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लेख सम्पादित किया
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शिक्षा व्यक्ति के लिये होती है इस कथन में तो कोई
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शिक्षा व्यक्ति के लिये होती है इस कथन में तो कोई आश्चर्य नहीं है । वर्तमान में हम शिक्षा के जिस अर्थ से परिचित हैं वह है विद्यालय में जाकर जो पढ़ा जाता है वह ।परन्तु शिक्षा का यह अर्थ बहुत सीमित है । भारतीय परम्परा में एक “व्यक्ति के लिये शिक्षा के बारे में जो समझा गया है
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आश्चर्य नहीं है । वर्तमान में हम शिक्षा के जिस अर्थ से
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उसके प्रमुख आयाम इस प्रकार हैं:
 
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परिचित हैं वह है विद्यालय में जाकर जो पढ़ा जाता है वह ।
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परन्तु शिक्षा का यह अर्थ बहुत सीमित है । भारतीय परम्परा
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में एक “व्यक्ति के लिये शिक्षा के बारे में जो समझा गया है
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उसके प्रमुख आयाम इस प्रकार हैं ...
      
== शिक्षा आजीवन चलती है ==
 
== शिक्षा आजीवन चलती है ==
वर्तमान व्यवस्था की तरह शिक्षा को केवल विद्यालय
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वर्तमान व्यवस्था की तरह शिक्षा को केवल विद्यालय के साथ और केवल जीवन के प्रारंभिक वर्षों के साथ नहीं
 
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के साथ और केवल जीवन के प्रारंभिक वर्षों के साथ नहीं
      
जोड़ा गया । शिक्षा का जीवन के साथ वैसा संबंध जोड़ा भी
 
जोड़ा गया । शिक्षा का जीवन के साथ वैसा संबंध जोड़ा भी
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गर्भावस्‍था से ही वह जोड़ना शुरू कर देता है । जन्म के बाद
 
गर्भावस्‍था से ही वह जोड़ना शुरू कर देता है । जन्म के बाद
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पहले ही दिन से उसकी शिक्षा प्रारम्भ हो जाती है । वह
 
पहले ही दिन से उसकी शिक्षा प्रारम्भ हो जाती है । वह
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है। अनुभव से सिखता है । संक्षेप में एक दिन भी बिना
 
है। अनुभव से सिखता है । संक्षेप में एक दिन भी बिना
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सीखे खाली नहीं जाता । जीवन उसे सिखाता है, जगत उसे
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सीखे खाली नहीं जाता । जीवन उसे सिखाता है, जगत उसे सिखाता है, अंतरात्मा उसे सिखाती है ।. तत्त्व के बारे में जानने की इच्छा होती है । मनुष्य ही काव्य
 
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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सिखाता है, अंतरात्मा उसे सिखाती है ।. तत्त्व के बारे में जानने की इच्छा होती है । मनुष्य ही काव्य
      
अपने जीवन के अंतिम दिन तक वह सिखता ही है । मृत्यु. की रचना कर सकता है, मनुष्य ही नये नये आविष्कार कर
 
अपने जीवन के अंतिम दिन तक वह सिखता ही है । मृत्यु. की रचना कर सकता है, मनुष्य ही नये नये आविष्कार कर
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और स्वयं और जगत जिसमें से बने और जिसने बनाए उस... का पदार्थ माना जाता है और उसका बाजारीकरण हुआ है
 
और स्वयं और जगत जिसमें से बने और जिसने बनाए उस... का पदार्थ माना जाता है और उसका बाजारीकरण हुआ है
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पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
      
इसीलिए यह मुद्दा बताने की आवश्यकता होती है । शिक्षा
 
इसीलिए यह मुद्दा बताने की आवश्यकता होती है । शिक्षा
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है । मन को यदि वश में नहीं किया तो वह मनुष्य को प्राकृत
 
है । मन को यदि वश में नहीं किया तो वह मनुष्य को प्राकृत
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अवस्था में भी नहीं रहने देता, वह विकृति की ओर
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अवस्था में भी नहीं रहने देता, वह विकृति की ओर घसीटकर ले जाता है । मनुष्य की यदि
 
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घसीटकर ले जाता है । मनुष्य की यदि
      
यह स्थिति रही तो वह तो पशुओं से भी निम्न स्तर का हो
 
यह स्थिति रही तो वह तो पशुओं से भी निम्न स्तर का हो
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साधना है । सबके साथ रहने के लिए ही अनेक शास्त्र निर्मित
 
साधना है । सबके साथ रहने के लिए ही अनेक शास्त्र निर्मित
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हुए हैं, अनेक प्रकार के व्यवहार
 
