं है । वे कक्षाकक्ष के बाहर, विद्यालय
| + | ''शास्त्रीय संगीत में वह प्रगति करता है । आगे के अभ्यास. सिद्धांत हमारे सामने रखा जा रहा है । प्रथम तो हमने पूरा'' |
| | | |
− | परिसर में, घर में, समाज में पढे जाते हैं । विभिन्न
| + | ''के लिए इस गीत का अभ्यास उसे उपयोगी होता है । यह... विवेचन आँखों से, मन से, बुद्धि से ग्रहण किया । हमारा'' |
| | | |
− | क्रियाकलापों के माध्यम से पढ़े जाते हैं। उन्हें
| + | ''उसके लिए प्रयोग का पद है । जब वह गाता है तब और... ग्रहण करना निर्दोष है, प्रामाणिक है । हमें स्वयं को ही यह'' |
| | | |
− | निश्चित कालावधि में बांधना, निश्चित स्थान और
| + | ''लोग सुनते हैं । कोई एक व्यक्ति उससे यह गीत सीखना भी... बात समझ में आती है । पढ़ लेने के बाद भी वह हमारे मन'' |
| | | |
− | व्यवस्था में बांधना सर्वथा अनुचित है । ऐसा करना
| + | ''चाहता है । छात्र उसे सिखाता है । यह उसके लिए प्रवचन. में रहता है और धीरे धीरे बोध परिपक्क होता है । हमने ठीक'' |
| | | |
− | अध्ययन प्रक्रिया में ही अवरोध निर्माण करता है ।
| + | ''का पद है । सुनने वाले के और सीखने वाले के लिए यह... समझा कि नहीं उसे परखने के लिए हम अन्य feel'' |
| | | |
− | इसमें परिवर्तन की अत्यधिक आवश्यकता है ।
| + | ''अधीति का पद है । और किसीको न भी सिखाएं तब भी... भी पूछेंगे । हमारा विचार प्रस्तुत भी करेंगे । इस प्रकार'' |
| | | |
− | किसी भी विषय का अध्ययन केवल निश्चित समय
| + | ''छात्र अपनी ही प्रस्तुति में विविधता लाता है, नवीनता.. अपने अंतःकरण की सहायता से और अन्य लोगों की'' |
| | | |
− | पर, निश्चित समयावधि में, निश्चित पद्धति और
| + | ''लाता है । यह उसके लिए स्वाध्याय है । दूसरे किसी गीत. सहायता से या अन्य ग्रंथों की सहायता से हम सुने हुए'' |
| | | |
− | प्रक्रिया से, निश्चित एक ही स्थान पर नहीं हो सकता
| + | ''की स्वर रचना बनाता है । यह भी उसके लिए स्वाध्याय.... सिद्धांतों को ठीक से समझेंगे । इसके बाद अभ्यास का पद'' |
| | | |
− | है। यह बहुत कृत्रिम पद्धति है। शिक्षा जैसी
| + | ''का ही पद है । इस प्रकार उसका अध्ययन पाँच पदों में. शुरू होगा । कर्मेन्ट्रियों से होने वाली क्रिया का अभ्यास'' |
| | | |
− | आध्यात्मिक प्रक्रिया, जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व के साथ
| + | ''चलता है । ये पांच पद नहीं है तो उसका अध्ययन पूरा नहीं... और अंतःकरण से होने वाले अभ्यास में अंतर है।'' |
| | | |
− | जुड़ी हुई है, यांत्रिक पद्धति से नहीं हो सकती है ।
| + | ''होता, परिपक्क नहीं होता, उसके व्यक्तित्व का वह अंग नहीं... कर्मेन्ट्रियों की क्रियाएं देखी जाती हैं, उनका पुनरावर्तन'' |
| | | |
− | जीवन जिस प्रकार चलता है उसी प्रकार से शिक्षा भी
| + | ''बनता । प्रत्यक्ष होता है । अंतःकरण से होने वाला अभ्यास सूक्ष्म'' |
| | | |
− | चलती है ।
| + | ''होता है । पंचपदी की प्रक्रिया को हम अनेक विषयों को'' |
