स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि समस्त ज्ञान हमारे अन्दर ही होता है, शिक्षा से इसका अनावरण होता है । श्रीमद्भागवद्गीता भी कहती है:<blockquote>अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः।।5.15।।</blockquote>अर्थात ज्ञान अज्ञान से आवृत होता है इसलिए मनुष्य दिग्श्रमित होते हैं ।
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अन्दर ही होता है, शिक्षा से इसका अनावरण होता है ।
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अज्ञान का आवरण दूर कर अन्दर के ज्ञान को प्रकट करने हेतु सहायता करने वाले साधन मनुष्य को जन्मजात मिले हुए हैं । उन्हें ही ज्ञानार्जन के करण कहते हैं। इन करणों के जो कार्य हैं वे ही ज्ञानार्जन की प्रक्रिया है । ज्ञाना्जन के करण और उनके कार्य इस प्रकार हैं ...
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श्रीमद्धगवद्ीता भी कहती है, 'अज्ञानेनावृतम्ू ज्ञानमू तेन
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कर्मन्द्रियाँ का कार्य क्रिया करना
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मुहयन्ति जन्तव:' अर्थात ज्ञान अज्ञान से आवृत होता है
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इसलिए मनुष्य दिग्श्रमित होते हैं । अज्ञान का आवरण दूर
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कर अन्दर के ज्ञान को प्रकट करने हेतु सहायता करने वाले
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साधन मनुष्य को जन्मजात मिले हुए हैं । उन्हें ही ज्ञानार्जन
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के करण कहते हैं। इन करणों के जो कार्य हैं वे ही
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ज्ञानार्जन की प्रक्रिया है । ज्ञाना्जन के करण और उनके