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== वनवासी क्षेत्र और शिक्षा ==
 
== वनवासी क्षेत्र और शिक्षा ==
 
विशाल भारत के लगभग सभी राज्यों में वनवासी क्षेत्र है। पूरे देश में लगभग १०.४३ करोड वनवासी लोग रहते हैं। देश की कुल जनसंख्या का यह ८.६ प्रतिशत है वैश्विक सन्दर्भ में भी वनवासी क्षेत्र की शिक्षा का विचार करने की आवश्यकता तो है ही क्योंकि वन तो पृथ्वी पर सर्वत्र है। परन्तु हम यहाँ विशेष रूप से भारत के सन्दर्भ में विचार करेंगे। इस सन्दर्भ में कुछ इस प्रकार से विचार करना चाहिए:
 
विशाल भारत के लगभग सभी राज्यों में वनवासी क्षेत्र है। पूरे देश में लगभग १०.४३ करोड वनवासी लोग रहते हैं। देश की कुल जनसंख्या का यह ८.६ प्रतिशत है वैश्विक सन्दर्भ में भी वनवासी क्षेत्र की शिक्षा का विचार करने की आवश्यकता तो है ही क्योंकि वन तो पृथ्वी पर सर्वत्र है। परन्तु हम यहाँ विशेष रूप से भारत के सन्दर्भ में विचार करेंगे। इस सन्दर्भ में कुछ इस प्रकार से विचार करना चाहिए:
* वनों में रहने वाले वन की प्रकृति के अंग रूप बनकर जीते हैं । वनों में विभिन्न प्रकार की वनस्पति और औषधि भरपूर मात्रा में होती हैं । वन इतने गहन होते हैं कि वहाँ सड़कें बनना संभव नहीं होता । वनों के साथ अधिकांश पहाड़ भी होते हैं । वनों और पहाड़ों के कारण यातायात दुर्गम होता है । वहाँ का आहार वहाँ उगने वाले धान्य और सागसब्जी और फलों का
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* वनों में रहने वाले वन की प्रकृति के अंग रूप बनकर जीते हैं । वनों में विभिन्न प्रकार की वनस्पति और औषधि भरपूर मात्रा में होती हैं । वन इतने गहन होते हैं कि वहाँ सड़कें बनना संभव नहीं होता । वनों के साथ अधिकांश पहाड़ भी होते हैं । वनों और पहाड़ों के कारण यातायात दुर्गम होता है । वहाँ का आहार वहाँ उगने वाले धान्य और सागसब्जी और फलों का होता है । वहाँ के आवास, वस्त्रालंकार आदि वहाँ प्राप्त होने वाली सामग्री से बनते हैं ।
होता है । वहाँ के आवास, वस्त्रालंकार आदि वहाँ
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* यह सब उनके लिये स्वाभाविक है । वे उससे खुश ही रहते हैं । उन्हें अभाव का अनुभव नहीं होता है । उनके अपने नृत्य, गीत, उत्सव होते हैं । उनके अपने देवीदेवता होते हैं । उनकी अपनी पूजापद्धति होती है, अपनी आस्थायें होती हैं । उनकी अपनी सामाजिकता होती है, अपने विवाहसंबंध होते हैं और अपने रीतिरिवाज होते हैं । संक्षेप में उनकी अपनी एक संस्कृति होती है । इस संस्कृति की रक्षा करने हेतु उनके लिये शिक्षा की व्यवस्था होना आवश्यक है ।
 
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* वनवासी लोग वनों की दुर्गमता में रहते हैं । वनों में वन्य पशु और जीवजन्तु होते हैं । उनके साथ रहते रहते उनमें निर्भयता और निर्दोषता दोनों का विकास होता है । वन्य पशुओं से उनकी मित्रता भी हो जाती है । साहस, शारीरिक कौशल और बल उनमें बहुत अधिक होते हैं । वन्य पशुओं के साथ रहने में जो चापल्य की आवश्यकता होती है वह भी उनमें बहुत होता है ।
प्राप्त होने वाली सामग्री से बनते हैं ।
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* वे वन की वनस्पति को जानते हैं, वन्य पशुओं के स्वभाव को जानते हैं, उनसे बचना कैसे वह भी जानते हैं । वनस्पति के औषधि गुणों का उनका ज्ञान अद्भुत होता है। किसी भी प्रकार की बीमारी का इलाज वे कर सकते हैं । कलाकारीगरी इतनी अच्छी जानते हैं कि उनके घर, उनके अलंकार आदि में वह दिखाई देता है । उदाहरण के लिये आवास निर्माण करना उन्हें अवगत है । ये तो केवल उदाहरण हैं । ये केवल इस बात का निर्देश देते हैं कि प्रकृति विषयक उनका ज्ञान किसी भी शास्त्र से कम नहीं होता है।
 