| | | |
− | इसलिए कक्षों का विभाजन कक्षाओं के अनुसार
| + | ''लागू करने का अभ्यास करते हैं । हम अनेक उदाहरण Gad'' |
| | | |
− | करने के स्थान पर विषयों के अनुसार करना उचित
| + | ''इस लेख का ही उदाहरण लें । जो भी पाठक इसे. हैं । केवल सिद्धांत समझने का ही नहीं तो प्रक्रियाओं को'' |
| | | |
− | है। यह शिक्षा के जीवमान स्वभाव को ध्यान में
| + | ''पढ़ते हैं उनके लिए यह अधीति है । पढ़ने के बाद पाठक. समझने का कार्य भी हमारी बुद्धि कर रही है। इसके'' |
| | | |
− | रखकर की गई व्यवस्था है ।
| + | ''जब उस पर मनन, चिंतन, चर्चा करेंगे तब वह बोध के पद अभ्यास के द्वारा हमारा मन एकाग्र होता है और बुद्धि'' |
| | | |
− | इस प्रकार विभाजन करने से विभिन्न विषयों के
| + | ''से गुजर रहा है । ध्यान देने योग्य बात यह है कि aia a परिष्कृत होती रहती है । यह भी अभ्यास का ही परिणाम'' |
| | | |
− | स्वरूप के अनुसार व्यवस्था करने की सुविधा निर्माण
| + | ''होने वाली क्रियाओं के संबंध में पांच पद किस प्रकार. है । एक विषय को या मुद्दे को समझते समझते हमारी बुद्धि'' |
| | | |
− | होती है। हर विषय का कक्ष उस विषय की
| + | ''व्यवहार में आते हैं यह सरलता से समझ में आता है परंतु सक्षम, निर्दोष और परिपक्क बनती जाती है । यह हमारी'' |
| | | |
− | प्रयोगशाला हो सकता है । विषय के साथ संबन्धित
| + | ''अध्ययन केवल कर्मेन्ट्रियों से ही नहीं होता है । वह हमेशा. उपलब्धि है । अन्यत्र कहीं हमने सुना है कि विषयों की'' |
| | | |
− | सम्पूर्ण साहित्य और सामाग्री उस कक्ष में हो सकती
| + | ''क्रिया ही नहीं होता है। उदाहरण & fee site, जानकारी का उपयोग ज्ञानार्जन के करणों के विकास में होता'' |
| | | |
− | ............. page-164 .............
| + | ''मनोविज्ञान या तत्त्वज्ञान का अध्ययन कर्मेन्ट्रि यों का विषय है। इन सिद्धांतों को लागू करने का अभ्यास स्वयं इस'' |
| | | |
− | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
| + | ''नहीं है । विज्ञान और तंत्रज्ञान के सिद्धांत समझना केवल. सिद्धांत को ठीक से समझने में तो होता ही है परंतु अन्य'' |
| | | |
− | है । बैठक व्यवस्था से लेकर वातावरण होगा और छात्र अपनी अपनी क्षमता के अनुसार | + | ''कर्मेन्ट्रियों का विषय नहीं है । इनके बारे में पंचपदी का... सिद्धांत समझने के लिए भी उपयोगी होता है । विषय और'' |
| | | |
− | उसी विषय के अनुरूप बनाया जा सकता है । विज्ञान किसी विषय का पाठ्यक्रम बारह, ग्यारह या हो
| + | == ''लेख का उदाहरण'' == |
| + | ''Bua'' |
| | | |
− | की प्रयोगशाला, उद्योग की कार्यशाला, संगीत की सकता है कि पंद्रह वर्षों में पूर्ण करेंगे । अर्थात बारह
| + | ''............. page-162 .............'' |
| | | |
− | संगीतशाला, चित्र तथा अन्य कलाओं की वर्षों कि अवधि में कोई छात्र बारह वर्ष सामाजिक