हुए हैं, अनेक प्रकार के व्यवहार
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लेता है । आनन्द उसका केंद्रवर्ती भाव होता है । पाँच वर्ष
 
लेता है । आनन्द उसका केंद्रवर्ती भाव होता है । पाँच वर्ष
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पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
      
की आयु तक उसकी शिशु अवस्था होती है जिसमें उसकी
 
की आयु तक उसकी शिशु अवस्था होती है जिसमें उसकी
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सीखना है, दूसरा मातापिता से । लगभग दस वर्ष यह तैयारी
 
सीखना है, दूसरा मातापिता से । लगभग दस वर्ष यह तैयारी
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चलती है । फिर उसका विवाह होता है
 
चलती है । फिर उसका विवाह होता है
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सीखने लायक बातें सीखता है कभी न सीखने लायक, कभी
 
सीखने लायक बातें सीखता है कभी न सीखने लायक, कभी
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वह सीखाने के रूप में भी सीखता है कभी केवल सीखता
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वह सीखाने के रूप में भी सीखता है कभी केवल सीखता है । उसके सीखने के तरीके बहुत भिन्न
 
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है । उसके सीखने के तरीके बहुत भिन्न
      
भिन्न होते हैं । उसे सिखाने वाले भी तरह तरह के होते हैं ।
 
भिन्न होते हैं । उसे सिखाने वाले भी तरह तरह के होते हैं ।
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क्षमताओं का विकास है ।
 
क्षमताओं का विकास है ।
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मनुष्य की इस जन्म की अंतर्निहित क्षमताओं को
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मनुष्य की इस जन्म की अंतर्निहित क्षमताओं को उसकी विकास की संभावना कहा जाता है । अर्थात्‌ इस
 
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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उसकी विकास की संभावना कहा जाता है । अर्थात्‌ इस
      
जन्म में कितना विकास होगा इसका आधार उसकी
 
जन्म में कितना विकास होगा इसका आधार उसकी
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का प्रयास करेंगे ।
 
का प्रयास करेंगे ।
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पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
      
== आत्मतत्त्व ==
 
== आत्मतत्त्व ==
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आत्मतत्त्व ही कहा गया है ।
 
आत्मतत्त्व ही कहा गया है ।
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आत्मतत्त्व अपने अव्यक्त रूप में अजर अर्थात्‌ जो
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आत्मतत्त्व अपने अव्यक्त रूप में अजर अर्थात्‌ जो कभी वृद्ध नहीं होता, अक्षर अर्थात्‌
 
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कभी वृद्ध नहीं होता, अक्षर अर्थात्‌
      
जिसका कभी क्षरण नहीं होता, अचिंत्य अर्थात्‌ जिसका
 
जिसका कभी क्षरण नहीं होता, अचिंत्य अर्थात्‌ जिसका
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सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है यह पूर्व में ही कहा गया
 
सृष्टि परमात्मा का विश्वरूप है यह पूर्व में ही कहा गया
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है । इस सृष्टि में जितने भी पदार्थ हैं वे सारे पंचमहाभूत और
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है । इस सृष्टि में जितने भी पदार्थ हैं वे सारे पंचमहाभूत और त्रिगुण के बने हुए हैं । पृथ्वी, जल, तेज
 
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त्रिगुण के बने हुए हैं । पृथ्वी, जल, तेज
      
अथवा असि, वायु और आकाश ये पंचमहाभूत हैं । सत्त्व,
 
अथवा असि, वायु और आकाश ये पंचमहाभूत हैं । सत्त्व,
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मनुष्य का दिखाई देने वाला हिस्सा शरीर ही है ।
 
मनुष्य का दिखाई देने वाला हिस्सा शरीर ही है ।
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विभिन्न प्रकार के रूपरंग से ही एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से
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विभिन्न प्रकार के रूपरंग से ही एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से अलग होता है । यह शरीर अन्न से बना है इसलिये उसे
 
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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अलग होता है । यह शरीर अन्न से बना है इसलिये उसे
      
अन्नरसमय आत्मा कहते हैं । अन्न से रस बनता है इसलिये
 
अन्नरसमय आत्मा कहते हैं । अन्न से रस बनता है इसलिये
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करके ही रहता है और उसके आकार का ही होता है । शरीर
 
करके ही रहता है और उसके आकार का ही होता है । शरीर
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में सर्वत्र प्राण का संचार रहता है । श्वास के माध्यम से वह
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में सर्वत्र प्राण का संचार रहता है । श्वास के माध्यम से वह विश्वप्राण से जुड़ता है । जब तक प्राण शरीर में रहता है
 