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* जीवन की उनकी अपनी समझ है । उनके मनुष्यों के साथ और वन्य पशुओं तथा वनस्पति जगत के साथ सम्बन्ध मूल रूप से न्याय, मैत्री और प्रामाणिकता के होते हैं। उनकी जीवनविषयक समझ सादी परन्तु सीधी होती है, जटिलता बहुत कम होती है ।
यह सब उनके लिये स्वाभाविक है । वे उससे खुश ही
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* संक्षेप में कहें तो सांस्कृतिक और भौतिक दोनों दृष्टि से उनका जीवन स्वयमपूर्ण होता है । इस संस्कृति पर आज जो संकट छाये हैं वे अधिकांश हमारे कारण से हैं । इनका स्वरूप इस प्रकार का है:
 
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रहते हैं । उन्हें अभाव का अनुभव नहीं होता है ।
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उनके अपने नृत्य, गीत, उत्सव होते हैं । उनके अपने
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देवीदेवता होते हैं । उनकी अपनी पूजापद्धति होती है,
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अपनी आस्थायें होती हैं । उनकी अपनी सामाजिकता
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होती है, अपने विवाहसंबंध होते हैं और अपने
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रीतिरिवाज होते हैं । संक्षेप में उनकी अपनी एक
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संस्कृति होती है । इस संस्कृति की रक्षा करने हेतु
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उनके लिये शिक्षा की व्यवस्था होना आवश्यक है ।
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वनवासी लोग वनों की दुर्गमता में रहते हैं । वनों में
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वन्य पशु और जीवजन्तु होते हैं । उनके साथ रहते
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रहते उनमें निर्भयता और निर्दोषता दोनों का विकास
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होता है । वन्य पशुओं से उनकी मित्रता भी हो जाती
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है । साहस, शारीरिक कौशल और बल उनमें बहुत
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अधिक होते हैं । वन्य पशुओं के साथ रहने में जो
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चापल्य की आवश्यकता होती है वह भी उनमें बहुत
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होता है ।
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वे वन की वनस्पति को जानते हैं, वन्य पशुओं के
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स्वभाव को जानते हैं, उनसे बचना कैसे वह भी जानते
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हैं । वनस्पति के औषधि गुणों का उनका ज्ञान अद्भुत
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होता है । किसी भी प्रकार की बीमारी का इलाज वे
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कर सकते हैं । कलाकारीगरी इतनी अच्छी जानते हैं
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कि उनके घर, उनके अलंकार आदि में वह दिखाई
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अवगत है । ये तो केवल उदाहरण हैं । ये केवल इस
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बात का निर्देश देते हैं कि प्रकृति विषयक उनका ज्ञान
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किसी भी शाख्रज्ञ से कम नहीं होता है ।
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जीवन की उनकी अपनी समझ है । उनके मनुष्यों के
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वनस्पति जगत के साथ सम्बन्ध मूल रूप से न्याय,
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मैत्री और प्रामाणिकता के होते हैं। उनकी
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जीवनविषयक समझ सादी परन्तु सीधी होती है,
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जटिलता बहुत कम होती है ।
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संक्षेप में कहें तो सांस्कृतिक और भौतिक दोनों दृष्टि
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से उनका जीवन स्वयमपूर्ण होता है ।
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इस संस्कृति पर आज जो संकट छाये हैं वे अधिकांश
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हमारे कारण से हैं । इनका स्वरूप इस प्रकार का है ...
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हम उन्हें समझने की परवाह नहीं करते हैं । हमारे
 
हम उन्हें समझने की परवाह नहीं करते हैं । हमारे
  

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