| + | करण दोनों एक दूसरे के लिए सहयोगी बनते हैं । यह भी ज्ञानार्जन की प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । अभ्यास से विषय तो पक्का होता ही है, साथ ही विवेक भी बढ़ता है और ज्ञान प्राप्त करने से जो प्रसन्नता होती है उसका भी अनुभव होता है। यह कदाचित अंतःकरण के स्तर पर होने वाली ज्ञानार्जन की प्रक्रिया है । यह हमारे लिए अभ्यास का पद है । इसके बाद हम प्रयोग के पद पर पहुंचते हैं । हमारे अध्यापन कार्य में पंचपदी के सिद्धांत का ज्ञान व्यक्त होता है । हमारा अध्यापन अध्ययन का कार्य अधिक समर्थ और अधिक प्रभावी बनता है । हम भी अध्यापन का कार्य इस सिद्धांत के प्रकाश में करते हैं । छात्र अध्ययन के किस पद से गुजर रहा है इसका भी पता हमें चलता है । छात्र का बोध का पद ठीक हुआ कि नहीं इसकी और हमारा विशेष ध्यान रहता है । हमारा अध्यापन छात्रों को भी ठीक लगता है । सामान्य भाषा में इसे ही अनुभवी अध्यापक कहते हैं । यह हमारे लिए प्रयोग का पद है । हम देख रहे हैं कि पंचपदी के सिद्धांत को लेकर लेखक के लिए प्रसार का पद है । लेखक प्रवचन कर रहा है। अर्थात उसने जो समझा है वह पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास वह कर रहा है । हम जब वैसा करेंगे तब वह हमारे लिए प्रसार का पद होगा । परंतु केवल पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना ही प्रसार नहीं है । वह उसका एक आयाम है । यह प्रवचन है । पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते समय लेखक स्वयं का परीक्षण करता है । वह देखता है कि उसे ठीक से प्रस्तुत करना आया कि नहीं । लेखक ज्ञानार्जन की प्रक्रिया के अन्य सिद्धांतों के साथ पंचपदी के सिद्धांत की तुलना करता है । वह यह प्रक्रिया किस प्रकार होती है इसका भी चिंतन करता है । पाठक भी यह करेंगे । तब लेखक और पाठक सबके लिए यह स्वाध्याय का पद होगा । इसी प्रकार से अन्य विषयों को भी समझा जाता है । दोनों पद्धतियों की तुलना शिक्षक प्रशिक्षण के कई पाठ्यक्रमों में हमने हर्बर्ट की पंचपदी के विषय में सुना है और पढ़ा भी है । यहाँ जो पंचपदी प्रस्तुत हुई है उसमें और हर्बर्ट की पंचपदी में क्या अंतर है ? क्या दोनों का समन्वय किया जा सकता है ? |
| | | |
− | कलाशाला, भाषा और साहित्य का साहित्यमंदिर, शास्त्रों का अध्ययन पूर्ण करता है तो उसके तीन बचे
| + | हर्बर्ट की पंचपदी मूल रूप से अध्यापन की पंचपदी है । अध्यापक को कक्षाकक्ष में विषय किस प्रकार प्रस्तुत करना है उसका मार्गदर्शन यह पंचपदी करती है । व्यापक संदर्भ में कहे तो पाश्चात्य जगत की सारी अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया यांत्रिकता से ग्रस्त हो गई है। अध्यापन को कालांश नामक समयसीमा में बद्ध करती है । अध्यापन कौशल को छोटे छोटे हिस्सों में बांटती है । जिस प्रकार एक यंत्र के छोटो छोटे हिस्से बनते हैं उसी प्रकार एक विषय को उपपविषयों में विभाजित किया जाता है उस के मुद्दे बनाए जाते हैं और एक ३५ या ४५ मिनट की समय सीमा में कया पढ़ाना है यह तय किया जाता है । उस समय सीमा