अपने आपको आत्मतत्व के रूप में जानने की यह यात्रा जन्मजन्मांतर में चलती है। मनुष्य हर जन्म में इस यात्रा में आगे बढ़ता जाता है । मनुष्य इस जन्म में उस पूर्णता के अंश स्वरूप कुछ क्षमतायें लेकर आता है । शिक्षा इन क्षमताओं का प्रकटीकरण करती है । यही अंतर्निहित क्षमताओं का विकास है। मनुष्य की इस जन्म की अंतर्निहित क्षमताओं को उसकी विकास की संभावना कहा जाता है । अर्थात् इस जन्म में कितना विकास होगा इसका आधार उसकी अंतर्निहित क्षमतायें कितनी हैं उसके ऊपर निर्भर होता है। मनुष्य की क्षमतायें कितनी हैं यह जानने से पूर्व मनुष्य का स्वरूप क्या है यह जानना आवश्यक है । मनुष्य की क्षमताओं के आयाम कौन से हैं यह जानना आवश्यक है । इस संदर्भ में भारतीय शास्त्रों में विभिन्न प्रकार से मनुष्य का जो वर्णन किया गया है उसके सार रूप में कहें तो मनुष्य का व्यक्तित्व पाँचआयामी है । ये पाँच आयाम इस प्रकार हैं: | अपने आपको आत्मतत्व के रूप में जानने की यह यात्रा जन्मजन्मांतर में चलती है। मनुष्य हर जन्म में इस यात्रा में आगे बढ़ता जाता है । मनुष्य इस जन्म में उस पूर्णता के अंश स्वरूप कुछ क्षमतायें लेकर आता है । शिक्षा इन क्षमताओं का प्रकटीकरण करती है । यही अंतर्निहित क्षमताओं का विकास है। मनुष्य की इस जन्म की अंतर्निहित क्षमताओं को उसकी विकास की संभावना कहा जाता है । अर्थात् इस जन्म में कितना विकास होगा इसका आधार उसकी अंतर्निहित क्षमतायें कितनी हैं उसके ऊपर निर्भर होता है। मनुष्य की क्षमतायें कितनी हैं यह जानने से पूर्व मनुष्य का स्वरूप क्या है यह जानना आवश्यक है । मनुष्य की क्षमताओं के आयाम कौन से हैं यह जानना आवश्यक है । इस संदर्भ में भारतीय शास्त्रों में विभिन्न प्रकार से मनुष्य का जो वर्णन किया गया है उसके सार रूप में कहें तो मनुष्य का व्यक्तित्व पाँचआयामी है । ये पाँच आयाम इस प्रकार हैं: |