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पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
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विश्वप्राण से जुड़ता है । जब तक प्राण शरीर में रहता है
      
तबतक मनुष्य जीवित रहता है, जब प्राण शरीर को छोड़कर
 
तबतक मनुष्य जीवित रहता है, जब प्राण शरीर को छोड़कर
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अन्नसरसमय है । यह उसका निर्जीव पदार्थों से साम्य है ।
 
अन्नसरसमय है । यह उसका निर्जीव पदार्थों से साम्य है ।
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वनस्पति और प्राणीसृष्टि अन्नमय के
 
वनस्पति और प्राणीसृष्टि अन्नमय के
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का आश्रय करके रहता है और शरीर में सर्वत्र व्याप्त होता
 
का आश्रय करके रहता है और शरीर में सर्वत्र व्याप्त होता
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है । वह अधिक सूक्ष्म है इसलिये अधिक प्रभावी है । अपनी
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है । वह अधिक सूक्ष्म है इसलिये अधिक प्रभावी है । अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिये वह
 
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इच्छाओं को पूरा करने के लिये वह
      
शरीर और प्राण की भी परवाह नहीं करता । उदाहरण के
 
शरीर और प्राण की भी परवाह नहीं करता । उदाहरण के
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प्रभावी है। वह भी शरीर का आश्रय लेकर रहता है
 
प्रभावी है। वह भी शरीर का आश्रय लेकर रहता है
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और शरीर के आकार का ही है । प्राण, मन, बुद्धि आदि
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और शरीर के आकार का ही है । प्राण, मन, बुद्धि आदि शरीर के समान ठोस नहीं हैं, अदृश्य हैं और अलग से जगह
 
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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शरीर के समान ठोस नहीं हैं, अदृश्य हैं और अलग से जगह
      
नहीं घेरते।
 
नहीं घेरते।
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तेजस्वी बुद्धि है । जटिल से जटिल बातें भी स्पष्टतापूर्वक
 
तेजस्वी बुद्धि है । जटिल से जटिल बातें भी स्पष्टतापूर्वक
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समझ जाना कुशाग्र बुद्धि है । बहुत व्यापक और अमूर्त बातों
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समझ जाना कुशाग्र बुद्धि है । बहुत व्यापक और अमूर्त बातों का भी एकसाथ आकलन होना विशाल बुद्धि है । ऐसे तीनों
 
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पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
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का भी एकसाथ आकलन होना विशाल बुद्धि है । ऐसे तीनों
      
गुर्णों वाली बुद्धि तात्तिक विवेक भी करती है और
 
गुर्णों वाली बुद्धि तात्तिक विवेक भी करती है और
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अनुभूति के लगभग निकट जाता है यद्यपि यह अनुभूति नहीं
 
अनुभूति के लगभग निकट जाता है यद्यपि यह अनुभूति नहीं
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है। चित्त के संस्कारों पर जब आत्मा
 
है। चित्त के संस्कारों पर जब आत्मा
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पिता के रज और वीर्य के माध्यम से संस्कार प्राप्त होते हैं ।
 
पिता के रज और वीर्य के माध्यम से संस्कार प्राप्त होते हैं ।
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माता और पिता के रज और वीर्य के
 
माता और पिता के रज और वीर्य के
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संस्कार प्रभावी होते हैं ।
 
संस्कार प्रभावी होते हैं ।
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
      
(२) संस्कारों का सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ
 
(२) संस्कारों का सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ
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वैर लेने के स्थान पर उपकार ही करता है तो व्यक्ति के ट्रेष
 
वैर लेने के स्थान पर उपकार ही करता है तो व्यक्ति के ट्रेष
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पर्व २ : उद्देश्यनिर्धारण
      
का रुपांतर स्नेह में होता है । इसे कहते हैं गुणान्तर ।
 
का रुपांतर स्नेह में होता है । इसे कहते हैं गुणान्तर ।
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और प्रच्छन्न दंड का प्रकार हुआ |
 
और प्रच्छन्न दंड का प्रकार हुआ |
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घर में स्वच्छता, पवित्रता, शांति
 
घर में स्वच्छता, पवित्रता, शांति
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१६, अंत्यिष्टि ।
 
१६, अंत्यिष्टि ।
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
      
इन संस्कारों की विधि, सामग्री, इस जन्म में प्रवेश करता है तब से उसकी मृत्यु हो जाती है
 
इन संस्कारों की विधि, सामग्री, इस जन्म में प्रवेश करता है तब से उसकी मृत्यु हो जाती है

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