के भी हिस्से किए जाते हैं और उन हिस्सों में क्या क्या करना है किस प्रकार करना है यह निश्चित किया जाता है । मोटे मोटे यह पांचपद से होते हैं और वे क्रमशः भी होते हैं इसलिए उसे पंचपदी कहा जाता है । हर्बर्ट नामक शिक्षाशास्त्री उस का आविष्कार किया था इसलिए उसे हर्बर्ट की पंचपदी कहते हैं । हमारे पंचपदी के सिद्धांत और हर्बर्ट की पंचपदी में जो मौलिक अंतर है वह है हर्बर्ट की पंचपदी, अध्यापक की पंचपदी है जबकि हमारी पंचपदी अध्ययन की पंचपदी है । हर्बर्ट की पंचपदी क्रिया है और हमारी पंचपदी प्रक्रिया है । क्रिया कौशल के साथ जुड़ी हुई है और प्रक्रिया अर्जन के साथ । हर्बर्ट की पंचपदी अध्यापन कौशल को विकसित करती है जबकि हमारी पंचपदी अध्ययन के मनोविज्ञान को दर्शाती है । मुझे लगता है कि इस मूल अंतर को समझने से सारी बातें स्पष्ट हो जाती हैं । |
| | | |
− | इतिहास और भूगोल की पुरातत्त्वशाला आदि की हुए वर्ष कठिन लगने वाले विषय का अधिक
| + | कवि श्रीहर्ष के नैषधिचरित नामक महाकाव्य में एक प्रकार से इसका उल्लेख आता है । नल राजा गुरुकुल में पढ़ते हैं तब उनका अध्ययन जिस पद्धति से चलता है उसे ४ पदों में बताया गया है | ये चार पद है अधीति, बोध, आचरण और प्रचार । हमारे देश में शिक्षा क्षेत्र में अभी विद्याभारती नामक एक अखिल भारतीय संगठन कार्यरत हैं। इस संगठन के प्रथम संगठन मंत्री थे श्री लज्जाराम जी तोमर । |
| | | |
− | रचना की जा सकती है । अध्ययन करने के लिए दे सकता है ।
| + | उन्होंने नैषधिचरित नामक महाकाव्य में उल्लेखित चार पदों में अपनी ओर से एक पद और जोड़ दिया । वह पद था अभ्यास का । उसके साथ यह पांच पद हुए । इस पद्धति का उन्होंने विस्तार भी किया । हम अपनी पंचपदी को उनका नाम जोड़ सकते हैं । अतः एक पद्धति है हर्बर्ट की पंचपदी और दूसरी है तोमर की पंचपदी । एक पाश्चात्य है एक भारतीय । एक अध्यापक की पंचपदी है दूसरी अध्येता की । एक क्रिया है दूसरी प्रक्रिया है । एक कौशल है दूसरी अर्जन । एक का संबंध कक्षा कक्ष की गतिविधि के साथ है दूसरे का संबंध छात्र के स्वयं के प्रयास के साथ है । यह प्रयास कक्षाकक्ष तक सीमित नहीं है। यह एक निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है । पूर्व का अभ्यास नए विषय के अध्ययन के लिए अधिती कार्य भी कर सकता है । पूर्व प्रयोग से नए विषय का बोध अधिक सुगमता से होता है । ज्ञानार्जन निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है इसी बात को पंचपदी दर्शाती है । |
| | | |
− | ६... ऐसा करने से विषयों की साधनसामग्री एक ही स्थान... ११. इस व्यवस्था में अध्ययन स्वाभाविक हो सकता है,
| + | == विषय अनुसार कक्ष रचना == |
| + | हमने पूर्व में पंचपदी अध्ययन पद्धति की चर्चा की । बालक तो क्या सभी के लिए किसी भी विषय को आत्मसात करने की प्रक्रिया वही होती है । घर और विद्यालय दोनों में वैसी ही होती है । इस प्रक्रिया को ध्यान में लेकर व्यवस्थायें बनाना आचार्य का काम है । |
| | | |
− | पर उपलब्ध हो जाती है। विषय का आकलन आवश्यक और सहज गति से हो सकता है, पर्याप्त | + | व्यवस्था के मुख्य अंग इस प्रकार हैं: |
| + | # वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन : वर्तमान में विद्यालयों और महाविद्यालयों में कालांश पद्धति चलती है । शिशुवाटिका में बीस मिनट से लेकर क्रमश: तीस, पैंतीस, चालीस, पैंतालीस और साठ मिनट के कालांशों का प्रचलन होता है । इस निश्चित अवधि के साथ विषय बदलता है, शिक्षक बदलता है और कभी कभी स्थान भी बदलता है । स्थान बदलने के अवसर तुलना में कम होते हैं । कभी खेल के मैदान में या विज्ञान की प्रयोगशाला में जाना होता है। परन्तु यह सभी विषयों को लागू नहीं है । अधिकांश विषय एक ही स्थान पर बैठकर पढे जाते हैं । इस व्यवस्था में परिवर्तन आवश्यक है। |
| + | # कालांश के ही समान आज की व्यवस्था स्थान से बद्ध हो गई है । विभिन्न कक्षाओं को विभिन्न कक्षों के साथ जोड़ दिया गया है । यह आठवीं का, यह पाँचवीं का, यह प्रथमा का कक्ष है ऐसा निश्चित किया जाता है और उस कक्षा के छात्र सारे विषय उसी कक्ष में बैठकर पढ़ते हैं । स्वाभाविक बात तो यह है कि सारे विषय केवल कक्षाकक्ष में पढे जाते हैं ऐसा भी नहीं है । वे कक्षाकक्ष के बाहर, विद्यालय परिसर में, घर में, समाज में पढे जाते हैं । विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से पढ़े जाते हैं। उन्हें निश्चित कालावधि में बांधना, निश्चित स्थान और व्यवस्था में बांधना सर्वथा अनुचित है । ऐसा करना अध्ययन प्रक्रिया में ही अवरोध निर्माण करता है । इसमें परिवर्तन की अत्यधिक आवश्यकता है । |
| + | # किसी भी विषय का अध्ययन केवल निश्चित समय पर, निश्चित समयावधि में, निश्चित पद्धति और प्रक्रिया से, निश्चित एक ही स्थान पर नहीं हो सकता है। यह बहुत कृत्रिम पद्धति है। शिक्षा जैसी आध्यात्मिक प्रक्रिया, जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व के साथ जुड़ी हुई है, यांत्रिक पद्धति से नहीं हो सकती है । जीवन जिस प्रकार चलता है उसी प्रकार से शिक्षा भी चलती है । |
| + | # इसलिए कक्षों का विभाजन कक्षाओं के अनुसार करने के स्थान पर विषयों के अनुसार करना उचित है। यह शिक्षा के जीवमान स्वभाव को ध्यान में रखकर की गई व्यवस्था है । |
| + | # इस प्रकार विभाजन करने से विभिन्न विषयों के स्वरूप के अनुसार व्यवस्था करने की सुविधा निर्माण होती है। हर विषय का कक्ष उस विषय की प्रयोगशाला हो सकता है । विषय के साथ संबन्धित सम्पूर्ण साहित्य और सामाग्री उस कक्ष में हो सकती है । बैठक व्यवस्था से लेकर वातावरण होगा और छात्र अपनी अपनी क्षमता के अनुसार उसी विषय के अनुरूप बनाया जा सकता है । विज्ञान किसी विषय का पाठ्यक्रम बारह, ग्यारह या हो की प्रयोगशाला, उद्योग की कार्यशाला, संगीत की सकता है कि पंद्रह वर्षों में पूर्ण करेंगे । अर्थात बारह संगीतशाला, चित्र तथा अन्य कलाओं की वर्षों कि अवधि में कोई छात्र बारह वर्ष सामाजिक कलाशाला, भाषा और साहित्य का साहित्यमंदिर, शास्त्रों का अध्ययन पूर्ण करता है तो उसके तीन बचे इतिहास और भूगोल की पुरातत्त्वशाला आदि की हुए वर्ष कठिन लगने वाले विषय का अधिक रचना की जा सकती है । अध्ययन करने के लिए दे सकता है । |
| + | # ''ऐसा करने से विषयों की साधनसामग्री एक ही स्थान... ११. इस व्यवस्था में अध्ययन स्वाभाविक हो सकता है,'' |
| + | ''पर उपलब्ध हो जाती है। विषय का आकलन आवश्यक और सहज गति से हो सकता है, पर्याप्त'' |
| | | |
− | सरलता से होता है । समय देकर हो सकता है । छोटे और बड़े छात्र एक | + | ''सरलता से होता है । समय देकर हो सकता है । छोटे और बड़े छात्र एक'' |
| | | |
− | ७. विषय के अनुसार कक्षस्वना करने के लिए कालांश साथ अध्ययन करते हैं इसलिए बड़े छात्र छोटे छात्रों | + | ''७. विषय के अनुसार कक्षस्वना करने के लिए कालांश साथ अध्ययन करते हैं इसलिए बड़े छात्र छोटे छात्रों'' |
| | | |
− | पद्धति बदलनी होती है । समयसारिणी में परिवर्तन को सहायता कर सकते हैं । एक ही कक्षा में किसी | + | ''पद्धति बदलनी होती है । समयसारिणी में परिवर्तन को सहायता कर सकते हैं । एक ही कक्षा में किसी'' |
| | | |
− | करना होता है । अब सारे विषय एक ही अवधि के छात्र का अधिति का, किसीका बोध का । किसीका | + | ''करना होता है । अब सारे विषय एक ही अवधि के छात्र का अधिति का, किसीका बोध का । किसीका'' |
| | | |
− | नहीं रखे जा सकते । विषय की प्रकृति के अनुरूप अभ्यास का, किसीका प्रसार का पद सम्भव होता | + | ''नहीं रखे जा सकते । विषय की प्रकृति के अनुरूप अभ्यास का, किसीका प्रसार का पद सम्भव होता'' |
| | | |
− | समय का विभाजन करना होता है । है । पंचपदी अध्ययन पद्धति के लिए इस प्रकार की | + | ''समय का विभाजन करना होता है । है । पंचपदी अध्ययन पद्धति के लिए इस प्रकार की'' |
| | | |
− | ८... साथ ही एक ही कक्षा के छात्र एक साथ बैठेंगे ऐसा रचना अनिवार्य है । | + | ''८... साथ ही एक ही कक्षा के छात्र एक साथ बैठेंगे ऐसा रचना अनिवार्य है ।'' |
| | | |
− | भी आवश्यक नहीं है । एक कक्ष में बैठ सकें उतनी... १२. आचार्य और छात्रों का समरस सम्बन्ध बनने में यह | + | ''भी आवश्यक नहीं है । एक कक्ष में बैठ सकें उतनी... १२. आचार्य और छात्रों का समरस सम्बन्ध बनने में यह'' |
| | | |
− | संख्या में दो तीन कक्षाओं के छात्र एकसाथ बैठेंगे । रचना बहुत सहायक होती है । यह एक एक विषय | + | ''संख्या में दो तीन कक्षाओं के छात्र एकसाथ बैठेंगे । रचना बहुत सहायक होती है । यह एक एक विषय'' |
| | | |
− | अर्थात कोई छात्र चौद्ह वर्ष आयु के हैं तो कोई का छोटा गुरुकुल अथवा छोटा विद्यालय बन जाता | + | ''अर्थात कोई छात्र चौद्ह वर्ष आयु के हैं तो कोई का छोटा गुरुकुल अथवा छोटा विद्यालय बन जाता'' |
| | | |
− | बारह और कोई ग्यारह वर्ष आयु के भी हो सकते है। | + | ''बारह और कोई ग्यारह वर्ष आयु के भी हो सकते है।'' |
| | | |
− | हैं। १३, सभी कक्षाओं का नियोजन भी विषयों के अनुसार ही | + | ''हैं। १३, सभी कक्षाओं का नियोजन भी विषयों के अनुसार ही'' |
| | | |
− | 8. किंबहुना अब कक्षाओं के अनुसार छात्रों का होता है, न कि कक्षाओं के अनुसार । | + | ''8. किंबहुना अब कक्षाओं के अनुसार छात्रों का होता है, न कि कक्षाओं के अनुसार ।'' |
| | | |
− | विभाजन नहीं हो सकता, विषयों के अनुसार छात्रों. १४. आज की व्यवस्था के हम इतने अभ्यस्त हो गए हैं | + | ''विभाजन नहीं हो सकता, विषयों के अनुसार छात्रों. १४. आज की व्यवस्था के हम इतने अभ्यस्त हो गए हैं'' |
| | | |
− | का विभाजन होगा । यह नौवीं का, यह सातवीं का, कि इस प्रकार की रचना हमें जल्दी समझ में नहीं | + | ''का विभाजन होगा । यह नौवीं का, यह सातवीं का, कि इस प्रकार की रचना हमें जल्दी समझ में नहीं'' |
| | | |
− | यह पाँचवीं का इस प्रकार कक्षों का विभाजन करने आती । परन्तु ठीक से विचार करने पर इसकी | + | ''यह पाँचवीं का इस प्रकार कक्षों का विभाजन करने आती । परन्तु ठीक से विचार करने पर इसकी'' |
| | | |
− | के स्थान पर विज्ञान, भाषा, इतिहास आदि के उपयोगिता ध्यान में आती है । | + | ''के स्थान पर विज्ञान, भाषा, इतिहास आदि के उपयोगिता ध्यान में आती है ।'' |
| | | |
− | अनुसार कक्षों का विभाजन होगा । १५, इस प्रकार की स्वना करने के लिए विद्यालय के | + | ''अनुसार कक्षों का विभाजन होगा । १५, इस प्रकार की स्वना करने के लिए विद्यालय के'' |
| | | |
− | Qo, विषय के अनुसार कक्ष रचना करने के लिए एक एक भवन की स्चना का भी विशेष विचार करना होगा । | + | ''Qo, विषय के अनुसार कक्ष रचना करने के लिए एक एक भवन की स्चना का भी विशेष विचार करना होगा ।'' |
| | | |
− | वर्ष की एक एक कक्षा की अवधि भी नहीं रहेगी । सभी कक्ष एक ही नाप के, एक ही आकारप्रकार के | + | ''वर्ष की एक एक कक्षा की अवधि भी नहीं रहेगी । सभी कक्ष एक ही नाप के, एक ही आकारप्रकार के'' |
| | | |
− | कुल बारह वर्ष पढ़ना है तो छात्र अपनी अपनी नहीं हो सकते । विषय के स्वरूप के अनुसार ही | + | ''कुल बारह वर्ष पढ़ना है तो छात्र अपनी अपनी नहीं हो सकते । विषय के स्वरूप के अनुसार ही'' |
| | | |
− | क्षमता के अनुसार विभिन्न विषयों के कक्षों में बैठकर कक्षों का निर्माण भी करना होगा । | + | ''क्षमता के अनुसार विभिन्न विषयों के कक्षों में बैठकर कक्षों का निर्माण भी करना होगा ।'' |
| | | |
− | अध्ययन करेंगे । विषयों का पाठ्यक्रम एक एक वर्ष. १६. संक्षेप में पंचपदी अध्ययन पद्धति के लिए | + | ''अध्ययन करेंगे । विषयों का पाठ्यक्रम एक एक वर्ष. १६. संक्षेप में पंचपदी अध्ययन पद्धति के लिए'' |
| | | |
− | में विभाजित होने के स्थान पर निरन्तर बारह वर्षों का विषयानुसार कक्षस्वना अनिवार्य है । | + | ''में विभाजित होने के स्थान पर निरन्तर बारह वर्षों का विषयानुसार कक्षस्वना अनिवार्य है ।'' |
| | | |
− | श्ंट | + | ''श्ंट'' |
| ==References== | | ==References== |
| <references /> | | <references /> |